सुपर स्पेशियलिटी का दर्जा प्राप्त अस्पताल में मरीज इस उम्मीद में आते हैं कि उन्हें संबंधित बीमारी का ईलाज बेहतर मिलेगा. अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य जांच की सेवा और दवाइयां मुफ्त या किफायती दरों पर प्राप्त होंगी. लेकिन आयकर गोलंबर स्थित न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल जिसे सुपर स्पेशियलिटी का दर्जा प्राप्त है, में केवल पांच डॉक्टर मौजूद हैं.
पहले यह अस्पताल शहरी स्वास्थ्य केंद्र के तौर पर संचालित था लेकिन बाद में इसे एंडोक्राइन के लिए सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का दर्जा दे दिया गया. इसके अलावा यहां हीमोफिलिया, नेफ्रोलॉजी, डायबीटीज और थायराइड जैसी बिमारियों का भी इलाज किया जाता है.
अस्पताल में हीमोफिलिया, ड्रोकाइन और जनरल मेडिसिन के लिए ओपीडी की भी व्यवस्था है. सुबह-शाम दो शिफ्ट में ओपीडी में मरीजों को देखा जाता है जिसमें रोजाना लगभग 600 मरीज आते हैं. यहां बच्चों के लिए मॉडल टीकाकेंद्र भी बनाया गया है. साथ ही कई तरह के पैथोलॉजिकल और एक्स-रे जांच मुफ्त में उपलब्ध है.
लेकिन उपलब्ध संसाधनों के क्रियान्वयन के लिए मानवबल की कमी के कारण मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.
मरीज को नहीं मील रही सुविधा
कंकड़बाग के आदर्श कॉलोनी की रहने वाली 30 वर्षीय पूजा कुमारी पेट दर्द और कमर दर्द का इलाज कराने अस्पताल पहुंची थी. प्रारंभिक जांच के बाद डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाइयां और जांच लिखा. उन्हें एक्स-रे और सोनोग्राफी कराने की सलाह दी गई. अस्पताल से कुछ दवाइयां उन्हें मुफ्त में दी गयी हैं और कुछ बाहर से लेने को कहा गया है. वहीं एक्स-रे जांच के लिए अगले दिन बुलाया गया.
पूजा कुमारी कहती हैं “मैडम बोली यहां सोनोग्राफी नहीं होता है. वो हमकों बाहर करवाना पड़ेगा. एक दो दवाई अस्पताल से मिला है बाकी बाहर से खरीदना पड़ेगा.”
बातचीत के दौरान पूजा ने कहा अब वे अपना इलाज पीएमसीएच में केवल इस उम्मीद में करवाएंगी ताकि सोनोग्राफी जैसा मंहगा जांच मुफ्त में हो सके.
बुद्धा कॉलोनी की रहने वाली सुचित्रा देवी घुटने में दर्द और सांस फूलने की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंची थी. दर्द की दवा के साथ डॉक्टर ने उन्हें एंजियोग्राफी जांच कराने की सलाह दी. इस जांच की सुविधा भी अस्पताल में उपलब्ध नहीं थी.
सुचित्रा देवी ने बताया “दवा और जांच लिखी है, मैडम. सीधी चढ़ने में सांस फूलता है. इसलिए कुछ टेस्ट कराना होगा. हार्ट पेशेंट हैं इसलिए सोच रहे हैं आईजीआईएमएस या अच्छा अस्पताल में दिखा लें.”
अस्पताल में सोनोग्राफी जांच पीछले पांच महीनों से बंद क्योंकि रेडियोलॉजिस्ट नहीं है. सामान्य तौर पर सोनोग्राफी यानि अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल गर्भवस्था में जांच के लिए किया जाता है. इसके अलावा इसका उपयोग प्रजनन अंगों की जांच, पेट संबंधी बीमारियों, हृदय रोग और स्तन कैंसर जैसे रोगों की जांच के लिए किया जाता है. जो काफी आवश्यक और मंहगी होती है. मज़बूरी में मरीज प्राइवेट जांच घरों में जांच करवाते हैं या दूसरे अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं.
