भारत में मानसून के दौरान यानि जून से सितम्बर के बीच लगभग 80 फीसदी बारिश होती है. इस दौरान नदियां उफान पर होती हैं और तेज बारिश का दबाव शहरों में नालों के ऊपर होता है. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में नालों से भारी मात्रा में बरसाती पानी और शहरी अपशिष्ट बहकर आते है. जिसे सोधित करने की क्षमता और समय प्लांट्स के पास नहीं होती है. दबाव में प्लांट्स इस दौरान अपशिष्ट जल को सीधे नदियों में छोड़ देते हैं.
इस मानसून राजधानी दिल्ली समेत देश के कई शहर पानी में डूबे नजर आए. मानसून में शहरों के जलमग्न होने का दोष सीधे अत्यधिक वर्षा को दे दिया जाता है. लेकिन सरकार अपनी तैयारियों का हिसाब कभी नहीं देती है.
अक्टूबर 2019 में बिहार की राजधानी पटना में हुए जलभराव के दृश्य आज भी मानसून आते ताजा हो जाते हैं. क्योकि पांच सालों में भी ज्यादा कुछ बदलाव नहीं आया है. बीते दिनों ही दो घंटे की बारिश में शहर के नीचले इलाकों में घुटने भर पानी जमा हो गया. पटना नगर निगम दावा करती है की दो घंटे में जल निकासी किया जा रहा है लेकिन ऐसा होता नहीं है.
हालांकि निगम के दावे पर ध्यान दिया जाए तो क्या इन दो घंटों में नालों द्वारा निकलने वाले पानी को शोधित किया जा रहा होगा? इसका जवाब तो सरल है, नहीं. कारण, शहर में जलभराव की स्थिति में पानी के शोधन से ज्यादा आवश्यक उसका निकास है. अगर शहर में स्थित जल शोधन इकाईयों पर ध्यान दिया जाए तो इनकी क्षमता ऐसी नहीं है जो एकसाथ इतने पानी को शोधित कर सकें.
एसटीपी का नहीं हुआ निर्माण
नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों में बिना शोधित जल को गिराए जाने में कमी लाना है. जिसके लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और सीवेज नेटवर्क का निर्माण किया जाना आवश्यक है. एसटीपी का काम नदियों में सीधे गिरने वाले अपशिष्ट जल को शोधित कर नदियों में प्रवाहित करना हैं.
राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ मिशन के तहत 6217.2 MLD जल को शोधित करने वाले एसटीपी बनांये जाने है लेकिन जुलाई 2024 तक 3244 MLD जल शोधन की क्षमता वाले एसटीपी ही स्थापित किये जा सके हैं.
वही एसटीपी तक शहरों से निकलने वाला अपशिष्ट जल पहुंच सके इसके लिए नालों का इनसे जोड़ा जाना भी आवश्यक है. मिशन के तहत 5282 kms सीवेज नेटवर्क बनाया जाना है लेकिन जुलाई 2024 तक 4529 kms नेटवर्क ही बनाए जा सके.
योजना के तहत बिहार में 757MLD की क्षमता वाले एसटीपी लगाए जाने हैं लेकिन अबतक 304 MLD की क्षमता वाले एसटीपी ही लगाए जा सके हैं. बिहार उन पांच राज्यों में शामिल है जहां से गंगा बहती है. राज्य में गंगा और उसकी सहायक नदियां 27 जिलों से होकर गुजरती हैं.
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड की रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार राज्य में गंगा और उसकी 21 सहायक नदियों का पानी नहाने लायक भी नहीं है. कारण है नदी किनारे बसे शहरों से निकलने वाले प्रदूषित जल का लगातार नदियों में गिराया जाना.
सेंट्रल पॉल्यूसन कंट्रोल बोर्ड द्वरा मार्च 2024 में जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में गंगा नदी में फेकल कॉलीफॉर्म (एफसी) की मात्रा 35000 एमपीएन/100 एमएल तक पायी गई है. जबकि कुल कॉलिफोर्म 54000 एमपीएन/100 एमएल तक पाई गयी है.
जबकि नदियों या उन जैसे खुले पानी के श्रोतों में, नहाने के पानी में फेकल कॉलीफॉर्म (एफसी) 2500 एमपीएन/100 एमएल से कम होनी चाहिए.
