शहरीकरण और विकास की अंधी दौड़ ने हमारे सामने प्रदूषण को एक विकराल समस्या के रूप में खड़ा कर दिया प्रदूषण के कई रूपों में, बीते कुछ वर्षों में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है. वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़िया है.
रोड ट्रांसपोर्ट ईयर बुक 2023 के अनुसार भारत में कुल वाहनों की संख्या 34.8 करोड़ है और इसमें सालाना 2 करोड़ की वृद्धि देखी जा रही है. ऐसे में वायु प्रदूषण को कम करने और जीवाश्म ईंधन जैसे-पेट्रोल और डीजल पर एकमात्र निर्भरता को कम करने के लिए सरकार वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत जैसे सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है.
EV30@30 अभियान को राज्यों से भी मिल रहा समर्थन
भारत EV30@30 अभियान का समर्थन करता है जिसके तहत वर्ष 2030 तक नए वाहनों के बिक्री में कम से कम 30% इलेक्ट्रिक वाहन शामिल किए जाने हैं. वहीं इलेक्ट्रिक वाहनों पर जागरूकता और जानकारी उपलब्ध कराने के लिए वेबसाइट ई-अमृत की शुरूआत की है. यह वेबसाइट ईवी पर सभी तरह की जानकारी के लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन के रूप में कार्य करती है. जहां ईवी वाहनों के खरीद पर विभिन्न राज्यों में मिलने वाले सब्सिडी के साथ-साथ वाहनों के चार्जिंग डेस्टिनेशन की जानकारी भी उपलब्ध है.
भारत सरकार के EV30@30 अभियान को सफल बनाने के लिए राज्यों ने भी अपने यहां इलेक्ट्रिक वाहन (electric vehicle) नीति लागू किया है. दिसंबर 2023 को, बिहार सरकार ने भी इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2023 लाकर वर्ष 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया है.
बिहार सरकार ने साल 2028 तक राज्य के सभी पंजीकृत वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 15% रखने का लक्ष्य रखा है. यह नीति 2023 से 2030 तक बिकने वाले कुल वाहनों में 30% इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के लक्ष्य EV30@30 में सहयोग कर सकता है. साथ ही राज्य के 6 जिलों में 400 इलेक्ट्रिक बस के संचालन और इलेक्ट्रिक वाहनों के खरीद को प्रोत्साहन देने के लिए सब्सिडी और टैक्स में छूट दी जाएगी. वहीं पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग और चार्जिंग स्टेशन खोले जाने के लिए भी अनुदान दिया जाएगा.
टैक्सी सेवा कंपनियों को 50% इलेक्ट्रिक कार चलानी होगी
नए इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2023 के अनुसार टैक्सी सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों को नीति प्रकाशित होने के 2 साल के अंत तक 20% इलेक्ट्रिक कारों को अपने टैक्सी सेवा सिस्टम में शामिल करना होगा. वही उसके अगले साल में कारों की संख्या 40% तो चौथे साल के अंत तक अनिवार्य रूप इलेक्ट्रिक कारों की भागीदारी 50% करनी होगी. बिहार टैक्सी एग्रीगेटर परिचालन निदेश, 2019 के अंतर्गत अधिकृत दो पहिया वाहनों का परिचालन करने वाली कंपनियों के ऊपर भी यही नियम लागू होंगे. वहीं बाइक टैक्सी या कार टैक्सी की सेवा देने वाली एजेंसी अगर इन नीतियों का पालन करने में असफल रहती है, तो उनपर कड़ी कार्रवाई हो सकती है.
कैब सर्विस कंपनी RodBez के संस्थापक दिलखुश कुमार इलेक्ट्रिक वाहन नीति की सराहना करते हुए कहते है “सरकार की इलेक्ट्रिक वाहन नीति वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उठाया गया एक अच्छा पहल है. ईवी और सीएनजी ग्रीन फ्यूल के तहत आते हैं और हमारी कंपनी पहले से ही सीएनजी से चलने वाली गाड़ियां चला रही हैं.. आगे हम ईवी गाड़ियों को भी शामिल करेंगे. लेकिन व्यवसायिक मॉडल में ईवी की अनिवार्यता से पहले सरकार को कुछ काम तेजी से करने होंगे. दिल्ली जैसे राज्यों में चार्जिंग स्टेशन तेजी से लगाए जा रहे हैं. बिहार सरकार भी चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए राज्य के बाहर की कंपनियों या स्टार्टअप कंपनी को सिंगल विंडो सिस्टम प्रोवाइड कर सकती है.”
चार्जिंग स्टेशन की संख्या बढ़ानी होगी
भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए चार्जिंग स्टेशन (charging station) की संख्या अभी कम है. हालांकि बीते तीन वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है. जिस तरह हमें हर हाइवे या सड़क पर पेट्रोल पंप दिख जाते हैं, उसके मुकाबले चार्जिंग स्टेशन बहुत ही कम जगहों पर मिलते हैं.
भारत सरकार के ब्यूरो ऑफ़ एनर्जी एफिशिएंसी पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देशभर में इस समय 16,271 पब्लिक चार्जिंग स्टेशन चल रहे हैं. जिनमें आधे से अधिक पब्लिक चार्जिंग स्टेशन, कर्नाटक (5059), महाराष्ट्र (3079) और राजधानी दिल्ली (1886) में मौजूद है. वहीं बिहार (124) में इसके पड़ोसी राज्यों झारखंड (135), पश्चिम बंगाल (318) और उत्तर प्रदेश (583) के मुकाबले काफी कम संख्या में चार्जिंग स्टेशन मौजूद हैं.
