वज्रपात से होने वाली मौत में कब कमी लाएगी बिहार सरकार

वज्रपात के कारण जिन राज्यों में सबसे ज्यादा मौते होती हैं, बिहार उनमें दूसरे स्थान पर आता है. NCRB की 2022 की रिपोर्ट में सबसे ज्यादा मौतें मध्यप्रदेश (496), बिहार (329), ओडिशा (316), उत्तरप्रदेश (301) और झारखंड (267) में हुई थी.

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 झारखंड में बिजली गिरने से 10 लोगों की मौत

बिहार में मानसून की शुरुआत किसानों के लिए जहां एक तरफ खुशियों के संकेत साथ लाता है. वहीं दूसरी तरफ बारिश की अतिवृष्टि कई गांव और शहर को बाढ़ के चपेट में ले लेता है. बाढ़ और सुखाड़ मौसम जनित दो ऐसी प्राकृतिक आपदाएं हैं जिनके लिए आम जनमानस और सरकार तमाम तरह की तैयारियां करती है. लेकिन मानसून के समय एक और प्राकृतिक आपदा जिससे जान-माल का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, वह है ‘आकाशीय बिजली' इसके लिए आमलोग जागरूक नहीं रहते हैं. 

बीते एक हफ्ते में बिहार के सभी जिलो में मानसून सक्रीय हो चुका है. इन दिनों राज्य में मूसलाधार बारिश हो रही है. बारिश के साथ ही राज्य में बिजली गिरने की भी घटना और उनसे होने वाली मौतें दर्ज की जा रही है. एक जुलाई को राज्य के छह जिलों औरंगाबाद, भोजपुर, रोहतास, भागलपुर और दरभंगा जिलें में सात लोगों की मौत हो गई.

वहीं इससे पहले 26 जून को भी एक ही दिन में सात लोगों की मौत आकाशीय बिजली के चपेट में आने से हो गई थी. जिनमें मुंगेर से दो, भागलपुर दो, जमुई से एक, अररिया से एक, पश्चिम और पूर्वी चंपारण से एक-एक लोग शामिल थे. मृतकों में पूर्वी चंपारण से एक 10 साल का छोटा बच्चा भी शामिल है. वह खेत से अपनी मां के साथ घर लौट रहा था, इसी दौरान आकाशीय बिजली की चपेट में आ गया. वहीं मुंगेर में भी 7 साल का बच्चा घर के बाहर जामुन चुन रहा था, तभी आकाशीय बिजली उसपर गिर गई. 

सुपौल जिले के सरायगढ़ प्रखंड क्षेत्र के शाहपुर पृथ्वीपट्टी पंचायत के रामनगर गांव के वार्ड नंबर 10 के रहने वाले 40 वर्षीय ललन यादव की मौत भी वज्रपात के चपेट में आने से हो गई. ललन यादव खेती के अलावा परिवार चलाने के लिए ट्रक भी चलाते थे. 11 जुलाई को अपने ललन यादव अपने खेत में ट्रेक्टर से जोताई करवा रहे थे, तभी आकाशीय बिजली उनके ऊपर गिर गयी और मौके पर ही उनकी मौत हो गई. 

मुआवजा मिलना कितना आसान 

सीएम नीतीश कुमार ने इन सभी घटनाओं पर दुःख जताया है और मृतकों को चार-चार लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है. 

लेकिन क्या मृतकों के परिजनों को मुआवजे की राशि मिलना आसान है? और कितने परिवार को मुआवजा मिल पाता है? क्या केवल मुआवजे की राशि से पीछे छूट गये परिवार का भरण पोषण संभव है?

मृतक के ललन यादव के भाई प्रकाश यादव डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत में बताते हैं "भाई कि अचानक मौत से मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैं उसे देखकर बेहोश हो गया. गांव वालों ने कहा अब दाह-संस्कार कर दो. हमलोग निकल गये. हमारे निकलने के बाद प्रशासन घर पर आई. उन्होंने कहा मुआवजा तभी मिलता जब पोस्टमार्टम होता."

