खेल विभाग: बिहार में खेल की दुर्दशा देखनी है तो आइए मोइनुल हक स्टेडियम

5 जनवरी को 41 बार की रणजी चैम्पियन मुंबई और बिहार की टीम के बीच मैच खेला गया. इस मुकाबले के बाद क्रिकेट और खिलाड़ियों से ज्यादा जिस दो मुद्दे पर चर्चा हुई वह थी- बिहार में क्रिकेट एसोसिएशन का आंतरिक विवाद और खेलों के लिए बिहार में मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर.

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मोइनुल हक स्टेडियम

मोइनुल हक स्टेडियम

नए साल की शुरुआत के साथ बिहार के क्रिकेट प्रेमियों को जो एक अच्छी खबर सुनने को मिली, वह थी बिहार में रणजी मैच का आयोजना. यह खबर बिहार के क्रिकेट प्रेमियों के लिए किसी ‘सरप्राइज गिफ्ट’ से कम नहीं था. हालांकि उनकी यह खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी. मैच के पहले ही दिन बिहार के एकमात्र क्रिकेट स्टेडियम की बदहाल स्थिति राज्य की खेल व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही थी. 

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वहीं दूसरी तरफ मैच खेलने को लेकर बीसीए अध्यक्ष और पूर्व सचिव द्वारा बनाई गयी दो अलग-अलग टीम मुकाबला खेलने स्टेडियम पहुंच गई. विवाद बढ़ने के बाद स्थानीय पुलिस ने मामला शांत कर बीसीए अध्यक्ष द्वारा चुनी गई टीम को मुकाबला खेलने के लिए मैदान पर भेजा. 

जर्जर हालत में बिहार का एकमात्र क्रिकेट स्टेडियम 

बिहार से झारखंड के अलग होने के 23 सालों बाद बिहार की रणजी टीम पहली बार प्रथम श्रेणी के घरेलू क्रिकेट के एलिट ग्रुप में शामिल हुआ है. एलिट ग्रुप में देशभर की शीर्ष 32 टीम खेलती है.वहीं साल 2018 में जब बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई से मान्यता मिली है, बिहार की टीम ग्रुप में ही खेलती आई है. इसलिए एलिट ग्रुप जिसमें मुंबई जैसी अनुभवी टीम शामिल है उसके साथ मुकाबला करना बिहार के खिलाड़ियों के लिए अच्छा अवसर साबित हो सकता था. लेकिन बीसीए के आंतरिक कलह का खामियाजा खिलाड़ी भुगत रहे हैं.

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जर्जर हालत में मोइनुल हक स्टेडियम
जर्जर हालत में मोइनुल हक स्टेडियम

5 जनवरी को हुए मुकाबले में मुंबई टीम से खेलने इंडियन टीम के स्टार बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे और शिवम दूबे भी बिहार आए थे. अजिंक्य रहाणे और शिवम दूबे जैसे स्टार खिलाड़ियों को टीवी पर देखने वाले फैंस, उन्हें मैदान पर खेलते देखने की चाह में काफी संख्या में स्टेडियम पहुंचते हैं.

हालांकि, बीसीए ने स्टेडियम की जर्जर हालत देखते हुए पहले ही नोटिस जारी कर दिया कि दर्शक अपने रिस्क पर ही स्टेडियम आयें. साथ ही पूरी दर्शक दीर्घा में जगह-जगह डेंजर लिखा साइन बोर्ड भी लगाया दिया. 

कंकड़बाग के रहने वाले साकेत सौरभ भी अपने दोस्तों के साथ मैच देखने जाते हैं. लेकिन स्टेडियम की हालत और रहाणे के मैच ना खेलने की जानकारी मिलने पर थोड़ी समय बाद ही वापस लौट जाते हैं. साकेत बताते हैं "रणजी मैच होने की जानकारी मिली तो सारे दोस्त मिलकर मैच देखने गए. लेकिन मन में एक शंका था आखिर उस उबड़ खाबड़ मैदान में मैच कैसे होगा. हालांकि पिच तो खेलने लायक बना दिया गया था लेकिन स्टेडियम खंडहर था."

