पीडीएस संचालकों की एक दिवसीय हड़ताल, सरकार पर लगाया चोरी करवाने का आरोप

सरकार गरीबों के लिए जन वितरण केंद्र चला रही है. इन केन्द्रों को चलाने वाले लोग भी गरीब हैं. जो अपना समय इन केन्द्रों के संचालन में दे रहे हैं. क्या उसके बदले उन्हें उचित मानदेय नहीं मिलना चाहिए.

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कोरोना में पेट भरने के लिए चोरी करनी पड़ेगी, ना काम है और ना राशन

बिहार के पटना में रहने वाले मनीष कुमार जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकान चलाते हैं. जन वितरण प्रणाली मतलब राशन की दुकान जहां गरीबों को सस्ते दरों पर अनाज उपलब्ध कराया जाता है. मनीष कुमार के सात लोगों का परिवार पीडीएस दुकान से होने वाली आय पर ही निर्भर करता हैं. लेकिन बढ़ती मंहगाई के कारण इतने कम आय में परिवार की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है.

मंगलवार 17 दिसंबर को राज्यभर के लगभग 30 हजार पीडीएस दुकानदार मानदेय और मार्जिन रेट बढ़ाए जाने समेत आठ सूत्री मांग को लेकर पटना के गर्दनीबाग धरनास्थल पहुंच गए. मनीष कुमार भी उन दुकानदारों में शामिल थे.

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए मनीष कुमार सरकार से सवाल करते हैं, “सरकार गरीबों के लिए जन वितरण केंद्र चला रही है. जिससे गरीब परिवारों को इससे राहत मिलती है. इन केन्द्रों को चलाने वाले लोग भी गरीब हैं. जो अपना समय इन केन्द्रों के संचालन में दे रहे हैं. क्या उसके बदले उन्हें उचित मानदेय नहीं मिलना चाहिए."

सरकार करवाती है "चोरी"- पीडीएस संचालक 

पीडीएस संचालकों का आरोप है कि गोदाम से राशन दुकान तक अनाज पहुंचने के दौरान ही आनाज में कटौती कर ली जाती है. जिसके कारण मजबूरी में दुकानदार लाभुकों के बीच कम राशन का वितरण करते हैं. संचालक गोदाम से कम अनाज दिए जाने की शिकायत अधिकारीयों से भी करते है लेकिन इसके  बावजूद अधिकारी इसकी सुनवाई नहीं करते हैं. ऐसे में संचालकों का कहना है कि “सरकार ही उन्हें चोरी करने को मजबूर करती है.”

केंद्र ने घटाया राशन कोटा

मनीष कुमार कहते हैं “गोदाम से राशन दुकान तक अनाज लाने में सबसे बड़ा परेशानी है. वहां बिचौलियों और दलालों का चलता है. गोदाम में 50 केजी का बोरा 52 केजी कहकर दिया जाता है. लेकिन पहला घपला यही हो जाता है. अगर कोई दूकानदार 10 क्विंटल अनाज लेता है तो उसकों 52 केजी का तौल बताकर, बोरा दिया जाता है. लेकिन बाहर आकर वजन होने पर वह 48 से 49 केजी प्रत्येक बोरा में रहता है. ऐसे में एक दूकानदार को एक मन (40 किलों) अनाज का पहले ही नुकसान हो जाता है. और इसका शिकायत कहीं भी कर लें कोई सुनवाई नहीं होता है.”

मनीष कुमार आगे कहते हैं “अखबार में हमेशा छपता है कि राशन वाला कम अनाज बांटता है. लेकिन कोई यह नहीं बताता है कि ऊपर से ही कम अनाज दिया जाता है.”

दुकानदारों का आरोप है कि अनाज में कटौती के साथ ही अनाज समय पर भी नहीं दिया जाता है. महीने के पहले सप्ताह में अनाज मिलने की बजाए, यह महीने के आखिर में दिया जाता है. मनीष कुमार बताते हैं “दो से तीन तारीख तक चावल-गेहूं मिल जाना चाहिए था. लेकिन मिलता है 18 या 20 तारीख को. ऐसे में 10 दिन में अनाज बांटने का दबाव होता है. यह सब अकेले संभव नहीं है. दो लोग लगते हैं. एक अनाज तौलने के लिए और दूसरा थंब लगाने के लिए. इसलिए हम सरकार से मार्जिन बढ़ाने और मानदेय देने की मांग करते हैं. ताकि दोनों लोग का परिवार चल सके.”

