फाइलेरिया की दवा खाने से बच्चे बीमार, सरकार नहीं दे रही ध्यान

बिहार: राज्य के अलग-अलग जिलों में फाइलेरिया उन्मूलन प्रोग्राम के तहत खिलायी जाने वाली दवा से स्कूली बच्चे बीमार हो रहे हैं. लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई कारवाई नहीं की गयी है.

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फाइलेरिया की दवा खाने से बच्चे बीमार

फाइलेरिया की दवा खाने से बच्चे बीमार, सरकार नहीं दे रही ध्यान

बक्सर जिले के चिलबिला मध्य विद्यालय इटाढ़ी में फाइलेरिया की दवा 'अल्बेंडाजोल' खाने से 40 बच्चे बीमार हो गए. एक-एक करके दवा पीये सभी बच्चे दस्त करने के साथ बेहोश होने लगे. जिसके बाद स्कूल प्रशासन में हडकंप मच गया.आननफानन में ग्रामीणों की मदद से सभी बच्चों को अलग-अलग नज़दीकी अस्पताल में ले जाया गया. बक्सर जिले के जिला अस्पताल में भी बच्चों को भर्ती किया गया, जहां बेड की संख्या कम होने के कारण एक ही बेड पर पांच-पांच बच्चों का इलाज करना पड़ा. 

इतनी संख्या में स्कूली बच्चों की तबियत बिगड़ने की सूचना मिलने से जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग में भी हड़कंप मच गया. साथ ही बच्चों के परिजन भी परेशान हो गए.

तबियत ख़राब होने की जानकारी के बाद भी नहीं आए स्वास्थ्यकर्मी 

बक्सर जिले की स्थानीय मीडिया 'दी जनमित्र' के अनुसार स्वास्थ्य विभाग के कर्मी और आशा कार्यकर्ता चिलबिला मध्य विद्यालय इटाढ़ी में पहुंचकर फाइलेरिया की दवा अल्बेंडाजोल बच्चों को पिला रहे थे. दवा देने के बाद आशा कार्यकर्ता स्कूल से चली गयीं. दवा पीने के कुछ समय बाद ही बच्चे दस्त करने लगे और बेहोश होने लगे. बच्चों की तबियत खराब होने की सूचना स्कूल प्रशासन ने आशा कार्यकर्ता को दी लेकिन वह बच्चों को देखने नहीं आईं.

स्कूल प्रशासन ने ग्रामीणों की मदद से 12 बच्चों को गंभीर हालत में बक्सर सदर अस्पताल में भर्ती कराया. वहीं अन्य बच्चों को इटाढ़ी पीएचसी में भर्ती कराया गया. 

क्या कहते हैं शिक्षक?

दी जनमित्र को स्कूल प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार “स्वास्थ्य विभाग के द्वारा आई टीम बच्चों को अलमेंडा जोल और फाइलेरिया की दवा पिलाकर बिना प्रतीक्षा किए ही स्कूल से निकल गई. कुछ ही देर बाद बच्चों के सिर और पेट में दर्द शुरू हो गया और बच्चे दस्त करने लगे. ग्रामीणों के सहयोग से हम लोग उनको अस्पताल में भर्ती कराये है, जहां उनका इलाज चल रहा है. जिले के सबसे बड़े सदर अस्पताल में बेड के अभाव में एक बेड पर पांच-पांच बच्चों को लेटाकर इलाज किया जा रहा है."

सदर अस्पताल के डॉक्टर योगेंद्र प्रसाद ने बताया कि बच्चे फिलहाल खतरे से बाहर हैं. अभी तक सदर अस्पताल आने वाले बच्चों की संख्या 12 है.

विशेषज्ञों का कहना है कि फाइलेरिया की दावा खाली पेट नहीं लेनी चहिए. ख़ाली पेट दवा खाने से गैस के साथ पेट में दर्द हो सकता है. वहीं किसी किसी को दस्त भी हो सकता है. इसलिए दवा देने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को बच्चे को पहले कुछ खाने को कहना चाहिए.

