देश के अधिकांश राज्यों में राज्य सरकार द्वारा संचालित सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहतर नहीं है. वहां बच्चों की शिक्षा के लिए मूलभूत संसाधनों का अभाव है. जिसके कारण गरीब, अल्पसंख्यक और पिछड़े परिवार से आने वाले बच्चों को समान रूप से अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती है. यू-डायस के 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार देश के 14 करोड़ 32 लाख से ज़्यादा बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हैं. देश में राज्य और केंद्र द्वारा संचालित स्कूलों की संख्या 10 लाख 22 हजार 386 हैं.
सरकारी स्कूल में अभाव और शिक्षकों द्वारा पढ़ाने के तरीकों में कमियों को दूर करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने साल 2022 में पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम श्री स्कूल) योजना की घोषणा की थी. जिसके तहत देशभर के 14,500 स्कूलों का चयन कर उन्हें नई शिक्षा नीति में तय किये गये प्रावधानों के अनुकूल बनाया जाना है. योजना की अवधि पांच (2022-23 से 2026-27) सालों तक के लिए प्रस्तावित है.
बिहार क्यों हुआ लिस्ट से बाहर?
पीएम श्री स्कूल बनाये जाने की अवधि पांच सालों की है. पहले चरण की सूची पिछले साल मार्च महीने में ही जारी कर दी गयी है. पहले चरण में कुल 6,448 स्कूलों का चयन किया गया है जिनमें कुल 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 5,396 स्कूल शामिल हैं. इनमें केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों की संख्या 1,052 है.
हालांकि पहले चरण में आठ राज्यों ने इस योजना के लिए आवेदन नहीं किया था. इनमें राजधानी दिल्ली, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, केरल, ओडिशा और तमिलनाडु शामिल थें. यही कारण है कि इन राज्यों से एक भी स्कूल इस योजना के पहले लिस्ट में जगह नहीं बना पाए हैं.
अब यहां यह जानना ज़रूरी है कि इन राज्यों के स्कूलों ने इसमें भाग क्यों नहीं लिया? साथ ही इस योजना के लिए चयन के क्या आधार रखे गये हैं?
दरअसल, योजना में चयनित स्कूलों में नई शिक्षा नीति 2020 को पूर्णतः लागू किया जायेगा. साथ ही स्कूलों में उस अनुरूप पाठ्यक्रम और संसाधन विकसित किये जायेंगे. योजना में चयन के लिए तीन स्टेज (stage) बनाए गए हैं.
पहला स्टेज: केंद्र और राज्य सरकार के बीच बनी सहमति से शुरू होता है. राज्य और केंद्र के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया जायेगा जिसमें नई शिक्षा नीति को इन स्कूलों में लागू किये जाने की सहमति राज्य को देनी होगी. साथ ही इन स्कूलों के नाम के आगे पीएम श्री स्कूल जोड़ना अनिवार्य होगा, जो योजना समाप्ति के बाद भी लगे रहेंगे.
दूसरा स्टेज: इस चरण में, यू-डायस 2021-22 के डेटा के माध्यम से निर्धारित न्यूनतम बेंचमार्क के आधार पर स्थानीय अधिकारियों द्वारा स्कूलों का चयन किया जायेगा.
तीसरा स्टेज: तीसरे चरण में चयनित होकर आगे आने वाले स्कूलों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा. इसमें तय न्यूनतम अंक लाने वाले स्कूलों का भौतिक निरीक्षण राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों, केवीएस, एनवीएस द्वारा किया जायेगा, इसके बाद उनका चयन सुनिश्चित होगा.
नयी शिक्षा नीति के ख़िलाफ़ कई राज्य योजना में शामिल नहीं
शुरुआत से ही तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य नई शिक्षा नीति के विरोध में रहे हैं. इन राज्यों का आरोप है कि इस नीति के बहाने केंद्र सरकार देश में हिंदी और संस्कृत भाषा को अन्य भाषाओं पर थोपना चाहती है. हालांकि मार्च 2024 में तमिलनाडु ने पीएम श्री योजना में भाग लेने के लिए अपनी सहमति दे दी है. केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच शैक्षणिक वर्ष 2024-25 में इसके लिए सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया जा चुका है.
हालांकि तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री अनबिल महेश पोय्यामोझी ने साफ़ शब्दों में कहा कि “आज भी तमिलनाडु सरकार NEP के विरोध में हैं और NEP को कभी स्वीकार नहीं करेगी."
तमिलनाडु और केंद्र के बीच हुए समझौते पर पोय्यामोझी का कहना है कि छात्र हित में यह फ़ैसला लिया गया है. लेकिन राज्य सरकार शिक्षा को राज्य सूची में स्थानांतरित करने का प्रयास कर रही है. इसके लिए राज्य अपनी शिक्षा नीति भी बना रही है.
दिल्ली, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल को छोड़कर अन्य राज्यों ने योजना पर अपनी सहमति दे दी है.
बिहार ने भी इस साल नीतीश कुमार के वापस एनडीए में शामिल होने के बाद फरवरी महीने में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है. इससे पहले महागठबंधन की सरकार में राज्य ने इस ओर कोई पहल नहीं किया था.
