“राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में मेडल जितने के बाद भी अगर किसी खिलाड़ी को सरकार से केवल सम्मान और कुछ नगद राशि के सिवाय कुछ ना मिले तो वह खेल में अपना समय क्यों देगा.” यह कहना बिहार स्टेट कराटे चैंपियनशिप में लगातार सात गोल्ड मेडल जितने वाले खिलाड़ी मोहम्मद जाबिर अंसारी का.
जाबिर अंसारी ने आर्थिक परेशानियों और पारिवारिक दबाव के बीच अपना खेल जारी रखा और लगातार नेशनल और इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में पदक जीता. जाबिर अंसारी ने राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता में पटना विश्वविद्यालय को 10 सालों बाद 2022 में पदक दिलाया था. इसके बाद 2023 में भी जाबिर ने पटना विश्वविद्यालय का प्रतिनिधितव करते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया.
मेडल लाओ नौकरी पाओ
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2023 में 18वीं राष्ट्रीय अंतर जिला जूनियर एथलेटिक्स मीट के उद्घाटन समारोह में खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा था “राज्य सरकार की ओर से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में हिस्सा लेकर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को बिहार प्रशासनिक सेवा और बिहार पुलिस सेवा या समकक्ष में सीधी नौकरी दी जाएगी. योजना को नाम दिया गया मेडल लाओं नौकरी पाओ.
वर्ष 2024 में पहली बार इस योजना के तहत 76 खिलाड़ियों को नौकरी भी दी गई. जो खिलाड़ियों के भविष्य के लिए अच्छा संकेत हैं. लेकिन सरकार ने योजना में केवल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जितने वाले खिलाड़ियों और ओलंपिक, एशियन या कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों को ही नौकरी देने का ही प्रावधान बनाया. इसके साथ केवल वैसे खेल में पदक जीतने वाले खिलाड़ी ही योजना का लाभ ले सकते हैं जिनका खेल ओलंपिक, एशियन या कॉमनवेल्थ गेम्स में खेला जाता हो. इसमें अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता, खेलो इंडिया गेम्स और यूथ गेम्स चैंपियनशिप में पदक जितने वाले खिलाड़ियों को कोई स्थान नहीं दिया गया है.
जाबिर अंसारी कहते हैं “जुलाई महीने में सेंट्रल टैक्स एवं कस्टम डिपार्टमेंट में खिलाड़ियों के लिए नियुक्ति निकाला गया है. इसमें इंटर-यूनिवर्सिटी, खेलों इंडिया प्रतियोगिता में जितने वाले खिलाड़ियों को भी कोटा दिया गया है. इसके अलावा अन्य विभागों में भी जब खिलाड़ियों के लिए पद निकलते हैं तो उसमें इंटर-यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता को रखा जाता है. बिहार में भी पहले ऐसा ही था. लेकिन पिछले वर्ष जब यह नियमावली बनाया गया तो उसमें इंटर-यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता को बाहर कर दिया गया.”
वैसे खिलाड़ी जो राष्ट्रीय स्तर पर अपने राज्य और विश्वविद्यालय का नाम रौशन करते हैं, उनके लिए इस योजना में कोई जगह नहीं है. जबकि केंद्रीय स्तर पर खिलाड़ियों के लिए निकलने वाली नियुक्तियों में अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर पदक जितने वाले को कोटा दिया जा रहा है.
चुनिंदा खेलों में नौकरी
‘मेडल लाओं नौकरी पाओं’ योजना के तहत मई 2023 में आवेदन निकाला गया था. लेकिन नौकरी कुछ चुनिंदा खेलों जैसे- लॉन बॉल जु-जित्शु, रग्बी बॉयज, रग्बी गर्ल्स, पेंचकसिलट, कबड्डी बॉयज कबड्डी गर्ल्स, एथलेटिक्स, फुटबॉल नेटबॉल, ताइक्वांडो, साम्बो, सेपक टेकरा, रेसलिंग, वुशू वेटलिफ्टिंग एवं ड्रैगन बोट के खिलाड़ियों को दिया गया.इसके अलावा किसी अन्य गेम में मेडल जितने वाले खिलाड़ियों को नौकरी के लिए नहीं चुना गया है.
