सड़क दुर्घटना (Road Accident) या आपात स्थिति में घायल हुए, व्यक्ति को तत्काल इलाज उपलब्ध कराये जाने के लिए साल 2001 में पटना के पालीगंज स्थित बिक्रम प्रखंड में ट्रामा सेंटर (Vikram Trauma Center) का शिलान्यास किया गया था. यह ट्रामा सेंटर साल 2004 में बनकर तैयार भी हो गया. लेकिन डॉक्टर और अन्य चिकित्सा कर्मियों की नियुक्ति नहीं किये जाने के कारण ट्रामा सेंटर आजतक चालू नहीं किया जा सका है. बिक्रम के स्थानीय लोग सेंटर चालू किये जाने को लेकर डेढ़ सालों से धरना प्रदर्शन पर बैठे हैं.
यह ट्रामा सेंटर बिक्रम के निवासियों समेत, भोजपुर, अरवल और औरंगाबाद (Bihta Aurangabad) के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. बिक्रम स्थित ट्रामा सेंटर का शिलान्यास केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. सीपी ठाकुर ने साल 2001 में किया था. राजधानी पटना को अरवल, औरंगाबाद से लेकर सासाराम-आरा तक जोड़ने वाले एम्स-बिक्रम नहर रोड और स्टेट हाईवे व एनएच-139 से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर ट्रामा सेंटर का निर्माण किया गया था.
नवंबर 2002 तक इस ट्रामा सेंटर में सभी चिकित्सकीय उपकरण लगा दिए गये थे. लेकिन इस्तेमाल और देखभाल नहीं होने के कारण उपकरण और भवन दोनों जर्जर हो चुके है. स्थानीय लोगों के अनुसार साल 2003, यहां छोटी सर्जरी शुरू की गयी थी, लेकिन कुछ ही महीनों बाद इसे बंद कर दिया गया. वहीं स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन जर्जर होने पर उसे इस ट्रामा सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया.
डेढ़ सालों, से धरने पर बैठे हैं लोग
बिक्रम प्रखंड में करीब 12 साल पहले तत्कालीन राज्यसभा सांसद सीपी ठाकुर की ओर से ट्रॉमा सेंटर का निर्माण कराया गया, लेकिन यह अबतक चालू नहीं हो सका है. आज भी आपात स्थिति में लोगों को पटना आना पड़ता है जिसके कारण कभी-कभी व्यक्ति की मौत भी हो जाती है. आज से दो साल पहले सड़क दुर्घटना का शिकार हुए स्वाति मिश्रा के पिता आज भी बीमार रहते हैं. स्वाति के पिता का एक्सीडेंट बिक्रम ट्रामा सेंटर से कुछ ही दूरी पर हुआ था. लेकिन ट्रामा सेंटर बंद होने के कारण उन्हें बिहटा स्थित NSMCH अस्पताल में ले जाया गया.
बिक्रम बाजार की रहने वाली स्वाति मिश्रा डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत में बताती हैं “मेरे पापा बारात में गये थे. अगली सुबह घर आने के दौरान एक ट्रक ने उन्हें धक्का मार दिया. पापा आधे घंटे तक सड़क पर तड़पते रहे थे लेकिन किसी ने उन्हें अस्पताल नहीं पहुंचाया. सब वीडियो बनाते रहे. उस एक्सीडेंट में उनके बाएं हिस्से में काफी चोटे आईं थी. आधे घंटे बाद उन्हें बिहटा, NSMCH में ले जाया गया. डॉक्टर ने गंभीर हालत में उन्हें पटना रेफर कर दिया. वहां महीनों अस्पताल में रहने के बाद उनकी जान तो बच गयी लेकिन बायां हिस्सा कमजोर हो गया.”
स्थानीय लोग बताते हैं, केवल बिक्रम के क्षेत्र में रोजाना पांच से छह रोड एक्सीडेंट होते हैं, जिन्हें गंभीर अवस्था में पटना के पीएमसीएच या एम्स रेफर कर दिया जाता है. लेकिन ट्रामा सेंटर में संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से रेफर किए जाने का कागज बनते-बनते पीड़ित की मौत हो जाती है. समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण चार लोगों की मौत हो जाती हैं.
