आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और जीविका दीदी राज्य में ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूती देने के लिए बहुत आवश्यक हैं. आशा ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बाल स्वास्थ्य की देखभाल करती हैं. आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका महिला और बाल पोषण की देखभाल करती हैं. वहीं जीविका दीदी गांव में रोजगार सृजन करना और शराबबंदी लागू करवाने का काम मुख्य तौर पर देख रही हैं.
लेकिन एक लंबे समय से आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और जीविका दीदी नियमित रोजगार और उचित मानदेय की मांग कर रही हैं. आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और जीविका के तौर पर काम करने वाली महिलाएं अपने लिए सरकारी नौकरी की मांग कर रही हैं.
पिछले 29 सितंबर से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर काम करने वाली महिलाएं गांधी मैदान में आंदोलन कर रहीं हैं. बिहार में आंगनबाड़ी सेविका को लगभग 6,000 और सहायिका को 2800 रुपए दिए जाते हैं. इतने कम मानदेय में काम करना महिलाओं को मंजूर नहीं है.
मानदेय नहीं वेतन की मांग
मानदेय को वेतन में बदलने की मांग करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मांग है कि सरकार उन्हें मानदेय की जगह वेतन दें. आंगनबाड़ी सेविका (anganwadi worker) पिंकी सुधा डेमोक्रेटिक चरखा से बताती हैं “हमें 5,600 रूपए मानदेय मिलता है. हमारी मांग है कि सरकार मानदेय बंद करे और हमें वेतन दें.”
पिंकी आगे कहती हैं “हमारा काम जनगणना, चुनाव से लेकर स्वास्थ्य विभाग की कोई भी योजना चाहे पोलियो टीकाकरण, कीड़ा और फाइलेरिया की दवा खिलाना हो, बच्चों का पोषण, गर्भवती महिला का पोषण सब करना पड़ता है. फिर भी हमें सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं दिया जा रहा है.”
आंगनबाड़ी सेविका रेखा कुमारी कहती हैं “हमने पहले के आंदोलन मुख्यमंत्री के आश्वासन पर रोक दिया था. उन्होंने वेतन बढ़ाने का आश्वासन दिया था लेकिन आज वो हमसे मिलने को भी तैयार नहीं है.”
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि इतने कम पैसे में उनके लिए घर चलाना संभव नहीं हैं. सेविका फातिमा खातून कहतीं हैं “आज हमें 5,960 रुपया मानदेय मिलता है. क्या इतने कम पैसे में अच्छा जीवन जीना संभव है. क्या हमारे बच्चे को पढ़ने-लिखने का हक नहीं है? पोलियो का देश से खात्मा आंगनबाड़ी सेविकाओं के कारण हुआ है. कोरोना में जब सब लोग घर में थे उस समय हम लोग काम कर रहे थे. जब काम में हमें आगे किया जाता तो मेहनताने में पीछे क्यों.”
बिहार के आलावा अन्य राज्यों में भी वेतनमान दिए जाने को लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता विरोध करती रहीं हैं.
उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मानदेय में बढ़ोतरी
लगातार विरोध के बाद पिछले वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में बढ़ोतरी की थी. पहले जहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 5,500 रुपए, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 4,250 रुपए, सहायिका को 2,750 रुपए मानदेय दिए जाते थे. उसे बढ़ाकर 8,000 रुपए, 6500 रुपए व 4,000 रुपए कर दिए गए हैं.
वहीं छत्तीसगढ़ में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली मासिक मानदेय की राशि 6,500 रूपए प्रति माह से बढ़ाकर 10 हज़ार रूपए किया गया है. इसी तरह आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय 3,250 रूपए से बढ़ाकर 5 हज़ार और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 4,500 रूपए से बढ़ाकर 7,500 रूपए किया गया है.
बिहार में भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने लिए अच्छे वेतन और सरकारी कर्मी का दर्ज़ा मांग रही हैं.
