नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने बिहार में चल रही सरकारी परियोजनाओं की पोल खोलकर रख दी है. गुरुवार 25 जुलाई को उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने बिहार विधानसभा में वित्तवर्ष 2022-23 की रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में कई विभागों में चल रहे परियोजनाओं के पूरा होने में लग रहे अधिक समय और वित्तीय अनियमितता की बात कही गयी है.
कैग ने पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड के क्रियाकलापों पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. पटना को स्मार्ट सिटी बनाने का दावा करने वाला विभाग अक्टूबर 2022 तक 44 में से 29 परियोजनाओं को शुरू भी नहीं कर सका था. कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि यह योजनाएं ‘अव्यवहारिक’ थी. इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया कि स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने कई ने कई परियोजनाओं पर मनमाना पैसा खर्च किया जो वित्तीय अनियमितता के दायरे में आता है.
बाद में, पीएससीएल ने 1,816.82 करोड़ रुपये की लागत वाली इन 29 परियोजनाओं को रद्द कर दिया तथा 15 परियोजनाओं की कुल लागत को संशोधित कर 381.06 करोड़ रुपये कर दिया. वहीं 448.98 करोड़ की 14 नई परियोजनाएं को मिशन के तहत जोड़ा.
पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने अगस्त 2022 तक 455.88 करोड़ की उपलब्ध निधि के विरुद्ध 132.51 करोड़ खर्च किए. यानी महज 29% राशि ही स्मार्ट सिटी द्वारा खर्च की जा सकी. जिससे साफ़ पता चलता है कि फण्ड की उपलब्धता के बावजूद, उचित नीति निर्धारण नहीं होने के कारण ‘स्मार्ट सिटी योजना’ के तहत होने वाला काम अधूरा रह गया. साथ ही कई योजनाओं निर्माण में लापरवाही बरती गई.
‘स्मार्ट मिशन’ के नाम पर खानापूर्ति
केंद्र की मोदी सरकार साल 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान स्मार्ट सिटी मिशन की घोषणा की थी. हालांकि, सरकार बनाने के एक साल बाद साल 2015 में केंद्र सरकार ने इसकी घोषणा की. केंद्र सरकार ने भारत के 100 शहरों पांच सालों के अंदर ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने की घोषण की. जिससे इन शहरों में मौजूद खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और घटिया सार्वजनिक सेवाओं को दुरुस्त कर लोगों को एक सुविधाजनक सेवा दिया जा सके.
बिहार से चार शहरों का चयन स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए हुआ जिसमें पटना का चयन जुलाई 2017 में हुआ था. योजना शुरू हुए सात साल हो चुके हैं लेकिन अब भी शहर में कई परियोजनाएं शुरू नहीं हो सकी. वहीं जिन परियोजनाओं को पूरा किया गया वह भी अब उपयोग लायक नहीं रही हैं.
पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने पटना को स्मार्ट शहर बनाने के लिए प्रोजेक्ट को दो हिस्सों में बनाया. एक हिस्सा क्षेत्र आधारित विकास (ABD) और दूसरा हिस्सा पटना नगर निगम के तहत आने सभी अंचलों (Pan City project) के लिए बनाया गया.
एबीडी डेवलपमेंट में गांधी मैदान में मेगा स्क्रीन, मंदिरी नाला का निर्माण, अदालतगंज तालाब का पुनर्निर्माण, आईसीसीसी पीएससीएल बिल्डिंग का निर्माण, सरकारी भवनों पर सोलर रूफटॉप लगाना, इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांसपोर्ट स्टैंड का निर्माण, छह स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना, वीरचंद पटेल पथ का पुनर्निर्माण, सबवे का निर्माण, लिंक रोड, ई-टॉयलेट का निर्माण, 3D वॉल पेंटिंग एंड मूर्ति का निर्माण, एस.के. मेमोरियल परिसर का नवीनीकरण, हैप्पी स्ट्रीट, मल्टी मॉडल ट्रांसिट हब, Facade Lighting, मल्टीलेवल पार्किंग और पटना जंक्शन पर ROB का निर्माण, एबीडी क्षेत्र के छह स्कूलों की सुविधाओं में विस्तार करना शामिल किया गया.
वहीं निगम क्षेत्र में आने वाले सभी अंचलों के प्रत्येक वार्ड में जन सेवा केंद्र का निर्माण, ठोस कचरा प्रबंधन और एकीकृत नियंत्रण और कमान केंद्र (ICCC) का निर्माण किये जाने का लक्ष्य रखा गया.
इनमें से कुछ परियोजनाएं जैसे गांधी मैदान में मेगा स्क्रीन (6.98 करोड़), अदालतगंज तालाब का पुनर्निर्माण (11.78 करोड़), वीरचंद पटेल पथ का रेनोवेशन (5.25 करोड़), सरकारी भवनों के ऊपर सोलर रूफ टॉप (3.86 करोड़) का निर्माण, वीरचंद पटेल पथ और बेली रोड को मजार की बगल से जाने वाले सबवे का निर्माण (1.98 करोड़), ई-टॉयलेट का निर्माण, जन सेवा केंद्र का निर्माण, स्मार्ट बस स्टॉप आदि का काम पूरा किया गया. लेकिन प्रबंधन और उचित रखरखाव के अभाव में यह सभी भी धीरे-धीरे बेकार हो गये.
जन सेवा केंद्र हुए बंद
पटना स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट (Patna Smart City Project) के तहत नगर निगम के क्षेत्र में कुल 28 जन सुविधा केंद्र खोले जाने थे. जहां वार्ड पार्षदों के कार्यालय के साथ-साथ पैन कार्ड, पासपोर्ट, बैंकिंग सर्विस, जन्म/मृत्यु प्रमाणपत्र, आधार रजिस्ट्रेशन और प्रिंटिंग, पेंशन सर्विस, इंश्योरेंस सर्विस, पोस्टल सर्विस जैसी 214 सेवाएं दी जानी थी.