हालांकि नियमावली में कहा गया है कि इस नियमावली के अंतर्गत खेल विधाओं के अलावा किसी भी खिलाड़ी द्वारा मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धा में पदक प्राप्त करने की स्थिति में उसे खेल विधा में भी नियुक्ति पर विचार किया जाएगा. इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग में अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और सचिव की अध्यक्षता में गठित खेल विधा समिति द्वारा अनुशंसा की जाएगी.
योजना में इस तरह के नियम से जाबिर अंसारी आहत हैं. बीते वर्ष मेडल लाओं नौकरी पाओं के लिए जाबिर ने आवेदन दिया था. लेकिन इसे यह कहकर रिजेक्ट कर दिया गया कि, पदक इंटर-यूनिवर्सिटी गेम्स में जीते गये हैं. जबकि जाबिर ने नेशनल कराटे चैंपियनशिप 2017 और 2019 में सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल भी जीता है.
आवेदन रद्द करने का एक कारण कराटे का पंजीकृत खेल नहीं होना भी बताया गया. जबकि कराटे को एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में भी खेला जाता है. 2020 के टोक्यो ओलंपिक्स में भी पहली बार कराटे को बतौर खेल शामिल किया गया था. ऐसे में समान्य प्रशासन विभाग, बिहार सरकार को इसपर भी विचार करना चाहिए.
सरकार पर सवाल उठाते हुए जाबिर कहते हैं “मेरा आवेदन रिजेक्ट करते हुए कहा गया की आपका खेल रजिस्टर्ड नहीं है. मेरा कहना है जब हमारा खेल रजिस्टर्ड नहीं है, तब हर साल हमें खेल सम्मान के लिए क्यों चुना जाता है. खेल सम्मान के लिए भी वही लोग हमारा चयन कर रहे हैं जो नौकरी के लिए खिलाड़ियों को चुन रही हैं.”
बिहार सरकार 2018 से प्रत्येक साल जाबिर अंसारी को ‘स्टेट स्पोर्ट्स आवर्ड’ से सम्मानित कर रही है.
अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता में विजेता रहने वाले खिलाड़ियों को इस योजना में शामिल किये जाने को लेकर जाबिर ने बिहार के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और प्रधान सचिव को आवेदन भी दिया है जिसपर अबतक कोई जवाब नहीं दिया गया है.
कैसे होगी तैयारी
सरकार ने नौकरी के लिए शर्त तो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय, ओलंपिक, एशियन या कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतना रखा है. ऐसे में खिलाड़ी सवाल उठाते हैं की क्या, उन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए जिस तैयारी और संसाधन की आवश्यकता है वह राज्य में है?
कहते हैं किसी भी हुनर को निखारने और सफलता हासिल करने के निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है. और यह नियम खेलकूद पर और भी कड़ाई से लागू होता है. अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए खिलाड़ियों को निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है. लेकिन बिहार में खेल मैदानों और स्टेडियम की समस्या किसी से छुपी नहीं है.
राज्य में आउटडोर गेम के साथ ही इंडोर गेम के खिलाड़ियों के लिए अपना अभ्यास जारी रखना काफी मुश्किल है. इसके अलावे खिलाड़ियों को खेल की बारीकियों और नई तकनीकों के ज्ञान के लिए सही मार्गदर्शक यानि कोच की आवश्यकता होती है. लेकिन समान्य पृष्ठभूमि से आने वाले खिलाड़ी के लिए प्रशिक्षक और प्रशिक्षण स्थल का खर्च उठाना काफी कठिन है.
