'जीविका की लाइब्रेरी' बिहार में जला रही है शिक्षा की 'लौ', 50 हजार से ज्यादा छात्रों को मिल रहा लाभ

जीविका समूह द्वारा बिहार के 32 जिलों के 100 प्रखंडों में सामुदायिक पुस्तकालय और कैरियर विकास केंद्र चलाया जा रहा है. लाइब्रेरी में रोजाना क्विज, सामुहिक चर्चा, साप्ताहिक टेस्ट, प्रवेश एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु मार्गदर्शन भी दिया जाता है.

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जीविका समूह: जीविका की लाइब्रेरी

जीविका समूह: जीविका की लाइब्रेरी

ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देने से शुरू हुई 'जीविका समूह' आज राज्य में बच्चों में 'शिक्षा की लौ' जलाने में सहायक बन रही है. 'दीदी की लाइब्रेरी' नाम से शुरू की गयी यह लाइब्रेरी बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करने के साथ-साथ करियर बनाने में भी मदद कर रही है. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी बस्तियों में रहने वाले इन बच्चों को उनके निकटतम 'दीदी की लाइब्रेरी' या 'दीदी का पुस्तकालय' में अपनी पसंद की किताबें पढ़ने और गणित (math) की समस्याओं को हल करने का अवसर मिल रहा है. 

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इन पुस्तकालयों में समाज के गरीब तबके की लड़कियों के अलावा लड़के भी काफी संख्या में पढ़ने आते हैं. दीदी की लाइब्रेरी में बच्चे ना केवल पढ़ाई कर हैं बल्कि अपने भविष्य के लिए योजनायें भी बना रहे हैं. जीविका समूह द्वारा बिहार के 32 जिलों के 100 प्रखंडों में सामुदायिक पुस्तकालय और कैरियर विकास केंद्र (CLCDC) चलाया जा रहा है.

इन पुस्तकालयों में पढ़ने आने वाले छात्रों के लिए निःशुल्क क्यूबिकल स्वाध्याय कक्ष, भौतिक पुस्तकालय जहां 800 से 1000 किताबें, डिजिटल पुस्तकालय जहां कंप्यूटर, WiFi और प्रोजेक्टर उपलब्ध होते हैं, उपलब्ध कराया जा रहा है. साथ ही इन पुस्तकालयों में दैनिक अखबार और पत्रिकाएं भी बच्चों को उपलब्ध कराई जाती है.

लाइब्रेरी में रोजाना क्विज, सामुहिक चर्चा, साप्ताहिक टेस्ट, प्रवेश एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु मार्ग-दर्शन भी दिया जाता है. विभिन्न परीक्षाओं में सफल छात्र और विशेषज्ञ शिक्षक, लाइब्रेरी में पढ़ने आने वाले छात्रों को 10वीं और 12वीं के बाद विभिन्न कैरियर विकल्पों और उसकी तैयारी हेतु मार्गदर्शन भी देते हैं.

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बच्चों के जीवन में आ रहा बदलाव

इन केन्द्रों पर जीविका समूहों से जुड़ी महिलाओं के बच्चे पढ़ने आते हैं. साथ ही कम आय क्षेत्र जैसे ग्रामीण या शहरी बस्तियों में रहने वाले बच्चे भी यहां पढ़ने आते है. सीमांत परिवारों से आने वाले छात्रों को यहां शैक्षणिक सलाह के साथ-साथ रोजगारपरक शिक्षा, कौशल विकास समेत कैरियर ग्रोथ के लिए सलाह भी दिया जाता है.

बिहटा प्रखंड के अमहरा गांव में मार्च 2023 से चलाए जा रहे लाइब्रेरी में अबतक 1684 बच्चे पंजीकृत हो चुके हैं.  नियमित तौर पर लाइब्रेरी में 45-50 बच्चे पढ़ाई करने आते हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या 25-30 होती है. 

लाइब्रेरी की प्रभारी जिन्हें ‘विद्या दीदी’ कहा जाता है उनका नाम अर्चना कुमारी है. अर्चना लाइब्रेरी से जुड़कर काफी खुश हैं और कहती हैं “मैं अमहरा की ही रहने वाली हूं. जीविका से जुड़ने से पहले मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी. जब इलाके में लाइब्रेरी खुलने की बात हुई तो मुझे इससे जुड़ने को कहा गया. मेरी ग्रेजुएशन की पढ़ाई किसी कारण से छुट गई थी लेकिन लाइब्रेरी से जुड़ने के बाद मैंने अपनी पढ़ाई भी शुरू कर दी है."

जीविका की लाइब्रेरी

क्षेत्र में बच्चियों के लाइब्रेरी से जुड़ने को लेकर अर्चना उत्साहित हैं. उनका कहना है लड़के तो शहर जाकर लाइब्रेरी का लाभ उठा लेते थे लेकिन लड़कियों के लिए लाइब्रेरी से जुड़ना बहुत बड़ी बात है. आज 1684 पंजीकृत बच्चों में यहां 963 लड़कियां हैं.

अमहरा के आसपास के गांव के बच्चे इस लाइब्रेरी में आते हैं.11वीं कक्षा में पढ़ने वाली लक्ष्मी कुमारी बताती हैं, सामुदायिक पुस्तकालय उनके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रहा है. लक्ष्मी बताती हैं “जो किताबें मैं पैसे की कमी के कारण नहीं खरीद पाती थी, वह यहां आसानी से मिल जाती है. सीनियर दीदी-भैया भी हमारा डाउट क्लियर करने में मदद करते हैं.” 