नीतीश कुमार का कहना है कि पीड़ित परिवार को मुआवजे की राशि 24 घंटे के अंदर मिल जानी चाहिए. लेकिन ललन यादव के पीछे छूटे छह लोगों के परिवार को घटना के 12 दिन बीतने के बाद भी कोई सहायता नहीं मिल सकी.  

इस साल अबतक वज्रपात कि घटनाओं में कितने लोगों को मुआवजा मिला है इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है. लेकिन यह निश्चित है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट इसमें अहम भूमिका निभाती है. इसकों हम मुंगेर जिले के आपदा प्रबंधन कार्यालय से मिले आंकड़े से भी समझ सकते हैं. 

मुंगेर जिले के आपदा कार्यालय में प्रोग्रामर राहुल कुमार बताते हैं. इस वर्ष जिले में अप्रैल से अबतक पांच लोगों की मौत आकाशीय बिजली से हुई है लेकिन मुआवजा केवल तीन लोगों को ही मिला है. कारण पूछने पर उन्होंने बताया "पोस्टमार्टम रिपोर्ट से संबंधित कुछ मामला है."  

ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि अगर किसी व्यक्ति की मौत आकाशीय बिजली के चपेट में आने से हो गयी हो. या फिर ऊसके खौफ से हार्ट अटैक आया और मौत हो गई तो क्या मुआवजा नहीं मिलेगा. क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण बिजली का झटका नहीं बताया गया? 

काली घनघोर घटा

क्या मुआवजे के लिए स्थानीय लोगों की गवाही और प्रशासन द्वारा ग्राउंड पर से जुटाए गये तथ्य सहयोगी नहीं होंगे?

सामाजिक कार्यकर्ता सुनील झा आकाशीय बिजली से होने वाली मौत और मिलने वाली मुआवजे कि राशि पर कहते हैं "वज्रपात के कारण जो लोग घायल हुए या जिनकी मृत्यु हुई, उनमें से अधिकतर वो लोग थे जो खेतों में काम कर रहे थे. खेती-किसानी में जो जोख़िम है उसे अबतक केवल फ़सलों के सूखने या बाढ़ में दह जाने या फ़सल उत्पादों के सही दाम ना मिलने से जोड़कर देखा जाता रहा है. पर अब हमें उसमें जान जाने का जोखिम भी जोड़ देना पड़ेगा. यानि अब केवल फ़सल बीमा ही नहीं बल्कि किसानों-खेतिहर मज़दूरों के जीवन बीमा की भी बात होनी चाहिए."

आकाशीय बिजली राष्ट्रीय आपदा नहीं

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पश्चिमी और मध्य भारत में आकाशीय बिजली गिरने का प्रकोप अधिक है. विभाग के अनुसार मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा उन राज्यों में शामिल है जहां बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं.

देश में आकाशीय बिजली हर वर्ष सैकड़ों लोगों की जान ले लेती है. लेकिन केंद्र सरकार इसे प्राकृतिक आपदा में नहीं गिनती है. जिसके कारण राज्य सरकार को इनसे होने वाली क्षति पूर्ति स्वयं ही उठानी पड़ती है.

आकाशीय बिजली कि भयावहता NCRB के आंकड़ों से भी समझी जा सकती है. जहां साल 2022 के रिपोर्ट के अनुसार देश में 8,060 मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई थी. इनमें 35.8 फीसदी (2,880) मौतें आकाशीय बिजली के चपेट में आने से हुई थी. जबकि हीट स्ट्रोक से 9.1 फीसदी मौतें और शीतलहर से 8.9 फीसदी मौते हुई थी.

