भारत की आज़ादी को 78 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज भी कुशल श्रमिकों की समस्याएं कम होती नहीं दिख रही हैं। बिहार के कई जिलों में निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा डायल 102 ठप पड़ी है। दरभंगा, जहानाबाद, जमुई और अन्य जिलों में सेवा बंद है।
पटना में 7 अगस्त से चालक और टेक्नीशियन हड़ताल पर हैं।
वरुण पिछले कई सालों से एम्बुलेंस चालक का काम कर रहे हैं। उनका एक बच्चा है, जो एक निजी स्कूल में पढ़ता हैं लेकिन पिछले 5 महीने से उन्हें वेतन नहीं मिला, जिसके कारण उन्हें अपने बच्चे का नाम स्कूल से कटवाना पड़ा। पटना में निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा डायल 102 के चालक वरुण से जब हमने बात की, तो उन्होंने अपने दर्द को व्यक्त करते हुए बहुत कुछ बताया।
वरुण बताते हैं, "हम लोग लोगों की सेवा करते हैं और बदले में हमें वेतन नहीं मिलता। परेशानी का सबब वे क्या जानेंगे जिनके घर में बच्चे और बीवी नहीं हैं। उनके पास दो नंबर का पैसा होता है, तो वे बच्चों को पढ़ा लेते हैं, लेकिन वेतन नहीं मिलने के कारण मुझे मजबूरन अपने बच्चे का नाम स्कूल से कटवाना पड़ा। 12-12 घंटे हमसे काम कराया जाता है, उसके बावजूद हमारा वेतन काट लिया जाता है।"
102 एम्बुलेंस में विवादों का इतिहास काफ़ी पुराना है।
हर साल कोई न कोई समस्या को लेकर चालक और टेक्नीशियन प्रदर्शन करते रहते हैं। हड़ताल के कारण मरीजों को काफ़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जिलों में एम्बुलेंस ठप है, और मरीज बड़ी मशक्कत के बाद अस्पताल पहुंच रहे हैं। पटना जिले में निशुल्क एंबुलेंस सेवा डायल 102 की हड़ताल को 6 दिन हो गए हैं, जिससे मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। चालक और टेक्नीशियन 7 अगस्त से हड़ताल पर हैं।
पटना जिले के एम्बुलेंस चालक जितेश बताते हैं कि, "बिहार में मुफ़्त एम्बुलेंस सेवा का संचालन पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड और पटना का सम्मान फाउंडेशन मिलकर करते हैं। जब जुलाई में इन संस्थाओं को संचालन का जिम्मा दिया गया, तो उसके बाद 12 अगस्त 2017 को 102 एम्बुलेंस वाहनों को मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दिखाई। यह सेवा 102 नंबर से संचालित होती है। इस सेवा में गर्भवती महिला, नवजात शिशु, वरिष्ठ नागरिक, दुर्घटना पीड़ित, बीपीएल कार्डधारी, कालाजार के मरीज और राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत रेफर हुए शिशुओं को मुफ़्त सेवा दी जाती है। लेकिन निजी कंपनी हमें काफ़ी परेशान करती है और समय पर पैसे भी नहीं दिए जाते हैं।"
जितेश आगे बताते हैं,
"स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने पिछले साल मई में वादा किया था कि श्रम कानूनों को सही तरीके से लागू किया जाएगा, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं बदला है। राज्य में 102 सेवा के लगभग 1100 एम्बुलेंस मुफ़्त में चलती हैं, जिनमें 2 ड्राइवर और 2 इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ईएमटी) होते हैं, जो दिन में 12 घंटे की ड्यूटी करते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने निजी एजेंसी को ठेका दे दिया है, जो इन ड्राइवरों और ईएमटी को वेतन देती है और एम्बुलेंस के रखरखाव का ध्यान रखती है, लेकिन वादा पूरा नहीं हो रहा है। हमें श्रम कानून के अनुसार सही तरीके से वेतन नहीं मिल रहा है।"
बेगूसराय में 102 एंबुलेंस चालकों ने किया प्रदर्शन
अपनी विभिन्न मांगों को लेकर जोरदार एंबुलेंसकर्मियों ने बेगूसराय में विरोध प्रदर्शन किया। जुलूस निकालकर अस्पताल परिसर में प्रदर्शन किया। गौरतलब है कि पिछले पांच जून से 102 एंबुलेंस चालक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर अपनी मांगों को लेकर बैठे हुए थे, लेकिन इस पर किसी पदाधिकारी ने अमल नहीं किया। इसी से नाराज़ होकर 102 एंबुलेंस चालक बैनर पोस्टर लगाकर बिहार सरकार के खिलाफ़ जमकर विरोध प्रदर्शन किया था।
