बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था: बिना लेबर रूम और ऑपरेशन थियेटर के चल रहे PHC, कैसे कम होगा बड़े अस्पतालों का बोझ

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार प्रत्येक 30 हजार की आबादी पर एक पीएचसी होना चाहिए. हालांकि बिहार में इस गाइडलाइन का पालन होता नजर नहीं आ रहा है. यहां 73,531 लोगों की आबादी पर एक पीएचसी चल रहा है. 

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बिहार के ग्रामीण और शहरी में क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है. साथ ही मौजूद स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य कर्मियों और मरीज़ों के लिए उपलब्ध सेवाएं भी अपर्याप्त हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है कि बिहार में प्राथमिक, सामुदायिक और उप-स्वास्थ्य केन्द्र आवश्यकता से करीब 60 फ़ीसदी कम है.

9 सितंबर को जारी किए गए वार्षिक रिपोर्ट हेल्थ डायनेमिक्स ऑफ इंडिया (इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड ह्यूमन रिसोर्सेज) 2022-23 के अनुसार, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 22,543 उप-स्वास्थ्य केन्द्रों की आवश्यकता है लेकिन जुलाई 2023 तक केवल 9,654 केंद्र ही कार्यरत थे. इसके अलावा 3748 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्थान पर मात्र 1519 केंद्र कार्य कर रहे थे. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में यह संख्या और कम हो जाती है. जहां 937 केंद्र की आवश्यकता है वहां मात्र 274 केंद्र ही कार्यरत हैं यानी 71 फ़ीसदी कम. 

हेल्थ डायनेमिक्स ऑफ इंडिया (इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड ह्यूमन रिसोर्सेज) 2022-23 एक वार्षिक प्रकाशन है, जिसे पहले ‘ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी’ रिपोर्ट के नाम से जाना जाता था. इसे केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने जारी किया है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार प्रत्येक 30 हज़ार की आबादी पर एक पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) होना चाहिए. हालांकि बिहार में इस गाइडलाइन का पालन होता नज़र नहीं आ रहा है. बिहार में 73,531 लोगों की आबादी पर एक पीएचसी चल रहा है. 

स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा ही सवालों के घेरे में रहती है. राज्य के स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सा कर्मियों की कमी हमेशा ही आलोचना का कारण रहती है. लेकिन इस नये रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों या मेडिकल ऑफिसर की संख्या ज़रूरत से 1426 अधिक है.

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 1519 डॉक्टर की आवश्यकता है लेकिन विभाग ने 4505 पद स्वीकृत किये हैं जिनमें से 2945 पद पर डॉक्टर की नियुक्ति की गयी है. हालांकि ज़मीनी हकीकत आंकड़ों से अलग कहानी बयां करते हैं. इसके अलावा मीडिया में आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं जिसमें अस्पतालों में डॉक्टर के उपस्थित नहीं रहने की शिकायत लोग करते हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पीएचसी के लिए बनाई गई गाइडलाइन के अनुसार एक पीएचसी पर कम से कम 12 कर्मचारी होने चाहिए. इसमें डॉक्टर, नर्स, एएनएम, फार्मासिस्ट, लैब टेक्निशियन जैसे पद हैं. वहीं इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टेंडर्ड के मानकों के अनुसार प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चार विशेषग्य (सर्जन, फिजिशियन, पीडियाट्रिशियन और प्रसूति व स्त्री रोग) विशेषग्य होने चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर 1096 स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता है जिसमें सर्जन, फिजिशियन, पीडियाट्रिशियन, प्रसूति एवं स्त्री रोग शामिल है. लेकिन विभाग ने पहले ही आवश्यकता से 50 पद, कम (1046 पद) स्वीकृत किये हैं. जुलाई 2023 तक इन पदों पर मात्र 209 कर्मी ही कार्यरत थे.

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इसके अलावा इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर रेडियोग्राफर के पद भी खाली है. रेडियोग्राफर का काम डॉक्टर द्वारा सुझाएं जाने पर मरीजों को एक्स-रे की सुविधा देना है. केंद्र पर यह सुविधा नहीं मिलने पर मरीजों को निजी केंद्रों पर जाना पड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार सीएचसी पर 274 रेडियोग्राफर की आवश्यकता है जिनमें से मात्र 28 ही कार्यरत हैं.

सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 3586 फार्मासिस्ट और लेबोरेटरी टेक्निशियन की आवश्यकता है जिसमें से केवल 1847 कर्मी ही कार्यरत हैं. 

23 हजार एएनएम कार्यरत

नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में एएनएम की नियुक्ति की जाती है. इनका मुख्य काम गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल करना है. इसके अलावा ये टीकाकरण का कार्य भी करती है.

केंद्रीय रिपोर्ट के अनुसार बिहार के ग्रामीण उप-केंद्रों पर आवश्यकता से 10,239 अधिक एएनएम कार्यकर्त्ता कार्य कर रही हैं. सरकार ने एएनएम के 33,270 पद स्वीकृत किए हैं जिनमें से 23,031 पदों पर इनकी नियुक्तियां की गयी हैं.

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी एएनएम की संख्या आवश्यकता से 189 अधिक हैं. हालांकि सीएचसी में नर्सिंग स्टाफ के 624 पद खली हैं. वहीं शहरी क्षेत्र में संचालित हो रहे पीएचसी में 1385 एएनएम की आवश्यकता है जिसमें से 440 ही कार्यरत हैं.

ग्रामीण सीएचसी में विशेषग्य डॉक्टरों की कमी

किसी भी स्वास्थ्य केंद्र पर बेहतर चिकित्सा तभी दी जा सकती है जब वहां विशेषग्य डॉक्टर और उनको सहयोग करने वाले कर्मी मौजूद हों. लेकिन हमारे ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पताल विशेषग्य डॉक्टर के बिना ही संचालित हो रहे हैं. या यूं कहें नर्सिंग कर्मी और एएनएम द्वारा चलाए जा रहें हैं.

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जहां 274 सर्जन की आवश्यकता है वहां मात्र 70 डॉक्टर की कार्य कर रहे हैं. शेष 204 अस्पताल के मरीज ऑपरेशन के लिए दुसरे अस्पताल में रेफर कर दिए जा रहे हैं. किसी भी बड़ी सर्जरी में एक एनेस्थेटिस्ट का होना बहुत आवश्यक है. लेकिन बिहार के अस्पतालों में इनकी भारी कमी है. 274 में से केवल 9 सीएचसी में ही एनेस्थेटिस्ट मौजूद हैं. जबकि विभाग ने इसके लिए 486 पद स्वीकृत कर रखे हैं.

स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषग्य भी केवल 72 केंद्रों पर मौजूद हैं. फिजिशियन डॉक्टर की संख्या 26 पदों तो वहीं बाल रोग विशेषग्य भी मात्र 41 केंद्रों पर मौजूद हैं. इसके अलावा आयुष डॉक्टरों की भी कमी है.

राज्य में 39 सीएचसी ही ऐसे हैं जहां चारों विशेषग्य डॉक्टर मौजूद हैं. 

बिना लेबर रूम और ऑपरेशन थियेटर के PHC

स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के इन अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित 1519 पीएचसी में से मात्र 484 में प्रसव कक्ष (Labour room) और 231 में ओटी (OT) रूम मौजूद हैं. जबकि मात्र 613 अस्पतालों में कम से कम 4 बेड मौजूद हैं.

सरकारी भवन का अभाव

रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 10,686 उप केंद्र, 1796 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), 306 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), 45 उप-मंडल/जिला अस्पताल (एसडीएच), 36 जिला अस्पताल (डीएच) और 11 मेडिकल कॉलेज हैं, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा देते हैं.

2005 के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में उप-केन्द्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में कमी आई है. जहां 2005 में 10,337 उप-केंद्र थे वह घटकर 9654 हो गए हैं. वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 1648 से घटकर 1519 रह गई है.

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रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत 6284 उप-केंद्र और 438 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के पास अपना भवन नहीं है. ये स्वास्थ्य केंद्र या तो किराए के भवन में या स्थानीय ग्राम पंचायत या स्वैच्छिक सोसाइटी भवन द्वारा उपलब्ध कराए गए स्थान पर संचालित हो रहे हैं.

स्वास्थ्य केंद्रों के निजी भवन में संचालन की समस्या केवल बिहार की नहीं है बल्कि पुरे भारत में बड़ी संख्या में उप-केंद्र किराए के भवन में चल रहे हैं. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 1,65,639 स्वास्थ्य केंद्र हैं जिनमें से 1,13,523 के पास ही खुद का भवन है.