अमहरा लाइब्रेरी से जुड़े चार छात्रों को स्कॉलरशिप भी मिली है. विद्या दीदी अर्चना कुमारी से मिली जानकारी के अनुसार दो बच्चों को ‘मैनेजमेंट कोर्स’ जबकि दो छात्रों को ‘केबिन क्रू’ के लिए स्कॉलरशिप मिला है. अर्चना को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इस क्षेत्र से स्कॉलरशिप लेने वाले बच्चों की संख्या बढ़ेगी.

जीविका के तहत चलाये जा रहे CLCDC के प्रोजेक्ट मैनेजर पवन कुमार ने बताते हैं कि “शैक्षणिक विकास के उद्देश्य से 'दीदी का पुस्तकालय' खोला गया है. उन्होंने कहा कि सामुदायिक पुस्तकालय-सह-कैरियर विकास केंद्र छात्रों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा हैं."

साल 2023 तक जहां इन केन्द्रों पर 12 हजार के करीब छात्र पंजीकृत थे, आज उनकी संख्या 50 हजार से भी ज्यादा हो गई है. यहां अच्छी बात यह है कि इन पंजीकृत बच्चों में लगभग 80% लड़कियां हैं. 

100 प्रखंडों में खोले गये हैं केंद्र

अप्रैल 2023 तक राज्य के 38 में से 32 जिलों में CLCDC केंद्र खोले जा चुके था. कुल 100 सीएलसीडीसी में से 63 के लिए सरकारी भवनों को मंजूरी दे दी गई है. वहीं अन्य 37 ब्लॉकों में सीएलसीडीसी किराए के मकान में चलाए जा रहे हैं. प्रत्येक सीएलसीडीसी केंद्र में 30-40 लोगों की बैठने की क्षमता वाला एक हॉल है. हॉल के अलावा, दो कमरे है जिसमें एक कमरा भौतिक और डिजिटल पुस्तकालय के लिए आरक्षित है, जो एक कार्यालय के रूप में भी दोगुना है. वहीं  दूसरे कमरे का उपयोग सेल्फ स्टडी सेंटर के लिए किया जाता है.

हॉल का उपयोग डिजिटल और भौतिक कक्षाओं के साथ-साथ अन्य शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है. भौतिक पुस्तकालय में 9वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक की पाठ्य पुस्तकों के अलावा, विभिन्न उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए लगभग 1000 पुस्तकें रखने का लक्ष्य रखा जाता हैं.

डिजिटल लाइब्रेरी

डिजिटल लाइब्रेरी में अध्ययन सामग्री के तौर पर वीडियो, ऑडियो ई-बुक्स और ई-नोट्स उपलब्ध कराई जाती है. लाइब्रेरी और कैरियर सलाह केंद्र खुलने से छात्रों के माता-पिता और अभिभावक भी बहुत खुश हैं. 

CLCDC केन्द्रों द्वारा चलाया जा रहा टर्न-द-बस (टीडीबी) कार्यक्रम राज्य में नामांकन दर को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण रोल निभा रहा है. अबतक टीडीबी एप के द्वारा 1,04,000 छात्रों को स्कूल से जोड़ा गया है. वहीं महिला शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए 'आई-सक्षम जीविका एडुलीडर फेलोशिप' कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है. अबतक इस कार्यक्रम के तहत 80 एडुलीडर की मदद की जा चुकी है.

जीविका देश में बनी सफल योजना

31 जनवरी 2023 को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की रिपोर्ट जारी की गई. इस रिपोर्ट में बिहार सरकार द्वारा संचालित ‘जीविका समूह’ की सफलता की तारीफ़ की गई है. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय 1.20 करोड़ स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं, इनमें से 88% समूह महिलाओं द्वारा संचालित हैं. रिपोर्ट में केरला के कुडुम्बाश्री, बिहार के जीविका, महाराष्ट्र के महिला आर्थिक विकास महिला मंडल और लद्दाख के लूम्स की सफलता की चर्चा की गई थी. 

जीविका दीदी के साथ सीएम

बिहार के सभी 38 ज़िलों में जीविका योजना चल रही है. जीविका के अंतर्गत वैसी महिलाओं को समूह से जोड़ा जाता हैं जिनके पास आय का कोई साधन नहीं है.10 से 12 महिलाओं को जोड़कर समूह बनाया जाता है. समूह से जुड़ी महिलाओं को बचत और रोजगार से जुड़ी जानकारियां दी जाती हैं. ऐसे हर समूह का एक बैंक खाता खुलवाया जाता है और महिलाएं हफ्ते के किसी एक दिन समूह में 10 रूपए जमा करती हैं जिसे बैंक में जमा किया जाता है. इसके साथ ही हर ग्रुप के खाते में सरकार की तरफ से भी 30 हजार रुपये जमा कराये जाते हैं जिसे प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग कहा जाता है.

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार सितम्बर 2023 तक राज्य में 10.47 लाख एसएचजी बनाये गये हैं. इन SHG को बैंक के माध्यम से 34 हजार करोड़ का ऋण प्राप्त हुआ है. जीविका के माध्यम से महिलाएं ना केवल आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन सकी है बल्कि दूसरों को भी रोजगार देने योग्य बन रही है.

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