पटना नगर निगम द्वारा एक बार फिर पटना की सड़कों को अतिक्रमण मुक्त बनाए जाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है. बीते 13 नवम्बर से यह अभियान शुरू किया गया है, जिसमें शहर के व्यस्तम इलाके जहां जाम की समस्या सबसे ज्यादा परेशान कर रही है, वहां की सड़कों पर से फुटपाथी दुकानदारों को हटाया जा रहा है.
मंगलवार (19 नवंबर) को जब नगर निगम की अतिक्रमण हटाओ टीम बोरिंग कैनाल रोड चौराहा अतिक्रमण हटाने पहुंची तो इस अभियान से नाराज कुछ फुटपाथी दुकानदार इसके विरोध में उतर गए. लगभग 100 की संख्या में फुटपाथी दुकानदार हंगामा करते हुए जेसीबी के सामने लेट गए. जिससे कुछ समय के लिए वहां अफरा-तफरी का माहौल बन गया.
गया के रहने वाले संतोष बोरिंग रोड में करीब 30 सालों से फ़ास्ट फूड की दुकान चला रहे हैं. दुकान हटाए जाने का विरोध करते हुए संतोष कहते हैं “मेरा कहना है कि क्या सरकार हमें रोजगार देगी? हम लोग कर्ज लेकर या फिर उधार लेकर रोड पर रोजगार करते हैं. उसमें भी हमें बार-बार परेशान किया जाता है. कल मेरा ठेला नगर निगम पकड़ कर ले गई, 30 हजार का लॉस हो गया. कौन देगा हमको यह पैसा?”
दुकानदार कहते हैं कि नगर निगम कि हल्ला गाड़ी आकर उनकी दुकान जब्त कर लेती है. जिससे उनकी दुकानदारी पर असर पड़ता है. संतोष यहां नगर निगम के कर्मचारियों पर अवैध वसूली का भी आरोप लगाते हैं. संतोष कहते हैं “हमेशा नगर निगम से आए लोग हम लोगों से अवैध वसूली करते है. गरीब लोग है डर से दे देते हैं ताकि दो पैसा कमा सके. लेकिन जो दुकानदार पैसा नहीं देता है अभियान वाले दिन खास करके उसका ठेला तुरंत उठा लिया जाता है.”
क्या कहता है पटना नगर निगम?
दुकानदारों की इन आरोपों और समस्याओं को लेकर हमनें पटना नगर निगम कि पीआरओ श्वेता भास्कर से बात की. दुकानदारों के आरोपों से इतर निगम का कहना है कि यह अभियान केवल शहर को जाम मुक्त बनाए जाने को लेकर चलाया जा रहा है. यह दुकानदारों को परेशान किये जाने या उन पर फाइन लगाने को लेकर नहीं है.
श्वेता भास्कर कहती हैं “अगर आप अभियान के रूट को देखेंगे तो समझेंगे की यह केवल उन रूटों पर चलाया जा रहा है जहां सबसे ज्यादा जाम लगता है. हमने पहले ही इसका रूट चार्ट भी जारी किया है. आम जनता के सहुलियत के लिए शहर को जाम मुक्त रखने की जिम्मेदारी हमारी है. और फुटपाथी दुकानदारों को हमेशा हिदायत दी जाती है कि वे ब्लैक टॉप (सड़क पर) पर आकर दुकान ना लगाए. अभी जो भी दुकाने हटाई गई है वो सभी ब्लैक पॉइंट पर मौजूद थीं.”
हालांकि एक दुकानदार बताते हैं कि “ब्लैक टॉप वाला बात नगर निगम का बिल्कुल झूठ है. कल मेरा ठेला पार्किंग में लगा हुआ था. वहां से नगर निगम उठाकर लेकर चला गया.”
बोरिंग रोड में हुए हंगामें के बाद अतिक्रमण हटाने आई पाटलिपुत्र अंचल टीम के अधिकारीयों को पुलिस बल का सहारा लेना पड़ा. मौके पर एसके पूरी थाने से आई पुलिस ने विरोध कर रहे दुकानदारों को हटाया जिसके बाद आगे की कार्रवाई की गई.
