अल्पसंख्यक छात्रों को नहीं मिल रहा मुख्यमंत्री छात्रावास अनुदान और खाद्यान योजना का लाभ

छात्रों का कहना है की 2020 के बाद से ही योजना का लाभ नहीं मिला है. योजनाएं केवल नाम के लिए कागजों पर हैं. उसके नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती है.

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पटना यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक छात्रावास में रहने वाले छात्रों को मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक कल्याण छात्रावास अनुदान और खाद्यान योजना का लाभ नहीं रहा है. छात्रावास में रह रहे छात्रों का कहना है की आवेदन दिए हुए कई महीने हो चुके हैं लेकिन अबतक उन्हें लाभ नहीं मिल सका है.

बिहार सरकार द्वारा साल 2018-19 में मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक कल्याण छात्रावास अनुदान और खाद्यान योजना की शुरुआत की गयी थी. योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाना था. ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छात्र पैसे के अभाव में पढ़ाई ना छोड़े.

योजना के तहत उच्च शिक्षा के लिए नामांकन लेने वाले छात्र जो हॉस्टल में रहेंगे उनको महीने में एक हजार रुपए बतौर अनुदान राशि और भोजन के लिए प्रत्येक माह 15 किलों (नौ किलों गेंहूं और छह केजी चावल) सुखा अनाज दिया जाएगा.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार वर्ष 2023-24 में योजना के तहत 4773 छात्रों के लिए 47.73 लाख रुपए आवंटित किये गये थे. जबकि खाद्यान योजना के तहत 2475 छात्रों को लाभ मिला था.

छात्रों को नहीं मिला लाभ

पटना यूनिवर्सिटी से सम्बंधित कॉलेजों में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के लिए नदवी हॉस्टल’ बनाया गया हैं. इन छात्रावासों में रह रहे कई छात्र जो योजना के भरोसे ही गांव से शहर पढ़ने आए थे उन्हें काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

छात्रों का कहना है की 2020 के बाद से ही योजना का लाभ नहीं मिला है. किसी तरह फीस देकर छात्रों को हॉस्टल में प्रवेश तो मिल गया है लेकिन अब हर महीने खाने और दूसरी चीजों पर होने वाले खर्च के कारण उनके ऊपर आर्थिक दबाव बन गया है. 

नदवी हॉस्टल में रहने वाले छात्र नबी सीवान जिले के रहने वाले हैं. MLIS के अंतिम वर्ष में पहुंच चुके नबी को अबतक योजना का लाभ नहीं मिला है. आर्थिक परेशानियों को कम करने के लिए नबी अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम करते हैं. नबी बताते हैं, उनके साथ करीब 45 छात्रों ने योजना के लिए दो महीने पहले आवेदन दिया था लेकिन अबतक इसपर कोई जवाब नहीं आया है.

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए नबी बताते हैं “मेरे सेशन में 45 छात्रों ने आवेदन दिया था. ऐसे हॉस्टल से 75 छात्रों ने आवेदन दिया था. लेकिन अबतक किसी को कुछ नहीं मिला. कार्यालय में बात करने गए तो कहा गया हो जाएगा लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. यहां अल्पसंख्यक विभाग की स्थिति बहुत खराब है.”

नदवी हॉस्टल में ही रहने वाले गोपालगंज जिले के छात्र सोहराब अहमद अंसारी पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास विषय में पीजी कर रहे हैं. योजना का लाभ नहीं मिलने पर अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए अहमद कहते हैं “सेकंड सेमेस्टर भी ख़त्म हो गया. लेकिन अबतक कुछ नहीं हुआ. योजनाएं केवल नाम के लिए कागजों पर हैं. उसके नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती है.”

छात्र सोहराब अहमद अंसारी इस विषय पर सुप्रिटेंडेंट की भूमिका पर भी प्रश्न उठाते हैं और कहते हैं “हॉस्टल में रहने वाला छात्र हॉस्टल सुप्रिटेंडेंट के माध्यम से ही इस योजना के लिए आगे भेजा जाता है. हमलोग कई बार उनसे मिल चुके हैं लेकिन हॉस्टल सुप्रिटेंडेंट कहते हैं जब तक हॉस्टल नहीं खुलता कुछ भी नहीं किया जा सकता है.”

