रोहतास: क्यों एक मां ने की बच्चों के साथ ख़ुदकुशी की कोशिश?

उस मां की मजबूरी और मानसिक पीड़ा कितनी गहरी होगी जो अपने बच्चे को अपने ही हाथों से मारने को मजबूर हो जाती है. दो दिनों से भूख से बिलख रहे दूधमुहे बच्चे को नहर में फेंककर महिला भी नहर में छलांग लगा देती है. 

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 रोहतास: क्यों एक मां ने की बच्चों के साथ ख़ुदकुशी की कोशिश?

उस मां की मजबूरी और मानसिक पीड़ा कितनी गहरी होगी जो अपने बच्चे को अपने ही हाथों से मारने को मजबूर हो जाती है. दो दिनों से भूख से बिलख रहे दूधमुहे बच्चे को नहर में फेंककर महिला भी नहर में छलांग लगा देती है. 

घटना बिहार के रोहतास जिले से करगहर प्रखंड के सेमरी गांव का है. सेमरी गांव की रहने वाली राजकुमारी देवी का परिवार अत्यंत गरीबी और बदहाली में जीने को मजबूर है. परिवार के पास ना तो पेट भरने को अनाज है और ना ही सर ढंकने को पक्की छत. सरकार की मुफ़्त राशन और आवास योजना के दावे इस परिवार के लिए खोखले हैं.

घटना वाले दिन यानी सोमवार 14 अक्टूबर को भी महिला का परिवार दो दिनों से भूखा था. महिला के दो छोटे-छोटे बच्चे (एक छह वर्ष और दूसरा दो वर्ष) भूख से रो रहे थे. बच्चों की भूख से आहत राजकुमारी, आत्महत्या के उद्देश्य से बच्चे को लेकर घर से चली गयीं और नहर में कूद गयीं.

हालांकि नहर के किनारे मौजूद लोगों ने राजकुमारी और उसके बच्चे को डूबने से बचा लिया. 

राशन कार्ड में नहीं जुड़ा नाम

आत्मघाती कदम उठाने को लेकर राजकुमारी देवी का कहना है कि उनके पास ना तो राशन कार्ड है और ना ही सरकारी आवास योजना है. परिवार के पास रोज़गार के साधन भी नहीं है जिसके कारण बच्चों का पेट भरने भर अनाज जुटाना भी परिवार के लिए मुश्किल था. 

घटना को लेकर राजकुमारी देवी का कहना है “मेरा नाम राशन कार्ड में नहीं है. राशन कार्ड बनवाने और आवास के लिए कई बार प्रखंड का चक्कर काटे हैं. आवास पास करने के लिए 10 हजार मांगा गया. बाकी 20 हजार आवंटन के बाद देना था. लेकिन मेरे पास भुखमरी के हालात थे, मैं इतने पैसे कहां से देती.”

हालांकि अधिकारी आवास योजना में घूस मांगे जाने के आरोप से इंकार करते हैं. करगहर प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी अजीत कुमार कहते हैं “जब महिला का नाम आवास योजना की लिस्ट में शामिल ही नहीं है तो घूस मांगने का सवाल ही नहीं है. महिला पहले संयुक्त परिवार में रहती थी. परिवार में इनके पति के पिता, बड़े भाई और ससुर को आवास मिल चुका है. लेकिन किसी कारण इनका नाम राशन कार्ड में नहीं जुड़ सका जिसके कारण ये योजनाओं से वंचित रह गई.”

राशन कार्ड में नाम नहीं जुड़ने का कारण बीडीओ ऑनलाइन प्रक्रिया, आधार कार्ड और आधार कार्ड से नंबर का लिंक ना होने को बताते हैं.

दरअसल, महिला ने राशन कार्ड के लिए अगस्त महीने में ही आवेदन किया था. आवेदन के समय महिला ने जो नंबर उपलब्ध कराया था उस पर इनकमिंग की सुविधा बंद थी. जिसके कारण आवेदन नहीं हो सका. इसके अलावा महिला के आधार कार्ड से फोन नंबर भी लिंक नहीं था.