दवा पीने के बाद बच्चे हो रहे बीमार 

चिलबिली की घटना से दो दिन पहले 20 सितम्बर को समस्तीपुर जिले के दलसिंहसराय के प्राथमिक विद्यालय लोकनाथपुर में 35 बच्चे फाइलेरिया की दवा खाने से बीमार हो गए थे. सभी बच्चों को आनन-फानन में स्थानीय लोगों ने इलाज के लिए अनुमंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया था.

वहीं  21 सितम्बर को पूर्णिया जिले में अल्बेंडाजोल खाने से लगभग 40 बच्चे बीमार हुए थे. जिन्हें इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बैसा में भर्ती कराया  गया था. इलाज के बाद बच्चों की तबियत में सुधार हुआ.   

वहीं अल्बेंडाजोल खाने से खुसरुपुर प्रखंड के मोसिमपुर पंचायत के बच्चों की तबियत भी खराब हो गयी थी. 23 सितम्बर को प्राथमिक विद्यालय शफीपुर में बच्चों को अल्बेंडाजोल पिलाई गयी थी. दवा पीने के बाद बच्चे दस्त करने लगे. जिसके बाद स्कूल प्रशासन ने खुसरुपुर पीएचसी और थाने को सूचना दी. पीएचसी से एम्बुलेंस आने के बाद बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. दवा खाने से यहां  नौ बच्चे बीमार हो गए थे. 

इन सभी मामलों की शुरुआत एमडीए  (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) प्रोग्राम के शुरू होने के बाद से हुई है. दरअसल राज्य में 20 सितम्बर से फाइलेरिया उन्मूलन अभियान एमडीए की शुरुआत की गयी थी. जिसके  तहत राज्य के 11 जिलों भोजपुर, बक्सर, नालंदा, नवादा, पूर्णिया, दरभंगा, लखीसराय, रोहतास, समस्तीपुर और पटना में फाइलेरिया की दवा खिलायी जानी है. भोजपुर, बक्सर, नालंदा, नवादा, पूर्णिया और पटना में फाइलेरिया रोकथाम के लिए डीईसी और अल्बेंडाजोल खिलाया जाना है  जबकि लखीसराय, रोहतास, समस्तीपुर और दरभंगा में फाइलेरिया रोधी तीन प्रकार की दवाएं डीईसी, अल्बेंडाजोल और आइवरमेक्टिन दिया जाना है. 

राज्य में फाइलेरिया उन्मूलन के लिए 6 अक्टूबर तक स्वास्थ्य केन्द्रों और स्कूल में कैंप लगाकर स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा दवा खिलाया जाना है. इसबार 3.67 करोड़ लोगों को दवा खिलाने का लक्ष्य रखा गया है.            

वहीं राज्य में लोगों को जागरूक करने के लिए बिहार सरकार अभिनेता मनोज वाजपेयी और चर्चित शिक्षक खान सर को एमडीए प्रोग्राम का एम्बेसडर बनाई है. साथ ही 120 कॉलेज को भी प्रोग्राम की सफलता के लिए जोड़ा है.

भारत में फाइलेरिया के लगभग 7.50 लाख मरीज हैं. बिहार, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, केरल और तमिलनाडु में फाइलेरिया से ग्रस्त मरीजों की संख्या ज़्यादा है. देश के 86% मरीज इन राज्यों से आते हैं. बिहार फाइलेरिय ग्रस्त राज्यों में सबसे ऊंचे पायदान पर आता है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन  की  2011 के रिपोर्ट के अनुसार पुरे देश में फाइलेरिया से ग्रस्त मरीजों का 17% बिहार में हैं. 

भारत वैश्विक लक्ष्य 2030 से, तीन साल पहले यानि 2027 में फाइलेरिया से मुक्त होंना चाहता है. ऐसे में राज्य सरकार को एमडीए प्रोग्राम की सफलता के लिए बेहद सजग होना होगा. क्योंकि बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों में दावा खाने से बच्चों का बीमार होना, लोगों के मन में दवा के प्रति आशंका को जन्म दे सकता है.

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