बिहार: हर महीने बदलेगा बिजली दर, BERC के नियम से उपभोक्ता कितने खुश?

बिजली कंपनी हर महीने तेल व कोयले के दाम की समीक्षा कर बिजली दर घटाने या बढ़ाने का फैसला करेगी. जिस महीने उपभोक्ताओं से अधिक या कम दर पर बिल वसूला जाएगा उस महीने के बिजली बिल में बढ़े या घटे दर का उल्लेख करना होगा.

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कैसा स्मार्ट प्रीपेड मीटर? सर्वर में हमेशा समस्या, ऑनलाइन काम ठप्प

बिहार में बिजली बिल की दरों में एक बार फिर बदलाव होने के आसार हैं. बिजली उपभोक्ताओं के लिए यह बदलाव लाभ या घाटे का सौदा भी हो सकता है. हालांकि शुरूआती खबर ने राज्य के 2.7 करोड़ बिजली उपभोक्ताओं को चिंता में डाल दिया है. दरअसल, बिहार विद्युत विनियामक बोर्ड (बीईआरसी) ने राज्य की बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों- साउथ बिहार पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड और नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड को दरों में बदलाव करने का अधिकार दे दिया है. 

इस अधिकार के बाद अब देश में तेल और कोयला के मूल्य में वृद्धि या कमी होने पर दोनों डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियां स्वयं ही बिजली दर को घटा या बढ़ा सकती हैं. जबकि पहले उन्हें बीईआरसी के मंजूरी की आवश्यकता होती थी. 

बिजली कंपनी हर महीने तेल व कोयले के दाम की समीक्षा कर बिजली दर घटाने या बढ़ाने का फैसला करेगी. जिस महीने उपभोक्ताओं से अधिक या कम दर पर बिल वसूला जाएगा उस महीने के बिजली बिल में बढ़े या घटे दर का उल्लेख करना होगा. बिजली बिल में नए दर का उल्लेख नहीं करने पर आयोग द्वारा डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों पर कार्रवाई हो सकती है. 

16 दिसंबर को आया फैसला

साल में एकबार बिजली दर निर्धारण से पहले बिहार विद्युत विनियामक आयोग (बीईआरसी) राज्य की दोनों बिजली कंपनियों से प्रस्ताव मांगती है. नवंबर महीने में दिए जाने वाले इस प्रस्ताव में कंपनियों को पिछले साल की ऑडिट रिपोर्ट, वर्तमान साल के खर्च तथा आमदनी का विवरण और अगले साल होने वाले खर्च का अनुमान देना होता है. 

कंपनियों द्वारा मिले प्रस्ताव पर आम जनता की राय सुनने के बाद बीईआरसी नए बिजली दर का निर्धारण करता है. यह दरें अगले एक सालों तक लागू रहती थीं. इस बीच तेल और कोयलें के दाम में होने वाले उतार चढ़ाव का प्रभाव बिजली दरों पर नहीं होता था. लेकिन 16 दिसंबर से दरों में बदलाव का अधिकार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी को दे दिया है, जिसके कारण अब हर महीने बिजली दर में बदलाव देखने को मिल सकता है. साथ ही दर बढ़ाने और घटाने का एक फार्मूला भी दिया गया है. इस फार्मूले के तहत ही डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को दर में कमी या बढ़ोतरी करनी है.

सीधे शब्दों में कहा जाए तो अगर जनवरी माह में कोयले या तेल का मूल्य बढ़ गया तो लोगों को फरवरी में बढ़े हुए बिजली बिल का भुगतान करना होगा.

बिहार समाजिक अंकेक्षण के सदस्य संजीव कुमार श्रीवास्तव आयोग के फैसले पर कहते “बीईआरसी जब भी बिजली के दरों का निर्धारण करती थी तो उसमें आम लोगों की राय शामिल होती थी. क्योंकी दरों के निर्धारण से पहले जन सुनवाई होती थी. लेकिन अब आम लोगों की राय को बाहर कर दिया गया है. सारा फैसला अधिकारी लेंगे यानि जब उनका मन होगा दर बढेंगी या घटेंगी.”

