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भारत में हर नागरिक को समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन क्या यह हकीकत में लागू हो पाता है? जब बात समाज के सबसे कमजोर वर्गों की आती है, तो अक्सर नीतियां कागजों पर ही सिमट कर रह जाती हैं. बिहार में दिव्यांग नागरिकों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. सरकार द्वारा चलाई जा रही बिहार विकलांग पेंशन योजना दिव्यांगों के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन क्या यह उनकी वास्तविक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है? बिहार में दिव्यांगों की संख्या लाखों में है, लेकिन उन्हें मिलने वाली सरकारी सहायता न केवल अपर्याप्त है, बल्कि इसकी पहुंच भी सीमित है.
बिहार विकलांग पेंशन योजना: कितनी कारगर?
लेकिन सवाल उठता है कि क्या ₹400 प्रति माह आज के समय में किसी भी व्यक्ति की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है? पटना के रहने वाले आदित्य जो की विकलांग हैं. जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि “ 400 रुपए, क्या ये 400 रुपए जीवन बिताने के लिए काफ़ी है? ऐसा लगता है की सरकार यह पैसे देकर बेइज्जत कर रही है. महंगाई बढ़ती जा रही है, नौकरी कम होते जा रही है, ऐसे में महीने के 400 रुपए से जीवन गुज़ारना मुश्किल है.”
अन्य राज्यों की तुलना में बिहार क्यों पिछड़ा?
जब हम बिहार की इस योजना की तुलना अन्य राज्यों से करते हैं, तो यह साफ दिखता है कि बिहार के दिव्यांगों को बहुत कम आर्थिक सहायता मिल रही है.
दिव्यांगों की अधूरी मांगें और उनकी जटिलताएं
इसके अलावा, विकलांग प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया भी बेहद जटिल है. खासकर मूक-बधिर और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रमाण पत्र बनवाना बहुत मुश्किल है. गरीब परिवारों के लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या है, क्योंकि प्रमाण पत्र के बिना वे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठा सकते. दिव्यांग संगठनों ने मांग की है कि विशेष जांच शिविर आयोजित कर विकलांग प्रमाण पत्र जारी किए जाएं, ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंद लोग इस योजना का लाभ उठा सकें. पटना के रहने वाली पुष्पा कुमारी बताती हैं कि “ मुझे विकलांग पेंशन का लाभ नहीं मिलता है. मैंने कई बार कोशिश की है लेकिन हमेशा लिस्ट में मेरा नाम नहीं आता है. मुझे पता है की इसमें क्या क्या दस्तावेज़ देना है और सारे दस्तावेज़ है मेरे पास पर फिर भी मुझे इस योजना का लाभ नहीं मिलता है.”
बिहार में दिव्यांगों की स्थिति: आंकड़े क्या कहते हैं?
‘सुगम्य भारत अभियान’ और दिव्यांग अधिकार कानून: कितना प्रभावी?
सरकारी नौकरियों में दिव्यांगों के लिए आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% किया गया, शिक्षण संस्थानों में दिव्यांगों के लिए 5% आरक्षण दिया गया. लेकिन बिहार में इन कानूनों और योजनाओं का सही ढंग से कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है. आज भी हजारों दिव्यांगों को सरकारी इमारतों, अस्पतालों और स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेलना पड़ता है.
पटना जंक्शन पर बड़ी मुशक्कतों बाद दिव्यांगजनों के लिए विशेष शौचालय बनाया गया. लेकिन बाकी शौचालय के तरह जंक्शन का भी शौचालय में ताला लगा हुआ है. इस पर वैष्णवी बताती हैं कि “एक बार मैं स्टेशन गई. वहां शौचालय में ताला लगा था और चाभी स्टेशन मास्टर के पास थी. अब इमरजेंसी में इंसान चाभी लाने जाएगा? दिव्यांगों के लिए बिहार में शौचालय की भरी कमी है. जहां है भी तो वहां ताला बंद है और ये ताला इसलिए बंद होता है क्योंकि अंदर कचड़ा रहता है. अगर हम लोग पूरे दिन के लिए बाहर निकलते हैं तो मजबूरी में घर भागना पड़ता है. क्योंकि सुलभ शौचालय हमारे योग्य नहीं है. कहीं भी दिव्यांगों के लिए शौचालय नहीं है. ना ही ज़ू ना ही किसी सिनेमा घर में.”
यूडीआईडी कार्ड: दिव्यांगों के लिए नई चुनौती
अगर पुराने प्रमाण पत्र को अमान्य कर दिया जाता है, तो हजारों दिव्यांग व्यक्ति सरकारी योजनाओं से वंचित हो सकते हैं. यह एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर सरकार को तुरंत ध्यान देना चाहिए. पटना से गया जाने वाले रास्ते में मेरी मुलाकात एक शख़्स से हुई. हाइवे पर उनकी छोटी सी दुकान थी. साइड पर उनकी बैसाखी रखी थी. जब हमने उनसे पूछा की योजना का लाभ मिलता है या नहीं तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि “ महीने के 400 रुपए मिलते हैं बाबू, घर में पत्नी है बच्चे हैं, दुकान से जितनी कमाई होती और 400 रुपया मिला भी दूं तो जीवन गुजारना कठिन है. सरकार 400 रुपया तो दे देती है लेकिन इन 400 में कुछ नहीं होता है कुछ भी नहीं. कई दिन तो ऐसा गुज़रता है जिस दिन घर पर रोटी भी नहीं बन पाती है. हम सरकार से ये चाहते हैं कि सरकार अनाज भी दे और पेंशन की राशि भी बढ़ाए.”