निर्माण के बाद नहीं हुई मरम्मतीकरण

मोइनुल हक स्टेडियम का निर्माण 1969 में हुआ था. निर्माण के 55 सालों के दौरान एक बार भी स्टेडियम का मरम्मत नहीं करवाया गया. पवेलियन, दर्शक दीर्घा और ग्राउंड की स्थिति बदतर स्थिति में है. दर्शकों के बैठने के लिए बनी सीढ़ियों और गैलरी जगह-जगह से टूटे हुए है. वहीं उनकी दरारों में जंगली पौधे उग गये हैं. लोहे और सीमेंट के बने रेलिंग टूट चुके हैं.

वहीं मैच के दौरान स्कोर दिखाने के लिए लगाया गया स्कोरबोर्ड भी खराब हो चुका है. स्टेडियम की जर्जर हालत के कारण इसे पांच साल पहले ही डेंजर स्टेडियम घोषित कर दिया गया था. हालांकि, बिहार का एक मात्र क्रिकेट स्टेडियम होने के कारण रणजी मैच का आयोजन यहीं करना पड़ा.

तेजस्वी ने किया, वर्ल्ड क्लास स्टेडियम बनाने का वादा

आज से नौ साल पहले पूर्व भारतीय गेंदबाज चेतन शर्मा द्वारा मोइनुल हक स्टेडियम की जर्जर स्थिति पर उठाया गया प्रश्न एक बार फिर सामने खड़ा हो गया है. चेतन शर्मा ने साल 2015 में स्टेडियम की हालत देखने के बाद कहा था- यह कैसा स्टेडियम है? मैदान के बाहर बेतरतीब घास है. पवेलियन जर्जर है. पिच ऐसी है कि पूरा ओवर खेलना मुश्किल है. सरकार क्या कर रही है? क्या किसी की नजर नहीं पड़ी, इस दयनीय स्टेडियम पर? यह हाल रहा, तो बिहार में क्रिकेट ही मर जाएगा.

वर्ल्ड क्लास स्टेडियम

हालांकि, इसके बाद भी सरकार बेखबर और निकृष्ट पड़ी रहती है. केवल ‘मैडल लाओ, नौकरी पाओ’ और खेल विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा कर देने भर से राज्य में खेलों की स्थिति नहीं सुधर सकती.

जगहसाई के बाद खुली आंख

रणजी मैच के बाद शुरू हुई किरकरी के बीच नीतीश कुमार ने 8 जनवरी को हुए कैबिनेट बैठक में राज्य में अलग खेल विभाग बनाए जाने को मंजूरी दी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार 6 जनवरी को घोषणा की कि राज्य सरकार ने बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और पदक जीतने के प्रयास में एथलीटों का समर्थन करने के लिए एक खेल विभाग बनाने का फैसला किया है. इस पहल से उम्मीद की जा रही है कि राज्य में खेलों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. वहीं खेल विभाग का गठन किये जाने के दो दिनों बाद ही 10 जनवरी को पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी मोइनुल हक स्टेडियम के पुनर्विकास एवं नवनिर्माण संबंधित समीक्षा बैठक की. 

इस बैठक में स्टेडियम को वर्ल्ड क्लास बनाने, फाइव स्टार होटल, रेस्टोरेंट, पार्किंग, ड्रेनेज सिस्टम और मेट्रो पहुंच समेत कई वर्ल्ड क्लास सुविधाएं बनवाने की बात कही गयी. तेजस्वी ने अधिकारीयों को दो हफ्तों में DPR तैयार कर आगे की कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया. साथ ही 13 जनवरी को बिहार और छत्तीसगढ़ की टीम के बीच हुए मुकाबले में खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने मोइनुल हक़ स्टेडियम भी गए.