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इस संबंध में हमने नदवी हॉस्टल के सुप्रीटेंडेंट नकीब अहमद जॉन से बात की. छात्रों के आरोप पर नकीब अहमद कहते है “कई कारणों से योजना का लाभ नहीं मिलता है. पहला, अभी हॉस्टल प्रशासनिक कारणों से बंद हैं. चूंकि योजना की शर्त है जब बच्चे हॉस्टल में रहेंगे तभी उन्हें लाभ मिलेगा. लेकिन छात्र यह बात नहीं जानते हैं. दूसरा, किसी बच्चे के डॉक्यूमेंट में कोई कमी रहती है, तो ऐसे में भी उनका आवेदन रोक दिया जाता है.”

जिस महीने में बच्चे छात्रावास में रहते हैं. उसका लिस्ट बनाकर छात्रावास अधीक्षक अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी को भेजता है. वहां से वेरीफाई होने के बाद राशि छात्र के खाते में भेज दी जाती है. लेकिन केवल उन महीनों का जिनमें वे हॉस्टल में मौजूद थे.”

लेकिन अधीक्षक इस बात का जवाब नहीं देते की आखिर जब हॉस्टल प्रशासनिक कार्यों से बंद किये गए तो इसका खामियाजा छात्र क्यों भुगत रहे हैं? साथ ही वैसे छात्र जिनका आवेदन 2021 से रुका है उनके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है.

खराब अनाज 

पटना यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाली मदर टेरेसा अल्पसंख्यक छात्रावास में रहने वाली छात्राओं को भी योजना का लाभ नहीं मिला है. मोतिहारी की रहने वाली सदफ़ (बदला हुआ नाम  दरभंगा हाउस की छात्रा रही हैं. इंग्लिश विषय में उन्होंने इसी वर्ष पीजी किया है. लेकिन स्नातक से पीजी कोर्स के दौरान उन्हें मात्र एक वर्ष ही मुख्यमंत्री छात्रावास अनुदान और खाद्यान योजना का लाभ मिला.

सदफ कहती हैं “ग्रेजुएशन सेकंड ईयर में योजना आई थी. इसके उद्घाटन समारोह में मैं भी शामिल हुई थी. 2019 में मात्र सात हजार रूपए मुझे मिले. इसके अलावा अनाज भी मिला लेकिन वह इतना खराब था की उसे खाया नहीं जा सकता था." 

छात्राओं के अनुसार अनाज और पैसे महीने-महीने नहीं दिए जाते हैं. एक बार ही सात से आठ महीने का पैसा खाते में भेजा जाता है. वहीं अनाज भी एक ही बार हॉस्टल में बांटा जाता है. लेकिन अनाज घुने हुए और निम्न गुणवत्ता के होते हैं.

सदफ कहती हैं “बहुत लड़कियां तो अनाज लेती भी नहीं है. और जो लेती हैं वो गार्ड या किसी कर्मी के सहयोग से उसे बेच देती है. जिस चावल को हम बाजार से 50 रुपए केजी खरीद के लाते हैं उसे हॉस्टल में 15 से 17 रूपये किलो बेचना पड़ता है. क्योंकि अनाज में कीड़े लगे होते हैं. फिर उसी पैसे से कुछ दिनों का अनाज खरीदते हैं."

लंबे समय से हॉस्टल बंद

पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले सभी हॉस्टल पिछले तीन महीनों से बंद हैं. जबकि कॉलेज खोले जा चुके हैं. बीते दिनों छात्रों ने हॉस्टल खोले जाने को लेकर विश्वविद्यालय के बाहर प्रदर्शन भी किया था. लेकिन अबतक हॉस्टल नहीं खोला जा सका है. छात्र डीएसडब्ल्यू और वीसी से भी मिल चुके हैं लेकिन अबतक इसका कोई समाधान नहीं निकाला गया है.

छात्र हॉस्टल बंद रहने के कारण होने वाली समस्या साझा करते हुए कहते हैं, कैसे हॉस्टल बंद होने के कारण उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है. कुछ छात्र किसी तरह बाहर के पीजी में रहकर पढ़ाई जारी रख रहे हैं लेकिन जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है उनकी पढ़ाई रुक गयी है.

