राज्य में अडानी समूह समेत आधा दर्जन से अधिक कंपनियां स्मार्ट मीटर लगा रही हैं. नार्थ बिहार पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड ने अडानी एनर्जी सॉल्यूशन को गोपालगंज, वैशाली, सिवान, सारण, समस्तीपुर में 27.99 लाख मीटर लगाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया है. वहीं नागर्जुना कंस्ट्रक्शन लिमिटेड को पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा में 24.73 लाख मीटर लगाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया है.
नालंदा जिले के सरगांव के रहने वाले रामाश्रय सिंह इन दिनों परेशान हैं. उनकी परेशानी की वजह है गांव में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जाने की ख़बर. गांव के लोगों से उन्हें जानकारी मिली है कि अब हर घर में स्मार्ट मीटर लगेगा. जिस घर में स्मार्ट फोन की सुविधा ना हो वहां अगर स्मार्ट मीटर लगने की बात होने लगे तो परेशानी तो होगी ही. वहीं ग्रामीणों की परेशानी की एक वजह स्मार्ट मीटर से आने वाला बिजली बिल भी है. ग्रामीणों ने ऐसी कई ख़बरें पढ़ी और सुनी हैं जिनमें उपभोक्ताओं को दोगुने बिजली बिल आने और बैलेंस कटने जैसी समस्याएं उठानी पड़ी हैं.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए रामाश्रय सिंह कहते हैं “बैठकी में सुन रहे हैं अब गांव में स्मार्ट मीटर लगेगा. बिल कैसे भरेंगे? सुनते हैं नया मीटर में रीडिंग तेज़ उठता है और बिल नहीं भरने पर लाइट भी काट दिया जाएगा.”
स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने में बिहार सबसे आगे
बिहार सरकार और ऊर्जा विभाग पहले तो 2025 तक सभी जिलों में स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य लेकर चल रही थी. लेकिन अब इसे 2026 तक बढ़ाया गया है. फ़रवरी 2024 तक राज्य में 28 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं. स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के मामले में बिहार देशभर में अग्रणी राज्य बना हुआ है.
इस ख्याति ने बिहार सरकार को उत्साहित कर दिया है. ऊपर से झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के बिजली वितरक कंपनियों के अधिकारी भी बिहार के मॉडल को समझने आ चुके हैं.
आम जनता को केंद्र सरकार के आदेश का भय दिखाते हुए विद्युत् विभाग ने साफ़ कहा है कि स्मार्ट मीटर लगाना अनिवार्य है और जो उपभोक्ता इसका विरोध करेंगे, उनका बिजली कनेक्शन काट दिया जाएगा. साथ ही बिजली कंपनी को नए मीटर लगाने के लिए उपभोक्ताओं से सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है. कंपनी अपने अनुसार हर घर में स्मार्ट मीटर लगा सकती है. भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय ने इस संबंध में आदेश जारी किया है.
स्मार्टफ़ोन नहीं तो कहां से होगा रिचार्ज?
विद्युत् विभाग स्मार्ट प्रीपेड मीटर के कई फायदे गिना रहा है. जिनमें घर बैठे रिचार्ज की सुविधा, बिजली की चोरी पर रोक, रीडिंग में गलती होने की संभावना ख़त्म होने जैसी कई सुविधाएं हैं. लेकिन लोगों को आने वाली परेशानियों पर बात नहीं की जा रही है. जैसे रामाश्रय सिंह (72 वर्षीय) के दोनों बेटे गांव से बाहर रहते हैं. फ़ोन का रिचार्ज ख़त्म होने पर उन्हें दूसरे पर आश्रित होना पड़ता है. ऐसे में उनके लिए हर महीने बिजली बिल रिचार्ज करना बड़ी समस्या है.
बिजली कंपनी और मोबाइल कंपनी की साठ-गांठ पर जोड़ देते हुए रामाश्रय कहते हैं “फ़ोन में बैलेंस रखना मेरे लिए ज़रूरी नहीं है. हर 28 दिन पर 200 रुपए हम नहीं ख़र्च कर सकते. जब इनकमिंग भी बंद हो जाता है तब रिचार्ज करवा लेते हैं. फ़ोन के बिना तो रह ले रहे थे लेकिन बिजली के बिना कैसे रहेंगे. ये सरकार की चाल है पहले फोन में बैलेंस रखिए फिर बिजली बिल पर नज़र रखिए. जनता पर चाहे कितना भी मार पड़े, कंपनी को नुकसान नहीं होना चाहिए.”
