शिक्षा विभाग ने शिक्षक सक्षमता परीक्षा (Competency Test) का बहिष्कार करने वाले नियोजित शिक्षकों को कड़ी चेतावनी दी है. लम्बे समय से सरकारी स्कूलों में कार्यरत नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दिए जाने के लिए राज्य सरकार सक्षमता परीक्षा का आयोजन करने वाली है. इसमें केवल नियोजित शिक्षकों को ही भाग लेना है लेकिन नियोजित शिक्षक इसका विरोध कर रहे हैं. वहीं 13 फरवरी को नियोजित शिक्षक विधानसभा के सामने प्रदर्शन करने वाले हैं.
ऐसे में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के निर्देश पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों को पत्र लिखा है. जिसमें धरना प्रदर्शन में शामिल होने वाले सभी शिक्षकों के ऊपर कड़ी कार्रवाई किए जाने का निर्देश दिया है.
धरना प्रदर्शन में शामिल होने वाले शिक्षक पर एफआईआर दर्ज किये जाने और नौकरी से निकाले जाने तक की चेतावनी दी गयी है. कड़ी कार्रवाई के पीछे शिक्षा विभाग ने तर्क दिया है कि चूंकि 13 फरवरी को स्कूल खुला है इसलिए प्रदर्शन में शामिल होने वाले शिक्षक, शिक्षण कार्य में बाधा पहुंचाएंगे.
क्यों कर रहे नियोजित शिक्षक विरोध
नियोजित शिक्षकों के लिए सरकारी कर्मी का दर्जा मिलना अच्छी खबर है. क्योंकि अभी तक जो शिक्षक नगर निगम या पंचायतों से नियोजित होकर सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं उन्हें ना तो समय पर वेतन मिल रहा है और ना ही अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल पा रहा है. लेकिन राज्य कर्मी का दर्जा मिलने के बाद नियोजित शिक्षकों को भी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं का लाभ मिलेगा. राज्यकर्मी बनते ही इन शिक्षकों को भी उनकी सुविधा के अनुसार ट्रांसफर, प्रमोशन, वेतन बढ़ोतरी और डीए की सुविधा मिलेगी.
लेकिन अब यहां प्रश्न उठता है कि इसेक बावजूद नियोजित शिक्षक इस परीक्षा का विरोध क्यों कर रहे हैं? दरअसल, नियोजित शिक्षकों को स्थायी कर्मी का दर्जा पाने के लिए अपनी योग्यता साबित करनी होगी जिसके लिए सक्षमता परीक्षा देने की शर्त रखी गई है. अगर नियोजित शिक्षक इस परीक्षा में शामिल नहीं होते हैं या तीन प्रयास में परीक्षा पास नहीं होते हैं तो उन्हें सेवामुक्त किया जा सकता है.
बीते दिसंबर में हुई कैबिनेट बैठक में नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए बिहार विद्यालय विशिष्ट शिक्षक नियमावली-2023 को मंजूरी दी गई थी. इस नियमावली के अनुसार स्थानीय निकाय से नियुक्त “वैसे शिक्षक जो इस परीक्षा में शामिल नहीं होते हैं अथवा तीसरे प्रयास या अवसर में भी सक्षमता परीक्षा उत्तीर्ण होने में विफल रहेंगे”, उनपर विभाग द्वारा गठित कमिटी विचार करेगी.
लम्बे समय से नौकरी करने के बाद भी परीक्षा देने की शर्त और विफल होने पर नौकरी जाने के डर से नियोजित शिक्षक इस परीक्षा का विरोध कर रहे हैं.
कौन होते हैं नियोजित शिक्षक
नियोजित शिक्षकों के विरोध और शिक्षा विभाग के फैसलों के बीच यह जानना आवश्यक है कि आखिर नियोजित शिक्षक हैं कौन? साल 2003 में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी होने पर राज्य सरकार ने 10वीं, 12वीं पास युवाओं को पंचायतों और नगर निकाय संस्थानों के माध्यम से शिक्षा मित्र के रूप में नियुक्त किया गया था. साल 2006 में इन्हीं शिक्षकों को सरकार ने नियोजित शिक्षक के तौर पर मान्यता दी थी.
नियोजित शिक्षक सरकारी स्कूलों में पढ़ाते तो हैं लेकिन उनकी सेवा नियमावली राज्य सरकार के कर्मी यानी सरकारी शिक्षकों की नियमावली से अलग होती है. क्योंकि ये शिक्षक पंचायती राज और नगर निकाय संस्थान के कर्मचारी होते हैं जिसके कारण इन शिक्षकों को ट्रांसफर, प्रमोशन, वेतन बढ़ोतरी, डीए समेत राज्य सरकार की कई सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है.
वर्तमान समय में राज्य में लगभग चार लाख नियोजित शिक्षकों को स्थायी शिक्षक और राज्यकर्मी का दर्जा पाने के लिए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन परीक्षा में शामिल होना होगा.
शिक्षक संगठन का फैसला फॉर्म नहीं भरेंगे
शिक्षक सक्षमता परीक्षा का आयोजन 26 फरवरी से 13 मार्च के बीच किया जाना है. परीक्षा का आयोजन ऑनलाइन मोड में किया जाना है. इसके लिए आवेदन की शुरुआत 1 फरवरी से हो चुकी है. आवेदन करने की अंतिम तारीख 15 फरवरी है लेकिन शिक्षक संगठनों का फैसला है कि शिक्षक फॉर्म नहीं भरेंगे. शिक्षकों का कहना है कि सरकार अलग-अलग फरमान निकालकर नियोजित शिक्षकों को प्रताड़ित कर रही है.
शिक्षकों की मांग है कि परीक्षा का आयोजन ऑफलाइन किया जाए. बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष बृजनंदन शर्मा ने ऑनलाइन परीक्षा और परीक्षा पास नहीं होने पर नौकरी से मुक्त किए जाने पर कहा कि “पिछले 20 सालों से स्कूल में पढ़ा रहा नियोजित शिक्षक अगर तीन बार में परीक्षा पास नहीं करता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाना कहा से उचित है. वहीं ऑनलाइन माध्यम से परीक्षा देने में बहुत से शिक्षक सहज नहीं है. क्योंकि जिन शिक्षकों की उम्र 50 वर्ष हो गयी है और उन्हें कंप्यूटर की जानकारी नहीं है वे इतने कम समय में तैयारी कर परीक्षा कैसे देंगे.”
सरकार के आदेश के विरुद्ध अपनी आवाज उठाना आज, नियोजित शिक्षकों को मंहगा पड़ रहा है. जबकि लम्बे समय तक राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षण कार्य को संभालने की जिम्मेवारी नियोजित शिक्षकों पर ही थी.