ठंड की शुरुआत की अभी सुगबुगाहट ही हुई है कि हमारे शहरों की हवा जहरीली होने लगी है. सांस लेने के दौरान ही हम हवा के साथ थोड़ा-थोड़ा जहर अपने अंदर ले रहे हैं. ऐसे तो प्रदूषित हवा लगभग सभी मौसम में सामान्य सी लगने वाली समस्या बन गयी है. लेकिन ठंड के मौसम में इसका प्रभाव ज्यादा व्यापक हो जाता है.
स्वस्थ्य या अस्वस्थ दोनों तरह के लोगों को इस मौसम में सांस संबंधी परेशानियां हो रही है. पटना (Patna) का एक्यूआई सुबह के समय 200 पहुंचने लगा है. जो किसी भी व्यक्ति के सांस लेने के लिए बहुत ही हानिकारक है. हालांकि दिन चढ़ने के बाद इसमें थोड़ी गिरावट दर्ज की जाती है लेकिन वह नाकाफ़ी है.
पटना के हनुमान नगर, कैलाशपुरी की रहने वाली बीना कुमारी कहती हैं “मैं रोजाना सुबह टहलने जाती हूं. अभी ठंड की शुरूआत हो रही है. सुबह में कुहासा दिख रहा है. लेकिन कुहासे में ठंड के साथ अकबकाहट महसूस होता है. सुबह में घूमने वाले लोग इस चीज को ज्यादा महसूस करते हैं.”
पटना की हवा में घुल रहा जहर
नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air quality index) पर उपलब्ध डाटा के अनुसार दोपहर 1 बजे पटना के अलग-अलग क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता 150 के पार दर्ज की गयी है. पटना के समनपुरा का एक्यूआई (AQI) 167 दर्ज किया गया है. वहीं दानापुर और राजवंशी नगर में एक्यूआई 160 दर्ज किया गया. जबकि मुरादपुर इलाके में एक्यूआई 158 दर्ज किया गया है.
वहीं पटना के बाद राजगीर बिहार का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा. यहां का एक्यूआई (AQI) सर्वाधिक 161 दर्ज किया गया. इसके बाद आरा जहां 157 एक्यूआई दर्ज किया गया. मुज्जफ़रपुर में भी हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है यहां एक्यूआई 147 के आंकड़े पर पहुंच गया है.
प्रदूषित हवा का मुख्य अवयव इसमें शामिल पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) हैं जो प्रदूषित हवा के साथ हमारे फेफड़े में पहुंच जाता है.
क्यों पटना की हवा में घुल रहा है जहर?
वायु प्रदुषण के मुख्य कारकों में कचरे का खुले में जलाया जाना है. प्लास्टिक कचरा को अगर खुले में जलाया जाए तो यह पर्यावरण के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदायक होता है. पटना शहरी क्षेत्र में पटना नगर निगम के साथ-साथ दानापुर, खगौल, फुलवारीशरीफ, संपतचक से लगभग 2000 टन कचरा रोजाना निकलता है.
पटना नगर निगम (Patna-Nagar-Nigam) ने सॉलिड वेस्ट मैंनेजमेंट के लिए करीब तीन साल पहले रामाचक बैरिया में दो टॉमेल मशीन लगी थी. एक टॉमेल मशीन रोजाना उत्पन्न होने वाले नये कचरे का निष्पादन करता है वहीं दूसरा पहले से जमा पुराने कचरे का निष्पादन करता है.
नगर निगम इसकी संख्या 2 से बढ़ाकर 10 और फिर 100 तक ले जाने की बात कह रही थी. लेकिन हालात यह हैं कि पहले से कार्यरत दो मशीने भी पिछले एक साल से बंद पड़ी है. निगम द्वारा भुगतान नहीं होने के कारण कंपनियो ने काम बंद कर दिया था.
हालांकि मई महीने में 15वें वित्त आयोग से केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को 216 करोड़ रूपए दिए हैं. निगम के अधिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार से यह पैसा मिलने के बाद वापस काम शुरू किया जाएगा.
नगर निगम की पीआरओ श्वेता भास्कर को भी सही जानकारी नहीं है. वो कहती हैं “सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में लगी मशीने काम कर रही हैं.” हालांकि जब उनसे कहा गया कि मशीन काम नहीं कर रही तो उनका कहना था कि वो इस चीज को देखेंगी.
रामाचक बैरिया स्थित डंपिंग यार्ड में फ्रेश वेस्ट के प्रोसेसिंग के लिए अलग से एजेंसी का चयन किया जाएगा. वहीं डंपिंग यार्ड में पुराना कचरा जमा होने के कारण उसमें आग लग जाती है. इससे निपटने के लिए वाटर हाड्रेंट की व्यवस्था करने की बात भी कही जा रही है. ताकि आग लगने से उठने वाले हानिकारक धुंए पर नियंत्रण किया जा सके.
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है पार्टिकुलेट मैटर
प्रदूषित हवा (air-pollution) के साथ यदि पीएम 2.5 (PM 2.5) और पीएम 10 (PM 10) कण हमारे फेफड़े के अंदर जाने से यह खतरे का कारण बन सकता है. पीएम का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर. इस पार्टिकुलेट मैटर का आकार 2.5 और 10 होता है. दिखने वाली धूल हमारे नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाती है, जिसे धोकर साफ कर सकते हैं.
लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि यह धीरे-धीरे हमारे फेफड़ों के अंदर बैठता चला जाता है. यह हमारी बॉडी के नेचुरल फिल्टरेशन प्रोसेस से भी नहीं निकलता है.
ठंड के मौसम की शुरुआत के साथ ही प्रदूषण का असर मौसम के साथ नजर आने लगता है. ठंड के मौसम में कुहासे के साथ धुल-गंदगी और धुंआ कुहासे के साथ मिलकर स्मॉग (smog) बनाती है. जो सांस लेने की परेशानी झेल रहे मरीजों के लिए बेहद खतरनाक हो जाता है.
धुएं में खतरनाक नाइट्रोजन आक्सासइड और अन्यध जहरीली गैसों तथा कोहरे के मिश्रण से धूम कोहरा बनता है. इसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है. इससे बच्चों और वृद्ध लोगों को काफी दिक्कत होती है.