भारत की आधी से ज्यादा आबादी बल्कि हर तीन में से दो आदमी खेती और खेती से जुड़े हुए कामकाज करती है. अर्थव्यवस्था में इसका कुल योगदान 18.3% है. वर्तमान समय में खेती और खेत का कांसेप्ट भले ही पुराना हो गया हो, लेकिन आज भी पंजाब, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में खेती जीविका का मुख्य श्रोत है.
एक किसान के लिए फसल उसके बच्चे जैसा होता है, फसल के लिए बीज खरीदने से लेकर उसे रोपने, सींचने, बड़ा करने, किट-पतंगों से बचाने, कटाई करने और फिर बाजार में बेचने तक किसान हर वक्त उसकी सेवा करता है.
इस सेवा के दौरान कई बार मौसम की मार और कीटों का हमला भी फसलों पर होता है, जिससे बचने के लिए किसान कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन बाजारीकरण और मुनाफे के लालच ने हाल के वर्षों में कीटनाशकों(pesticides) का इस्तेमाल बढ़ाया है.
जहरीली हो रही है धरती, पानी और हवा
कीटनाशक का इस्तेमाल किसान अंधाधुन तरीके से करते हैं. मात्रा का ख्याल रखे बिना कीटनाशक का प्रयोग करने से फसल जहरीली हो जाती है. खेत की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल में लाए जाने वाले हजारों टन रासायनिक उर्वरक(chemical pesticides) हर साल जमीन में रिसते है, हवाओं में बहते है या नदियों में चले जाते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स में छपी एक रिसर्च के मुताबिक वैज्ञानिकों ने 92 तरह के कीटनाशकों पर शोध किया, जिसमें पाया गया की कीटनाशक लंबी दूरी की यात्रा तय करते हैं. हर साल दुनिया भर में 730 टन कीटनाशक खेतों से नदियों में मिल जाते हैं. हानिकारक कीटनाशक नदियों में जाकर पानी के पोषक तत्व और ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देते हैं. जिससे पानी में मौजूद जलीय जीवन पर बड़ा असर पड़ता है.
मौजूदा समय में कीटनाशकों का प्रयोग पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ चुका है. किसान फसलों पर बार-बार कीटनाशक का छिड़काव करते हैं, उन्हें ऐसा लगता है कि कीटनाशक का ज्यादा इस्तेमाल से पैदावार बढ़ेगी.
ABP में अगस्त 2023 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक FAOSTAT के मुताबिक 1996 और 2006 के बीच कीटनाशकों के इस्तेमाल में 46% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जिसमें ऑर्गेनोफॉस्फेट, कार्बामेट और पायरेथराइड कीटनाशक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया है.
भारत में 2013 के बाद कीटनाशकों के इस्तेमाल में 5000 मीट्रिक टन की बढ़ोतरी हुई है. भारत में कई तरह की सब्जियों का उत्पादन होता है जिसमें टमाटर, प्याज, बैंगन, पत्ता गोभी इत्यादि शामिल है. वर्तमान समय में देश में लोगों का पेट भरने के लिए सब्जियों के उत्पादन को बढ़ाना जरूरी है जिसमें सबसे ज्यादा बाधा किट पैदा करते हैं. भारत में हर साल 10 से 30% सब्जियों पर कीट-पतंग का संक्रमण होता है.
केंद्रीय वित्त एवं कारपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2023 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2022-23 की रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि “जलवायु परिवर्तन (climate change) संबंधी चुनौतियों के बावजूद 2021-22 में भारत में कुल अनाज उत्पादन रिकॉर्ड 315.7 मिलियन टन रहा.”
वैश्विक स्तर पर बढ़ा है कीटनाशक का प्रयोग
भारत के अलावा वैश्विक स्तर पर हर साल 730 टन कीटनाशक का इस्तेमाल खेती में किया जा रहा है. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के किए गए शोध "सब्जियों में कीटनाशकों के प्रयोग की विवरणिका" के अनुसार भारत में 1955-56 से 1990-91 के बीच हर साल कीटनाशकों की खपत में वृद्धि दर्ज की गई थी. इसके बाद से लगातार इसमें कमी देखी गई है. लेकिन फिर से 2011-12 में किट और रोग नाशकों की खपत बढ़ गई, 2011-12 में इसकी खपत 50,583 टन थी.
