नई शिक्षा नीति के तहत प्राथमिक स्कूल में मिलेगी 'किंडरगार्टन' स्तर की शिक्षा, अबतक 33% आंगनबाड़ी केंद्र ही स्कूल से हुए टैग

राज्य के करीब 50 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों को नजदीकी स्कूल में टैग किया जाना है. इनमें अब-तक 16 हजार 500 केन्द्रों को ही स्कूलों से जोड़ा गया है.

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आंगनबाड़ी केंद्रों

आंगनबाड़ी केंद्र ही स्कूल से हुए टैग

बिहार में नई शिक्षा नीति (New Education Policy) के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों को सरकारी स्कूलों से जोड़ने की प्रक्रिया साल 2022 से शुरू हुई थी. नई शिक्षा निति के तहत सभी गांव, पंचायत व प्रखंडों में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों (Anganwadi Center) को नजदीकी सरकारी स्कूलों से जोड़ा जाना है. नई शिक्षा नीति के तहत सरकारी स्कूलों से जुड़ने के बाद स्कूल के एक शिक्षक द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों को पढ़ाया जाएगा. हालांकि, जहां सरकारी स्कूल से एक किमी की परिधि में कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं होंगे वहां बाल-वाटिका की स्थापना की जाएगी. इसके लिए एरियल मैपिंग भी शुरू की गई थी.

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राज्य के करीब 50 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों को नजदीकी स्कूल में टैग किया जाना है. इनमें अबतक 16 हजार 500 केन्द्रों को ही स्कूलों से जोड़ा गया है. इसका अर्थ है कि लक्ष्य के अनुसार मात्र 33% आंगनबाड़ी केंद्र ही स्कूल से जुड़ पाए हैं. शिक्षा विभाग ने बीते वर्ष 2023, में लक्ष्य प्राप्ति के लिए अभियान भी चलाया था लेकिन उसके बाद भी कुछ खास वृद्धि नहीं हो सकी.

शिक्षा विभाग को जिलों से मिली रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 7600 आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास अपने भवन मौजूद हैं. इस तरह भवनहीन 42 हजार 500 आंगनबाड़ी केन्द्रों को स्कूलों में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव शिक्षा विभाग को आईसीडीएस के डीपीओ द्वारा भेजा गया था. जिलेवार आंकड़े कहते हैं कि पटना जिले के 955 आंगनबाड़ी केंद्र स्कूलों में स्थानांतरित हुए हैं.

क्यों किये जाने हैं स्कूलों से टैग

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नई शिक्षा नीति के तहत पहली कक्षा में नामांकन लेने से पहले बच्चों को नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी जैसी प्रारंभिक कक्षाओं की शिक्षा दिया जाना अनिवार्य कर दिया गया है. अभी तक इस तरह की कक्षाएं केवल प्राइवेट स्कूलों में संचालित किया जा रहा था. जिसके लिए शिक्षा विभाग से किसी तरह की मान्यता नहीं मिली हुई थी.

पुरानी शिक्षा नीति के तहत पहली कक्षा से नामांकन शुरू किए जाने का नियम था, जिसमें छात्रों की न्यूनतम आयु छह वर्ष थी. लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) में अब सरकारी स्कूलों में भी कक्षा एक से पूर्व की शिक्षा, शुरू की जाएगी. अभी तक 6 वर्ष की उम्र के बच्चे का दाखिला ही स्कूल में किया जाता था. लेकिन नई शिक्षा नीति आने के बाद, तीन वर्ष के बच्चों को भी स्कूल में नामांकन मिलने लगेगा.

आंगनबाड़ी में पढ़ते बच्चे

हालांकि नई शिक्षा नीति का आंगनबाड़ी के अस्तित्व पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर प्रश्न उठाते हुए प्रभाकर कुमार कहते हैं “नई शिक्षा नीति के आने से आंगनबाड़ी का अस्तित्व समाप्त हो रहा है.अब आंगनबाड़ी को उसके नजदीकी प्राथमिक स्कूलों से जोड़ा जा रहा है.किसी मोहल्ले में चल रहे आंगनवाड़ी केंद्र पर अपने बच्चे को पहुंचाने की जिम्मेदारी मां की होती है या सेविका बच्चों को घरों से जाकर लाती है. लेकिन जब आंगनबाड़ी तीन किलोमीटर दूर चला जाएगा, तो जाहिर है बच्चों की संख्या घटेगी.”

वंचित समुदायों के लिए पोषण, स्वास्थ्य या बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा देने के लिए जब भी कोई योजना बनाई जाती है तो उसकी जिम्मेदारी आंगनबाड़ी को सौंपी जाती है. साल 2020 में आई ‘नई शिक्षा नीति’ भी आंगनबाड़ी को प्रारंभिक शिक्षण (Pre Schooling) के लिए तैयार किए जाने की हिमायत करता है.

