/democratic-charkha/media/media_files/2024/12/27/bcJhdVgG0DAX0lzZqV3O.webp)
ऑटो से स्कूल नहीं जाएंगे बच्चे
शिक्षा सबके लिए ज़रूरी है. यह बात हम सभी को मालूम है और हमारे भारत के संविधान में ये बातें लिखी है और इसका मौलिक अधिकार (आरटीई) भी सबको दिया गया है. आये दिन राज्य और केंद्र सरकार शिक्षा के अधिकार पर काम करती है और प्रतिदिन इसको और बेहतर बनाने के लिए कार्यरत है.
अगर बात करें अगर बिहार की तो बिहार हमेशा से शिक्षा के मामले में नीचे ही रहा है. नीति आयोग का भी कहना है कि बिहार शिक्षा की गुणवत्ता के हिसाब से निचले स्थान पर है. 36 राज्यों की सूची में बिहार का स्थान 36वां है. वैसे तो अब बिहार की स्तिथि सुधर रही है और साक्षरता दर भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है.
पहले ज़्यादातर सरकारी स्कूलो में बच्चे जाते थे पर अब परिचलन बदलती जा रही है. अब ज़्यादातर अभिभावक अपने बच्चो को निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं. इसी के तहत सरकार ने वंचित बच्चों के लिए संविधान में संशोधन किये गए.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम में निजी स्कूलों की क्या भूमिका है?
बिहार में गरीबी अधिक है. बिहार में 34.70 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करते हैं. इसी कारण लोग अपने बच्चो की शिक्षा निजी स्कूलों में नहीं करवा पाते. बिहार के सरकारी स्कूलों में उतनी सुविधायें उपलब्ध नहीं होती जितनी निजी स्कूलों में होती हैं. इसी कारण पैसो के अभाव के कारण माता-पिता अपने बच्चों को उच्च और बेहतर शिक्षा नहीं दिलवा पाते.
इसी को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया. इस योजना के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीट EWS और वंचित छात्रों के लिए रखी जाती है जिस कारण बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला मिलता है. इस प्रवेश में 5 प्रतिशत सीट विकलांग बच्चों के लिए भी आरक्षित है. जब यह कानून बनाया गया था तब सारे स्कूलों का रजिस्ट्रेशन किया गया और उन्हें 25 प्रतिशत बच्चों की शिक्षा का पैसा भेजा जाने लगा.
इस सेवा का लाभ उन्ही लोगो को मिलता है जिनके अभिभावक की सालाना कमाई 1 लाख से कम हो. वो अपना जातीय, आवासीय, आय प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज़ फोटो इत्यादि रजिस्ट्रेशन के वक्त जमा करते हैं. बच्चे अपने पसंद और अपने प्रखंड के पास के किसी 5 निजी स्कूलों का नाम भरते हैं और उनका चयन लॉटरी सिस्टम से होता है. सरकार उन सभी बच्चों की किताबें और कपड़े और उसके पढ़ाई के पैसे स्कूलों को देती है.
क्या है ज्ञानदीप पोर्टल?
गत वर्ष 2024 में ज्ञानदीप पोर्टल की शुरुआत बिहार सरकार ने की. इस पोर्टल के तहत ये सारे पंजीकरण ऑनलाइन कर दिए गए. शिक्षा का अधिनियम 2009 के संसोधन के बाद सारी चीज़े ऑफलाइन हो रही थी. इसमें विभाग सूची जारी करता था और सारे स्कूल उसके नियमों का पालन करते थे.
बिहार में 26 दिसंबर 2024 को स्कूलों का पंजीकरण जमा किया जा रहा है और इसकी आखिरी तिथि 25 जनवरी 2025 तक की है. इसमें छात्रों को ऑनलाइन आवेदन करना है और उनका चयन लॉटरी सिस्टम के माध्यम से होना है.
बिहार का शिक्षा बजट
वर्ष 2024 में बिहार सरकार ने शिक्षा के लिए 52639.03 करोड़ रुपये का बजट रखा. बिहार सरकार का कहना है कि गत वर्ष की जगह इस वर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गयी है.
वहीं केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत बिहार को 1,583 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध की. बिहार सरकार ने प्रारंभिक शिक्षा के लिए 7,150 करोड़ एवं माध्यमिक शिक्षा के लिए 766 करोड़ रुपये की राशि बजट में शामिल की है.
बजट के बाद भी निजी स्कूल वंचित समुदाय से दूर क्यों?
ज्ञानदीप पोर्टल से पहले वर्ष 2009 में कागजी स्तर पर वंचित वर्ग के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीट निजी स्कूलों में आरक्षित रहती थी. वर्ष 2024 में ज्ञानदीप पोर्टल आया जिसमें ये सारी चीज़े ऑनलाइन तरीके से होने लगी. हर क्षेत्र को सुचारू ढंग से चलाने के लिए एक तरीका होता है लेकिन कभी-कभी लापरवाही से कार्य में बाधा आने लगती है.
इसी सन्दर्भ में डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने कुछ निजी संस्थानों से बातचीत की. इस दौरान पता चला कि साल 2018 से निजी संस्थानों को उन 25 प्रतिशत बच्चों का पैसा सरकार नहीं दे रही है. शिक्षा विभाग प्रति वर्ष 11869 रूपया प्रति बच्चा निजी स्कूलों को भुगतान करती है. 2018-19 सत्र के प्रथम वर्ग के बच्चों का भुगतान किया गया है लेकिन उससे पहले के बच्चे जो दूसरी- तीसरी कक्षा में चले गए उसका भुगतान नहीं हुआ.
उसके बाद सत्र 2019 से अब तक कोई भुगतान नहीं किया गया. कोरोना के कारण 2020-21 और 2021-22 में कोई नामांकन नहीं हुआ. लेकिन इन सत्रों में पूर्व से पढ़ने वाले बच्चों का भी भुगतान नहीं किया गया. पैसा भुगतान नहीं होने के कारण बहुत सारे निजी स्कूलों की आर्थिक स्तिथि बहुत ख़राब हो चुकी है. ज़्यादातर निजी स्कूल किराए के भवन में चल रहे हैं. जिनका बकाया का भुगतान इस कारण नहीं हुआ. संस्थानों ने आगे बताया कि पैसों के अभाव के कारण बिजली बिल, शिक्षकों का वेतन आदि बाधित हो रहा है.
जानकारों का क्या है कहना?
लिहाज़ा टीम ने शिक्षाविद प्रभाकर से बातचीत कि जो कि पटना विश्वविधालय में अतिथि शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं. उन्होंने बताया कि "सरकार जब सालाना बजट बनाती है .उसके बाद नौकरशाहों का फ़र्ज़ बनता है कि वो शिक्षा के क्षेत्र में पैसो का बंटवारा कैसे करते हैं. सिर्फ आरटीई के लिए सरकार कोई रकम निर्धारित नहीं करती है. नौकरशाह इसलिए भी अलग से इसका विभाग नहीं बनाती क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा होने पर उनका काम बढ़ेगा."
इसी सन्दर्भ में डेमोक्रेटिक चरखा की टीम को यह मालूम चला कि नवादा जिले के प्राइवेट स्कूल के एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा जनता दरबार में मुख्यमंत्री के सामने बकाया भुगतान के लिए मांगे रख चुके हैं. लेकिन अभी तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है. हालाकिं उनसे बात करने की कोशिश की गयी पर टीम उनसे बात करने में असमर्थ रही.