जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी से झुलस रही है बिहार के किसानों की फसल

कृषि गोपालगंज जिले में भीषण गर्मी व लू की वजह से पंचदेवरी के खालगांव, नटवां, आदि गांवों में लगभग चार सौ हेक्टेयर में प्याज़ की फसल झुलस कर बर्बाद हो रही है।इलाके के किसान नगदी आमदनी के लिए प्याज की खेती करते हैं।

author-image
नाजिश महताब
एडिट
New Update
प्याज की सूखती हुई फसल

जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी से झुलस रही है बिहार

एक बार आकर देख कैसा, ह्रदय विदारक मंजर है, 

पसलियों से लग गई हैं आंतें, खेत अभी भी बंजर है।

बढ़ती गर्मी से हो रही किसानों को परेशानी

हालिया वर्षों में मौसम में लगातार बदलाव देखा जा रहा है। मौसम में बदलाव के कारण ऋतुओं में भी परिवर्तन दिख रहे हैं। इस परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव कृषि पर पड़ रहा है। पेड़ों के कटने से वातावरण में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड में बढ़ोतरी हुई है।

इस स्थिति ने फ़सल चक्र को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, जो दिनोंदिन परेशानियां खड़ी कर रहा है। यदि तापमान अधिक हो जाता है, तो इससे गेहूं और धान दोनों की फ़सल प्रभावित होती है, साथ ही मूंग भी अंकुरित नहीं होगी। तापमान में वृद्धि से फलों पर भी सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई फल ऐसे हैं जो तापमान के बढ़ने से मीठे हो जाते हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ फल ऐसे हैं जो तापमान के बढ़ने से प्रभावित होते हैं।

किसानों के चेहरे पर शिकन और उदासी साफ़ देखी जा सकती है। मई 2024 में बिहार में तापमान काफ़ी अधिक हो गया है, जिससे आम इंसानों को तो दिक्कत हो ही रही है, वहीं फ़सलों को भी दिक्कत हो रही है। फ़सल ख़राब हो रही है और खेतों में आग भी लग जा रही है।

मरांची में किसानों के हालात ख़राब

बिहार की राजधानी से 15 किलोमीटर दूर मरांची में कई किसानों के हालात ख़राब हैं। जब हमने उनसे बात की, तो उन्होंने जो हमें बताया वह काफ़ी निराशाजनक था।

राहुल, एक किसान जो मरांची में खेती करते हैं, हमसे बात करने के दौरान उन्होंने बताया,

“गर्मी की वजह से पूरी फ़सल ख़राब हो गई है और इसे देखने वाला कोई नहीं है। सरकार की तरफ़ से एक चापानल है, लेकिन वह काम नहीं करता। खेत में पानी की समस्या भी ज़्यादा है, जिसके कारण मेरा सारा फ़सल बर्बाद हो गया.”

जब हमने राहुल से नुकसान के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा,

“लगभग 2 लाख से अधिक का नुकसान मुझे हुआ है और समझ नहीं आता कि इसकी भरपाई कौन करेगा.”

गोपालगंज में फ़सल झुलस कर बर्बाद

गोपालगंज ( Gopalganj) जिले में भीषण गर्मी व लू ( Heat Wave) की वजह से फसल झुलस कर बर्बाद हो रही है। पंचदेवरी के खालगांव, नटवां, कपूरी, नेहरूआ काला, विशुनपुरा, सिकटिया मिश्रौली, भृंगीचक आदि गांवों में लगभग चार सौ हेक्टेयर में प्याज़ की खेती किसानों द्वारा की जाती है, जिसमें एक सौ हेक्टेयर में आगात प्याज की खेती की गई है। इलाके के किसान नगदी आमदनी के लिए प्याज की खेती करते हैं। ( Onion Farming)लगभग 35 हजार रुपए की लागत से एक एकड़ में प्याज की खेती की गई है। लेकिन फसल झुलस कर नष्ट हो रही है। किसानों का कहना है कि इस वर्ष लागत पूंजी के भी डूब जाने की आशंका है। तापमान बढ़ने के साथ ही प्याज़ की फसल में कीड़े व थ्रिप्स का भी असर दिखने लगता है।