पूर्वी चंपारण के रहने वाले सिराज अहमद पटना कॉलेज से साइकोलॉजी विषय में स्नातक कर रहे हैं. सिराज 2021-24 सेशन के छात्र हैं. छात्रावास अनुदान योजना के लिए आवेदन दिए हुए करीब एक साल हो चुका हैं लेकिन अबतक उन्हें इसका लाभ नहीं मिला है. हॉस्टल बंद होने के कारण सिराज अपने गांव चले गये हैं और उनकी पढ़ाई रुक गयी है.

सिराज जैसे कई छात्र हैं जो पैसे के अभाव में पढ़ाई से दूर हो गये हैं. उन्हें ना तो छात्रावास अनुदान योजना का लाभ मिल रहा है और ना ही विश्वविद्यालय द्वारा आवंटित सस्ते दर के हॉस्टल में रहने की जगह. 

छात्र बताते हैं, विश्वविद्यालय में साल में एक बार, जून से जुलाई महीने के दौरान जीरो सेशन लगाया जाता है. इस दौरान हॉस्टल बंद कर दिए जाते हैं. छात्र घर चले जाते हैं. इसी दौरान हॉस्टल में मेंटेनेंस का काम करवाया जाता है.

नबी बताते हैं “मरम्मत के नाम पर जो भी काम पिछले बार कराया गया था उसमें मिलावट था. इसबार मई में नोटिस दिया गया कि गर्मी छुट्टी के लिए हॉस्टल बंद किया जाएगा. एक जून को हॉस्टल बंद हुआ लेकिन आज दो महिना हो गया है अबतक हॉस्टल नहीं खुला है. जबकि कॉलेज खुल चूके हैं. हमारे किताब-कॉपी, नोट्स सब कमरे में बंद हैं. हमे क्या पता था हॉस्टल इतने लंबे समय तक बंद रखा जायेगा.”

कॉलेज खुलने के कारण पढ़ाई शुरू हो गयी हैं. कॉलेज में 75 फीसदी अटेंडेंस भी आवश्यक है. सिलेबस में पिछड़ने के डर से हॉस्टल में रहने वाले छात्र पीजी लेकर रहने को मजबूर हैं.

नबी बताते हैं “4500 रुपए लेकर एक साल के लिए हॉस्टल आवंटित किया गया था. लेकिन हमलोग मात्र दो से तीन महिना ही रहे होंगे जब गर्मी छुट्टी के लिए हॉस्टल बंद हो गया. अब दो महीने से ज्यादा का समय हो गया है. इतने लम्बे समय तक क्लास नहीं छोड़ सकते हैं. इस कारण पीजी लिए हैं इसका महीने का किराया 2500 रुपए लगता है. इसके बाद खाने का खर्च मिलाकर पांच हजार से 5500 रुपए तक खर्च हो जाता हैं.”

छात्र सोहराब कहते हैं “कई छात्र पैसे की कमी के कारण पटना नहीं आ रहे हैं. वे कॉल कर पूछ लेते हैं कि हॉस्टल खुला की नहीं. क्योंकि सभी के पास इतना पैसा नहीं है कि बाहर पीजी लेकर रह सकें.”

उच्च शिक्षा में गिरावट 

अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) और यू-डायस द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट के अनुसार उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों के नामांकन में काफी गिरावट दर्ज की गई. रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020-21 में उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों के नामांकन में 8.5 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है.

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वर्ष 2019-20 में जहां नामांकित छात्रों की संख्या 21 लाख थी वह 2020-21 में घटकर 19.21 लाख हो गई है. रिपोर्ट में कहा गया मुस्लिम छात्रों का नामांकन प्रतिशत छठी कक्षा के बाद से गिरने लगता है. उच्च प्राथमिक कक्षा (6-8वीं) में नामांकन दर 14.42% जबकि उच्च माध्यमिक कक्षा (11-12वीं) में 10.76 फीसदी हो गया है.

बिहार और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सकल नामांकन दर और भी ज्यादा कम है जो दर्शाता है की राज्य में मुस्लिम छात्रों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. जबकि केंद्र और राज्य सरकार अपनी ओर से प्री-मैट्रिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के लिए कई योजनायें चला रही है. ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी है की वह यह सुनिश्चित करे की योजनाओं की पहुंच छात्रों तक हो सके.

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