झारखंड के रहने वाले ललन साव पटना में किराए पर रहते हैं. परिवार के भरण पोषण के लिए ललन पिछले पांच सालों से एग्जिबिशन रोड में चाऊमीन और रोल की दुकान लगा रहे हैं. लेकिन निगम के इस अभियान में ललन साव का ठेला भी जब्त कर लिया गया है.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए ललन बताते हैं “पिछले सप्ताह नगर निगम के कुछ लोग आए और सीधे मेरा ठेला लेकर चले गए. उससे पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया. जबकि मैं बिल्कुल साइड में ठेला लगाया हुआ था. नगर निगम ले जाने के बाद मैं वहां गया तो वहां के अधिकारियों ने कहा कि ठेला नहीं छोड़ सकते कमिश्नर का आर्डर है.”
ललन का कहना है कि कई बार नगर निगम कार्यालय जाने के बाद भी उनका ठेला नहीं छोड़ा गया है. वही इस कार्रवाई में उनका ठेला भी टूट गया है. वो कहते हैं “मेरे ठेले को उन्होंने तोड़ दिया अब मैं कहां से अपने परिवार को कैसे खिलाऊंगा. यह लोग ठेला जप्त करने के बाद कहते हैं चालान करने के बाद छोड़ देंगे लेकिन कई बार आवेदन देने के बाद भी अधिकारी टहला रहे हैं. वहीं जिनका पहुंच है उनका ठेला छूट जाता है.”
फुटपाथी दुकानदारों के जब्त किए गए ठेलों को लेकर पीआरओ का कहना है कि इस बार नगर आयुक्त ने साफ़ निर्देश दिया है कि ब्लैक टॉप से जब्त किए गए ठेलों को निगम कार्यालय लाया जाए. इस बार फाइन लगाकर ठेला छोड़ देने का आदेश नहीं है. उन दुकानदारों को ठेला वापस लेने के लिए नगर आयुक्त को आवेदन देना होगा. अगर आयुक्त उनके आवेदन से संतुष्ट हुए तभी ठेला वापस किया जाएगा.
क्या कहता है ‘स्ट्रीट वेंडर एक्ट’
केंद्र सरकार के दीनदयाल अंत्योदय योजना के ‘राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन’ के तहत शहरी गरीबों को रोजगार के लिए बेहतर माहौल देने की योजना है. सड़क किनारे दुकान लगाकर अपनी आजीविका चलाने वाले दुकानदारों को एक व्यवस्थित जगह यानी वेंडिंग ज़ोन देना इसी योजना के तहत आता है.
वेंडिंग जोन ऐसा क्षेत्र है जहां फुटपाथी दुकानदार अस्थाई रूप से अपना रोज़गार कुछ शर्तों के साथ करते है. वेंडिंग ज़ोन में दुकान लगाने के लिए दुकानदारों को वेंडिंग लाईसेन्स दिया जाता है. नगर निगम पटना द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार नगर निगम द्वारा पटना में लगभग 25 हजार दुकानदारों को वेंडिंग लाईसेन्स दिया गया है. वहीं बीते एक वर्षों में नए दुकानदारों को इसमें नहीं जोड़ा गया है.
इसको लेकर पीआरओ का कहना है कि पोर्टल बंद है इस कारण नए दूकानदार नहीं जोड़े गए हैं. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही पीएम स्वनिधि योजना का लाभ नए फुटपाथी दुकानदार रोजगार शुरू करने या उसकों आगे बढ़ाने के लिए नहीं कर सकते हैं.
बिहार सरकार भी बिहार अर्बन लाइवलीहुड मिशन (BULM) के तहत सपोर्ट टू अर्बन स्ट्रीट वेंडर्स (SUSV) प्रोग्राम चला रही है. इसके तहत स्ट्रीट वेंडर, महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को रोज़गार सक्षम बनाने के लिए मदद दिया जाना है. साथ ही स्ट्रीट वेंडरों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना, छोटे उद्योगों के विकास के लिए ऋण उपलब्ध कराना शामिल है.