बिहार की शिक्षा बदहाली किसी से छुपी नहीं
बिहार में सरकारी स्कूलों की बदहाली पर डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने कई रिपोर्ट्स बनाये हैं. जिसमें उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे और पढ़ाने वाले शिक्षकों की परेशानी साफ़ तौर पर देखी जा सकती है.
मुज़फ्फ़रपुर जिले के पारू प्रखंड के मोहम्मदपुर गांव में बना माध्यमिक स्कूल लगभग 20 सालों से मरम्मत की राह देख रहा है. साल 2005 में बने इस स्कूल में तीन गांव के लगभग 500 बच्चे पढ़ने आते हैं. लेकिन स्कूल की दीवार पर ना तो प्लास्टर है, ना ही खिड़की-दरवाज़ा है और ना ही स्कूल में बिजली-पानी, शौचालय और बेंच- डेस्क की व्यवस्था की गयी है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि जिलाधिकारी, विधायक और जिला पार्षद को कई बार आवेदन दिया गया है लेकिन आज तक केवल आश्वासन ही मिला है.
मुज़फ्फ़रपुर के पारू प्रखंड में बने इस स्कूल की स्थिति आपको काफ़ी बेहतर लग सकती है जब आप सुपौल जिले के घूरन पंचायत में बने हरिजन टोला प्राथमिक विद्यालय और कन्या उर्दू प्राथमिक विद्यालय की स्थिति जानेंगे. इन दोनों विद्यालयों के पास अपना कोई भवन नहीं है. दोनों विद्यालय टीन और फूस (एक प्रकार का सूखा घास) के बने कमरों में चलते हैं. जिनमें घूरन पंचायत के लगभग 400 बच्चे पढ़ते हैं.
स्कूल के लिए आवंटित जगह की घेराबंदी भी नहीं की गयी है. जबकि स्कूल से कुछ ही दूरी पर कोसी नदी की धारा बहती है जिससे हमेशा दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है. स्कूल में मुलभुत सुविधा के नाम पर केवल एक चापाकल मौजूद है. इसके अलावा सरकार क्लास रूम, बेंच डेस्क और शौचालय उपलब्ध कराना शायद भूल गई है.
यह स्थिति बिहार के केवल इन दो जिलों की नहीं है. बल्कि पूरे बिहार की कमोबेश यही हालत है.
यू-डायस के अनुसार राज्य में 93,165 स्कूल हैं जिनमें सरकारी स्कूल की संख्या 75,558 है. राज्य में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के 50,660 स्कूल हैं. इनमें दो करोड़ से ज़्यादा बच्चों का नामांकन दर्ज है. बच्चों की संख्या में और ज़्यादा बढ़ोतरी हुई होगी क्योंकि यू-डायस के यह आंकड़े 2021-22 के ही हैं.
बिहार में शिक्षा की यह बदहाल तस्वीर तब है जब सरकार वर्ष 2022-23 में शिक्षा का बजट 39,191 करोड़ रुपए रखा था. वहीं 2023-24 में बजट राशि बढ़ाकर 40,450 करोड़ कर दिया गया.
इन बदहाल स्थितियों के बीच अगर बिहार के कुछ सरकारी स्कूलों का चयन पीएम श्री स्कूल योजना के तहत किया जाता है तो जाहिर है उसका लाभ चयनित क्षेत्र के हजारों बच्चों को मिल सकेगा.
एक स्कूल को मिलेगा दो करोड़ रूपए का अनुदान
पीएम श्री के तहत चयनित स्कूलों पर केंद्र सरकार 27,360 करोड़ रुपए खर्च करेगी जिसमें प्रत्येक स्कूल को दो करोड़ रुपए मिलने हैं. प्रत्येक ब्लॉक से दो स्कूल का चयन किया जाना है, जिनमें एक प्राथमिक और एक माध्यमिक स्कूल शामिल होंगे. इस हिसाब से बिहार से 1068 स्कूलों के चयनित होने की संभावना है.
पीएम श्री के तहत चयनित स्कूलों में आधुनिक सुविधाएं जैसे -कंप्यूटर लैब, साइंस लैब, मैथ लैब, पुस्तकालय और खेल के मैदान होंगे. शिक्षक छात्रों को नए ढ़ंग से खेल-खेल में, प्रोयोगों के माध्यम से पढ़ाएंगे. जिससे छात्रों में प्रश्न पूछने और उसका हल निकालने की जिज्ञासा उतपन्न की जा सके. प्रत्येक बच्चे को मार्गदर्शन के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों से जोड़ा जायेगा. साथ इन स्कूलों को स्थानीय उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र (Eco system) से भी जोड़ा जायेगा.
ग्लोबल वार्मिंग के नुकसान और उसके प्रभाव को कम करने का हुनर भी छात्रों को इन विद्यालयों में दिया जाएगा. इसके लिए विद्यालयों को ग्रीन स्कूल के तौर पर विकसित जायेगा. जहां अपशिष्ट प्रबंधन, जल प्रबंधन, सौर ऊर्जा का उपयोग, वर्षा जल संचयन, प्लास्टिक मुक्त परिसर और जैविक खेती जैसे हुनर छत्रों को सिखाए जायेंगे.