बिस्फी में महाकवि विद्यापति की जन्मस्थली जर्जर, सरकार को नहीं है ध्यान

महाकवि विद्यापति के जन्मस्थली का जीर्णोधार, बिहार के चौथे मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने 1964 में करवाया था. लगभग एक एकड़ में फैले इस स्मारक स्थल के अंदर लाइब्रेरी और हॉल बनाया गया है.

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पल्लवी कुमारी
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महाकवि विद्यापति

महाकवि विद्यापति

आज की युवा पीढ़ी के लिए  मिथिलांचल की पहचान केवल मिथिला पेंटिंग या मैथिली भाषा(Maithili language) भर रह गयी है. हाल के वर्षों में मखाना की पहचान सुपर फूड के तौर पर होने से भी मिथिलांचल के क्षेत्र की लोकप्रियता बढ़ी है. दरअसल, भारत का 90 फीसदी मखाना बिहार में होता है. वह भी बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, सीतामढ़ी, अररिया, कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज का क्षेत्र मखाने की खेती के लिए विख्यात हैं.

ऐसे भी कहा जाता है कि मिथिला के पग-पग (हर छोटी दूरी) पर पोखर, मछली और मखाना मिल जाता है. पान-मखान के लिए चर्चित मिथिलांचल का क्षेत्र अपनी कला संस्कृति और अनूठे रीती रिवाजों के लिए भी चर्चित है. हिन्दू धर्म में प्रचलित संस्कारों (जन्मोत्सव, जनेऊ, विद्या और विवाह संस्कार मुख्य हैं) में गाए जाने वाले गीत, बारहमासा गीत, मधुबनी पेंटिंग (लिखिया चित्र),और गीत-संगीत इस क्षेत्र की प्रचलित परंपरा रही हैं.

पान-मखान, माछ-दही, पाग-दोपट्टा, जनेउ-सुपारी समेत कई ऐसे प्रतिक चिन्ह है जो इस क्षेत्र की पहचान रही है. अगर मिथिला के साहित्यिक पहचान की बात कि जाए तो यह भी काफी समृद्ध रही है. कुमारिल भट्ट, विद्यापति, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, वाचास्पति मिश्र, नागार्जुन, कुमारिल भट्ट जैसे महान कवियों ने इस क्षेत्र का नाम विश्वभर में ऊंचा किया है. लेकिन समय के साथ सरकार और समाज की साहित्यिक उदासीनता ने इन कवियों और लेखकों को इतिहास में भुला दिया है. आज हम इस लेख में ‘मैथिल कोकिल’ के रूप में पहचाने जाने वाले महान कवि विद्यापति ठाकुर की चर्चा करेंगे. कैसे इस महाकवि की जन्मस्थली सरकारी उपेक्षा के कारण जर्जर अवस्था में पहुंच गई है.

मधुबनी जिले के बिस्फी में हुआ जन्म

महाकवि विद्यापति का जन्म मधुबनी जिले के बिस्फी गांव में चौदहवीं शताब्दी में हुआ था. मैथिल ब्राह्मण परिवार से आनेवाले विद्यापति के पूर्वज भी महान विद्वान्, शास्त्रज्ञ, राजनीतिज्ञ और धर्मशास्त्री थे.विद्यवानों के परिवार से आने वाले विद्यापति ने बाल्यावस्था से ही काव्य रचना करना प्रारंभ कर दिया था.

महाकवि विद्यापति गेट

विद्यापति के पिता गणपति ठाकुर राजा गणेश्वर के राजपुरोहित थे. ऐसा कहा जाता है कि बाल्यवस्था से ही विद्यापति अपने पिता के साथ राजदरबार जाया करते थे.एक दिन राजा गणेश्वर के पुत्र राजा शिवसिंह के कहने पर विद्यापति ने तत्काल एक पंक्ति कि रचना करते हुए लिखा था “पोखरी रजोखरी अरु सब पोखरा, राजा शिवसिंह अरु सब छोकरा.” ऐसा माना जाता है कि उस समय उनकी उम्र आठ वर्ष के करीब रही होगी.