“वन नेशन, वन कमिशन” की मांग

डीलरों का कहना है जब सरकार गरीब जनता के लिए पूरे देश में वन नेशन, वन राशन कार्ड चलाती है तो पीडीएस दुकानदारों के लिए “वन नेशन, वन कमीशन” का नियम लागू क्यों नहीं करती हैं? कटिहार के मिर्चायबाड़ी में पीडीएस दुकान चलाने वाले अनिल पासवान कहते हैं कि “देश के अलग-अलग राज्यों जैसे- दिल्ली में राशन डीलर्स को 200 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा में 200 रुपये प्रति क्विंटल, हिमाचल प्रदेश में 143 रुपये प्रति क्विंटल, महाराष्ट्र में 180 रुपये प्रति क्विंटल, गुजरात में 150 रुपये प्रति क्विंटल और गोवा में 250 रुपये प्रति क्विंटल कमीशन दिया जाता है. ऐसे में बिहार के राशन डीलरों को मात्र 90 रुपये प्रति क्विंटल कमीशन दिया जाना अन्याय है.”

बिहार के पीडीएस संचालक बीते कई सालों से देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार के पीडीएस डीलरों को भी मानदेय देने और प्रति क्विंटल मिलने वाले कमीशन बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं. डीलरों की मांग है कि उन्हें 300 रूपए प्रति क्विंटल कमिशन दिया जाए.

राशन कार्ड

वर्तमान में बिहार में डीलरों को सिर्फ 90 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से कमीशन दिया जाता है जबकि इससे पहले डीलरों को 70 रूपए प्रति क्विंटल ही कमीशन मिलता था जो देश के अन्य राज्यों के मुकाबले काफ़ी कम है. दुकानदारों का कहना है कि कमीशन भी उन्हें प्रत्येक महीने नहीं मिल पाता है. इसके लिए उन्हें विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

मनीष कुमार बताते हैं “महीने में अगर 60 क्विंटल अनाज बांटते हैं तो 90 पैसा के हिसाब से 5400 रूपया होता है. वह भी महीने में नहीं मिलता है. कभी खाद्य विभाग तो कभी किसी विभाग में पेपर जमा करना पड़ता है. चार से पांच महीने पर एक बार पैसा मिलता है.”

गुजरात के पीडीएस दुकानदारों को अभी कमीशन के साथ 30,000 रूपए अलग से मानदेय दिया जा रहा है.

ख़र्च निकालना होता है मुश्किल: पीडीएस दुकानदार

पीडीएस दुकानदारों का कहना अनाज भंडारण के भवन का किराया, बिजली बिल का किराया और मजदूरों का किराया इसी 90 रूपए क्विंटल में निकालना पड़ता है. दुकानदार बताते हैं तेजी से अनाज तौलने और बांटने के लिए कम से कम 3 मजदूर रखना पड़ता हैं जिसकी भरपाई इतनी कम राशि में करना मुश्किल है.

डीलरों की हड़ताल में शामिल कटिहार के रहने वाले बिनोद कुमार बताते हैं “पहले एक किलों अनाज बांटने पर 70 पैसा मिलता था. इसे बढ़ाकर 90 पैसा किया गया. मान लीजिए एक महीने में 70 से 80 क्विंटल अनाज उठेगा तो उसमें आपकों 7200 रुपया मिलेगा. अब इसी में अनाज भंडारण के लिए लिए गए रूम का किराया, बिजली बिल का खर्च, नापने वाला वर्कर का ख़र्च और खुद का बचत निकालना पड़ता है.” 

डीलर अनिल पासवान पीओएस मशीन में गड़बड़ी और उसके कारण होने वाली समस्या को भी उठाते हैं. अनिल कहते हैं “पीओएस मशीन में गड़बड़ी के कारण कभी कभी हमे जीतना अनाज गोदाम से मिलता भी नहीं है उसे दर्ज कर दिया जाता है. ऐसे में  काफ़ी समस्या होती है. हमलोग उसके लिए भी कई बार आवेदन दिए हैं कि इस समस्या को दूर किया जाए.”