लू से झुलसी हुई फ़सल

किसानों को नहीं मिल रहा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को 2015-16 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य खेत पर पानी की भौतिक पहुंच को बढ़ाना और सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, कृषि जल उपयोग दक्षता में सुधार करना, स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को लागू करना आदि था। पीएमकेएसवाई- हर खेत को पानी (एचकेकेपी) पीएमकेएसवाई के घटकों में से एक है। एसएमआई की योजना अब पीएमकेएसवाई (एचकेकेपी) का एक हिस्सा है।

भारत सरकार जल संरक्षण और उसके प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसे गति देने के लिए, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को सिंचाई कवरेज (हर खेत को पानी) का विस्तार करने और पानी का अधिक कुशलता से उपयोग करने (प्रति बूंद अधिक फसल) के दृष्टिकोण से पेश किया गया था।

बिहार के कई गांवों में पानी की कमी साफ़ देखी जा सकती है। खेतों में बोरिंग या चापानल लगे तो हैं, पर उनमें पानी नहीं आने के कारण किसानों को काफ़ी समस्याओं से गुजरना पड़ता है।

मरांची के किसान रवि बताते हैं

बिहार की 77% आबादी खेती के कामों से जुड़ी हुई है। राज्य की जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 18-19 फ़ीसद है। लेकिन कृषि का अपना ग्रोथ रेट लगातार कम हुआ है। साल 2005-2010 के बीच यह ग्रोथ रेट 5.4 फ़ीसद था, 2010-14 के बीच 3.7 फ़ीसद हुआ और अब 1-2 फ़ीसद के बीच है।

बदलते मौसम का असर फलों पर

बदलते मौसम (Climate Change) का असर फलों पर भी देखा जा सकता है। कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में आम का उत्पादन लगभग 13 से 15 लाख टन प्रति वर्ष होता है, जबकि लीची का उत्पादन 4 से 6 लाख टन तक होता है। इस विषय पर हमने किसान कुणाल से बात की, तो उन्होंने बताया,

“आम का पेड़ सूख चुका है, आम की मिठास कम हो गई है। 2 बीघा में आम की खेती होती है, लेकिन इस बार बदलते मौसम और गर्मी के कारण पेड़ की उपजाऊता कम हो गई है।”

कृषि वैज्ञानिक का क्या कहना है

इन सारे मुद्दों पर जब हमने कृषि विज्ञान केंद्र के सेवानिवृत्त कृषि वैज्ञानिक सुरेंद्र सिंह से बात की, तो उन्होंने बताया,

पानी की कमी से सूखती फ़सल

“कम जल में सिंचाई की पद्धति में परिवर्तन करना पड़ेगा। फव्वारा सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल ज़्यादा करना चाहिए। दूसरी चीज़, खेत में ऑर्गेनिक मैटर को ज़्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। किसान को चुनाव करना चाहिए कि कौनसी फ़सल लगानी चाहिए, जिसमें पानी की आवश्यकता कम हो। उसमें कम दिन वाली फ़सल को ज़्यादा महत्व देना चाहिए। बोदी की खेती, मूंग की खेती, मक्का की खेती, मिर्ची, टमाटर की खेती अभी कर सकते हैं।”

जय जवान जय किसान भारत का एक प्रसिद्ध नारा है। यह नारा पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। लेकिन आज के वक्त में किसानों की दुर्दशा काफ़ी ख़राब है और सरकार भी उस पर ध्यान देती नज़र नहीं आती है।

जब हमने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अधिकारी से बात करने की कोशिश की, तो उनसे हमारी बात नहीं हो पाई, लेकिन हम लगातार उनसे बात करने की कोशिश करेंगे और समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करेंगे, ताकि किसानों की समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो.

Bihar gopalganj climate change Heat Wave FARMER onion farming