लेकिन एजेंसी का चयन नहीं होने के कारण यह योजना बनने के बाद भी विफल हो गयी. बाद में विभाग ने इसका संचालन निगम के माध्यम से करवाने का निर्णय लिया था.
कैग रिपोर्ट में कहा गया 28 जन सेवा केंद्र के निर्माण के लिए 17.50 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था. लेकिन दिसम्बर 2021 तक केवल 10 जनसेवा केंद्र बनाए गये. वहीं सितम्बर 2022 तक 19 जनसेवा केंद्र तैयार हुए जिनपर 7.10 करोड़ रुपए खर्च किए गए.
लेकिन प्रबंधन के अभाव में यह योजना पूरी होने के बाद भी लोगों के काम नहीं आ सकी. अप्रैल 2023 तक तो 10 जन सेवा केंद्र, संचालक नहीं मिलने के कारण खुले ही नहीं. वहीं नौ केन्द्रों का संचालन एक आउटसोर्स कंपनी के माध्यम से किया गया लेकिन वह भी 2022 के बाद से बंद पड़ा है.
पटना स्मार्ट सिटी (smart city patna) पीआरओ प्रिया सौरव के अनुसार “महाबौद्ध जन स्वास्थ्य एवं सर्वांगीण विकास केन्द्र नाम की एक प्राइवेट एजेंसी को जन सुविधा केंद्रों के संचालन का जिम्मा दिया गया था. लेकिन एजेंसी इसका सही ढ़ंग से संचालन नहीं कर पा रही थी. इसी कारण हमने उनसे टेंडर वापस ले लिया. जल्द ही इन जन सेवा केन्द्रों का संचालन निगम खुद करेगा.”
कैग ने रिपोर्ट में कि परियोजनाएं पूरी होने की निर्धारित तिथि से 15 से 25 माह बीतने के बाद भी पूरी नहीं की जा सकी है. जिसका कारण उचित सर्वेक्षण के बिना और संबंधित हितधारकों के साथ परामर्श के बिना कार्य आवंटित करना, भूमि की अनुपलब्धता और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी इत्यादि शामिल है.
ई-शौचालय भी हुए बेकार
कैग ने अपनी रिपोर्ट में ई-शौचालय निर्माण और उसके संचालन में विभाग की विफलता का भी जिक्र किया है. रिपोर्ट के अनुसार पटना स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत 4.34 करोड़ रूपए की लागत से 42 ई-शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था. दिसम्बर 2021 तक 21 ई-शौचालय बनाए गये थे जबकि शेष 21 स्थान पर कार्य प्रगति पर था. इन शौचालय के निर्माण पर 0.66 करोड रुपए की राशि खर्च की गई थी.
हालांकि इन शौचालयों की स्थिति क्या है इसकी पड़ताल डेमोक्रेटिक चरखा ने बीते वर्ष की थी. इस दौरान गांधी मैदान और बोरिंग रोड स्थित ई-टॉयलेट में कई प्रकार की तकनीकी खामियां पाईं गई. कई ऐसे ई-टॉयलेट हैं जिनमें पैसा फंस जाता है.
इसके अलावा किसी व्यक्ति के अंदर नहीं होने पर भी डिजिटल डिस्पले पर "टॉयलेट इन यूज" दिखाई देता है जिससे दुसरे लोगों को यह लगता है कि शौचालय किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है.
वहीं ई-टॉयलेट के इस्तेमाल की जानकारी आम लोगों में नहीं होने के कारण भी यह जल्द ख़राब हो जा रहा है. ई-टॉयलेट की सफाई करने वाले सफाईकर्मी के अनुसार “लोग पैसा डाल कर थोड़ी देर इंतजार नहीं करते बल्कि गेट को जोर-जोर से धक्का देने लग जाते हैं जिससे गेट का लॉक सिस्टम ढीला हो जाता है और कई जगह पर तो खराब भी हो गया है.”
इससे पता चलता है विभाग योजनाओं के सफल संचालन के लिए लोगों को जागरूक करने में विफल है.
मधुबनी पेंटिंग पर किया व्यर्थ खर्च
पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड ना केवल योजनाये बनाने में विफल रहा है बल्कि उसने ऐसी योजनाओं पर भी पैसा खर्च किया है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर थे. विभाग ने वर्ष 2018 में शहर के प्रमुख चौक-चौराहों और अपशिष्ट संवेदनशील स्थानों पर मधुबनी पेंटिंग बनाने के लिए टेंडर निकाला. जबकि यह कार्य स्वच्छता अभियान के अंतर्गत आता था.
रिपोर्ट में कहा विभाग ने इसके लिए, नगर विकास एवं आवास विभाग और भारत सरकार से स्वीकृति भी नहीं लिया गया. संबंधित एजेंसी को वर्ष 2020 में 12.36 करोड़ रुपए भुगतान किया गया जिसे वित्तीय अनियमित माना गया.
वहीं सौर ऊर्जा संचयन के लिए लाई गयी योजना भी पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाई. पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने 42 सरकारी भवनों पर सौर पैनल लगाने का लक्ष्य रखा गया था. रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2022 तक केवल 19 भवनों पर ही सौर पैनल लगे थे. वहीं इन पैनलों को ग्रिड और नेट मीटरिंग से भी नहीं जोड़ा गया था.
कैग की रिपोर्ट बताती है किस तरह पटना स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत चलने वाली परियोजनाओं में अधीकारियों और निगरानी तंत्र की लापरवाही ने मिशन के उद्देश्य को विफल कर दिया है.