आंगनबाड़ी का दायित्व बड़ा लेकिन वेतन कम
आंगनबाड़ी का दायित्व 6 वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण का ध्यान रखना है. बच्चों को स्कूल पूर्व मिलने वाली अनौपचारिक शिक्षा देने का भार इन्हीं के ऊपर है. साथ ही स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए चलाई जाने वाली टीकाकरण अभियानों में भी आंगनबाड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
बिहार आईसीडीएस पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 1 लाख 17 हज़ार 820 आंगनबाड़ी हैं. जिसमें से 1 लाख 14 हज़ार 178 आंगनबाड़ी मौजूदा समय में कार्यरत हैं. ग्रामीण और स्लम बस्तियों के बीच स्थापित होने वाले इन आंगनबाड़ी केन्द्रों में 99 लाख से ज़्यादा बच्चे जुड़े हुए हैं.
लेकिन समय पर पोषाहार का पैसा और न्यूनतम मानदेय के कारण आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका अब काम करने को तैयार नहीं है. ऐसे में कुपोषण और मातृ सुरक्षा में सुधार की उम्मीद करना बेमानी है.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सेविका के लिए 25 हज़ार और सहायिका के लिए 18 हजार वेतन की मांग कर रहीं हैं. वहीं सेवानिवृति के बाद प्रतिमाह 10 हज़ार रूपए या एकमुश्त 10 लाख रुपए और स्वास्थ्य बीमा दिए जाने की मांग कर रहीं हैं. साथ ही काम के 8 घंटे निर्धारित किये जाने की भी मांग है.
‘आशा’ भी कर रहीं लंबे समय से आंदोलन
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की तरह आशा कार्यकर्ता (asha workers) भी लम्बे समय से वेतनमान दिए जाने की मांग कर रहीं है. पूरे देश में लगभग 10.4 लाख आशा कार्यकर्ता हैं. वहीं बिहार में इनकी संख्या लगभग 89,437 हैं.
शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ता लोगों के पोषण, स्वच्छता, महिलाओं को सुरक्षित प्रसव, स्तनपान, गर्भनिरोधक, टीकाकरण, बच्चे की देखभाल और यौन संक्रमण (आरटीआई/एसटीआई) की रोकथाम पर परामर्श देती हैं. आशा कार्यकर्ता प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक उपकेन्द्रों और सदर स्वास्थ्य केन्द्रों में मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं को घर-मोहल्लों तक पहुंचाती हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता और पटना यूनिवर्सिटी के गेस्ट फैकल्टी प्रभाकर कहते हैं “सरकार दुनिया का सबसे बड़ा पोषण अभियान सेविकाओं के माध्यम से चला रही हैं. देश का पोषण उनके कंधो पर हैं ऐसे में सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे कुपोषित ना हों. सरकार कहती है हम पार्ट टाइम जॉब दे रहे हैं. लेकिन आप ये बताएं कि क्या कोई ऐसी संस्था विकसित हो सकी है जहां 4 घंटा काम करने के बाद आप दूसरे जगह 4 घंटा काम कर सके. यहां 2 हजार के लिए भी 8 घंटा काम करना पड़ता है और 50 हजार के लिए भी उतना ही काम करना पड़ता है.”
जिन 'जीविका दीदियों' की वजह से तारीफ हुई उन्हीं पर बरसाई लाठियां
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साल 2022 में जीविका दीदी (jeevika didi) को शराबबंदी का ब्रैंड एम्बेसडर बनाया था. नीतीश कुमार के इस कदम की काफी तारीफ हुई थी. उन्हें महिला सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन जब यही जीविका दीदी 7 अक्टूबर को अपने मानदेय बढ़ोतरी के लिए सड़कों पर उतरी तो प्रशासन ने लाठीचार्ज किया. उनके ऊपर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया गया.
रेखा कुमारी सारण जिले की जीविका हैं. अपने पंचायत में वो सरकारी मिनी बैंक भी चलाती हैं. रोजगार को बढ़ाने के लिए सहकारिता समूह भी चलाती हैं. शराब बिक्री की खबर भी पुलिस को देती हैं. सरकार उन्हें इतने काम के लिए सिर्फ 1000 रूपए महीना देती है. इस राशि से नाराज रेखा कुमारी कहती हैं "सरकार हमें भीख मांगने पर मजबूर कर रही है. इससे ज्यादा तो हम लोग भीख मांग कर कमा लेते. जब तारीफ करवाना होता है तो जीविका को आगे करती है सरकार, फिर जब हम अपना हक मांगते हैं तो सरकार हम पर लाठी बरसाती है."
रोजगार पाना और उसका उचित वेतन मिलना संवैधानिक अधिकार है. लेकिन बिहार सरकार का रवैया पूर्ण रूप से असंवैधानिक है.