लेकिन केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं केवल कागजी वादे बनकर रह गए हैं. क्योंकि आज तक इन दुकानदारों को सरकार एक व्यवस्थित जगह उपलब्ध कराने में विफल रही है.
असंगठित क्षेत्र कामगार संगठन, बिहार के सदस्य विजयकांत कहते हैं “स्ट्रीट वेंडर एक्ट का प्रोविजन कहता है कि आप तभी दुकानदारों को हटा सकते हैं जब आपने उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर दी हो. लेकिन निगम एक्ट का उल्लंघन कर रहा है. और जिन भी दुकानदारों हो हटाया जाता है या परेशान किया जाता है उनमें से लगभग के पास वेंडिंग लाइसेंस और आईकार्ड मौजूद हैं. लेकिन उस कार्ड में आपको उन्हें कौन सी जगह आवंटित है यह लिखा नहीं मिलेगा क्योंकि किया ही नहीं गया है.”
विजयकांत आगे कहते हैं “नियम कहता है कि किसी भी कार्रवाई से पहले वेंडिंग कमिटी के साथ बैठक किया जाए उसमें जो निर्णय लिया जाए उसके आधार पर कार्रवाई हो. लेकिन सरकार के आला अधिकारी, पीएमसी और नगर विकास विभाग के अधिकारी वेंडिंग कमिटी के साथ बैठक नहीं करते हैं. वे लोग अलोकतांत्रिक ढंग से फुटपाथी दुकानदारों को परेशान कर रहे हैं."
दुकानदार बताते हैं कि "कुछ ठेकेदार उनलोगों से वसूली करते हैं. हमें यह नहीं पता कि वह निगम को इसके बदले पैसे देते हैं या नहीं. लेकिन वे लोग ठेले वालों से दिन के 200-200 रुपए लेते हैं. पुलिस वालों का भी कमीशन फिक्स है. लेकिन इन सब के बाद भी दुकानदार सुरक्षित नहीं हैं.”
नहीं बना वेंडिंग जोन
पटना नगर निगम और फुटपाथी दुकानदारों के बीच दुकान लगाने और हटाने को लेकर जो रोष बना रहता है वह वेंडिंग जोन नहीं बनने के कारण है. निगम का कहना है कि दुकानदार जबड़न सड़क पर दुकान लगाते हैं, वही दुकानदारों का आरोप हैं उन्हें जगह ही आवंटित नहीं किया गया है. वहीं जिन्हें कुछ जगहें आवंटित हुई हैं वह मुख्य बाजार से दूर हैं जहां ग्राहक पहुंचते ही नहीं है.
पटना में 98 जगहों पर वेंडिंग जोन बनाने का प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन विभिन्न विभागों से सहमति नहीं मिलने के कारण मात्र 35 जगहों पर वेंडिंग जोन बनाने की स्वीकृति मिली. लेकिन निगम प्रशासन 35 में से मात्र 16 जगहों पर वेंडिंग जोन बना सका है.
राजधानी पटना में बने वेंडिंग जोन में पाटलिपुत्र अंचल में 6, नूतन राजधानी अंचल में 3, बांकीपुर अंचल में 7, पटना सिटी अंचल में 4 और अज़ीमाबाद अंचल में 1 वेंडिंग जोन बनाया गया है. इन सारे जगहों पर वेंडिंग ज़ोन तो बनकर तैयार हो गया है लेकिन अभी तक इसका आवंटन दुकानदारों को नहीं किया गया है.
कदमकुआं स्थित वेंडिंग जोन का निर्माण पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद अबतक लंबित पड़ा हुआ है. वहीं वार्ड 15, वार्ड 27 और वार्ड 48 में निर्मित वेंडिंग जोन बदहाल स्थिति में पड़ा है. इनपर अवैध लोगों का कब्जा है. कहीं गाड़ियां पार्क हो रही है, कही जानवर बांधे जा रहे हैं तो कहीं कचरा फेंका जा रहा है.
ऐसे में केवल फुटपाथी दुकानदारों को शहर में लगने वाले जाम के लिए दोषी ठहराना, साफ़ तौर पर जाहिर करता है कि अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं.