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हेट स्पीच और मॉब लिंचिंग
सात चरणों में समाप्त हुआ लोकसभा चुनाव 2024 कई वजहों से इतिहास में दर्ज हो चूका है. पहला तो चुनावी रिजल्ट की घोषणा के बाद नरेंद्र मोदी, जवाहरलाल नेहरु के बाद पीएम पद की सपथ लेने वाले दूसरे व्यक्ति बन गये हैं. जो कई मायनों में बीजेपी और नरेंद्र मोदी को उत्साहित करने वाला समय हो सकता था. लेकिन जिस तरह से 400 पार का नारा लगाने वाले अति-उत्साह के बाद पार्टी बहुमत के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सकी. इससे बीजेपी और उनके नेताओं को इस बात का जवाब तो मिल ही गया है कि जनता विकास, रोजगार और शिक्षा के मुद्दे पर वोट करेंगी. ना कि जाति, धर्म और उनके फैलाएं झूठे अलगाववादी बयानों.
पीएम मोदी ने अपने चुनाव प्रचार अंतिम दौर में जिस तरह दो समुदायों को विभाजित करने वाले बयान दिए, यह किसी भी ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति और उसके पद की गरिमा को धूमिल करने वाला था. पीएम मोदी ने कांग्रेस पार्टी और उसके घोषणा पत्र को झूठा और नीचा दिखाने की कोशिश में उस समुदाय के लिए अमर्यादित शब्दों का उपयोग किया जिन्होंने उन्हें दो चुनावों में बहुमत के आंकड़े छूने में सहयोग दिया था.
पीएम मोदी ने 21 अप्रैल को राजस्थान में आयोजित एक रैली में कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा, "कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि वे माताओं और बहनों के सोने की गणना करेंगे, इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे और फिर उस संपत्ति को 'घुसपैठियों' और 'जिनके ज़्यादा बच्चे हैं' में वितरित करेंगे. पीएम मोदी ने यहां तक कहा कि कांग्रेस महिलाओं का मंगलसूत्र छीनकर उनको दे देगी. पीएम मोदी ने इस बात का दोहराव बंगाल में रैली के दौरान भी किया था.
पीएम मोदी के अलगाववादी बयान यही समाप्त नहीं हुए. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 2006 में दिए गये बयान को आधार बनाते हुए कहा कि “कांग्रेस का कहना है कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुसलमानों का है.” इस बयान के बाद पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए पंजाब वासियों को लिखी चिठ्ठी में कहा था कि मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने “सार्वजनिक संवाद की गरिमा को कमज़ोर किया है और इस तरह प्रधानमंत्री कार्यालय की गंभीरता को भी कम किया है.”
प्रधानमंत्री मोदी के इन विभाजनकारी बयानों का असर चुनावी नतीजों पर पड़ना तय था. इसके कारण उन्हें ना केवल जनता के रोष का सामना करना पड़ा बल्कि पार्टी के अंदर कार्य कर रहे मुसलमान कार्यकर्त्ता भी इससे असहज हो गये.
बीकानेर स्थित बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला अध्यक्ष उस्मान गनी ने पीएम मोदी के बयानों की निंदा की थी. साथ ही कहा था एक मुसलमान होने के नाते पीएम मोदी की बाते उन्हें निराश करती हैं. मीडिया में दिए इस बयान के बाद पार्टी ने उन्हें छह सालों के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
हेट स्पीच और मॉब लिंचिंग
देश में नेताओं द्वारा अकसर अपने निजी लाभ के लिए दो समूहों के बीच तनाव उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है. इसके लिए नेता या जनप्रतिनिधि खुले मंच या सोशल मीडिया द्वारा भड़काऊ बयानबाजी करते हैं. जिससे किसी विशेष समूह के क्षेत्र में दंगे या दूसरे धर्म समुदाय से आने वाले लोगों को शक के आधार पर भीड़ द्वारा मारा-पीटा जाता है.
बीते सात जून को पशु तस्करी के आरोप में छत्तीसगढ़ के सहारनपुर में 3 युवकों की मॉब लिंचिंग की गई. जिसमें दो लोगों की मौत घटनास्थल पर हो गई जबकि तीसरे व्यक्ति की मौत इलाज के दौरान 18 जून को हो गई.
वहीं 18 जून को ही यूपी के अलीगढ़ में एक युवक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी. केंद्र में मोदी 3.0 सरकार के बनने के दूसरे हफ्ते में ही मॉब लिंचिंग की दो घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें चार लोगों की मौत हो गयी है. घटना का शिकार हुए चारों युवक मुस्लिम समुदाय से थे. साथ ही उनपर हमला गौ तस्करी और चोरी के शक के आधार पर किया गया.
2014 के बाद से हर साल मॉब लिंचिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई है. हालांकि इसके सरकारी आंकड़े मौजूद नहीं है. विभिन्न निजी संस्थाओं द्वारा इकठ्ठा किये गए आंकड़े इसकी गवाही देते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा तैयार की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 से 2017 के बीच मॉब लिंचिंग की 63 घटनाएं देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई, जिसमें 28 लोगों की मौत हो गयी. वहीं लगभग 80 लोग बुरी तरह घायल हुए. रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान दो महिलाओं के साथ गैंगरेप की घटना भी हुई.