मई 2023, में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ‘पोषण भी, पढ़ाई भी’ नाम से एक योजना की शुरुआत की है. इसका उद्देश्य देशभर में चल रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों को प्रारंभिक देखभाल और बुनियादी शिक्षा (Early Childhood Care and Education–ECCE) देना है. बच्चों की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा (ECCE), मिशन सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0 का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी परिकल्पना ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के तहत की गयी है.

84 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास अपना भवन नहीं

बिहार आईसीडीएस पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 1 लाख 14 हजार 959 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिसमें से मात्र 30,333 केन्द्रों के पास ही अपना भवन उपलब्ध है. बाकि के 84,626 केंद्र किराए के भवन या किसी तरह के जुगाड़ के स्थान पर चलाये जा रहे हैं. बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 18 हजार अतिरिक्त आंगनबाड़ी केंद्र की मांग की है. लेकिन अतिरिक्त आंगनबाड़ी केन्द्रों की मांग से पहले, सरकार को पहले से मौजूद आंगनबाड़ी केन्द्रों की बुनियादी व्यवस्था सुधारने पर ध्यान देना चाहिए.

गांव और स्लम बस्तियों के बीच स्थापित होने वाले इन आंगनबाड़ी केन्द्रों से एक करोड़ 28 हजार 503 न्यूनतम आय वाले परिवार की महिलाएं एवं बच्चे जुड़े हुए हैं. इन केन्द्रों से 13,94,869 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं (Anganwadi workers) जुड़ी हैं. लेकिन काफी संख्या में आंगनबाड़ी केंद्र महीने के 28 दिन नहीं खुलते हैं. पोषण ट्रैकर पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महीने में 21 दिन खुलने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या मात्र 77 हजार 416 है. वहीं महीने में कम से कम 15 दिनों तक खुलने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या 98,652 है. 

वहीं आंगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या और उससे जुड़े लाभार्थियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज किया जा रहा हैं. पटना जिले में कुल 5,259 आंगनबाड़ी केंद्र मौजूद हैं जिसमें मात्र 927 केंद्र के पास ही अपना भवन मौजूद है बाकि के केंद्र किराए के मकान में चलाए जा रहे हैं. जिनमें महीने के 21 दिन खुलने वाले केन्द्रों की संख्या मात्र 3,157 ही है. वहीं पटना जिले के 955 आंगनबाड़ी केन्द्र को स्कूल से जोड़ा गया है.

आंगनबाड़ी केंद्रों को सरकारी स्कूलों से जोड़ने

हनुमान नगर रोड नंबर 3 में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र की संचालिका संजू देवी इस केंद्र को अपने घर के बरामदे में चलाती हैं. जहां मुश्किल से 10 बच्चों की बैठने की जगह मौजूद हैं. वहीं बच्चों के खेलने या अन्य दुसरे प्रकार की गतिविधियां करने का स्थान यहां मौजूद नहीं है. ऐसे में अबतक इस केंद्र को किसी स्कूल में शिफ्ट क्यों नहीं किया गया इसका जवाब संजू देवी के पास नहीं है. हालांकि संजू देवी का कहना है कि जितने बच्चे यहां आते हैं उन्हें बिठाने में उन्हें कोई समस्या नहीं होती है.

आंगनबाड़ी केंद्र कि संचालिका संजू देवी बताती हैं “लगभग 20 बच्चों का नाम यहां से जुड़ा है. लेकिन मुश्किल से रोज 15 बच्चे आते हैं. उसपर भी हमें घर जाकर बच्चों को बुलाना पड़ता है. मेरा केंद्र अबतक किसी स्कूल से नहीं जुड़ा है.” आंगनबाड़ी आने वाले बच्चों की पढ़ाई आप कैसे कराती हैं, इस पर संजू बताती हैं “हमने पूरे कमरे में फल, सब्जी, पक्षी, अक्षर और संख्याओं के पोस्टर लगाए हुए हैं. बच्चों को इसे दिखाकर पढ़ाते हैं.”

आंगनबाड़ी सुपरवाइजर बबिता कुमारी बताती हैं “वार्ड-44 के अंदर 15 से ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र हैं. हर केंद्र को स्कूल में शिफ्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि स्कूल में भी कमरे सीमित संख्या में ही होते हैं. ऐसा व्यवस्था किया जा रहा है कि स्कूल से ही एक शिक्षक केंद्र पर आकर बच्चों को पढ़ाएं. वार्ड 44 के अंदर आने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों को हनुमान नगर सरकारी स्कूल या फिर योगीपुर सरकारी स्कूल से टैग किया जाएगा.”

आंगनबाड़ी केन्द्रों को प्राथमिक स्कूलों से जोड़ने में सबसे बड़ी समस्या उस क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में स्कूल का ना होना है. वहीं अगर क्षेत्र में स्कूल हैं भी तो वहां उस संख्या में कमरे मौजूद नहीं है. ऐसे में विभाग को टैगिंग से ज्यादा ध्यान आंगनबाड़ी को सक्षम बनाने पर देना होगा.

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