केंद्र सरकार बाढ़, सूखा, भूकंप, चक्रवात, सुनामी, बादल फटना, हिमस्खलन, ओलावृष्टि, कीटों का हमला, ठंढ और शीतलहर को आपदा मानती है जो राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) के अंतर्गत आता है. हालांकि प्राकृतिक आपदाओं में शामिल इन सभी कारकों से ज्यादा मौतें आकाशीय बिजली से होती आ रही है, जिसे अबतक इस सूचि में शामिल नहीं किया गया है.

आकाशीय बिजली के कारण जिन राज्यों में सबसे ज्यादा मौते होती हैं उनमें बिहार शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है. NCRB की 2022 की रिपोर्ट में सबसे ज्यादा मौतें मध्यप्रदेश (496), बिहार (329), ओडिशा (316), उत्तरप्रदेश (301) और झारखंड (267) में हुई थी.

बीते वर्ष बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने केंद्र से इसे प्राकृतिक आपदा घोषित किए जाने की मांग की थी. इसपर आने वाले समय में केंद्र सरकार अपना फैसला दे सकती है.

ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा मौतें

बिहार समेत 16 राज्यों ने आकाशीय बिजली को राज्य स्तर पर प्राकृतिक आपदा घोषित कर रखा है. बिहार सरकार ने वर्ष 2015 में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने का निर्णय लिया था. सरकार ने इसके लिए बिहार आपदा जोखिम न्यूनीकरण रोडमैप भी तैयार किया था, जिसके तहत वर्ष 2030 तक प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली मौतों में 75 फीसदी तक की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया था.

लेकिन मानसून के दिनों में आकाशीय बिजली से जिस तरह राज्य में लगातर मौते हो रही हैं, लगता नहीं है कि सरकार इस दिशा में ज्यादा गंभीरता से कार्य कर रही है. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 953 मौतें प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई जिसमें अकेले आकशीय बिजली से 329 मौते हुई थी.

व्रजपात

इसके बावजूद बचाव और सुरक्षा के नाम पर राज्य में आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से कुछ क्षेत्रों में कभी-कभार वज्रपात से बचाव के उपाय बता दिए जाते हैं. साथ ही बिहार सरकार की इंद्रव्रज एप और केंद्र सरकार की दामिनी एप पर इसकी सूचना 24 घंटे पहले दी जाती है.

भारत का मौसम विभाग बिजली गिरने की सूचना विशेष रंगों वाले कोड से जारी करता है. पहला अनुमान बिजली गिरने से तीन दिन पहले और दूसरा तीन घंटे पहले जारी किया जाता है. वहीं बिहार सरकार का इंद्रव्रज एप तीन घंटे पहले यह भी बताता है कि 500 मीटर की रेंज में कहां बिजली गिरने वाली है.

एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 96 फीसदी ग्रामीणों की मौत होती है जिनमें 77 फीसदी किसान होते हैं. 

किसान के अलावे चरवाहे, मछुआरे, खुले में काम करने वाले मजदूर और जंगल में रहने वाले आदिवासी लोग भी इसमें शामिल हैं. ग्रामीण क्षेत्रों के यह ऐसे लोग हैं जिनके पास एंड्राइड फ़ोन की उपलब्धता आज भी काफी कम है. ASER 2022 कि रिपोर्ट कहती हैं कि भारत में 74.8 फीसद ग्रामीण घरों में एंड्राइड फोन हैं. रिपोर्ट कहती है बिहार उन राज्यों में से एक हैं जहां 70 फीसदी से कम ग्रामीण आबादी एंड्राइड फोन चलाती है.

हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में खराब नेटवर्क, मंहगा फोन रिचार्ज और फोन का उपयोगी इस्तेमाल नहीं जानने के कारण ग्रामीण उन एप का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं.

राहुल कुमार कहते हैं "लोगों के फ़ोन पर अलर्ट मैसेज भेजा जाता है. अगर फ़ोन में इंद्रव्रज  एप डाउनलोड है तो उसमें वाइब्रेशन अलर्ट आता है. साथ ही स्थानीय स्तर पर भी लोगों को जागरूक किया जाता है."

