आसमानी बिजली से मौत के बाद मुआवज़े के लिये भटक रहे है पीड़ित परिवार

भारत के कई हिस्सों में आसमानी बिजली गिरने से लोगों की मौत की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा असर जिन राज्यों में हो रहा है उसमें बिहार सबसे आगे है। 

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नाजिश महताब
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बेलागंज में रहने वाले संतोष ( बदला हुआ नाम) काफ़ी बूढ़े हो चुके हैं। उनको एक बेटा और एक बेटी है। बेलागंज गांव में किसी तरह जीवन बीत रहें हैं। उनका बेटा राजेश ( बदला हुआ नाम) खेती कर किसी तरह परिवार का पालन करता था। एक दिन खेत में काम करने के दौरान आकाशीय बिजली की चपेट में आने से राजेश की मौत हो गई। लेकिन संतोष जी को सरकार से मुआवजा नहीं मिला।

मुआवजे की राशि नहीं मिलने के कारण संतोष जी को भीख मांगना पड़ता है। सवाल यह उठता है कि क्या मुआवजा मिलने से संतोष जी के जीवन में बदलाव आता?

भारत के कई हिस्सों में आसमानी बिजली गिरने से लोगों की मौत की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा असर जिन राज्यों में हो रहा है उसमें बिहार सबसे आगे है। 

बिहार में आसमानी बिजली गिरने के मामले में सबसे ज़्यादा 

बिहार उन राज्यों में से एक है, जहां आसमानी बिजली गिरने के मामले में सबसे ज्यादा संवेदनशीलता देखी जाती है और हर साल यहां बड़ी संख्या में लोगों की जान जाती है। NCRB की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के बाद बिहार में बिजली गिरने से सबसे अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। "इंडिया: एनुअल लाइटिंग रिपोर्ट 2020-21" के अनुसार, 2019-20 और 2020-21 के बीच देश में बिजली गिरने की घटनाओं में 34% की बढ़ोतरी हुई है, जबकि बिहार में इस दौरान इन घटनाओं में 168%  की वृद्धि देखी गई है।

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बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में 139, 2019 में 253, 2020 में 459, 2021 में 280, और 2022 में 400 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई है। इनमें से अधिकांश मौतें किसानों और खेतिहर मज़दूरों की हुई हैं, जो घटना के समय खेतों में काम कर रहे थे। 

बिहार स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (बीएसडीएमए) की रिपोर्ट बताती है कि बिजली गिरने से मरने वाले 86% लोग ग्रामीण इलाकों के थे। खेती से जुड़े लोग वज्रपात के सबसे अधिक शिकार होते हैं। "इंडिया: एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2020-21" में भी यह तथ्य सामने आया है कि भारत में बिजली गिरने से होने वाली 96% मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं, जिनमें से 77 प्रतिशत मृतक किसान थे।

फरवरी में राज्य विधानसभा के बजट सत्र के दौरान प्रस्तुत नवीनतम बिहार आर्थिक सर्वेक्षण (2023-24) में कहा गया है कि राज्य में 2022 में बिजली गिरने से  संबंधित 400 मौतें हुई हैं. सबसे ज्यादा मौतें गया (46), भोजपुर (23), नवादा (21), बांका (21), औरंगाबाद (20) और नालंदा और कैमूर में 18-18 मौते हुई हैं.  

सरकार की ओर से ऐसी प्राकृतिक आपदा से होने वाली हर मौत पर चार लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दिए जाने की योजना है, जिसका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बार जिक्र किया है। 

क्या इंद्रवज्र और नीतीश यंत्र कम कर पायेगी मौत के आंकड़े 

बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, विभाग लगातार मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से बिजली गिरने से बचाव के उपायों की जानकारी देता रहता है और अपने 'इंद्रवज्र' ऐप के बारे में भी जागरूकता फैलाता है। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा वज्रपात से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को बिजली गिरने से पहले सचेत करने के लिए 'इंद्रवज्र' नामक ऐप विकसित किया गया है, और संवेदनशील क्षेत्रों में जल मीनारों व ऊंची इमारतों पर हूटर लगाकर लोगों को चेतावनी देने की व्यवस्था की गई है।