संजीव यहां राज्य में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों के एकाधिकार और विकल्पों के अभाव का मुद्दा उठाते हैं. वे कहते हैं “बिहार में मोनोपॉली सिस्टम हैं. यहां महाराष्ट्र की तरह बिजली वितरकों का कोई कॉम्पटीटर नहीं है. महाराष्ट्र में राज्य सरकार, अडानी समूह और टाटा कंपनी बिजली देती है. इसलिए दरों को कम से कम रखने का दबाव होता है. इसलिए मुझे नहीं लगता है कि बिहार में बिजली दरें कम होंगी.”

वर्तमान समय में राज्य के शहरी क्षत्रों में रहने वाले घरेलू उपभोक्ताओं से शून्य से 100 यूनिट तक बिजली खपत करने पर 4.12 रुपए और 100 यूनिट से ऊपर बिजली खपत करने पर 5.52 रुपए की दर बिजली शुल्क लिया जाता है.

वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले घरेलू उपभोक्ताओं से शून्य से 50 यूनिट तक बिजली खपत करने पर 2.45 रुपए की दर बिजली बिल लिया जाता है. वहीं 50 से 100 यूनिट के बीच खपत होने पर 2.85 रुपए की दर से शुल्क लिया जाता है. 

एक देश एक विद्युत् दर- सीपीआई

राज्य में स्मार्ट मीटर लगाए जाने का विरोध सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) लंबे समय से कर रही है. अब बिजली दरों पर फैसला लेने का अधिकार भी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को देने के फासिले पर भाकपा के पटना जिला परिषद के जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने कहा कि “विद्युत विनियामक आयोग द्वारा तेल व कोयला के दाम के आधार पर विद्युत दरों को तय करने का अधिकार कंपनियों को देना गरीबों व आम उपभोक्ताओं के खिलाफ है. कंपनियों को अधिकार देने से कंपनियों को मुनाफा की छूट मिल जाएगी. पहले विद्युत कंपनियों को मुनाफा देने के लिए प्रीपेड स्मार्ट मीटर लाया गया और अब यह जन विरोधी फैसला लिया गया.”

भाकपा नेता ‘एक देश-एक विद्युत दर’ लागू किये जाने की मांग करते हुए आगे कहते हैं कि “आज जब देश में सरकार के लाभ के लिए 'एक देश एक चुनाव', ‘एक देश एक टैक्स’ आदि नीतियों को लाया जा रहा है. तब आम जनता के लिए ‘एक देश एक विद्युत दर' क्यों नहीं तय किया जा सकता है? विकसित राज्यों में बिहार के मुकाबले बिजली दर कम है या फिर कुछ यूनिट मुफ्त है. वहीं बिहार जैसे पिछड़े राज्य में सबसे ज्यादा बिजली दर लागू है.”

क्या है आम लोगों की राय

पटना के बोरिंग रोड के रहने वाले सुनील झा आयोग के इस फैसल को ‘कंपनी राज’ की संज्ञा देते हुए कहते हैं “राज्य में पहले से ही बिजली के दाम बढे हुए हैं, उसपर इस तरह के फैसलों से जनता का कोई भलाई नहीं होगा. कोई भी कंपनी मुनाफों के लिए काम करती है, वह क्यों चाहेगी कि दरें कम कर अपना लाभ कम करें.”

सुनील झा आगे एयरलाइन कंपनियों का उदहारण देते हुए कहते हैं “जिस क्षेत्र में डायनेमिक प्राइसिंग दिया गया है वहां उपभोक्ताओं का शोषण होता है. दीवाली से छठ के दौरान राज्य से बाहर रहने वाले लोग बिहार लौटने के लिए एयरलाइन और ट्रेन की टिकट लेने के लिए परेशान रहते हैं. इस दौरान दिल्ली से पटना आने का फ्लाइट का किराया सिंगापूर और बैंकाक से भी महंगा पड़ता है."

