बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के लिए जितनी ज़रूरत हरियाली और पेड़ पौधों की है. उतनी ही ज़रूरत शहरों में आबादी के हिसाब से सुविधाओं को बहाल करना भी है. शहरों में जितनी तेज़ी से आबादी बढ़ी है उतनी ही तेज़ी से लोगों की ज़रूरतें भी बढ़ रही हैं. रोटी, कपड़ा और मकान के बुनियादी ज़रूरत के अलावा अब लोगों के लिए ‘वाहन’ चौथी महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गयी है.
उच्च आय वर्ग के लोगों के अलावा अब मध्यम वर्गीय परिवार के लोग भी तेजी से चार पहिया और दोपहिया वाहन खरीद रहे हैं. जिसके कारण सड़कों पर पिछले आठ-दस सालों में यातायात के साधनों के लिए निजी वाहनों के चलन ने सड़कों पर भीड़ बढ़ा दी है. ऐसे में सड़कों पर उन वाहनों को पार्क करने की समस्या भी उत्पन्न होने लगी है. छोटे, बड़े या मध्यम वर्गीय शहर में सड़कों पर स्ट्रीट वेंडर और सड़क किनारे बेतरतीब खड़े वाहन सामान्य समस्या हैं.
बड़े शहरों या मेट्रो सिटी में तो इस समस्या का समाधान ‘मल्टीलेवल ऑफ स्ट्रीट पार्किंग’ के तौर पर निकाला जा रहा है लेकिन छोटे और मध्यम शहरों की बनावट अलग नीतियों की मांग करता है.
पार्किंग के लिए जगह नहीं
पटना जंक्शन, बिहार की राजधानी पटना के व्यस्तम इलाकों में से एक है. मुख्य रेलवे स्टेशन के अलावे यहां से शहर के मुख्य क्षेत्रों के लिए वाहन मिलते हैं. इसके अलावा स्टेशन रोड, भट्टचार्य रोड, डाकबंगला, फ्रेजर रोड, एक्जबिशन रोड जैसे कमर्शियल क्षेत्र नजदीक होने के कारण यहां वाहनों की भीड़ काफी ज्यादा रहती है. निजी से लेकर सार्वजनिक वाहनों की भीड़ और फुटपाथी दुकानदारों के कारण यहां जाम की समस्या हमेशा बनी रहती है. वहीं जगह की कमी के कारण निजी वाहन सड़कों पर ही खड़े कर दिए जाते हैं.
पटना, समेत देश के अधिकांश शहरों में सड़कों पर पार्किंग के कारण अतिक्रमण एक आम समस्या है. केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के लिए 2008 में विल्बर स्मिथ एसोसिएट अध्ययन से जो आंकड़े सामने आए उसके अनुसार ज्यादातर शहरों में सड़क नेटवर्क का बहुत बड़ा हिस्सा पार्किंग के अंतर्गत आता है. देश की राजधानी दिल्ली में सड़कों का 14 फीसदी हिस्सा पार्किंग में उपयोग होता है. कानपूर में 46 फीसदी तो जयपुर में यह 56 फीसदी तक पहुंच जाता है.
पटना, सूरत, अहमदाबाद, कोच्चि, पुडुचेरी, आगरा, पुणे, भोपाल, मदुरै, अमृतसर और वाराणसी जैसे शहरों में सड़क नेटवर्क का 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पार्किंग के लिए इस्तेमाल होता है.
ऐसे में यह आवश्यक है कि सड़कों को अतिक्रमण या पार्किंग मुक्त किया जाए लेकिन एक सटीक कार्य योजना के साथ.
साल 2016 में पार्किंग और जाम की समस्या को दूर करने के लिए शहर का पहला मल्टीलेवल पार्किंग पटना जंक्शन स्थित बुद्ध स्मृति पार्क के पीछे बनाया गया था. इसका निर्माण बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड (BUIDCO) द्वारा 13.5 करोड़ रुपए की लागत से की गयी थी.
