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लखीसराय के आदिवासी बच्चों में कोई बन रहा मेसी कोई रोनाल्डो

लखीसराय के आदिवासी बच्चों में फुटबॉल और खेल कूद की ललक दिखाई देती है. बच्चों के पास कोई संसाधन नहीं है. लेकिन फिर भी उनके आंखों में सपना है कि वो एक दिन मेसी और रोनाल्डो की तरह बड़े मंच पर खेल पायें.

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Pallavi Kumari
Sep 21, 2023 22:16 IST
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लखीसराय के आदिवासी बच्चों में कोई बन रह मेस्सी कोई रोनाल्डो

लखीसराय के आदिवासी बच्चों में कोई बन रहा मेसी कोई रोनाल्डो

लखीसराय के आदिवासी बच्चों (tribal children) में फुटबॉल की ललक देखने को मिल रहा है. ऐसा नहीं है कि बिहार में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमी है जो राज्य और देश का नाम रौशन कर सके. कमी है सरकार की इच्छाशक्ति और खेल के लिए संसाधनों की उपलब्धता कराने में. बिहार में प्रतिभा होने के बाद भी खिलाड़ी मार्गदर्शन और संसाधनों के अभाव में खेलना छोड़ देते हैं. 

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लखीसराय (lakhisarai) जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के आदिवासी युवा फुटबॉल में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं. रोनाल्डो और मेसी का नाम जानने वाले ये आदिवासी खिलाड़ी किसी भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी का नाम नहीं जानते हैं और शायद हममें से आधा से ज़्यादा भारतीय भी क्रिकेट के आलावा किसी अन्य खेल के खिलाड़ियों को ना पहचानते हो.

लखीसराय में फुटबॉल को लेकर जनूनी आदिवासी बच्चे
फुटबॉल को लेकर बच्चों में एक जुनून है

आदिवासी युवाओं में फुटबॉल के लिए ललक

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लखीसराय का चानन प्रखंड आदवासी बहुल क्षेत्रों (tribal village) में आता है. यहां के ज़्यादातर परिवार खेती और मज़दूरी पर निर्भर करते हैं. लेकिन आर्थिक बाधाओं के बाद भी यहां के आदिवासी बच्चों में फुटबॉल खेलने की ललक है. 

बासकुंड गांव में लगभग 45 आदिवासी परिवार रहते हैं. इसी गांव के 30 आदिवासी बच्चों का समूह बिना किसी प्रशिक्षक और मैदान के फुटबॉल खेलने की प्रैक्टिस करते हैं. चानन ऐसा ब्लॉक हैं जहां आज भी यातायात के साधन मौजूद नहीं है. खेल के मैदान नहीं है. फिर भी खिलाड़ियों का समूह पथरीले मैदान पर प्रैक्टिस करता हैं. इनका समूह दूर-दराज के क्षेत्रों में होने वाले मैचों में भाग लेता है और जीतता भी है.

अभी कैमूर में हुए जिला स्तरीय मैच में लखीसराय की टीम जीती थी. इस जितने वाली टीम में बासकुंड के चार से पांच खिलाड़ी थे. खेलों इंडिया यूथ गेम्स के लिए भी यहां के खिलाड़ियों ने ट्रायल दिया था. बासकुंड के रहने वाले राजेश कुमार भी इन्हीं 30 बच्चों में से एक हैं. फुटबॉल के प्रति अपनी ललक के कारण राजेश रोज सुबह 5 बजे ग्राउंड पर निकल जाते हैं. रोजाना मैदान पर दो से तीन घंटे की प्रैक्टिस के साथ राजेश सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं. राजेश बताते हैं “फुटबॉल तो कई सालों से खेल रहा हूं लेकिन पिछले तीन सालों से इसपर ज़्यादा ध्यान दे रहा हूं. ‘तरंग’ प्रोग्राम में जिला स्तर का टीम बना थी जिसमें मेरे साथ तीन चार और साथी का चयन हुआ था. इस आयोजन में हमारी टीम ने कैमूर को हराया था. जब जीतते हैं तो अच्छा लगता है. लेकिन यहां तैयारी करने के लिए मैदान नहीं है. हमारे पास फुटबॉल किट खरीदने के लिए पैसे नहीं है.”

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राजेश आगे कहते हैं “मैं दोनों भाई फुटबॉल खेलता हूं. पापा बाहर मज़दूरी करते हैं. खेलने के लिए मना तो कभी नहीं किये लेकिन हमको पता है कि उनके पास उतना पैसा नहीं है जो खेलने में ख़र्च करें.” पैसे और संसाधन की कमी राजेश और उनके भाई को फुटबॉल में करियर बनाने से रोक रही है. जिला स्तर के मैच में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी इन खिलाड़ियों को कोई सुविधा नहीं मिली है.जिसके कारण ये युवा फुटबॉल खेलना छोड़ रहे हैं. हालांकि लखीसराय जिले में पोस्टेड फिजिकल इंस्पेक्टर अंकित स्नेह इन बच्चों को फुटबॉल की बारीकियां सिखा रहे हैं.