एंडोक्राइन के लिए सुपर स्पेशियलिटी का दर्जा प्राप्त होने के बाद भी अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजिस्ट की कमी है. इसके अलावा नेफ्रोलॉजिस्ट, डायलिसिस टेक्नीशियन और ड्रेसर भी उपलब्ध नहीं है. अस्पताल में किडनी के मरीजों के लिए पांच डायलिसिस मशीनों की व्यवस्था कि गयी है. लेकिन इसे संचालित करने के लिए डॉक्टर और टेक्नीशियन नहीं है. इनकी अनुपस्थिति में सीनियर नर्स डायलिसिस का काम देख रही हैं.
सरकारी अस्पतालों में उपकरणों की कमी के कारण गरीब मरीजों को ज्यादा खर्च कर निजी अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ता है.
बिहार के सरकारी अस्पतालों में जांच उपकरणों और उसके विशेषज्ञों की स्थति पर कैग ने मार्च 2022 में जारी रिपोर्ट में कहा था कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में 67 फीसदी से 74 फीसदी तक डायग्नोस्टिक सेवाओं की कमी हैं. जिसके कारण गरीब और मजबूर लोगों कों मज़बूरी में प्राइवेट संस्थानों में जांच करवाना पड़ता है.
बड़े सरकारी अस्पतालों पर बढ़ता दबाव
क्षेत्रीय और सदर अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी मरीजों को शहर के चुनिंदा सरकारी अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर करती है. यही कारण रहता है कि उन अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लगी रहती है और उन्हें भर्ती करने के लिए बेड और कमरों की कमी बनी रहती है. मरीजों के दबाव का एक कारण आबादी के हिसाब से अस्पतालों की कमी होना भी एक है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) की वर्ष 2019-20 के ग्रामीण स्वास्थ्य स्थिति रिपोर्ट (रूरल हेल्थ स्टेटस) के मुताबिक राज्य में सरकारी अस्पतालों की संख्या वर्ष 2005 में 12,086 थी जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या बढ़ने के बदले घटकर 10,871 रह गयी. मानकों के अनुसार आबादी के अनुरूप बिहार में 25,772 सरकारी अस्पताल होने चाहिए.
बिहार के जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के 36 फीसदी और अनुमंडल अस्पतालों में 66 फीसदी पद खाली थे. जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत 1872 पदों में से 1206 पदों पर नियुक्ति हुई थी और 688 पद खाली थे. जबकि अनुमंडल अस्पतालों में 1595 स्वीकृत पदों में से 547 पदों पर ही पदों पर नियुक्ति हुई थी. यह आंकड़े केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स के हैं.
इसके मुताबिक राज्य के जिला और अनुमंडल अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ के भी आधे से अधिक पद खाली हैं. जिला अस्पतालों में 8208 स्वीकृत पदों में से 3020 और अनुमंडल अस्पतालों में 4400 पदों में से 1056 पैरामेडिकल स्टाफ कार्यरत थे. वहीं बिहार के ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या के हिसाब से 53 फीसदी स्वास्थ्य उपकेन्द्र, 47 फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 66 फीसदी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी बताई गयी थी.
मीडिया में दिए बयान में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा है कि “जिन अस्पतालों में मानव बल कि कमी के कारण जांच या अन्य सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं, उनकी सूचि बनाने का निर्देश दिया गया है. जल्द ही रिक्त पदों पर नियुक्तियां होंगी. इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.”
अगर स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति सदर अस्पतालों से लेकर, ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों तक पूरी कर दी जाती तो जाहिर है लोगों को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता. हालांकि अक्सर नेताओं के बयान या वादे फाइलों में बंद होकर रह जाते हैं जो अक्सर चुनावी मौसम में दुबारा बाहर आते हैं.