लेकिन विभाग इसका संचालन व्यवस्थित ढ़ंग से नहीं कर सका. जिसके कारण कुछ फुटपाथी दुकानदार और ऑटोरिक्शा चालक ने यहां अतिक्रमण कर लिया. वहीं पटना मेट्रो कार्य शुरू होने के बाद पार्किंग स्थल तक पहुंचने वाला रास्ता वाहनों के लिए एक तरफ से बंद हो गया. जिसके कारण पार्किंग और जाम की समस्या समान रूप से बनी रही.
जाम बना समस्या
राजधानी पटना में गाड़ियों की संख्या हर आने वाले साल के साथ बढ़ती जा रही है. वहीं रोजगार के लिए सड़क पर दुकान लगाने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है. ऐसे में वाहनों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर पार्किंग की व्यवस्था करना शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है. लेकिन विभाग व्यवस्था किए बिना ही वैकल्पिक व्यवस्था को भी ध्वस्त करने पर तुला है.
नीतीश कुमार के कार्यकाल में पटना फ्लाईओवर का शहर बन चुका है. लेकिन गाड़ियां कहां खड़ी होगी, इसकी चिंता शायद उन्होंने नहीं की. वैकल्पिक तौर पर पुलों के नीचे खाली जगहों पर पटना नगर निगम पार्किंग का संचालन कर रहा था. बीते वर्ष पुल निर्माण निगम ने फ्लाईओवर और ब्रिज के नीचे की जमीन पटना नगर निगम को स्थानांतरित कर दी.
जिसके बाद स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत पटना नगर निगम ने शहर में हरियाली और सुंदरता बढ़ाने के लिए पुलों के नीचे खाली जगहों पर पौधारोपण कर हरित पट्टी बनाने का निर्णय लिया. निगम इसके सहारे पुलों के नीचे अतिक्रमण और जाम हटाने का भी दावा करता है.
वर्ष 2023 में आर ब्लॉक, वीरचंद पटेल पथ, बुद्ध मार्ग फ्लाईओवर और पटना जंक्शन वाले क्षेत्र में पौधारोपण का काम किया जा चुका है.
कंकड़बाग से पटना जंक्शन तक ऑटो चलाने वाले चालक मुकेश कुमार बताते हैं “जब इस इलाके में घेराव का काम शुरू हुआ तब भी हमलोगों ने विरोध किया था. लेकिन हमें कहा गया नया स्टैंड मिलेगा, कोई दिक्कत नहीं होगा. अब एक साल होने वाला है लेकिन पार्किंग का कोई व्यवस्था नहीं हुआ. ऊपर से जाम का समस्या बढ़ गया है. सुबह में 10 से 11 और शाम में 6.30 से 8.30 तक इतना जाम लगता है कि, केवल चिरैयाटाड़ पुल के नीचे से स्टेशन पहुंचने में 20 मिनट लग जाता है.”
वहीं महेंद्रू के रहने वाले रेहान निगम के इस काम को केवल ‘एस्थेटिक’ दिखाने का एक फ्लॉप तरीका बताते हैं. उनका कहना है अगर बिहार सरकार और निगम को पर्यावरण की चिंता है तो, वे गंगा किनारे खाली पड़ी जमीनों पर पेड़ लगा सकते हैं. पुल के नीचे जिस जगह का इस्तेमाल पार्किंग के लिए होता जिससे निगम की आय भी होती है उसे, समाप्त करना बेवकूफी है.