अजीत कुमार बताते हैं “महिला ने अगस्त महीने में राशन कार्ड के लिए आवेदन दिया था. लेकिन जो नंबर महिला ने दिया था वह बंद था, जिसके कारण आवेदन पूरा नहीं हो सका. कल भी हमने राशन कार्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन करवाने का प्रयास किया. लेकिन टेक्निकल कारण से ना तो पहला आवेदन रिजेक्ट हो रहा था और ना ही आगे बढ़ पा रहा था. इसके बाद ऑफलाइन आवेदन भरकर अनुमंडल में भेजा गया जिसके बाद आज आवेदन हो गया है. दो तीन दिन में कार्ड बनकर आ जाएगा.”

बीडीओ अजीत कुमार का कहना है, चूंकि सारी योजनायें राशन कार्ड से जुड़ी है इसलिए परिवार को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा था. अब, जब राशन कार्ड बन जाएगा तो अन्य सुविधाओं से परिवार को जोड़ दिया जायेगा. इसके साथ ही रोज़गार के लिए मनरेगा से जोड़ने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. जिसके बाद आवास योजना के लिए आवेदन किया जायेगा.

यहां एक बार फिर वही सरकारी ढुलमुल रवैया देखने को मिलता है जहां अधिकारी अपनी सारी तत्परता घटना के बाद दिखाते हैं. अगर अधिकारी इतनी तत्परता घटना के पहले दिखाए तो वंचित परिवारों को भूख और गरीबी से न जूझना पड़े. 

16 लाख नाम राशन कार्ड से हटाया  

बेरोज़गारी और भुखमरी के बीच राज्य में बीते महीने करीब 16 लाख 37 हज़ार राशन कार्ड रद्द किया गया है. खाद्य उपभोक्ता एवं संरक्षण विभाग का कहना है कि इन राशन कार्ड से मृतक व्यक्ति के नाम पर हर महीने 5 किलो अनाज लिया जा रहा था, जिसका खुलासा ई-केवाईसी के बाद हुआ है.

इसके साथ ही 2 लाख 77 हज़ार ऐसे लोगों की जानकारी भी सामने आई है जो बिहार के बाहर रह रहे हैं और दोनों राज्यों में सरकारी अनाज का लाभ ले रहे हैं. 

खाद्य उपभोक्ता एवं संरक्षण विभाग के सचिव एन. सरवन कुमार के अनुसार, “ऐसे व्यक्ति जो मर चुके हैं, उनका नाम राशन कार्ड से हटाया गया है. 8 करोड़ 35 लाख राशन कार्ड में से 8 करोड़ 4 लाख, यानी 95% कार्डधारी का आधार सीडिंग पूरा हो चुका है. 5 करोड़ 10 लाख लोगों का ई-केवाईसी किया गया. जबकि 3 करोड़ 24 लाख अभी प्रोसेस में है. यानी प्रक्रिया पूरी होने के बाद और भी कार्ड रद्द हो सकते हैं.”

भोजन के अधिकार के तहत 2013 में लागू राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (National Food Security) अधिनियम दुनिया का सबसे बेहतर खाद्य आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम माना जाता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की लगभग 80 करोड़ आबादी इस योजना का लाभ ले रही है. लेकिन क्या इन 80 करोड़ लोगों में देश के सभी वंचित परिवार शामिल हो पाए हैं?

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे हैं लेकिन इसके बावजूद आजतक सभी गरीबों को भोजन का अधिकार नहीं मिल सका है.

बिहार में पीडीएस के तहत राशन कार्ड की संख्या 1,98,36,448 है जिसके द्वारा कुल आठ करोड़ 35 लाख लोगों को राशन दिया जा रहा है. जिसमें अंत्योदय अन्न योजना (AAY) कार्ड धारकों की संख्या 22,88,791, पीएचएच (PHH) श्रेणी के कार्ड धारकों की संख्या 1,74,36,736 हैं.

लेकिन अब भी लाखों परिवार ऐसे हैं जिन्हें राशन कार्ड मिलने का लंबे समय से इंतजार है.

सालों बीतने के बाद भी नहीं जोड़े गए नाम

विभाग राशन कार्ड रद्द करने के आंकड़े तो दिखा रहा है लेकिन कितने लोग लंबे समय से नाम जुड़ने का इंतजार कर रहे हैं इसका खुलासा नहीं करता है. बीते वर्षों में हजारों लोगों के नाम राशन कार्ड से आधार लिंक नहीं होने के कारण काट दिए गये हैं. ऐसे लोग सालों से नाम जोड़ने के लिए आवेदन कर रहे हैं लेकिन उनका नाम अब तक नहीं जुड़ सका है.