लेकिन इसके बावजूद, वज्रपात से होने वाली मौतों में कोई खास कमी नहीं आई है। वहीं दूसरी तरफ़ 23 फरवरी 2024 को पटना आईआईटी परिसर में भारतीय मौसम विभाग, बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और आईआईटी पटना के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय लाइटनिंग सम्मेलन का आयोजन किया गया। 

इस अवसर पर आकाशीय बिजली और अन्य मौसम संबंधी जानकारी के लिए एक नए उपकरण "नीतीश" (नोवेल इनिशिएटिव टेक्नोलाजिकल इंटरवेंशन फार सेफ्टी ऑफ ह्यूमन) का विमोचन किया गया,साथ ही परिसर में एक मौसम वेधशाला का भी उद्घाटन किया गया।

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इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य आकाशीय बिजली और मौसम संबंधी जानकारी के प्रसार के लिए एक मंच प्रदान करना था, जिससे लोगों को मौसम संबंधी खतरों से बचाव के लिए जागरूक किया जा सके। नीतीश उपकरण के माध्यम से लोगों को आकाशीय बिजली और अन्य मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त हो सकेगी, जिससे वे सुरक्षित रह सकेंगे।

11 जुलाई को सुपौल जिले में दो अलग-अलग घटनाएं 

11 जुलाई 2024 को सुपौल जिले में दो अलग-अलग घटनाएं घटीं। पहली घटना सरायगढ़ प्रखंड के शाहपुर पृथ्वी पट्टी पंचायत के रामनगर गांव में हुई, जहां वार्ड नंबर 10 में 40 वर्षीय ललन यादव खेत में कुदाली चला रहे थे, तभी वे आसमानी बिजली की चपेट में आ गए।

दूसरी घटना रामनगर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर निर्मली प्रखंड के हरियाही गांव के पास एनएच 57 के नजदीक हुई, जहां झिटकी गांव के 30 वर्षीय विजय कुमार खेत में काम कर रहे थे और बिजली गिरने से उनकी भी मृत्यु हो गई।

रामनगर गांव में जिस वक्त 40 वर्षीय ललन यादव की बिजली गिरने से मौत हुई थी, उसी वक्त खेत में उनके साथ काम कर रहे गांव के शंकर यादव भी बिजली की चपेट में आ गए थे। हमने पीड़ित परिवार से बात करने का प्रयास किया परंतु उनसे बात नहीं हो पाई।

लेकिन मोहल्ले में रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि "यहां पहले भी बिजली गिरने के 2-3 मामले हो चुके हैं, लेकिन किसी को मुआवजा नहीं मिला है। इस बार भी विजय की मौत के बाद कई अधिकारी और पत्रकार आए थे, जिन्होंने पोस्टमार्टम की बात कही, लेकिन हमने मना कर दिया। जब कुछ मिलने वाला नहीं है, तो पोस्टमार्टम कराकर क्या फायदा? अब उनके घर में कोई मर्द भी नहीं बचा है, बॉडी को लेकर कौन जाएगा?"

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, बिना पोस्टमार्टम मुआवजा नहीं मिल सकता है।

बिहार सरकार के पास नहीं है सही आंकड़ा

बिहार की भौगोलिक स्थिति अन्य राज्यों से अलग है। यहां की मानसूनी धाराएं बंगाल की खाड़ी से अधिक नमी लेकर आती हैं, जिसके परिणामस्वरूप गरज के साथ बारिश होती है। बिहार की ऊंचाई और भू-आकृति भी बिजली गिरने की घटनाओं को बढ़ावा देती हैं। सरकार ने वज्रपात की पूर्व सूचना देने के लिए कई उपाय किए हैं, लेकिन इनमें अभी तक सफलता नहीं मिली है। 

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बिहार में बिजली गिरने से होने वाली मौत के आंकड़ों में काफ़ी भिन्नता देखने को मिलती है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोशल मीडिया साइट पर 11 जुलाई 2024 को केवल चार लोगों की मौत की जानकारी दी गई है। सुपौल जिले में भी केवल एक व्यक्ति की मौत का जिक्र किया गया है, जबकि वास्तव में उस दिन वहां दो लोगों की मौत हुई थी।

