NIRF रैंकिंग (nirf ranking) में बिहार के विश्वविद्यालय फिर से पिछड़ चुके हैं. विश्वविद्यालयों की बदहाल शिक्षा व्यवस्था छात्रों को बाहर जाने के लिए मजबूर कर रही हैं. यहां विश्विद्यालयों में सत्र लेट होने की समस्या, शिक्षकों की कमी, प्लेसमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण छात्र बारहवीं के बाद बाहरी राज्यों का रुख करने लगते हैं.
अच्छे भविष्य के लिए मां-बाप 12वीं के बाद बच्चे को बाहरी राज्यों के कॉलेज में भेजने का मन बना लेते हैं. अभी हाल में ही बिहार राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट कहती है कि बिहार के 80% छात्र 12वीं के बाद राज्य के बाहर पढ़ने या नौकरी करने चले जाते हैं. 12वीं पास करने वाले मात्र 20% छात्र ही राज्य के कॉलेजों में नामांकन लेते हैं.
पटना की रहने वाली मेधा सिंह आज एक्सिस बैंक, मुंबई में काम करती हैं. इन्होंने ने अपनी बीकॉम की पढ़ाई कोलकाता के भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज से की है. पहले पढ़ाई और अब जॉब के कारण वो बिहार के बाहर रहती है. पढ़ाई और बाहर रहने का कारण पूछने पर मेधा बताती हैं “बिहार के गिने चुने कॉलेज में ही अच्छी पढ़ाई होती है. जबकि हर साल लाखों बच्चे 12वीं पास कर रहे हैं. ऐसे में अगर अच्छी नॉलेज, स्किल और एनवायरनमेंट चाहिए तो बिहार से बाहर निकलना ही पड़ेगा.”
मेधा आगे कहती हैं “बिहार में स्कूलिंग तो बेहतर मिल जाती हैं लेकिन प्लस टू (12वीं) के बाद की पढ़ाई यहां करना बेहतर नहीं है. मेरे सारे दोस्त प्लस टू के बाद बाहर चले गये. पढ़ाई में ख़र्च ज़्यादा आता है लेकिन उसके बाद अगर आपने अच्छे से पढ़ाई की है तो अच्छे करियर की गारंटी रहती है.”
NIRF रैंकिंग में नहीं हैं बिहार का कॉलेज
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय हर साल देश के 100 सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों के लिए एक लिस्ट जारी करता है. साल 2023 के जून माह में NIRF (national institute ranking framework) द्वारा लिस्ट जारी की. लेकिन उस लिस्ट में बिहार का एक भी विश्वविद्यालय या संस्थान जगह नहीं बना पाया. अगर कॉलेज (college ranking) की बात की जाए तो कुछ चुनिंदा केंद्र संचालित कॉलेज को छोड़कर इसमें किसी को जगह नहीं मिला है.
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) पटना (66वीं), एनआईटी पटना (56वीं), आईआईएम बोधगया (53वीं), एम्स पटना (27वीं), राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (33वीं) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फर्मास्यूटिकल एंड रिसर्च (44वीं) के अलावा किसी कॉलेज को रैंकिंग में स्थान नहीं मिला है.
बिहार सरकार द्वारा संचालित किसी यूनिवर्सिटी, रिसर्च इंस्टिट्यूट या इंजिनीयरिंग कॉलेज को इस लिस्ट में जगह नहीं मिली है. NIRF विभिन्न मापदंडों के आधार पर देशभर के संस्थानों को रैंक देता है. प्रत्येक पैरामीटर का वेटेज संस्थान की श्रेणी के आधार पर अलग-अलग होता है. हर कैटेगरी के अंदर भी अलग-अलग श्रेणियां रखी गयी हैं:
- टीचिंग लर्निंग रिसोर्स (0.30)
- रिसर्च और प्रोफेसनल प्रैक्टिस (0.30)
- स्नातक परिणाम (0.20)
- आउटरीच और समावेशिता (0.10)
- धारणा (perception) (0.10)
940 कॉलेज में से किसी को NIRF में जगह नहीं
नैक की 2021 रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 36 यूनिवर्सिटी (bihar university) और 940 कॉलेज संचालित हो रहे हैं. लेकिन इनमें से किसी को एनआईआरएफ रैंकिंग (nirf ranking bihar) में जगह नहीं मिली है. वहीं नैक द्वारा मिलने वाली ग्रेडिंग में भी मात्र 8 विश्वविद्यालय और 172 कॉलेज को ग्रेड दिया गया है. सालों से केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग रखने वाले पटना यूनिवर्सिटी ने इसके लिए इस साल आवेदन तो किया था, लेकिन वह भी केवल नैक ग्रेडिंग के लिए.
