नालंदा जिले के नूरसराय ब्लॉक की रहने वाली रत्ना देवी के दो बेटे हैं. लेकिन दोनों रोज़गार की तलाश में सालों पहले गांव छोड़कर शहर चले गये. साथ में उनका परिवार भी चला गया. रत्ना देवी और उनके पति गांव में अकेले रह गए. उम्र के लगभग अंतिम पड़ाव में पहुंच चुकी रत्ना आज भी मिट्टी के चूल्हे पर दो लोगों का खाना बनाती हैं. उनके पास उज्जवला योजना के तहत मिला गैस चूल्हा और सिलेंडर भी है. तो आख़िर वो मिट्टी के चूल्हे पर खाना क्यों बनाती हैं?
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए रत्ना देवी कहती हैं “बचपन से चूल्हा पर ही खाना बनाते आए हैं. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अब उम्र हो गया है, बार- बार चूल्हा फूंकने की ताकत नहीं है. इनकी (रत्ना के पति) भी उम्र हो गई, इसलिए जलावन लाने में भी दिक्कत होता है. अभी बरसात में और ज़्यादा दिक्कत है. लेकिन इतना पैसा नहीं रहता है कि सिलेंडर भरा सके.”
रत्ना देवी को कुछ साल पहले उज्जवला योजना के तहत गैस चूल्हा मिला था. लेकिन पैसे के अभाव में वो नियमित तौर पर गैस सिलिंडर नहीं भरा पाती है. वहीं दूसरी समस्या गांव में वेंडरों का नहीं पहुंच पाना भी है.
उज्ज्वला योजना की और विफ़ल कहानी
उज्जवला योजना के विफ़लता की एक कहानी इसी गांव की राबो देवी की है. राबो देवी के पति की मौत काफ़ी समय पहले हो चुकी है और ना ही उनकी कोई संतान है. खाने और दूसरी ज़रूरतों के लिए आस-पड़ोस के लोगों पर निर्भर राबो देवी चूल्हे पर खाना बनाती हैं. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार देशभर में 10.33 करोड़ महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत गैस चूल्हा दिया जा चुका है. लेकिन राबो देवी का नंबर अब तक नहीं आया है.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए राबो देवी कहती हैं “गांव में कोई योजना हम जैसे लोगों के लिए नहीं हैं. गैस चूल्हा क्या, मेरा वृद्धा पेंशन का कार्ड भी नहीं बना है. लोग कहते हैं विधवा पेंशन मिल रहा है तब दूसरा कोई पेंशन नहीं मिलेगा.”
गैस कनेक्शन ना मिलने पर राबो देवी को कोई अफ़सोस नहीं है. उनका कहना है “अगर गैस मिल भी जाता तो उसको भराने का पैसा कहां से लाते?”
राबो और रत्ना देवी जैसी बुज़ुर्ग महिलाएं जिन्हें सरकारी योजनाओं की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है उन्हें ही इसका लाभ नहीं मिला रहा है. तब योजनाओं के लाभार्थियों के बड़े आंकड़े जारी करने के क्या फ़ायदे?
उज्ज्वला योजना में लक्ष्य पूरा लेकिन कई लाख आवेदन भी लंबित
पीएम मोदी ने मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य मार्च 2020 तक 8 करोड़ ज़रूरतमंद परिवारों को गैस कनेक्शन देना था. लेकिन यह लक्ष्य सितम्बर 2019 में ही पूरा हो गया.
जिसके बाद उज्ज्वला योजना 2.0 के तहत 1.6 करोड़ का लक्ष्य रखा गया जिसे दिसम्बर 2022 में पूरा कर लिया गया. दोनों चरण की प्राप्ति के बाद सरकार ने अतिरिक्त 75 लाख गैस कनेक्शन देने की शुरुआत की है. ताकि लाभार्थियों की संख्या 10.35 करोड़ हो जाए.
समय से पहले लक्ष्य प्राप्ति और अतिरिक्त गैस कनेक्शन देने के बीच, अब राज्यों में आवेदन लंबित होने की शिकायतें आ रहीं है. सांसद दुष्यंत सिंह ने लोकसभा में प्रश्न उठाया कि उज्ज्वला योजना के तहत राज्यों में सात लाख से ज़्यादा मामले लंबित हैं. उन्होंने पूछा की ऐसे लंबित मामलों के निपटारे के लिए सरकार ने क्या समय सीमा तय की है?
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के राज्य मंत्री सुरेश गोपी ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया. रिपोर्ट के अनुसार, 'एक जुलाई 2024 तक सभी राज्यों में लंबित मामलों की संख्या 26 लाख 79 हज़ार 787 हैं.'
वहीं एक लाख से अधिक लंबित मामलों वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल, यूपी, मध्यप्रदेश, बिहार, असम, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल थे. जहां पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 14,35,426 मामले लंबित हैं. वहीं असम में 1,89,499, मध्यप्रदेश में 1,46,410, यूपी में 1,32,650, छत्तीसगढ़ में 1,15,118, राजस्थान में 1,14,338, बिहार में 1,01,099, आवेदन लंबित पड़े हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि इनमें से कुछ मामलों के लंबित होने का कारण पर्याप्त दस्तावेज़ों का मौजूद नहीं होना है. लेकिन ऐसे कितने मामले हैं जिनमें दस्तावेज़ की ज़रूरत है? इनकी संख्या नहीं दी गयी. वहीं लंबित मामलों के निपटारे के लिए भी कोई तय समय सीमा नहीं रखी गयी है.
पटना के अलावा बाकि जिले पीछे
एक करोड़ से ज़्यादा उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं वाले राज्य बिहार में, एलपीजी गैस की खपत जिलावार देखने पर भारी असमानता नजर आती है. हाल ही में जारी हुए बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 में राज्य के अलग-अलग जिलों में एलपीजी खपत के आंकड़े जारी किये गये हैं.
हालांकि गैस खपत के आंकड़े जिलावार संपन्नता को दर्शाने के लिए जारी किये गये हैं लेकिन इससे हम उज्ज्वला योजना की बिहार में सफलता का भी अनुमान लगा सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 में पटना जिले में प्रति एक हज़ार व्यक्ति पर 23.9 हजार मीट्रिक टन एलपीजी की खपत हुई थी. इसके अलावा बेगूसराय में 15.8 मी.टन, गोपालगंज में 15.2 मी.टन, मुजफ्फरपुर 14.9 मी.टन और दरभंगा 14 मी.टन रसोई गैस की खपत हुई थी.
वहीं अररिया, बांका, किशनगंज और कटिहार जैसे जिले एलपीजी गैस खपत मामले में पटना से काफ़ी पीछे हैं. अररिया और बांका जिले में प्रति हज़ार व्यक्ति पर रसोई गैस की खपत 7.2 हजार मी.टन हैं, जबकि किशनगंज में 7.8 हजार मी.टन और कटिहार में 7.9 हजार मी.टन गैस की खपत हुई थी. वहीं पूरे बिहार में इस दौरान प्रति हजार व्यक्ति रसोई गैस की खपत 12.1 हजार मी.टन रहा था.
मौजूदा आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि महिलाएं योजना के तहत रसोई गैस लेना चाहती हैं. लेकिन गैस की ज़्यादा कीमतें ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीजी को केवल वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में देखते हैं. यही कारण है कि गैस चूल्हा रहने के बाद भी रत्ना देवी लकड़ी पर खाना बनाती हैं, जबकि राबो देवी को चूल्हा न मिलने का अफ़सोस भी नहीं है.