रेहान कहते हैं “अशोक राजपथ पर जो डबल डेकर पुल बनाई जा रही है अगर इसके नीचे पार्किंग की व्यवस्था कर दी जाती है तो लोगों को बड़ी सुविधा हो सकती है. गोविंद मित्रा रोड जैसे व्यवसायिक क्षेत्र में जहां रोजाना हजारों दूकानदार थोक में दवाई खरीदने आते हैं, वह यहां पर अपनी गाड़ी लगाकर दवाइयां ले सकते हैं. लेकिन अगर पुल के नीचे क्यारियां लगेगी तो अंततः गोविंद मित्रा रोड में जो जाम की समस्या है वह वैसे ही बनी रहेगी.”
शहर का एकमात्र मल्टीलेवल पार्किंग पहले ही पूरी तरह फेल हो चुका है. निगम अब इस बिल्डिंग में फुटपाथी दुकानदारों को विस्थापित करने की तैयारी कर रहा है. वहीं वाहन पार्किंग के लिए जीपीओ गोलंबर के पास स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत मल्टी मॉडल हब बनाकर वाहनों की पार्किंग सुविधा देने की तैयारी है.
स्थानीय विरोध के बाद लगी रोक
नगर निगम द्वारा शेखपुरा से रुक्कनपुरा तक करीब 2 किलोमीटर के क्षेत्र में फ्लाईओवर के नीचे पौधारोपण का काम शुरू किया जा चुका था. नगर निगम ने इसकी जिम्मेदारी पटना पार्क प्रमंडल को दे रखा है. अबतक एजेंसी ने शेखपुरा से आईजीआईएमएस अस्पताल तक सभी पार्किंग स्थल को तोड़कर बैरिकेडिंग कर दी है. शेखपुरा से रुकनपुरा फ्लाईओवर के नीचे करीब 64 पिलरों के बीच 512 वाहन लगाने की क्षमता है.
पार्किंग संचालकों का आरोप है कि बिना नोटिस दिए अचानक से पटना पार्क प्रमंडल ने जगह की घेराबंदी कर मिट्टी भरना शुरू कर दिया. जबकि नियमानुसार किसी भी पार्किंग स्पेस का उपयोग बदलने से पहले पार्किंग संचालक को महीने भर पहले सूचना दी जाती है.
इस इलाके में भीड़भाड़ और व्यस्तता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां केंद्रीय विद्यालय जैसे बड़े स्कूल और दो दर्जन से अधिक शॉपिंग मॉल है. इसके अलावा यहां आईजीआईएमएस, पारस हॉस्पिटल जैसे बड़े अस्पतालों के साथ ही कई छोटे-बड़े निजी अस्पताल हैं. जिसके कारण रोजाना हजारों लोग यहां अपने काम से पहुंचते हैं और उनके वाहनों की पार्किंग के लिए एकमात्र जगह फ्लाईओवर के नीचे ही है. ऐसे में बिना व्यवस्था किये पार्किंग हटाने से विरोध होना तय था.
स्थानीय विरोध के बाद शनिवार 20 जुलाई को निर्माण कार्य पर रोक लगा दिया गया है. लेकिन इसके बावजूद दुकानदारों ने दुबारा सोमवार 22 जुलाई को धरना प्रदर्शन किया. दुकानदारों ने व्यापार पर पड़ने वाले असर के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि “पुल के दोनों तरफ लगभग एक हजार दुकानें हैं. जहां आने वाले ग्राहकों को पार्किंग में दिक्कत होने लगी है. ऐसे में ग्राहक इस इलाके में आना कम कर देंगे.”
प्रदर्शन में दुकानदारों ने यह भी आरोप लगाया कि दिन में काम बंद रहता है लेकिन रात में वापस घेराव और मिट्टी भराव का काम शुरू कर दिया जाता है. दुकानदारों ने निगम को इसका तुरंत हल निकालने को कहा हैं.
पटना नगर निगम को पहले पार्किंग के लिए प्रभावी नीतियां बनानी होगी, साथ ही उनका सफल क्रियान्वयन करना होगा. नहीं तो आगे भी पटना जंक्शन स्थित मल्टीलेवल पार्किंग जैसे हालात हो सकते हैं.