हलांकि, बिहार की राजनीति में हुई उठापटक तेजस्वी द्वारा लाई गयी योजनाओं पर कितना प्रभाव डालती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा.

मोइनुल हक वर्ल्ड क्लास स्टेडियम

विश्वस्तरीय क्या मोहल्लों में भी नहीं बचे हैं खेल मैदान 

एक समय था जब बच्चे गली-मोहल्ले में उपलब्ध मैदानों में क्रिकेट, कब्बडी, फुटबॉल या कई तरह के खेल मोहल्ले के मैदानों मे खेला करते थे. अगर बड़े मैदानों की बात की जाए तो राजधानी पटना के गांधी मैदान, मंगल तालाब, गर्दनीबाग एथलेटिक क्लब, पटना हाई स्कूल, पटना कॉलेजिएट, मिलर हाई स्कूल और खगौल के जगजीवन इंस्टीट्यूट में उपलब्ध मैदानों में खेलों की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हुआ करती थी.

पटना में मोइनुल हक स्टेडियम के अलावा साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और कंकड़बाग में भी क्रिकेट के अच्छे मैदान हुआ करते थे. हालांकि, शहरीकरण और सौन्दर्यकरण के नाम पर खेल के मैदानों को पार्क मे तब्दील किया जाना खेल संस्कृति को कुचलने की शुरुआत है.

साल 2012 से पहले कंकड़बाग में एक बड़ा खेल मैदान 'रेनबो फील्ड' हुआ करता था. इस मैदान मे कंकड़बाग के कई मुहल्लो के बच्चे और युवा खेलने आते थे. लेकिन 2012 में पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनने के बाद इस मैदान को बाहरी बच्चों के लिए बंद कर दिया गया. 

बीसीए के अंदरूनी विवाद ने किया क्रिकेट को खोखला

बीसीए अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी और सचिव अमित कुमार ने राज्य क्रिकेट संघ के भीतर चल रहे विवाद के परिणाम स्वरूप अलग-अलग टीमों की घोषणा की थी. 

विवाद के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए, बीसीए के प्रवक्ता संजीव कुमार मिश्रा ने कहा, “बीसीए अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी की टीम बिहार की असली टीम है. अमित कुमार का बीसीए से कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें बीसीए ने पहले ही निलंबित कर दिया है. उन्होंने जो टीम चुनी उसका कोई मतलब नहीं है.”

बाद में अमित कुमार ने मीडिया से कहा कि टीम चुनने का अधिकार सचिव को है, अध्यक्ष को नहीं. उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का उदाहरण देते हुए कहा कि टीम के चयन के बाद अनुमोदन की अंतिम मुहर बीसीसीआई सचिव द्वारा लगाई जाती है ना की अध्यक्ष द्वारा.

कई अंतर्राष्ट्रीय मैच का गवाह रहा ही स्टेडियम

साल 1970 के दशक में पटना के मोइनुल हक स्टेडियम में भारत, वेस्ट इंडीज और न्यूजीलैंड की टीमों के बीच मुकाबला हो चुका है.

आगे 90 के दशक में भी यहां तीन वनडे इंटरनेशनल मैच खेले गए थे. जिसमें पहला मुकाबला साल 1993 में जिम्बाब्वे और श्रीलंका के बीच खेला गया था. इसके तीन साल बाद साल 1996 में हुए वर्ल्ड कप मुकाबले में केन्या और जिम्बावे का मैच यहां आयोजित हुआ था.

26 फरवरी को दोनों टीमों के बीच मैच खेला गया लेकिन इस मुकाबले में जीत-हार का फैसला नहीं हो सका. अगले दिन वापस 27 फरवरी को केन्या और जिम्बाब्वे के बीच मैच खेला गया, जिसमें जिम्बाब्वे को 5 विकेट से जीत मिली थी.

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