क्योंकि पटना यूनिवर्सिटी (patna-university) को नैक द्वारा बी प्लस ग्रेड मिला हुआ है. रैंकिंग और ग्रेडिंग के संदर्भ में हमने पटना विश्वविद्यालय के आईक्युएसी निदेशक बिरेन्द्र प्रसाद से बात की तो उन्होंने कहा, “इस रैंकिंग के लिए हम पहले अप्लाई नहीं करते थे. लेकिन पिछले साल से हम इसके लिए अप्लाई कर रहे हैं. क्योंकि एनआईआरएफ रैंकिंग में भाग लेना भी बहुत बड़ी चीज है. दूसरी चीज हम नैक ग्रेडिंग के लिए अप्लाई करते हैं. नैक ग्रेडिंग में एक प्रश्न रहता है कि आपने एनआईआरएफ रैंकिंग के लिए अप्लाई किया है या नहीं. पहले हमें नहीं (No) में जवाब देना पड़ता था पर अब यह हां (Yes) है.”
पटना यूनिवर्सिटी क्या रैंक में शामिल हो पाएगी इस पर बीरेंद्र सिंह कहते हैं “रैंकिंग में तो कभी नहीं आ पायेगा. क्योंकि इसका कारण है. रैंक में आने के लिए डाइवर्सिटी (विविधता) बहुत ज़रूरी है. इस पर बहुत पॉइंट मिलते हैं. छात्रों की विविधता और शिक्षक की विविधता. मतलब दूसरे जगह के कितने स्टूडेंट आपके यहां पढ़ते हैं. इसलिए प्राइवेट यूनिवर्सिटी और कॉलेज को रैंक आ जाता है. वहां अलग-अलग राज्यों के स्टूडेंट और टीचर होते हैं. यहां बहुत कम केस में दूसरे स्टेट के स्टूडेंट आते हैं.”
शिक्षाविद अनिल कुमार रॉय इस पर कहते हैं “जब 100 कॉलेज या यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल रैंकिंग की बात आती है तो देश में इंटरनेशनल लेवल की कोई कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं है. वहीं जब इंडिया लेवल पर इस रैंकिंग को देखे तो इसमें बिहार का कोई कॉलेज नहीं आता है. ऐसे में बिहारी मध्यम या निम्न मध्यम परिवार अपने बच्चे को बाहर के राज्यों में पढ़ने भेज देते हैं. ताकि वो जीवन में कुछ अच्छा बन जाए.”
इंफ्रास्ट्रक्चर और लेट सत्र के डर से बच्चे जा रहे बाहर
बिहार के ज्यादातर यूनिवर्सिटी और कॉलेज फैकल्टी की कमी से जूझ रहे हैं. पटना यूनिवर्सिटी में करीब 40 फ़ीसदी फैकल्टी की कमी है. ऐसा ही हाल अन्य यूनिवर्सिटी और कॉलेजों का है. जिसे गेस्ट फैकल्टी के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है.
इसके साथ ही नॉन टीचिंग स्टाफ की भी कॉलेजों में बहुत कमी है. वहीं पटना यूनिवर्सिटी सहित राज्य की बाकि यूनिवर्सिटी में सत्र लेट चल रहा है. पटना यूनिवर्सिटी में जहां सत्र तीन से लेकर छह महीने तक लेट हैं. वहीं मगध यूनिवर्सिटी में यह देरी सालों की है.
मगध यूनिवर्सिटी में साल 2021 में पीजी और बीएड में नामांकन लेने वाले छात्रों का रिजल्ट अभी तक फाइनल नहीं हुआ है. यही हाल स्नातक के छात्रों के साथ भी हुआ है. लखीसराय के रहने वाले राघव राज दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस में पढ़ते हैं. बिहार के कॉलेज में एडमिशन नहीं लेकर दिल्ली जाने की को लेकर राघव कहते हैं “यहां के कॉलेज में वैसा स्कोप नहीं है, वो प्लेटफार्म नहीं है जो मुझे दिल्ली आने पर मिला है. मैं फिजिकल एजुकेशन से ग्रेजुएशन कर रहा हूं. बिहार के कॉलेज में इस कोर्स की केवल थ्योरी के आधार पर डिग्री मिल जाती. क्योंकि स्पोर्ट्स ग्राउंड नहीं है. वैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है.”
राघव अपने स्कूल के अच्छे कबड्डी प्लेयर में से एक रहे हैं. उन्हें स्टेट लेवल के कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. लेकिन बिहार के अंदर स्पोर्ट्स सब्जेक्ट में भविष्य की संभावना ना दिखने के कारण उन्होंने बाहर के कॉलेज में नामांकन लेना पड़ा. बिहार सरकार हर साल शिक्षा मद में बजट तो बढ़ा रही है लेकिन ना तो स्कूली शिक्षा में कोई सुधार हुआ है और ना ही कॉलेज स्तर की शिक्षा में कोई खास बादलाव आ रहा है.
शिक्षा व्यवस्था की बदहाल व्यवस्था राज्य के बच्चों को पलायन के लिए मजबूर कर रही है. पहले शिक्षा और उसके बाद नौकरी की तलाश युवाओं को अपने राज्य घर से दूर कर रही है. जबकि सरकार केवल अच्छी शिक्षा और रोजगार के खोखले दावे करने में लगी है.