स्थानीय लोगों द्वारा ट्रामा सेंटर खोले जाने के लिए सितम्बर 2022, से धरना प्रदर्शन जारी हैं. लेकिन स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा इसपर ध्यान नहीं देने के कारण करोड़ों की लागत से तैयार हुआ यह सेंटर खत्म हो चुका है. साल 2021 में भी स्थानीय लोगों ने यहां छह दिनों का आमरण अनशन शुरू किया था.
पायलट योजना के तहत हुई थी शुरुआत
राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highway) पर होने वाले एक्सीडेंट में घायलों को तत्काल इलाज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एनएच पर प्रत्येक 100 किमी पर एक ट्रामा सेंटर स्थापित किए जाने की योजना लाई गयी थी. ट्रामा सेंटर कार्यक्रम के तहत, राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित सरकारी अस्पतालों में ट्रॉमा केयर सुविधाएं विकसित करने के लिए 11वीं और 12वीं FYP के दौरान देश में कुल 116 अस्पतालों और 85 ट्रामा केयर विकसित किये जाने के लिए 461.8837 करोड़ और 269.1296 करोड़ रुपए जारी किये गये थे.
2019 में तत्कालीन राज्य मंत्री (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया था कि "10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बिहार सरकार को बिक्रम रेफरल सेंटर, पटना में आपातकालीन सेवाओं को मजबूत करने के लिए एक पायलट योजना के तहत 1.5 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी. वहीं बिहार सरकार ने सूचित किया है कि बिक्रम, पटना में छह बिस्तरों वाले ट्रॉमा सेंटर का निर्माण 2004 में ही किया जा चुका है."
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, बिहार सरकार ने नौ अन्य जिलों के अस्पतालों में ट्रामा सेंटर फैसिलिटी (TCF) स्थापित करने के प्रस्ताव प्रस्तुत किए थे. राज्य सरकार ने सिविल अस्पताल, किशनगंज; जिला अस्पताल, पूर्णिया; सिविल अस्पताल, मधेपुरा; दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल, दरभंगा; एसके मेडिकल कॉलेज अस्पताल, मुजफ्फरपुर; सिविल अस्पताल, गोपालगंज; सिविल अस्पताल, झंझारपुर; सदर अस्पताल, सासाराम व रोहतास; और एएन मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल, गया.
अश्विनी चौबे ने लोकसभा में बताया था कि इन सभी प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई है और अनुमोदित टीसीएफ के लिए पहली किस्त के रूप में राज्य सरकार को 6.45 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं.
ट्रामा सेंटर संघर्ष समिति के जुड़े दीपक कुमार बताते हैं “यह देश का पहला ट्रामा सेंटर था. जो अटल जी के कार्यकाल में बिहार को मिला था. उस समय पुरे देश में केवल तीन ट्रामा सेंटर बनाए जाने की स्वीकृति मिली थी. जिसमें एक अटल जी, दूसरा आडवानी और तीसरा बिहार के हिस्से में आया था. उस समय इस ट्रामा सेंटर की लागत चार से पांच करोड़ रूपए बताई गयी थी लेकिन अब कबाड़ हो चुके सारे मशीन लगाने में 100 करोड़ भी खर्च हो सकते हैं.”
दीपक कुमार का कहना है कि इसबार स्थानीय लोगों ने ठान लिया है कि “ट्रामा नहीं तो वोट नहीं.”
देशभर में होने वाले एक्सीडेंट की गंभीरता के मामले में मिजोरम (85%) के बाद बिहार (82.4%) और पंजाब (77.5%) का स्थान आता है. वहीं बिहार (6ठे) उन दस राज्यों के लिस्ट में भी शामिल हैं जहां नेशनल हाईवे पर सबसे ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं. रोड एक्सीडेंट में होने वाली मौतों में भी सिक्किम (17%) के बाद बिहार (9%) का स्थान आता है. वहीं राज्यभर में होने वाले इन रोड एक्सीडेंट के घटनाओं में ग्रामीण क्षेत्र (5,664) में शहरी क्षेत्र (2,578) की अपेक्षा ज्यादा घटनाएं होती हैं.
सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली इन मौतों को 50% तक कम किया जा सकता अगर पीड़ितों को एक घंटे के अन्दर इलाज मिल जाये. इसलिए सरकार को राष्ट्रीय राजमार्गों पर अवस्थित अस्पतालों और ट्रामा सेंटर को विकसित करने पर ध्यान देना होगा.