वे आगे कहते हैं, "यही हाल ट्रेनों का भी है. ट्रेन सार्वजनिक संपत्ति है लेकिन जबसे इसमें डायनेमिक प्राइसिंग लाया गया, आम लोगों के लिए कन्फर्म टिकट लेकर यात्रा करना मुश्किल हो गया है. अब आम लोग बस से यात्रा कर रहे हैं. चूंकि यहां विकल्प मौजूद है. लोग फ्लाइट छोड़ ट्रेन और ट्रेन छोड़ बस का चुनाव कर सकते हैं लेकिन बिजली का विकल्प क्या हो सकता है? यदि बिजली के दाम बेतहासा बढ़े तो जनता के पास अंधेरे में रहने के सिवा कौन सा विकल्प रहेगा.” 

विद्युत आयोग के इस फैसले से आम लोग चिंता में हैं. लोगों का कहना है कि एक तरफ सरकार हर घर बिजली और मुफ्त बिजली दिए जाने का सपना दिखाती है. वही दूसरी तरफ लगातर कंपनियों के लाभ और उनके हित में फैसला लेती है. सरकार अगर इसी तरह कंपनी की गुलामी करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब हर घर बिजली कनेक्शन तो होगा लेकिन ‘हर घर बल्ब जले, हर घर पंखा चले’ यह जरुरी नहीं होगा.

स्मार्ट मीटर का विरोध बना FIR का कारण

पटना के सुल्तानगंज स्थित मेवा साव गली के रहने वाले 70 वर्षीय गुलाम सर्वर बिजली विभाग पर आरोप लगाते हैं कि स्मार्ट मीटर का विरोध करने के कारण विभाग ने उन्हें बिजली चोरी करने के झूठे आरोप में फंसाया है. सीपीआई पटना इकाई से जुड़े गुलाम सर्वर के अनुसार वे स्मार्ट मीटर लगाए जाने को लेकर होने वाले विरोध प्रदर्शनों में शामिल रहते हैं. गरीब लोगों को जबरदस्ती स्मार्ट मीटर लगाए जाने के कारण होने वाली परेशानी पर जागरूक करते हैं.

इसी कारण बीते 19 नवंबर को पत्थर की मस्जिद स्थित बिजली विभाग की टीम ने उनके घर में छापेमारी करने पहुंच गई. इस दौरान टीम ने उनके घर में लगे कमर्सियल मीटर को जब्त कर लिया. जिसे उन्होंने मकान के निचले कमरे में खोले गए दुकान के लिए लिया था. 

गुलाम सर्वर बताते हैं “बिजली विभाग की टीम दोपहर में अचानक घर आई. दरवाजा खोलने पर मुझे धक्का देते हुए अन्दर घुस गई और मुझे कहा नेतागिरी करते हो अब पता चलेगा. टीम ने मीटर उखाड़ लिया और लेकर चले गये. जबकि जब वो मीटर जब्त कर रहे थे तो उन्हें मोहल्ले के लोगों को गवाह बनाना था और मेरा सिंगनेचर लेना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं किया.”

गुलाम सर्वर बताते हैं कि इसके बाद उनके ऊपर एफआईआर किया गया जिसमें मीटर टेम्परिंग का आरोप है. विभाग ने उनके ऊपर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. 

गुलाम सर्वर कहते हैं “अगर मैंने चोरी की है तो जुर्माना लगाने या इल्जाम लगाए जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है. लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर मुझपर और मेरी पत्नी जिनका इंतकाल 2020 में ही हो चूका है उनपर चोर होने का इल्जाम लगा है. जबकि उन्होंने पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगाया था जिनके लिए उन्हें रानी लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.” 

गुलाम सर्वर का कहना है कि उनके ऊपर यह कार्रवाई केवल आमलोगों के मन में डर बिठाने के लिए किया गया है. ताकि आमलोग मीटर लगाए जाने का विरोध ना करे.

बिहार देश का पहला राज्य है जहां सबसे पहले और सबसे अधिक संख्या में स्मार्ट  मीटर लगाए गये हैं. आम जनता और विपक्षी पार्टियों के लगातर विरोध प्रदर्शन के बाद भी राज्य में 50 लाख से अधिक स्मार्ट मीटर लगाये जा चुके हैं. इसमें शहरी क्षेत्रों में 17 लाख 47 हज़ार और ग्रामीण इलाकों में 32 लाख 76 हज़ार स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं. बिहार सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2025 तक सभी घरों में स्मार्ट मीटर लगा दिए जाएं.

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