आर्थिक तंगी का सामना करने के बाद भी फुटबॉल खेलते हैं आदिवासी बच्चे
आर्थिक तंगी का सामना करने के बाद भी फुटबॉल खेलते हैं आदिवासी बच्चे

बिना संसाधन के मार्गदर्शन कर रहे हैं अंकित स्नेह

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अंकित और उनके कुछ सहयोगी इन बच्चों को खेलने में सहयोग और मार्गदर्शन दे रहे हैं. इन खिलाड़ियों की प्रतिभा देखकर उन्होंने इन खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई फ्रेंडशिप मैच का आयोजन भी किया है. आसपास के गांव की टीम के साथ हुए इस मैच में बासकुंड की टीम विजेता भी रही थी. अंकित स्नेह बताते हैं “इन खिलाड़ियों में बहुत प्रतिभा है. बिना किसी संसाधन और मार्गदर्शन के ये बहुत अच्छा खेल रहे हैं. अगर इन्हें सही से गाइड किया जाए तो जिले और राज्य का ही नहीं बल्कि देश का नाम रौशन कर सकते हैं. लेकिन यहां ना तो खेल का मैदान है और ना ही इन बच्चों के पास फुटबॉल किट है. जब से मैं इनके संपर्क में आया हूं इनकी मदद कर रहा हूं. लेकिन जबतक सरकार यहां खेल का मैदान और कोच उपलब्ध नहीं कराएगी तबतक इनलोगों की प्रतिभाएं बड़े प्लैटफार्म (मंच) पर नहीं आ सकती.”

अंकित का कहना है “अगर इन आदिवासी बच्चों को सही प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया जाए तो ये देश और राज्य का नाम रौशन कर सकते हैं. सरकार आदिवासी बच्चों के लिए ‘एकलव्य’ जैसा प्रोग्राम चला रही है लेकिन यह काफ़ी नहीं है. दूर दराज की उन प्रतिभाओं का क्या जो संसाधन के आभाव में गुम हो रहे हैं. मैं और मेरे कुछ सहयोगी इन खिलाड़ियों की मदद कर रहे हैं. हम मोटिवेशन के लिए फ्रेंडली मैच का आयोजन करवाते हैं.”

लखीसराय के आदिवासी बच्चों के साथ अंकित स्नेह
लखीसराय के आदिवासी बच्चों के साथ अंकित स्नेह
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आर्थिक बाधाएं रोक देती हैं रास्ता

बासकुंड के रहने वाले सार्जन कोड़ा भी फुटबॉल खिलाड़ी हैं. लेकिन फुटबॉल में करियर ना होने के कारण सार्जन ने खेलना छोड़ दिया है. लेकिन आज भी सार्जन बाकि बच्चों को खेल की बारीकियां और नियम समझाने रोज़ मैदान पर जाते हैं. सार्जन बताते हैं “ग्रेजुएशन कर चुका हूं. अब घरवाले कितना दिन खेलने देंगें. ऐसे ही खेलते रहने से घर नहीं चलता है. इसलिए सरकारी नौकरी की तैयारी के साथ खेत में काम करता हूं. लेकिन खेल में रूचि है इसलिए जूनियर बच्चों को प्रैक्टिस करवाने आ जाता हूं.”

फिजिकल टीचर अंकित स्नेह के साथ-साथ श्री राम हार्डवेयर के संचालक भी इन खिलाड़ियों की आर्थिक तौर पर मदद करते हैं. अंकित बताते हैं “यहां के खिलाड़ियों के पास आर्थिक बाधाएं बहुत हैं. मैच जितने के बाद मिली राशि, खिलाड़ी बाकि के मैचों की तैयारी में ख़र्च करते हैं. लेकिन यह राशि बहुत कम होती है. क्योंकि एक टीम में 15 खिलाड़ी होते हैं. ऐसे में खाने-पीने से लेकर आने-जाने का ख़र्च उसी राशि से निकालना होता है.”

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शारीरिक शिक्षकों की कमी आर्थिक बाधाओं के साथ ही संसाधनों की कमी भी खेल में पिछड़ने का कारण होता है. राज्य का खेल में पिछड़ने का एक बड़ा कारण स्कूल में खेल शिक्षकों की कमी है. राज्य में मध्य विद्यालयों की संख्या 8,386 है. इसमें हर स्कूल में एक शारीरिक शिक्षा सह स्वास्थ्य अनुदेशक के पद सृजित है. साल 2019 में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने शारीरिक शिक्षा सह स्वास्थ्य अनुदेशक के लिए पात्रता परीक्षा का आयोजन किया था जिसमें लगभग 3500 अभ्यर्थी सफल हुए थे. प्राथमिक शिक्षा निदेशालय को जिलों से मिली नियोजन रिपोर्ट के अनुसार जिलों में 2,350 पद पर ही शारीरिक शिक्षक की नियुक्ति हुई है. इस हिसाब से खेल शिक्षकों के लगभग 6 हज़ार पद रिक्त हैं.

लखीसराय जिले में 80 खेल शिक्षकों के पद हैं लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण अभी जिले में मात्र 20 शारीरिक शिक्षक मौजूद हैं. 

खेलों इंडिया कार्यक्रम का लाभ नहीं उठा रहा राज्य

भारत सरकार द्वारा अलग–अलग राज्यों के खिलाड़ियों को एक मंच देने के लिए साल 2017 में ‘खेलों इंडिया’ की शुरुआत की गयी है. इसके तहत खेलों इंडिया युथ गेम्स, खेलों इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स और खेलो इंडिया विंटर गेम्स का आयोजन किया जाता है. साल 2023 में इसका पांचवा संस्करण हुआ है. खेलों इंडिया यूथ गेम्स में बिहार ने एक स्वर्ण, एक रजत और पांच कास्य के साथ केवल 7 पदक मिले.

वहीं खेलों इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी को 2 पदक मिले थे. महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों के खिलाड़ी इसमें अच्छा प्रदर्शन करके अपने राज्य का मान बढ़ा रहे हैं. साथ ही उन्हें राष्ट्रीय स्तर की पहचान और ट्रेनिंग भी मिल रही है. लेकिन बिहार सरकार की नाकामियों का नतीजा राज्य के खिलाड़ी भुगत रहे हैं.

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