आर ब्लाक के रहने वाले मोहम्मद आफ़ताब का नाम दो साल पहले राशन कार्ड से काट दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने दुबारा राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन भरा. बीते दो सालों में उन्होंने कई बार आवेदन किया है लेकिन आजतक राशन कार्ड में उनका नाम नहीं जुड़ सका है.

आफताब बताते है “लॉकडाउन से पहले मुझे मेरी मां के राशन कार्ड पर राशन मिलता था लेकिन 2 साल पहले उसमे से मेरा नाम हटा दिया गया पूछने पर कहा गया आपका आधार कार्ड राशन कार्ड से लिंक नही है इस वजह से नाम हटा दिया गया है. मैंने नया आवेदन भी किया लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.”

आफ़ताब ने नाम जोड़ने के लिए तीन महीने पहले भी नया आवेदन दिया है. 

वही आफ़ताब की तलाकशुदा बहन सुहाना परवीन का भी राशन कार्ड नहीं बन सका है. सुहाना का तलाक छह साल पहले हो चुका है जिसकी वजह से वह अपने सात साल के बेटे के साथ मां के घर में रहती हैं. 

सुहाना परवीन बताती है “मेरे पास राशन कार्ड नहीं है. मैने एक साल पहले फॉर्म भरा था लेकिन अभी तक राशन कार्ड(ration-card) बन कर नहीं आया है. जब मैने फॉर्म भरा तो कहा गया था की 3 महीने में राशन कार्ड बनकर आ जाएगा लेकिन एक साल बीत गए अभी तक कुछ पता नहीं चला." 

सुहाना कहती हैं “हमारा परिवार बड़ा है. मां और भाईयों के अलावा हम दोनों बहने भी अपने मायके में ही रहती हैं. शादी के बाद मेरा नाम मेरी मां के राशन कार्ड से काट दिया गया. लेकिन उस दौरान कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी तो मैंने नाम जुड़वाने का कोई प्रयास नहीं किया. लेकिन लॉकडाउन में मेरे घर की स्थिति बहुत ही खराब हो गए थी. मैंने डीलर से नाम जोड़ने को कहा लेकिन डीलर ने कहा तुम अपना राशन कार्ड अलग जाकर बनवाओ तभी राशन मिलेगा.” 

राशन वितरण में कटौती

राशन कार्ड बनाने में अनियमितता के साथ साथ राशन वितरण में भी कटौती की जा रही है. 

कुपोषण और एनीमिया से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने मुफ्त में राशन देने वाली अपनी सभी योजनाओं जैसे- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY), मीड डे मील और अन्य योजनाओं में सामान्य चावल की जगह फोर्टिफाइड चावल वितरित करने को मंजूरी बुधवार नौ अक्टूबर को दी है. हालांकि पहले भी इन केन्द्रों पर फोर्टिफाइड चावल बांटे जाते थे. 

बिहार खाद्य सुरक्षा आयोग पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार सितम्बर माह में बिहार को 307073.792 मेट्रिक टन फोर्टिफाइड चावल आवंटित किया गया था जिसमें 291735.345 मेट्रिक टन चावल ही वितरित किया गया. वहीं 90220.616 मेट्रिक टन गेंहूं आवंटित किया गया था जिसमें 82999.845 मीट्रिक टन गेहूं बांटा गया. जबकि सामान्य किस्म का 53808.672 मेट्रिक टन चावल दिया गया था जिसमें 40568.889 मेट्रिक टन चावल ही बांटा गया. 

आवंटित अनाज के मुकाबले हर महीने अनाज का वितरण कम किया जाता है. जिससे ज़ाहिर है हज़ारों परिवार आधा पेट भोजन करने हो विवश होते होंगे.

हाल ही में जारी हुए ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भारत को 127 देशों में 111वें स्थान पर रखा गया है. जो देश में गंभीर भुखमरी की समस्या को दर्शाता है. आज “विश्व खाद्य दिवस” के अवसर पर राज्य और केंद्र सरकार दोनों को विचार करना चाहिए कि आख़िर योजनाओं के क्रियान्वयन में कहां और क्यों चूक हो रही है?

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