पटना में स्थिति खराब
राजधानी पटना में रोजाना 700 MLD से ज्यादा सीवेज पानी निकलता है. जिसे बिना किसी उपचार के गंगा नदी में बहाया जा रहा है. कारण शहर में नमामि गंगे परियोजना के तहत लगे छह एसटीपी प्लांट जिनकी क्षमता 350 MLD है, अपनी क्षमता के अनुरूप काम नहीं कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त दीघा और कंकड़बाग में बन रहे दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का काम दो सालों बाद भी पूरा नहीं हो सका है.
दीघा एसटीपी की क्षमता 100 MLD जबकि कंकड़बाग एसटीपी की क्षमता 50 MLD है. इन दोनों परियोजनाओं की लागत 1187.86 करोड रुपए है.
एसटीपी के निर्माण की जिम्मेदारी बिहार शहरी ढ़ांचा विकास निगम लिमिटेड (BUIDCO) को दी गयी थी. 30 दिसंबर 2019 को दोनों प्रोजेक्ट शुरू किए गए जिसे 29 अगस्त 2022 तक पूरा कर लेना था. लेकिन समय पर यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका, जिसके चलते इन दोनों क्षेत्रों के 51,056 मकानों व घरों का गंदा पानी सीधे विभिन्न नालो से होते हुए रोजाना गंगा नदी में गिर रहा है.
बरसात से पहले केवल दीघा के जनार्दन घाट में ही रोजाना डेढ़ सौ करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा नदी में बहाया जा रहा है, जो बरसात के दौरान बढ़कर 300 करोड़ लीटर प्रतिदिन तक पहुंच गया है.
लक्ष्य से काफी पीछे
अप्रैल 2024 में जारी रिपोर्ट के अनुसार दोनों एसटीपी तय प्रोजेक्ट लक्ष्य से काफी पीछे चल रहे हैं जबकि दोनों प्लांट दिसंबर 2022 में पूरा होने वाले थे. दीघा एसटीपी सीवेज नेटवर्क 303 किलोमीटर में बनाया जाना है लेकिन अब तक मात्र 126 किलोमीटर का ही काम हो सका है. वहीं कंकड़बाग कंकड़बाग एसटीपी सीवरेज नेटवर्क डेढ़ सौ किलोमीटर में बिछाई जानी है लेकिन अब तक 54.08 किलोमीटर का ही निर्माण हो सका है.
दीघा एसटीपी से इलाके के 3,22,48 घरों को 3,22,460 मी लंबे सीवर पाइपलाइन कनेक्शन से जोड़ा जाना है. लेकिन अबतक 30,369 घरों तक 3,22,460 मी सीवर पाइपलाइन बिछाए गये हैं. वहीं राइजिंग मेन दीघा मेनहोल 5.696 किलोमीटर में बनाया जाना है लेकिन अब तक दो किलोमीटर का काम ही हो सका है. वहीं इलाके में 11,314 मेनहोल बनाये जाने हैं है लेकिन अबतक मात्र 4,105 मेनहोल ही बनाए जा सके.
कंकड़बाग क्षेत्र में भी 18,808 घरों को 1,88,080 मीटर लंबे है सीवेज नेटवर्क के माध्यम से एसटीपी से जोड़ा जाना है. लेकिन अबतक मात्र 1,122 घरों को 14,387 मीटर सीवेज पाइपलाइन से जोड़ा गया है. वहीं सीवरेज नेटवर्क से लेकर घरों को सीवेज लाइन को जोड़ने और मेनहौल बनाने का काम बड़े स्तर पर बाकी है. इस क्षेत्र में 5219 मेनहोल बनाये जाने हैं जिसमें 3,527 अब तक नहीं बन सके हैं.
दीघा और कंकड़बाग एसटीपी के अलावा पहाड़ी जोन-5 मलजल निकासी नेटवर्क और उपचार संयंत्र, करमालीचक मलजल निकासी नेटवर्क, बेउर मलजल निकासी नेटवर्क और सैदपुर मलजल निकासी नेटवर्क का निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है.
बीते वर्ष नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में पटना में कार्यरत एसटीपी की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा था,“पटना में एसटीपी की अपशिष्ट उपचार क्षमता अपर्याप्त है. वहीं छह एसटीपी और उनके नेटवर्क के नालों का काम अधूरा है. जबकि बिहार शहरी ढांचा विकास निगम (बुडको) को इन सभी परियोजनाओं की पूरी लागत 3288.69 करोड़ रुपए दिए गए थे.”
ऐसे में सवाल उठता है सरकार ऐसे विभागों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करती है जो फंड रहने पर भी योजनाओं को तय समय पर पूरा नहीं कर पाती है?