एक गांव, दो जिले विकास से क्यों कट गया इदिनपुर?

इदिनपुर गांव प्रशासनिक खामियों के कारण गया जिले में होते हुए भी अरवल पर निर्भर है। लोग सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं क्योंकि उनका अस्तित्व दो जिलों के बीच उलझा हुआ है। क्या प्रशासन इस अनदेखी को दूर करेगा?

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नाजिश महताब
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 गया जिले के टिकारी प्रखंड में स्थित संडा ग्राम पंचायत का एक छोटा सा गांव इदिनपुर, जो आज भी विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर है. यह गांव प्रशासनिक अव्यवस्था और राजनीतिक उदासीनता का ऐसा उदाहरण है, जहां के लोग सरकारी योजनाओं के कागज़ी लाभ से तो परिचित हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. 

जाना गया जिले में, पहुंचना अरवल से 

इदिनपुर गांव की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह भले ही गया जिले के टिकारी प्रखंड में स्थित हो, लेकिन यहां पहुंचने का मुख्य मार्ग अरवल जिले से होकर गुज़रता है. यहां तक कि टिकारी प्रखंड मुख्यालय से गांव पहुंचने के लिए लगभग 20 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है और वह भी कच्चे, उबड़-खाबड़ रास्तों से. मानसून में तो यह सफ़र और भी दुष्कर हो जाता है, जब कीचड़ और जलभराव के कारण रास्ते पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाते हैं.  

गांव से केवल तीन किलोमीटर की दूरी पर अरवल जिले का मानिकपुर बाज़ार स्थित है, जहां के लोग अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्भर हैं. यह गांव गया जिले में होने के बावजूद, प्रशासनिक और बुनियादी सुविधाओं के लिए अरवल जिले की ओर देखता है. ग्रामीणों की इस पीड़ा को न सरकार सुन रही है, न प्रशासन.  

 सुविधाओं का भारी अभाव 

मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना के तहत बिहार के गांवों में नल-जल योजना, गली-नाली पक्कीकरण, शौचालय निर्माण जैसी अनेक योजनाएं चलाई गई हैं. लेकिन इदिनपुर गांव इन योजनाओं से कोसों दूर है. बिहार सरकार की ‘हर घर नल का जल’ योजना, जिसे 2015 में ‘सात निश्चय’ कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था, एक महत्वाकांक्षी पहल थी.बिहार सरकार ने 2020 में ‘हर घर नल का जल’ योजना के दूसरे चरण की शुरुआत की थी. सरकार का दावा था कि 2020 तक 60% से अधिक काम पूरा हो चुका था , और 2022-23 में इस योजना के लिए ₹1,110 करोड़, जबकि 2024-25 में ₹1,295 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया.

स्थानीय निवासी बताते हैं कि “ नल - जल योजना के तहत पाइप तो लग गया है लेकिन आज भी इससे पानी का एक बूंद तक नहीं आया है. पानी की समस्या हमारे गांव में काफ़ी अधिक है. पानी के लिए हमें कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.” 

गांव में एक सामुदायिक भवन, एक आंगनबाड़ी केंद्र और एक मध्य विद्यालय तो है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को पोषण आहार नहीं मिलता, विद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी है और सामुदायिक भवन महज एक खंडहर के रूप में खड़ा है.  

विकास भी इसी गांव में रहते हैं वो बताते हैं कि “गांव में शुद्ध पेयजल की भारी किल्लत है. लोग आज भी हैंडपंप और कुएं का पानी पीने को मजबूर हैं. अधिकतर हैंडपंप सूख चुके हैं या फिर ख़राब पड़े हैं. महिलाओं को दूर-दराज से पानी लाने के लिए घंटों मेहनत करनी पड़ती है. सरकार भले ही हर घर नल-जल योजना का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन इदिनपुर के घरों तक यह योजना नहीं पहुंची है.”

