बिहार शिक्षक नियुक्ति: रोजगार देने की 'मंशा' या 'चुनाव' की तैयारी?

2 नवंबर को पटना के गांधी मैदान 25 हजार नव नियुक्त शिक्षकों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा नियुक्ति पत्र दिया जाएगा. ये 3 सालों के कार्यकाल में सबसे बड़ी नियुक्ति है.

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बिहार शिक्षक नियुक्ति: रोजगार देने की 'मंशा' या 'चुनाव' की तैयारी?

गांधी मैदान में बिहार शिक्षक नियुक्ति पत्र वितरण

बिहार सरकार मंगलवार 2 नवंबर को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 1.20 लाख शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांटने जा रही है. पहले चरण के शिक्षक भर्ती परीक्षा(Bihar Teacher Appointment) में 1.70 लाख पदों के लिए नियुक्तियां निकाली गयी थी जिसमें से 1.20 लाख अभ्यर्थी सफल हुए हैं. इन्हीं सफल अभ्यर्थियों को राज्य के विभिन्न जिलों में नियुक्ति पत्र दिया जाएगा. पटना जिले में 25 हजार सफल अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा नियुक्ति पत्र दिया जाएगा.

हालांकि राजनैतिक जानकर इसे चुनावी तैयारी से जोड़कर देख रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले पांच सालों में सरकार ने एक भी बड़ी नियुक्तियां नहीं की हैं. लेकिन जैसे ही चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं नीतीश सरकार कुछ पदों पर नियुक्तियां लेकर युवाओं को झांसे में लेना चाह रही है.

विपक्षी पार्टियां सरकार पर हमलावर होते हुए उसपर चुनावी फायदा उठाने का आरोप लगा रही हैं.

कभी नौकरी देने के वादे पर कसा था तंज

तेजस्वी यादव ने साल 2020 के विधानसभा चुनाव(assembly elections) में कहा था कि अगर हमारी सरकार बनी तो हम 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देंगे. तेजस्वी यादव ने कैबिनेट की पहली बैठक में ही 10 लाख भर्तियां निकालने का वादा किया था. जिस पर उस समय बीजेपी के साथ गठबंधन में रहे नीतीश कुमार ने मजाक भी बनाया था.

उसी साल सिवान के जीरादेई और गोपालगंज के भोरे में रैली को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था, “कई लोग कह रहे हैं कि सत्ता में आने पर खूब नौकरियां देंगे. लेकिन इसके लिए पैसे कहां से लायेंगे? क्या ये पैसे जेल से लायेंगे या जाली नोट से सैलरी देंगे.”

तब राजद अध्यक्ष लालू यादव चारा घोटाला के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में थे.

नीतीश कुमार ने आगे जनता से झांसे में नहीं आने की अपील की थी. हालांकि बिहार के सियासी समीकरण जल्द ही बदल गये. बीजेपी का हाथ थामने वाले नीतीश कुमार अब राजद के साथ हो गये. कभी तेजस्वी पर तंज कसने वाले नीतीश कुमार अब तेजस्वी के साथ सरकार में हैं.

10 अगस्त 2022 को आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के पांच दिनों बाद ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नीतीश कुमार ने 10 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार देने का वादा किया.

उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार के ऐलान को ऐतिहासिक बताया था. हालांकि सरकार में आने से पहले नौकरी का वादा करना तेजस्वी यादव को जितना आसान लग रहा हो वह सरकार में आते ही चुनौतीपूर्ण लगने लगा था.

नीतीश कुमार(Nitish Kumar) के साथ आने के बाद तेजस्वी यादव से नौकरी के वादे पूरे करने पर सवाल किया जाने लगा. तेजस्वी ने मीडिया में इसका जवाब देते हुए कहा था कि “यह चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन हम रास्ता निकालेंगे. कम से कम चार-पांच लाख नौकरियों के लिए कुछ करेंगे.”