डीलर स्टॉक वितरण पंजी रखे जाने का भी विरोध कर रहे हैं. मनीष कुमार कहते हैं "हमलोग मजदुर है. सरकार का काम करते हैं. लेकिन सरकार ने हमारे ऊपर ही रजिस्टर और कलम खरीदने का बोझ डाल रखा है. दूसरी बात स्टॉक का पूरा ब्योरा सरकार के पास मौजूद रहता है तो उसको लिखकर रखने की जरुरत क्या है."

स्टेशनरी और पॉस मशीन के मरम्मती पर होने वाले ख़र्च पर अनिल बताते हैं “पॉस मशीन का शुरुआत 2019 में किया गया था. उस समय जो मशीन मिला था अब वह पांच साल पुराना हो गया है और उसमें सर्वर भी धीमा रहता है क्योंकि वह 4ज़ी था. मशीन खराब होने पर जिला कोऑर्डिनेटर डीलरों से मरम्मती के लिए पैसा मांगते हैं. हमारी मांग है मरम्मती मुफ्त में किया जाए साथ ही काम में तेजी के लिए हमें 5ज़ी पॉस मशीन दिया जाए.”

डीलर बताते हैं कि पॉस मशीन में खराबी आने या बैटरी ख़त्म होने पर इसकी लिखित जानकारी ऑपरेटर को देनी पड़ती है. अगर एक दिन में मशीन की बैटरी बदलवानी है तो ऑपरेटर को पैसे देने पड़ते हैं नहीं तो वे 10 से 20 दिन केवल एक बैटरी बदलने में लगा देते हैं. 

दुकानदार पीओएस मशीन के कारण ग्राहकों को होने वाली समस्या भी उठाते हैं. उनके अनुसार सर्वर फेल होने पर ग्राहक को घंटों दुकान पर इन्तजार करना पड़ता है. कभी-कभी अगले दिन दोबारा आने की परेशानी भी उठानी पड़ती है. वहीं इसके कारण दुकानदारों को ग्राहकों के गुस्से का शिकार होना पड़ता है.    

साप्ताहिक छुट्टी और आश्रित के लिए लाइसेंस की मांग

डीलरों की मांग है कि उन्हें सप्ताह में एक दिन की छुट्टी दी जाए. साथ ही गंभीर बीमारी या लाईसेंसधारी की मृत्यु होंने पर परिवार के किसी एक सदस्य को सहमती के साथ लाईसेंस दिया जाए. डीलर बताते हैं पहले उन्हें प्रत्येक सप्ताह सोमवार को छुट्टी दिया जाता था जिससे उन्हें भी आराम करने का अवसर मिलता था. लेकिन अब उन्हें महीने में 30 दिन दुकान खोलना पड़ता है. वहीं दुकान सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक खोलने का नियम है लेकिन सर्वर धीमा होने के कारण उन्हें अक्सर शाम तक दुकान पर रुकना पड़ता है.

अप्रैल 2020 से दिसंबर 2024 तक प्रवासी मजदूरों को वितरित चना और दाल के आधार पर बकाया मार्जिन मनी का एकमुश्त भुगतान की भी मांग की है. 

मनीष कुमार कहते हैं "कोरोना के समय सरकार ने प्रत्येक कार्ड पर एक किलो चना या दाल बांटने के लिए दिया था. झारखंड में अब भी चना-दाल दिया जा रहा है लेकिन बिहार में यह मुश्किल से छह महीने ही चला था. मेरे यहां 300 कार्ड था उसके हिसाब से 270 रुपया बनता है लेकिन वह भी नहीं मिला." 

इसके अलावे डीलरों ने 2020 से 2025 के बीच अनाज वितरण पर मिलने वाले मार्जिन राशि के समूचे भुगतान की मांग की है. साथ ही राज्य खाद्य निगम से साल 2013 से 2020 तक की बकाया राशि भुगतान करने की मांग रखी है.

इस एक दिवसीय धरने के बाद फेयर प्राइस डीलर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने उपमुख्यमंत्री से भेंट कर आठ सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा है. बताया जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही विभागीय समीक्षा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से वार्ता के बाद मानदेय पर निर्णय लिया जाएगा. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब खोखले आश्वासन के बाद पीडीएस संचालक काम पर वापस लौट गए हैं.

 

PDS PDS shopkeepers on strike