देशभर में एनीमिया के मामले बढ़े, आयुर्वेदिक उपचार के सहारे रोक लगाने का प्रयास

NFHS-5 और NFHS-4 के आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि बिहार में एनीमिया ग्रस्त लोगों की संख्या बढ़ी है. NFHS-4 के समय जहां 6 से 59 महीने के 63.5% बच्चे एनीमिया से ग्रस्त थे, वहीं NFHS-5 में यह आंकड़ा बढ़कर 69.4% हो गया है.

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एनीमिया के मामले

भारत में एनीमिया के मामले बढ़े

देशभर में एनीमिया के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं देशभर में 15 से 49 वर्ष की प्रेग्नेंट महिलाओं में एनीमिया की दर 67% पायी गयी है, जो NFHS-4 (2015-16) के समय 58.3% था. वहीं एनीमिया ग्रस्त पुरुषों (15-49 वर्ष) की संख्या 25% और महिलाओं (15-49 वर्ष) की 57% दर्ज की गयी है. किशोर लड़कों (15-19 वर्ष) में 31.1%, किशोर लड़कियों में 59.1% और बच्चों (6-59 महीने) में 67.1% है.

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साल 2018 में, भारत सरकार ने 'एनीमिया मुक्त भारत' अभियान की शुरुआत की थी. एनीमिया चार तरह का होता है. पहला- ब्‍लड लॉस एनीमिया जिसमें शरीर में खून की कमी हो जाती है. दूसरा- विटामिन B12 की कमी से होने वाला एनीमिया जिसमें शरीर में RBC (Red Blood Cells) की कमी हो जाती है. तीसरा- आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया और चौथा होता है सिकल सेल एनीमिया. एनीमिया को नियंत्रित करने के हाल के प्रयासों में केंद्र सरकार अब, आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का सहारा लेने वाली है.

साल 2047 तक एनीमिया मुक्त भारत का लक्ष्य

एनीमिया के सभी प्रकारों में सिकल सेल एनीमिया सबसे खतरनाक होता है. बीते साल (2023-24) के बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने कहा था कि सरकार साल 2047 तक एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन के तहत काम करेगी. ‘एनीमिया’ एक ऐसी बीमारी जिसमें पीड़ित व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है.

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‘खून की कमी’ से ग्रस्त व्यक्तियों के भविष्य में गंभीर बिमारियों के चपेट में आने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. एनीमिया के कारण व्यक्ति को थकान, चिड़चिड़ापन जैसी समस्यायों से गुजरना पड़ता है. देश के अलग-अलग राज्यों में एनीमिया पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ने के कारण, सरकार इसके नियंत्रण के लिए एक बार फिर प्रयास में लग गयी है. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, प्रजनन आयु वर्ग की वे महिलाएं जिनका हीमोग्लोबिन स्तर 12 ग्राम प्रति डेसीलीटर (जी/डीएल) से कम है तथा पांच साल से कम उम्र के जिन बच्चों में हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम/डीएल से कम है, उन्हें एनीमिक माना जाता है. बिहार भी उन राज्यों में शामिल है जहां एनीमिया ग्रस्त लोगों की संख्या काफी ज्यादा है.

एनीमिया मुक्त भारत

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) और NFHS-4 के आंकड़ों को देखने पर यह सााफ पता चलता है कि  बिहार में एनीमिया ग्रस्त लोगों की संख्या बढ़ी है. NFHS-4 के समय जहां 6 से 59 महीने के 63.5% बच्चे एनीमिया से ग्रस्त थे, वहीं NFHS-5 में यह आंकड़ा बढ़कर 69.4% हो गया है. इनमें लगभग 64% बच्चियां हैं.

15 से 19 साल की किशोरियों में यह आंकड़ा 65.7% है जबकि NFHS-4 के समय यह आंकड़ा 61% था. वहीं व्यस्क महिलाओं (15 से 49 वर्ष) में यह आंकड़ा 63.5% का है जो NFHS-4 के समय 60.3% था. ऐसा नहीं है कि केवल महिलाओं में ही एनीमिया की शिकायत पाई जा रही है बल्कि पुरुष भी एनीमिया से ग्रस्त पाएं जा रहे हैं. राज्य में लगभग 15 से 49 वर्ष के 30% पुरुष एनीमिया से ग्रस्त पाए गये हैं. वहीं 15 से 19 वर्ष के पुरुष युवा में यह आंकड़ा 35% तक का है.

आयुर्वेद पद्धति से एनीमिया पर लगेगी रोकथाम  

आयुष मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एनीमिया उन्मूलन के नये प्रयासों के लिए एक साझा प्रयास शुरू किया है. 26 फरवरी, को दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए "मिशन उत्कर्ष” कार्यक्रम में केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की उपस्थिति में इसकी शुरुआत की गयी है. इस कार्यक्रम के तहत देश के पांच राज्यों में आयुर्वेद उपचार का उपयोग कर किशोर और किशोरियों में “एनीमिया नियंत्रण" का प्रयास किया जाएगा.

यह अभियान बिहार सहित देश के पांच राज्यों झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में चलाया जाएगा. वहीं पहले चरण में पांचो राज्यों के एनीमिया ग्रस्त जिलों में यह अभियान चलेगा. बिहार के जमुई, झाझा, चंपारण, कटिहार, मुंगेर और कैमूर समेत कई आदिवासी क्षेत्रों में मंत्रालय ज्यादा फोकस करने वाला है.