मॉब लिंचिंग की अधिकांश घटनाएं गौकशी, बच्चा चोरी और सोशल मीडिया पर तेजी से फैलती दूसरी अफवाहों के कारण होती है. लेकिन इन सबके बीच जो समस्या समाज के सामने विकराल बनी हुई है वह है- असहिष्णुता और दूसरे धर्म जाति के प्रति घृणा.
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 से 2018 के बीच गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की 87 घटनाएं हुई जिनमें 50 फीसदी पीड़ित थे. 11 फीसदी मामलों में दलित इसका शिकार हुए. नौ फीसदी घटनाएं हिन्दुओं के साथ हुईं जबकि एक फीसदी मामलों में आदिवासी और सिख इसका शिकार हुए.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) देश में होने वाले अपराधों का लेखा-जोखा रखता है. लेकिन देश में बढ़ते हेट स्पीच और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को NCRB ने 2017 से दर्ज करना बंद कर दिया है. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इसकी लिखित जानकारी साल 2019 और 2022 में लोकसभा में मॉब लिंचिंग के आंकड़े मांगने पर बताये थे.उन्होंने कहा था "NCRB द्वारा साल 2017 में जमा किये गए आंकड़े विश्वसनिय नहीं थे. साथ ही इसका पूरा जिम्मा राज्यों पर डाल दिया.
ऐसे में यहां प्रश्न उठता है केंद्रीय संस्थाओं का निर्माण किन कार्यों के लिए किया गया है? जब वे तत्कालीन मुद्दों पर आंकड़े (DATA) जमा करने और उसका निदान निकालने में सक्षम नहीं हैं.
नेताओं के भड़काऊ बयान
मॉब लिचिंग(mob lynching) की बढ़ती घटनाओं में एक बड़ा हाथ नेताओं की भड़काऊ बयानबाजियां भी. देश के पीएम समेत अलग अलग पार्टियों के नेताओं ने विभिन्न समयों पर इस तरह के बयान दिए हैं जो समुदाय को उकसाते हैं.
AIMIM विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी ने साल 2013 में बयान दिया था कि “अगर 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दिया जाए तो हम (मुसलमान) 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं को ख़तम कर देंगे. दुनिया उसी को डराती है जो डरता है.”
हाल में ख़त्म हुए चुनाव में महाराष्ट्र के अमरावती से बीजेपी प्रत्याशी नवनीत राणा ने हैदराबाद में चुनाव प्रचार के दौरान इसी तरह के बयान दिए. राणा ने कहा “हैदराबाद में अगर 15 सेकंड के लिए पुलिस हटी तो दोनों भाईयों का पता नहीं चलेगा.”
चुनाव के दौरान मुसलमानों के प्रति नफरत भरे भाषण की आशंका इंडिया हेट लैब (India Hate Lab) 2023 ने पहले ही जताई गयी थी. फ़रवरी 2024 को जारी हुए रिपोर्ट में कहा गया था कि चुनावों के दौरान इसकी संख्या बढ़ेगी और आने वाले दिनों में इसमें कमी आने की उम्मीद नहीं है.
IHL रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में मुसलमानों के खिलाफ 668 बार नफरत भरे भाषण दिए गए, जिनमें से 498 घटनाएं (75 फीसदी) भाजपा शासित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हुए. इस दौरान महाराष्ट्र में 118, उत्तर प्रदेश में 104, मध्य प्रदेश में 65, राजस्थान में 64, हरियाणा में 48, उत्तराखंड में 41, कर्नाटक में 40 गुजरात में 31, छत्तीसगढ़ में 21 और बिहार में 18 हिट स्पीच के आयोजन किये गये.
रिपोर्ट के अनुसार 216 (32%) आयोजन बजरंग दल ने किया था, जबकि आरएसएस से संबंध रखने वाले भाजपा नेता, सकल हिंदू समाज और हिंदू जागरण वैदिक संगठनों ने 307 (46%) आयोजन किए थे. इस दौरान कम से कम 239 आयोजनों में कट्टर नेताओं ने प्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के लिए लोगों से अपील किया था. जबकि 420 आयोजनों में षड्यंत्र के तहत हिंसा की बात कही गयी थी.
इन आयोजनों में जिन शीर्ष नेताओं के नाम नफरत भरे भाषण देने में सामने आए उनमें, भाजपा विधायक टी राजा और नितेश राणे, अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद के प्रमुख प्रवीण तोगड़िया, दक्षिणपंथी प्रभावशाली काजल शिंगला, सुदर्शन न्यूज़ के मालिक सुरेश चौहान, हिंदू धार्मिक नेता- यति नरसिंहानंद, कालीचरण महाराज, साध्वी सरस्वती मिश्रा शामिल थे.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 54% नफरती भाषण की घटनाएं उन राज्यों में हुई है जहां 2023 या 2024 में विधानसभा चुनाव होने हैं.
चुनावी मैदान या उससे बाहर होने वाले आयोजनों में की गईं नफरत भरी बयानबाजियां दो समुदायों में तनाव का कारण बन जाती हैं. देश में नेताओं के नैतिक आचरण को नियंत्रित करने के लिए ठोस कानून नहीं होने के कारण निजी हमलों और नफरत फ़ैलाने वाले भाषण आम हो गये हैं, जिसका भयावह परिणाम समाज में मॉब लिचिंग के रूप में सामने है.