बेगूसराय के एम्बुलेंस चालक बताते हैं, "किसी भी तरह की गलती होने पर हमारा वेतन काट लिया जाता है और महीनों तक वेतन नहीं आता। हमें श्रम अधिनियम के तहत भी वेतन नहीं मिलता। हमें 7000-8000 रुपये महीने के दिए जाते हैं, जिसमें से भी कभी-कभी काट लिया जाता है। हमारा घर चलाना मुश्किल हो जाता है, और बच्चों की सही से पढ़ाई नहीं हो पाती। हमारी मुख्य मांग है कि बिहार सरकार श्रम अधिनियम के तहत संचालक एजेंसी से हमें सरकारी सभी सुविधाएं दे।"
चालक आगे बताते हैं, "हमारी गाड़ी के एक्सीडेंट के समय संस्था की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती है। 102 एम्बुलेंस चालकों का शोषण किया जाता है, उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता और 12 घंटे काम लिया जाता है, जबकि वेतन महज 300 रुपये प्रतिदिन है।"
जमुई में भी चालकों और टेक्निशियनों का हड़ताल जारी है। अपने सात सूत्री मांगों को लेकर जिले के सभी 102 एंबुलेंस कर्मचारी हड़ताल पर हैं। बिहार राज्य चिकित्सा कर्मचारी संघ के जिलाध्यक्ष राजीव कुमार सिंह बताते हैं, "1/06/2023 को पशुपति नाथ डिस्ट्रीब्यूटर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा श्रम अधिनियम के तहत कुशल श्रमिक का वेतन भुगतान करने का लिखित रूप से आश्वासन दिया गया था, लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक कुशल श्रमिक के वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। इसके साथ ही तीन माह से हम लोगों के वेतन का भी भुगतान नहीं किया गया है।"
कुशल श्रमिक को मिल रहा है अकुशल श्रमिक से भी कम वेतन
बिहार में न्यूनतम और अधिकतम मजदूरी के निर्धारण का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह लाखों श्रमिकों की आर्थिक स्थिति को सीधे प्रभावित करता है। बिहार सरकार समय-समय पर विभिन्न श्रेणियों के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दरों को अधिसूचित करती है, ताकि श्रमिकों को उनके श्रम का उचित मूल्य मिल सके और उनकी जीवन-यापन की स्थिति में सुधार हो सके।
सरकार ने श्रमिकों की पांच श्रेणियों - अकुशल, अर्धकुशल, कुशल, अत्यधिक कुशल और लिपिकीय श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी की दर निर्धारित की है। बिहार सरकार के न्यूनतम मजदूरी 2024 के अनुसार अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर वर्तमान में लगभग 395 रुपये प्रति दिन है, जबकि अर्धकुशल श्रमिकों के लिए यह दर 411 रुपये प्रति दिन है। कुशल श्रमिकों के लिए यह दर 500 रुपये प्रति दिन है। अत्यधिक कुशल श्रमिकों के लिए 611 रुपये प्रतिदिन और लिपिकीय कार्य करने वाले कर्मियों को प्रतिमाह 11,317 रुपये मिलते हैं।
बिहार में न्यूनतम मजदूरी के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ भी हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती है, मजदूरी दरों का सही तरीके से पालन न होना। असंगठित क्षेत्र में कई बार श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पाती है। इसके अलावा, कई श्रमिकों को श्रम कानूनों की जानकारी नहीं होती, जिसके कारण वे अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं रहते।
पटना जिले के एक टेक्नीशियन अमित (बदला हुआ नाम) बताते हैं, "हम पूरे दिन मेहनत करते हैं, पसीना बहाते हैं और फिर भी हमें वेतन समय पर नहीं दिया जाता। हमें न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन मिलता है। हम सब कुशल श्रमिक हैं और हमें 300 रुपये प्रतिदिन से भी कम के हिसाब से पैसा मिलता है, जिसके कारण हमें अपना घर चलाने में भी दिक्कत होती है।"
जब हमने पशुपति नाथ डिस्ट्रीब्यूटर प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारी से बात की, तो उन्होंने बताया कि समस्या का समाधान जल्द से जल्द किया जाएगा इसके साथ ही कंपनी ने अपने टेक्नीशियन और चालकों को वेतन भेज दिया है, परंतु अभी भी पूरे महीने का वेतन नहीं मिला है, जिसके कारण चालक और टेक्नीशियन में नाराज़गी बनी हुई है।