बिहार की 80 फ़ीसदी से अधिक आबादी गांवों में रहती है. ASER 2022 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार की 70 फ़ीसदी से भी कम ग्रामीण आबादी एंड्राइड फ़ोन चलाती है. इसके आलावा ग्रामीण क्षेत्रों में ख़राब नेटवर्क, मंहगा फ़ोन रिचार्ज और नेट बैंकिंग की जानकारी नहीं होने के कारण ग्रामीण इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं.
बात स्मार्टफ़ोन से अधिक फ़ैसला थोपने की है
हालांकि स्मार्ट प्रीपेड मीटर की समस्या केवल ग्रामीण क्षेत्रों की नहीं है. शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी इससे परेशान हैं. यह समस्या शिक्षित और अशिक्षित होने से भी नहीं है. बल्कि अचानक थोपे गए नए बदलाव से है.
पटना के हनुमान नगर की रहने वाली संगीता पढ़ी लिखी हैं और अपना बुटीक चलाती हैं. उनके पास स्मार्टफ़ोन भी है. लेकिन बात जैसे ही मोबाइल बैंकिंग और नेट बैंकिंग की आती है, उन्हें संकोच और भय होने लगता है. उनकी दुकान में स्मार्ट मीटर लगे दो साल हो चुके हैं. लेकिन आज तक उन्होंने ख़ुद से बिजली बिल रिचार्ज नहीं किया हैं.
पुरानी व्यवस्था को सही बताते हुए संगीता कहती हैं “मुझे डर लगता है कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए. पहले की व्यवस्था ठीक थी. मीटर रीड कर बिल दे दिया जाता था. मैं हर महीने के बिल से रीडिंग मिलान कर लेती थी. लेकिन अब कुछ पता ही नहीं चलता. बिल भी दोगुना आने लगा है. पहले गर्मियों में 500 से 800 के बीच बिल आता था लेकिन अब 1000-1200 का रिचार्ज एक महीने में ख़त्म हो जाता है.”
स्मार्ट मीटर में बिजली यूनिट के खपत की जानकारी नहीं मिलती है. बल्कि बैलेंस शून्य होने से पहले केवल उपलब्ध बैलेंस की जानकारी दी जाती है. साथ ही यह सूचना दी जाती है कि आप रिचार्ज करें अन्यथा बिजली काट दी जाएगी. फोन नंबर रिचार्ज नहीं होने के कारण अगर कालिंग और मैसेज की सुविधा बंद हुई तो उस स्थिति में उपभोक्ता को बिजली कटने की जानकारी भी नहीं मिल पाती है.
स्मार्ट मीटर जन विरोधी कार्य है: CPI
स्मार्ट मीटर लगाने के अपने फैसले से सरकार इतनी संतुष्ट है कि उसे ना तो जनता की परेशानी और न ही उसकी मांग सुनाई पड़ रही है. राज्य के कई जिलों में आम जनता, विपक्षी राजनीतिक दल, मज़दूर और किसान संगठन स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जाने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन सरकार उनकी सुनने को तैयार नहीं है.
सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) स्मार्ट मीटर के विरोध में अलग अलग प्रखंडों में विरोध कर रही है. वहीं आगामी 23 सितंबर को पटना डीएम कार्यालय के समक्ष विरोध प्रदर्शन करने वाली है. सीपीआई पटना जिला के सचिव विश्वजीत कुमार सरकार के इस फैसले को जन विरोधी बताते हैं और कहते हैं “लोक कल्याणकारी राज्य में पैसा लेकर काम करना सही नहीं है. बल्कि जनता की ज़रूरतों के हिसाब से काम किया जाना चाहिए. देश में जो विद्युत् अधिनियम बनाया गया था उसके अनुसार बिजली उपभोग के बाद बिल दिया जाना है. बिल मिलने के 15 दिनों के अंदर इसका भुगतान किया जाना है. लेकिन स्मार्ट मीटर इस अधिनियम के विपरीत हैं. इसमें पहले पैसा लिया जाता है फिर सुविधा दी जाती है."
बिहार की गरीबी और बेरोज़गारी पर किस तरह स्मार्ट मीटर का प्रभाव पड़ेगा इस पर अपना पक्ष रखते हुए विश्वजीत कुमार कहते हैं “पुराने मीटर में रीडिंग लेने और बिल देने के लिए एक व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती थी. जो रोज़गार का साधन था. लेकिन अब वह समाप्त हो जाएगा. राज्य में पहले ही रोज़गार के अवसर कम हैं.”