"पहले भाजपा बताये कि नौकरियां कहां हैं?"

जदयू के प्रदेश प्रवक्ता हिमराज राम भाजपा पर पलटवार करते हैं. उनका कहना है "भारतीय जनता पार्टी जो 10 साल से केंद्र में सरकार है. उसने वादा किया था कि हम लोग हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देंगे. इस हिसाब से अब तक 20 करोड़ लोगों को नौकरी मिल जानी चाहिए थी. लेकिन उनके मंत्री के द्वारा बयान दिया जाता है और अखबारों में छपता है कि हमने 7 लाख 22 हजार 311 लोगों को रोजगार दिया है. भाजपा पहले यह बताए कि क्या भाजपा शासित राज्यों में बिहार की तरह नौकरियां दी जा रही हैं?

रोजगार की बात आते ही असहज क्यों हो जाती हैं पार्टियां?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजों के बाद ये साफ हो गया था कि बिहार चुनाव में रोजगार मुद्दा हो ही नहीं सकता. नेताओं के बीच रोजगार को लेकर भी चर्चा नहीं होती है. जब भी किसी राजनैतिक दल से रोजगार को लेकर सवाल किया जाता है तो उनके प्रवक्ता असहज हो जाते हैं. वो अपने कार्यों को ना बताकर दूसरी पार्टियों के कार्यों पर सवाल उठाना ज्यादा पसंद करते हैं.

जिस समय बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे थे उस समय बिहार में बेरोजगारी दर 46.6% तक पहुंच चुका था. लेकिन किसी भी राजनैतिक दल के पास इससे निपटने का कोई रास्ता नहीं था. बिहार में पिछले 3 सालों से कोई बड़ी नियुक्ति नहीं हुई है. इन 3 सालों में बिहार ने छात्रों के कई प्रदर्शन भी देखें हैं. जिनका उद्देश्य रोजगार पाना था. लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 1 लाख से अधिक लोगों की नियुक्ति करके एक ‘उत्सव’ की तैयारी की जा रही है.

क्या बिहार में रोजगार की स्थिति ठीक हो पाएगी?

नीति आयोग (NITI Aayog) ने साल 2021 में बिहार को सबसे गरीब राज्य बताया था. 2011 की जनसंख्या के अनुसार देश के 14% प्रवासी लोगों का ताल्लुक बिहार से होता है. बिहार से पलायन करने में 55% कारण रोजगार की तलाश करना है. बिहार में रोजगार को लेकर सरकार ने काफी कम प्रयास किये हैं.

शिक्षाविद अनिल कुमार रॉय कहते हैं “सरकार के पास अगर शैक्षणिक संवेदना होती तो शिक्षक की बहाली पहले ही शुरू हो जाती क्योंकि बिहार में पौने तीन लाख शिक्षक के पद बहुत समय से खाली हैं. आज जो 1 लाख 20 हजार शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांटा जा रहा है, उनमें से अधिकतर शिक्षक पहले से ही नियुक्त हैं. क्योंकि पहले से कार्यरत शिक्षक भी राजकर्मी का दर्जा पाने के लिए परीक्षा दिए थे. जितनी बड़ी संख्या रोजगार देने की बात कही जा रही है दरअसल यह संख्या उतनी बड़ी है नहीं. मात्र 50 से 60 हज़ार नए लोगों को ही नौकरी मिली है.”

सरकार राजनीतिक लाभ उठाने के लिए बहाली निकालती है. सारा लोकतंत्र अब चुनाव के इर्द-गिर्द घूम रहा है. लोगों को यह समझना होगा कि शिक्षक तो हर साल रिटायर होते हैं ऐसे में शिक्षक नियुक्ति हर महीने होनी चाहिए क्योंकि यह एक सतत प्रक्रिया है. महीने में नहीं तो कम से कम साल में एक बार आंकलन करके शिक्षक नियुक्ति तो होनी ही चाहिए.

Nitish Kumar Bihar Teacher Appointment assembly elections