सरकार ने इसी कमी को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के तहत प्रत्येक जिले में एक खेल भवन और व्यायामशाला का निर्माण कराने का निर्णय लिया था. इस भवन में खेल पदाधिकारी के कार्यालय के साथ ही इंडोर एवं आउटडोर खेलों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी है. यहां खिलाड़ियों के लिए मल्टीजिम, वेट लिफ्टिंग प्लेटफार्म, ग्रीन रूम, चेंजिंग रूम आदि की सुविधा उपलब्ध करानी है. वही ताइक्वांडो, कुश्ती, कबड्डी, वुशू खेल आदि के लिए इंडोर ग्राउंड उपलब्ध कराया जाना है.
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार राज्य के लिए 29 खेल भवन सह व्यायामशाला स्वीकृत की गई हैं जिनमें से 23 का निर्माण किया जा चुका है. हालांकि बिहार राज्य खेल प्राधिकरण पर मौजूद जानकारी के अनुसार 20 जिलों में इसका निर्माण हुआ है. लेकिन यह लिस्ट पुरानी है. राज्य के अन्य विभागों की तरह यह विभाग भी नई जानकरियों को वेबसाइट पर उपलब्ध कराने में दिलचस्पी नहीं रखता है.
उद्घाटन के कुछ महीने बाद आई दरार
पटना जिले में खेल भवन का उद्घाटन इसी वर्ष फरवरी माह में किया गया था. लेकिन उद्घाटन के कुछ ही महीनों बाद भवन में मौजूद फ़र्निचर खराब हो गये. यहां तक की भवन में लगे दरवाजें और खिड़कियां खराब सीमेंट के कारण दीवार से बाहर आने लगीं. नवनिर्मित भवन में जगह-जगह दरारें पड़ गईं. जब पटना जिला खेल पदाधिकारी से इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने बताया “भवन में जो भी चीजें खराब हुई थी या टूट गईं थी उसे संबंधित एजेंसी ने ठीक कर दिया है. अब यहां कोई समस्या नहीं है.”
भले ही फौरी तौर पर आई दरारों या टूटे दरवाजे और खिड़कियों को ठीक करा दिया गया हो लेकिन इससे एक बात तो साफ़ सामने आ रही है कि भवन निर्माण में अनियमितता बरती गयी है. जबकि एक भवन के निर्माण पर छह करोड़ 61 लाख रुपए की राशि खर्च की गई है.
और, यह स्थिति केवल पटना में बने भवन की नहीं है. बल्कि मीडिया में अन्य जिलों में बने खेल भवन के बंद रहने या उसका संचालन सही ढंग से नहीं होनें की खबरें आती रही हैं. ऐसे में यह जरुरी है की सरकार केवल निर्माण पर नहीं बल्कि उसके संचालन की भी निगरानी करें.
मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के तहत ही जिले के 334 प्रखंडों में 370 स्टेडियम बनाने की योजना बनाई गयी थी. जिनमें अबतक 222 स्टेडियम का ही निर्माण हुआ है. वहीं 55 स्टेडियम निर्माणाधीन हैं. बिहार में खेल मैदानों की कमी का आंकड़ा काफी बड़ा है. यू-डायस के आंकड़े कहते हैं कि बिहार के 54 हजार स्कूलों में खेल के मैदान नहीं है. वहीं अंतरराष्ट्रीय क्या, राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट स्टेडियम तो भी नहीं हैं.
ऐसे में लगभग एक दशक में केवल कुछ खेल मैदान या खेल भवन का निर्माण किया जाना काफी नहीं होगा. खेल मैदानों के अलावा राज्य में खेल प्रशिक्षकों की भी काफी कमी है. यानि अभी खेल के विकास के लिए राज्य में बहुत कुछ किया जाना बाकि है.
29 अगस्त यानि खेल दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजगीर में 750 करोड़ की लागत से बन रहे खेल अकादमी और अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का उद्घाटन करेंगे. ऐसे में क्या यह उम्मीद किया जा सकता है की आने वाले ओलंपिक में बिहार से केवल एक नहीं बल्कि दहाई के अंको में खिलाड़ी क्वालीफाई करेंगे.