किशोर युवाओं के लिए चलाए जा रहे अभियान

दुनिया भर में एनीमिया का सबसे आम कारण पोषक तत्वों की कमी है. भारत में एनीमिया के लगभग आधे मामलों का कारण, आयरन और विटामिन बी 9 (फोलेट) एवं बी12 का अपर्याप्त सेवन है. जिसके लिए भारत सरकार ने साल 2018 में एनीमिया मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत राष्ट्रीय आयरन प्लस (NIPI) कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रति वर्ष एनीमिया की गिरावट दर को 1% से बढ़ाकर 3% तक करना है. 

इसके अलावा किशोर लड़कों और लड़कियों को साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां (WIFS) दिये जाने का प्रावधान किया गया है, जिससे एनीमिया के उच्च प्रसार को रोका जा सके. साथ ही कृमि संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये एल्बेंडाजोल (Albendazole) के साथ द्विवार्षिक कृमिनाशक दवा दी जाती है. क्योंकि परजीवी संक्रमण के कारण आवश्यक पोषक तत्वों का ह्रास हो सकता है जिसके कारण, एनीमिया हो सकता है. यही कारण है कि ‘डी-वर्मिंग टैबलेट्स’ को मौजूदा लौह और फोलिक एसिड अनुपूरक कार्यक्रमों के तहत वितरित किया जाता है.

किशोर लड़कों और लड़कियों को एनीमिया

गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष अभियान

लखीसराय जिले की रामचंद्रपुर गांव की रहने वाली 24 वर्षीय ब्यूटी कुमारी अपने तीसरे बच्चे के जन्म के बाद काफी कमजोर रहने लगी हैं. पहले दो बच्चों के समय ‘खून की कमी’ हो जाने के कारण ब्यूटी को काफी परेशानियां उठानी पड़ी थीं. शरीर में खून की कमी के कारण उन्हें प्रसव से पहले खून चढ़ाना पड़ा था.

डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत के दौरान ब्यूटी बताती हैं "जब मैं दसवी कक्षा में थी तभी मेरी शादी हो गयी थी. शादी के अगले ही साल मेरी बेटी का जन्म हुआ. प्रसव के दौरान डॉक्टर ने खून की कमी बताया और घरवालों से खून का इंतजाम करने को कहा. घरवालों ने किसी तरह खून का इंतजाम किया जिसके बाद ऑपरेशन हो सका. प्रसव के बाद भी लगभग छह महीनों तक कमजोरी बनी रही थी."

ब्यूटी की मां का कहना है कि प्रेगनेंसी के दौरान अपने खान-पान पर ध्यान नहीं देने के कारण उन्हें कमजोरी हो गयी थी. अक्सर घरों में महिलाओं की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को सबसे कम प्राथमिकता दी जाती है. अधिकांश परिवारों में महिलाएं पुरुषों और बच्चों के बाद भोजन करती हैं. ऐसे में उन्हें पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं हो पता है, जिसके कारण अंततः वह पोषण संबंधी बीमारियों की शिकार हो जाती हैं.

मां का कुपोषित होना

बच्चों व महिलाओं में कुपोषण कम करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, दिसंबर 2017 से पोषण अभियान चला रहा है. इस अभियान के तहत तीन वर्षों में शून्य से 6 साल के बच्चों में बौनापन (स्टंटिंग) व कम वजन के मामलों में 6% की कमी, 6 से 59 माह के बच्चों में एनीमिया में 9% की कमी, 15-59 साल की महिलाओं में एनीमिया के मामलों में 9% की कमी लाने और जन्म के वक्त नवजात का वजन सामान्य से कम होने के मामलों को 6% कम करने का लक्ष्य रखा गया था.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार राज्य में 63.1 फीसदी गर्भवती महिलाएं एवं 69.4 फीसदी बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं. वहीं इसी आयु वर्ग की 63.6 फीसदी सामान्य महिलाएं कुपोषित हैं. छोटे बच्चों में कुपोषण का एक बड़ा कारण मां का कुपोषित होना है. बच्चों को स्तनपान कराने वाली मां का स्वस्थ व पूर्ण पोषित होना जरूरी है.

देशभर में कुपोषण को कम करने के लिए कई ज़रूरी क़दम उठाए जा रहे हैं. पोषण अभियान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का एक मुख्य अंग है. इसी के तहत पोषण माह, पोषण जन आंदोलन, पोषण पखवाड़ा जैसे कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. देशभर के आंगनबाड़ी केंद्रों पर महीने के किसी एक दिन स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बच्चों, महिलाओं और अन्य लोगों को बुलाती हैं और आंगनबाड़ी केंद्र पर एएनएम इन्हें स्वास्थ और पोषण से जुड़ी जानकारी देती हैं.

प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षा अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के मामलों का पता लगाने और इलाज करने के लिये हर महीने की 9 तारीख को विशेष एएनसी जांच अभियान चलाया जाता है. साथ ही एनीमिया के गंभीर मामलों से निपटने के लिये जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में रक्तकोष भंडारण (Blood Bank) कि स्थापना की गयी है.

एनीमिक और गंभीर रूप से एनीमिक गर्भवती महिलाओं की रिपोर्टिंग एवं ट्रैकिंग के लिये स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली तथा मदर चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम भी लागू किया गया है.

हालांकि इन सभी योजनाओं का लाभ आमजनों तक तभी पहुंच सकता है, जब योजना को समाज के निचले पायदान तक पहुंचाने वाले कारक सक्रिय हों. हाल के दिनों में आंगनवाड़ी, आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं द्वारा देशभर में समय-समय पर वेतन मानदेय को लेकर आंदोलन और धरना प्रदर्शन किए गए हैं. जिसके कारण इन संस्थाओं द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं लंबे समय तक लक्षित समूह तक नहीं पहुंच सकी थी.

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