स्मार्ट मीटर से बिजली कंपनी नुकसान से उबरेंगी: संजीव श्रीवास्तव
"बिजली कंपनियों को घाटे से बाहर निकालने के लिए राज्य में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाया जा रहा है."
ऐसा कहना है बिहार समाजिक अंकेक्षण के सदस्य संजीव कुमार श्रीवास्तव का. संजीव श्रीवास्तव की टीम ने वर्ष 2022 में स्मार्ट मीटर लगाए जाने को लेकर सर्वे कराया था. जिसमें 64 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. सर्वे में शामिल 94 फ़ीसदी लोगों ने माना था कि स्मार्ट मीटर लगने के बाद उनके बिल में बढ़ोतरी हुई है.
वहीं 86 फ़ीसदी लोगों को मीटर रीडिंग टेस्ट सर्टिफिकेट (MRTC) नहीं दिया गया था. यह सर्टिफिकेट मीटर लगाने वाली कंपनी को उपभोक्ता को देना है जो यह सुनिश्चित करता है कि आपके मीटर की रीडिंग सही है.
स्मार्ट मीटर लगाने के बिहार सरकार के फैसले पर संजीव कहते हैं “बिजली विभाग ने स्मार्ट मीटर लगाने का फ़ैसला पर्सनल इंटरेस्ट के आधार पर लिया था. बिहार में अन्य राज्यों के मुकाबले मंहगे दर पर लोगों को बिजली दी जाती है. इसके बाद भी कंपनियां घाटे में रहती हैं. आरोप लगाया जाता है कि लोग बिल नहीं भरते, बिजली चोरी करते हैं. अधिकारियों ने सरकार को समझा दिया कि बिजली चोरी रोकने और बिजली बिल का भुगतान समय पर हो इसके लिए स्मार्ट मीटर लगाया जाए.”
महंगी बिजली के बाद भी क्यों घाटे में है बिजली कंपनी?
बिहार सामाजिक अंकेक्षण की टीम ने अपने सर्वेक्षण में बिजली कंपनियों के घाटे के तीन कारण पाए थे.
- पहला- राज्य में बिजली खरीद का औसत मूल्य (Average Power Purchase Price) पड़ोसी राज्यों के मुकाबले ज्यादा है. वर्ष 2023-24 में बिहार की दोनों बिजली वितरक कंपनियों का औसत बिजली खरीद मूल्य 5.82/kWh था जबकि औसत वितरण मूल्य 8.30/kWh था.
संजीव बताते हैं “हमने अंकेक्षण के दौरान पाया जिस समय केंद्र की सोलर एनर्जी कारपोरेशन ऑफ इंडिया 2.61 पैसे यूनिट बिजली दे रही थी उस समय बिहार सरकार ने टेंडर के माध्यम से प्राइवेट कंपनी से 3.21 पैसे की दर से बिजली खरीदा था.”
- दूसरा - एग्रीगेट टेक्नीकल एंड कमर्शियल लॉस (एटी एंड सी लॉस) यानी जितनी की बिजली बेची जा रही है, उससे कम का बिल बनाया जाना. वर्ष 2022 में बिहार का एग्रीगेट टेक्नीकल एंड कमर्शियल लॉस (एटी एंड सी लॉस) 26 फ़ीसदी था.
- तीसरा- ट्रांसमिशन लॉस. ट्रांसफर्मर जलने या हाई वोल्टेज तार टूट जाने जैसी घटनाएं. कंपनियां गुणवत्ता विहीन तार, ग्रीड और ट्रांसफर्मर लगा देती हैं. जिसके कारण बिहार में इस तरह की घटनाएं ज़्यादा होती हैं.
संजीव कहते हैं “अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार ट्रांसमिशन लॉस 8 फ़ीसदी तक होनी चाहिए. लेकिन बिहार इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन इन्हें 15 फ़ीसदी तक लॉस की छूट देती है. लेकिन पिछले 10 साल से कंपनियां 22 से 45 फ़ीसदी तक लॉस दिखाती रही है.”
स्मार्ट मीटर लगने के बाद से लोगों के ऊपर हर महीने एक बिल भुगतान को लेकर एक दबाव बना रहता है. वैसे लोग जिनके पास मासिक आय के साधन उपलब्ध है वे तो भुगतान कर सकते हैं. लेकिन किसान और दैनिक मज़दूर जिनके पास आय की कोई गारंटी नहीं है, उन्हें इससे परेशानी हो रही है. सरकार को कोई भी नियम जनता की सहूलियत के बनाने होंगे ना की कंपनी के लाभ के लिए.