कई बार यह सुझाव दिया जाता है कि पेट्रोल पंप पर ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चार्ज करने की सुविधा दी जानी चाहिए. लेकिन इसमें एक बड़ी चुनौती यह है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चार्ज करने में 1-5 घंटे का समय लगता है. ऐसे में ईवी को चार्ज करना किसी गाड़ी में पेट्रोल, डीजल या सीएनजी डलवाने जितना तेज नहीं है.
शुरुआती दौर में टैक्सी सर्विस कंपनियों को ईवी गाड़ियों के संचालन में आने वाली परेशानियों पर बात करते हुए दिलखुश कहते हैं “ईवी गाड़ियों के संचालन के लिए बिहार में अभी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की काफी जरूरत है. जैसे- चार्जिंग स्टेशन और ईवी गाड़ियों के सर्विसिंग की सुविधा. अभी हमारी कंपनी इंटरसिटी सर्विस देती है. ऐसे में हो सकता है हमें, बीच रास्ते में एक से दो बार गाड़ियों को चार्ज करना पड़े. ऐसे मे हर पेट्रोल पंप पर चार्जिंग स्टेशन होने से सुविधा होगी.”
इसके अलावा घर पर ईवी की बैट्री को चार्ज करने में भी अलग तरह की चुनौतियां हैं. आमतौर पर दोपहिया गाड़ियों या ई-रिक्शा की बैट्री को लोग घरों में ही चार्ज करते हैं. लेकिन इसमें लंबा समय लगता है, जैसे सुबह गाड़ी तैयार रखने के लिए उसे रात में चार्ज पर लगाना पड़ता है.
इलेक्ट्रिक वाहनों और बैट्री की रीसाइक्लिंग जरूरी
बिहार इलेक्ट्रिक वाहन नीति में बैट्रियों के रीसाइक्लिंग पर भी जोर दिया गया है. जिन इलेक्ट्रिक वाहनों के बैट्रियों की क्षमता का 70 से 80% तक उपजोग हो चुका है, उन्हें बदलना आवश्यक होगा. पर्यावरण को नुकसान ना हो, इसलिए रीसाइक्ल किया जाना आवश्यक है. इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग होने वाली बैट्रियों के निस्तारण में कई तरह की विषैली गैस उत्पन्न होती है, इसके अलावा इन बैट्रियों में लिथियम और कोबाल्ट जैसे रासायनिक तत्व सीमित मात्रा में मौजूद हैं. ऐसे में बैट्रियों की रीसाइक्लिंग प्रक्रिया काफी अहम हो जाती है.
बैट्रियों की रीसाइक्लिंग के लिए बिहार उद्योग विभाग, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग और राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद का सहयोग लिया जाएगा. इलेक्ट्रिक गाड़ियों में लीथियम आयन बैट्रियों का इस्तेमाल किया जाता है. ये बैट्रियां 6 से 7 साल तक ही चल पाती हैं. इसके बाद इन्हें बदलना पड़ता है. बैट्रियों की कम लाइफ के कारण भी लोग इसे खरीदने में हिचकते है. वहीं व्यावसायिक उपयोग में ईवी गाड़ियों की कम संख्या होने का एक प्रमुख कारण महंगी और अल्प जीवन वाली बैट्री भी है.
दिलखुश कहते हैं “कमर्शियल उपयोग के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियां मंहगी साबित होती है क्योंकि निजी उपयोग में लाई जा रही गाड़ियों की बैटरी कम से कम 4 साल चल जाते हैं लेकिन कमर्शियल उपयोग वाली गाड़ियों की बैट्री जल्दी खराब हो जाती है. क्योंकि बार बार चार्ज होने से उसकी लाइफ आधी हो जाती है. एक बैट्री की कीमत किसी इलेक्ट्रिक गाड़ी के तीन-चौथाई कीमत के बराबर होती है. ऐसे में व्यावसायिक उपयोग के लिए लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियां पसंद नहीं करते हैं.”
दिलखुश का कहना है, बैटरी की कीमतों में कमी आती है तो लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों का व्यावसायिक उपयोग आसानी से कर सकेंगे. भारत सरकार बैट्रियों की कीमत कम करने का प्रयास कर रही है. देश में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना को मंजूरी दिया गया है. यह योजना देश में एडवांस केमिस्ट्री सेल (एसीसी) के निर्माण के लिए लाई गई है.
आम लोगों के बजट में, रेंज की कमी
ईवी गाड़ियों के संचालन में चार्जिंग स्टेशन की कमी के साथ ही गाड़ियों की रेंज को लेकर भी ड्राइवरों के मन में डर पैदा होता है.अक्सर लंबी दूरी तक गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कम रेंज से परेशान होते दिखते हैं. ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिसिएंसी के मुताबिक दोपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों की रेंज 84 से 150 किलोमीटर प्रति चार्ज बताई गई है. वहीं तिपहिया वाहनों में 100 से 150 की रेंज मिलती है जबकि चौपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों की औसत रेंज 150-300 किलोमीटर प्रति चार्ज बताई गई है.
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि ज्यादा रेंज वाली इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत आम लोगों के बजट से बाहर है. सरकार का कहना है कि बेहतर बैट्री और ज़्यादा चार्जिंग स्टेशन लगवाने के बाद इस समस्या को दूर किया जा रहा है.