एक गांव, जो मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है 

इदिनपुर गांव में कुल जनसंख्या लगभग 1100 है, जिसमें से अधिकांश लोग पिछड़े और दलित समुदाय से आते हैं. यह गांव हमेशा से सरकारी योजनाओं और अधिकारियों की नजरों से ओझल रहा है. यहां की साक्षरता दर मात्र 50 प्रतिशत है, जो आज के दौर में बेहद चिंताजनक है. गया जिला मुख्यालय से यह गांव 45 किलोमीटर दूर है, लेकिन सुविधाओं के अभाव ने इसे सदियों पीछे धकेल दिया है.  

 पुलिसिंग भी नदारद  

गांव की सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि यह पुलिसिंग से भी काफ़ी दूर है. मउ थाना अंतर्गत आने वाला यह गांव मठ थाना से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन कोई भी घटना होने पर ग्रामीणों को शिकायत दर्ज कराने के लिए काफी लंबा सफ़र तय करना पड़ता है. रात्रि गश्ती की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं.  

अनुज वहां के रहने वाले हैं. जब हमने उनसे प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल पूछा तो उन्होंने बताया कि “रात में 6-7 बजे के बाद कोई भी घर से नहीं निकलता है क्योंकि अपराध होने की संभावना बढ़ जाती है. पुलिस भी मौजूद नहीं होती है. और ऐसा कई बार हुआ है की हमारे घरों में या गांव से चोरियां और लूटपाट हुई है. हम काफ़ी डरे हुए हैं.

गांव से मात्र कुछ किलोमीटर की दूरी पर मानिकपुर ओपी स्थित है, लेकिन यह अरवल जिले में होने के कारण इदिनपुर के ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिल पाता. अपराध की स्थिति में जब ग्रामीण थाना पहुंचते हैं, तो उन्हें थाना क्षेत्र के विवाद में उलझा दिया जाता है. इस असमंजस की स्थिति के कारण कई घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं.  

 अपनी पहचान के लिए संघर्ष 

इदिनपुर गांव के निवासी राम उदय यादव अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहते हैं कि "हम टिकारी प्रखंड का हिस्सा तो हैं, लेकिन हमारी पूरी दिनचर्या अरवल जिले पर निर्भर है. प्रशासन से कई बार आग्रह किया गया कि गांव को अरवल जिले की निघवां पंचायत में जोड़ दिया जाए, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया."  

गांव के कई परिवारों की खेती योग्य जमीन गया और अरवल दोनों जिलों में बंटी हुई है. जब जमीन संबंधी कोई काम होता है, तो ग्रामीणों को टिकारी और कुर्था अंचल के चक्कर काटने पड़ते हैं, जिसमें कुर्था अंचल ज़्यादा सुविधाजनक पड़ता है.  

इन सारे मुद्दों पर जब हमने वार्ड सदस्य से बात की तो उन्होंने बताया कि “पंचायत तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनाने की मांग वर्षों से की जा रही है, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. अरवल जिले के उत्तरावां से एक कच्ची सड़क गांव तक जाती थी, लेकिन विवादों के कारण वह भी बंद हो गई. अब लालचक गांव से होकर एक और कच्ची सड़क बनाई गई है, जिससे ग्रामीण किसी तरह से आवाजाही कर पाते हैं.”

संडा पंचायत के मुखिया रामजी शर्मा ने भी यह स्वीकार किया कि पंचायत तक पक्की सड़क के निर्माण के लिए कई बार आवेदन दिया गया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.  

सरकार कब सुनेगी इस गांव की आवाज़?

इदिनपुर गांव की कहानी बिहार के उन हज़ारों गांवों जैसी है, जहां प्रशासनिक उपेक्षा ने लोगों को नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर दिया है. हर चुनाव में नेताओं द्वारा वादों की झड़ी लगाई जाती है, लेकिन चुनाव बीतते ही ये वादे धूल फांकने लगते हैं. यहां पक्की सड़क, शुद्ध पेयजल, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की तत्काल आवश्यकता है. यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो यह गांव हमेशा के लिए विकास की दौड़ में पीछे रह जाएगा.

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