भारत में सबसे ज्यादा 37% कीटनाशकों का प्रयोग कपास के फसलों में किया जाता है. उसके बाद 20% धान, 6% गेहूं, 13% सब्जी, 5% चाय, 3% दलहन, 2% अंगूर और 2% तैलीय फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है.
स्वास्थ्य पर डालता है गंभीर असर
किसानों के अधिक मात्रा में कीट और रसायनों का इस्तेमाल करने से जमीन में पैदा होने वाले अच्छे कीटों की संख्या में कमी हो रही है. खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों के घुलने से स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही है.
अधिक कीटनाशक वाले फसलों को खाने से इंसान के शरीर पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा है. कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी कीटनाशक वाले फसलों को खाने से हो रही है. वहीं अल्जाइमर और दमा जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा भी बना रहता है. कई शोध में दावा किया गया है कि कीटनाशक से न्यूरोलॉजिकल बीमारियां हो सकती हैं.
कीटनाशक के संपर्क में आने से अस्थमा, फेफड़ों के कैंसर और बच्चों को भी कई तरह की बीमारियां हो रही है. अगर मां गर्भावस्था के दौरान कीटनाशक के संपर्क में आती है तो बच्चे की मानसिक स्थिति पर इसका सीधा असर पड़ता है.
बैन के बाद भी बाजारों में उपलब्ध प्रतिबंधित कीटनाशक
कीटनाशक का इस्तेमाल न करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सरकार लगातार जागरुक कर रही है. ऑर्गेनिक खेती करने के लिए भी कई उपाय किए जा रहे हैं. जैविक खाद को बढ़ावा दिया जा रहा है, कई जगहों पर सोलर लाइट ट्रिप का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है.
नतीजतन भारत में जैव कीटनाशकों की कुल खपत 2014-15 से 2022-23 तक 41% तक बढ़ी है. केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति में 970 जैविक कीटनाशक उत्पाद रजिस्टर्ड है.
हालांकि इसके बाद भी के कई प्रतिबंधित कीटनाशक इंडिया मार्ट जैसे बड़े ऑनलाइन प्लेटफार्म और आसपास के खाद दुकानों में बेचे जा रहे हैं.
जबकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने वर्ष 2023 में, भारत में प्रतिबंधित कीटनाशकों की जानकारी दी थी. राज्यसभा में लिखित जानकारी देते हुए तोमर ने 46 कीटनाशकों पर बैन और चार कीटनाशक फॉर्मूले के आयात, निर्माण और उपयोग पर प्रतिबंध की जानकारी दी थी. साथ ही 8 कीटनाशकों के पंजीकरण और 9 कीटनाशकों को प्रतिबंधित उपयोग के अंतर्गत बताया था.
कृषि वैज्ञानिक इस्तियाक अहमद से की गई बातचीत के अनुसार भारत में कई तरह के कीटनाशकों को समय-समय पर बैन किया जाता रहा है. लेकिन कीटनाशक बनाने वाली कंपनी केमिकल में थोडा़ बहुत बदलाव करके वापस उसे मार्केट में बेचने लगती है. इन भारी केमिकल वाले कीटनाशकों ने इंसानों के साथ-साथ अच्छे कीटों, छोटी चिड़ियों, तितलियों और मधुमक्खियों पर भी बुरा प्रभाव डाला है. जिसके कारण बायो डाइवर्सिटी प्रभावित हो रही है.
इश्तियाक अहमद कहते हैं “मधुमक्खियों पर कीटनाशकों का भारी प्रभाव पड़ा है. अभी के समय में मधु बनाने वाली मक्खियां नहीं बची क्योंकि उनके हिसाब के वातावरण और पेड़-पौधे नहीं रह गए हैं. सैकड़ों तरह के कीड़े कीटनाशक के छिड़काव की वजह से धरती से खत्म हो गए हैं. किसान पैसे देकर कीटनाशक के रूप में अपने और सभी के लिए जहर खरीद रहा है.”
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार केवल 3 से 4% कीट ही फसलों के लिए नुकसानदेह होते हैं. 97% कीट दूसरों कीड़ों को खाने वाले होते हैं, वो फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. अगर समय रहते कीटनाशकों के प्रयोग पर रोक नहीं लगाई गई तो आने वाले 20-25 सालों में इसके गंभीर परिणाम झेलने होंगे.