दूसरी ओर, स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वज्रपात से मरने वालों की संख्या में भी बड़े अंतर पाए गए हैं। The Follow Up न्यूज़ के मुताबिक, 21 लोगों की मौत हुई है, जबकि प्रभात ख़बर के अनुसार, यह संख्या 24 है।

बिहार आपदा प्रबंधन विभाग की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर भी आसमानी बिजली से मरने वालों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। PTI न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि 1 जुलाई से 8 जुलाई के बीच राज्य में 42 लोगों की मौत हुई है। 

6 जुलाई 2024 को बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से 9 लोगों की मौत हो गई। कैमूर में पांच, सासाराम में तीन, और औरंगाबाद में एक व्यक्ति की जान गई। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक लोग झुलस गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वज्रपात में मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा की है।

इन घटनाओं से केवल किसान ही प्रभावित नहीं होते। 11 जुलाई 2024 को ही भोजपुर जिले के तरारी प्रखंड में आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 18 छात्राएं घायल हो गईं। 

पीड़ित परिवारों को नहीं मिला मुआवजा

1 अगस्त 2024 को भारी बारिश के दौरान आकाशीय बिजली गिरने से 12 लोगों की मौत हो गई। आधिकारिक जानकारी के अनुसार, बिहार के चार जिलों में पिछले 24 घंटों में बिजली गिरने से 12 लोगों की जान गई है। मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, गया में वज्रपात से पांच लोगों की मौत हुई है, जबकि जहानाबाद में तीन और नालंदा एवं रोहतास में दो-दो लोगों की जान गई है।

गया जिले के बेलागंज प्रखंड के पीड़ित परिवार से जब हमने बात करने की कोशिश की तो उन्होंने हमसे बात करने से मना कर दिया। पर किसी तरह प्रयास करने के बाद उन्होंने हमें बताया कि “सरकार ने जिस मुआवजे की बात कही थी वो हमें नहीं मिला है। हालांकि हमारे घर का चिराग़ बुझ गया है और पैसों से उसकी भरपाई नहीं हो सकती है। सरकार जल्द से जल्द हमारे लिए कुछ करे।”

10 जुलाई 2024 को रोहतास जिले के चेनारी नगर पंचायत के वार्ड नौ, सितौड़ा मोड़ के पास 35 वर्षीय भगवान प्रजापति, सेमरा ओपी के खरवथ गांव में नोखा थाना के हसनाडीह निवासी राममूरत राम की पत्नी 35 वर्षीय कुंती देवी, और करगहर प्रखंड के खोणेया गांव के बधार में ललन यादव की 55 वर्षीय पत्नी झूनी देवी भी वज्रपात की चपेट में आ गईं।

औरंगाबाद के पीड़ित के परिवार से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि “ मुआवजा तो हमें अब तक नहीं मिला है। मुख्यमंत्री ने घोषणा तो ज़रूर की लेकिन अभी तक उसका फ़ायदा हमें नहीं हुई है। जिनकी मृत्यु हुई वो हमारा घर चलाते थे, हमारा घर पूरी तरह से अंदर ही अंदर टूट गया है। अब हम किस तरह अपना घर चलाएंगे। सरकार जल्द से जल्द हम पर ध्यान दे "

जब हमने इस मुद्दे पर अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो उनसे बात नहीं हो पाई। लेकिन हम लगातार कोशिश करेंगे कि उनसे बात हो पाए और पीड़ित परिवारों को न्याय मिल पाए।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुआवजे की घोषणा तो कर दी है लेकिन पीड़ित के परिवार वालों को इसका फ़ायदा नहीं मिल पाता है। लोग पोस्टमार्टम नहीं करना चाहते हैं। इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा कोई एक्शन नहीं लिया जाता है।

बिहार के सामाजिक ढांचे ऐसे हैं जिनमें परिवार का केवल एक सदस्य कमाऊ होता है या ज्यादा से ज्यादा दो लोग कमाते हैं. पुरे परिवार का जीवन केवल उस एक व्यक्ति के ऊपर टिका होता है. ऐसे में घर के मुखिया की मौत होने पर परिवार पूरी तरह टूट जाता है। सरकार को चाहिए कि ऐसे पीड़ित परिवार को जल्द से जल्द मुआवजे की राशि दी जाए।

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