हालांकि ग्रामीण इस बात से आज भी अनभिग्य हैं. ग्रामीण प्रकाश यादव ऐसी किसी सूचना की जानकारी होने से इंकार करते हैं.    

एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार बिहार में बिजली गिरने की घटनाओं में 23.4% की कमी आई है. हालांकि राज्य अब भी उन 10 राज्यों में शामिल है जहां बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं. बिहार में 2021-22 के दौरान 2,69,266 आकाशीय बिजली धरती पर गिरी थी.

एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट कहती है कि देश में वर्ष 2019-20 की तुलना में बिजली गिरने की घटनाओं में कमी आई है. 2019-20 की तुलना में 2020-21 में बिजली गिरने की घटनाओं में 34% का इजाफा हुआ था. वहीं 2021-22 में इसमें 19.5% की कमी हुई है.

लाइटनिंग अरेस्टर कितना कारगर

साल 2015 में प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौतों को कम किये जाने के संकल्प के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2016 में पहली बार लाइटनिंग सेंसर जोन के लिए सर्वे का निर्देश दिया था. लेकिन जुलाई 2017 तक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ. लेकिन इसी दौरान मई से जुलाई के दूसरे हफ्ते तक 171 लोगों की मौत के बाद सरकार एक बार फिर जागी.

साल 2017-18 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी (पुणे) के अधिकारीयों ने बिहार में तीन स्थानों को चिन्हित किया था जहां लाइटनिंग डिटेक्टर मशीने लगाई जा सकी. टीम ने गया और मधुबनी में सेंसर लगाने के लिए जगह तय किया था.

इसके अलावा अर्थ सेंटर द्वारा राज्य में आठ सेंसर लगाए गए थे. जिनमें पटना में दो, खगड़िया, रोहतास, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, पूर्णिया और नवादा में एक-एक सेंसर लगाया गया था. साथ ही केंद्र सरकार द्वारा पटना, दरभंगा और गया में लाइटनिंग सेंसर लगाया गया हैं. इन सभी जगहों से प्रशासन को वज्रपात की पूर्व सूचना मिलती है. लेकिन फिर भी ग्राउंड लेवल पर ग्रामीण या स्थानीय लोगों में सूचना और समझ की कमी के कारण मौत का आंकड़ा कम नहीं हो पा रहा है.

जागरूकता ही बचाव

बिहार सरकार ने साल 2018 में पहली बार आकाशीय बिजली से बचाव के लिए लिए जन जागरूकता अभियान की आवश्यकता को समझते हुए इसके लिए मीडिया में विज्ञापन प्रसारित किया था.आज भी सोशल मीडिया, टीवी विज्ञापन या अख़बार के माध्यम से जानकारी साझा की जाती है.

सुनील झा कहते हैं "25 जून 2020 को वज्रपात से एक दिन में बिहार 100 लोगों की मौत हुई थी लेकिन आपदा विभाग ने 96 लोगों की संख्या दर्ज कि थी.उस दिन सचमुच ऐसा लगा था कि बिहार पर ही किसी ने बिजली गिरा दी हो. तब से लेकर आजतक इन घटनाओं में कोई कमी नहीं हुई है.लोगों में बचाव को लेकर जानकारी कम है. सरकार को इस मुद्दे को लेकर और ज्यादा संवेदनशील होने की जरुरत है." 

विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल या अख़बार से ज्यादा स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाना ज्यादा कारगर साबित हो सकता है. सबसे पहले उन क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जहां बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं. उसके बाद प्रभावित क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने होंगे. सभी ग्राम पंचायतों में बचाव और ऐसी परिस्थिति में फंसने पर क्या कदम उठाए जाएं इसकी जानकारी उपलब्ध करानी होगी. ताकि लोगों में यह समझ बने कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं.

इसके अलावा सरकार ताड़ के पेड़ो की संख्या बढ़ाकर, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों के किनारे इनके रोपण और संरक्षण को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं में कमी ला सकती है.

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