आगे चलकर विद्यापति राजा शिवसिंह और उनकी मृत्यु के बाद कीर्तिसिंह के दरबारी कवि बने. विद्यापति ने अपने जीवन काल में 16 रचनाएं की थी, जिनमें 13 संस्कृत, 1 मैथिलि और 2 अवहट्ट भाषा में रचे गये थे.

भाषा की दृष्टि से इन्होंने संस्कृत, अवहट्ठ और मैथिली भाषा में काव्य-रचना की है. इनमें शैव सर्वस्व सार, गंगा वाक्यावली, दुर्गाभक्त तरंगिणी, भू परिक्रमा, दान-वाक्यावली, पुरुष परीक्षा, विभाग सार, लिखनावली और गया पत्तलक-वर्ण कृत्य संस्कृत में है, जबकि कीर्तिलता (भृंग-भृंगी संवाद के रूप में कीर्तिसिंह की वीरता का वर्णन) और कीर्तिपताका (शिवसिंह की वीरता और उदारता का वर्णन) अवहट्ठ भाषा में है.‘गोरक्ष विजय’ गद्य-पद्य युक्त ग्रन्थ है जिसका गद्य भाग संस्कृत और पद्य भाग मैथिल में है. मैथिल भाषा में रची गई ‘पदावली’ के कारण इन्हें मैथिली भाषा का शेक्सपियर भी कहा जाता है.

खंडहर में तब्दील हो गई विद्यापति की जन्मस्थली 

विद्यापति की जन्मस्थली, बिस्फी गांव (Bisfi village) में लगभग एक एकड़ के क्षेत्र में स्मारक स्थल बनाया गया है. स्थानीय लोगों के अनुसार इस  स्मृति स्थल का जीर्णोधार बिहार के चौथे मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने 1964 में करवाया था. लेकिन उसके बाद सरकार ने कभी भी इसके उच्च स्तरीय रख रखाव या इसे पर्यटन क्षेत्र के तौर पर विकसित करने की ओर ध्यान नहीं दिया. कहा जाता है बिस्फी गांव राजा शिवसिंह ने विद्यापति को उपहार स्वरूप भेंट में दिया था. हालांकि आज इस गांव में विद्यापति के परिवार से कोई नहीं रहता हैं.

बिस्फी गांव में स्मारक स्थल
बिस्फी गांव में स्मारक स्थल

लगभग एक एकड़ में फैले इस स्मारक स्थल के अंदर विद्यापति स्मारक लाइब्रेरी और हॉल बनाया गया है. लेकिन, हैरानी की बात है कि इस लाइब्रेरी में एक भी किताब मौजूद नहीं है. वहीं किताबों के लिए लगाई गयी आलमारी दीमक से खराब हो चुकी है. जबकि होना तो यह चाहिए था कि इस लाइब्रेरी में विद्यापति द्वारा लिखित सभी पुस्तकें उपलब्ध रहे.

स्मारक स्थल के अन्दर एक बड़े हॉल का निर्माण भी किया गया है जिसके अंदर विद्यापति कि मूर्ति, सेवक बने उगना महादेव की मूर्ति बनाई गयी है. स्थानीय लोग इस बड़े हॉल का इस्तेमाल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए करते हैं. लेकिन रखरखाव के अभाव में हॉल जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है. हॉल की छत जगह-जगह से गिर रही है, कमरे में मकड़ी के जाले लगे हुए हैं. वेंटिलेशन के लिए बनाई गई खिड़की पर जंगली पौधे उग गये हैं.

इस स्मृति स्थल के अंदर एक तालाब भी मौजूद हुआ करता था. यहां प्रचलित कहानियों के अनुसार विद्यापति के घर से होते हुए एक सुरंग तालाब तक पहुंचती थी. घर की महिलाएं इस सुरंग का इस्तेमाल तालाब तक पहुंचने के लिए किया करती थीं. सुरंग के अवशेष आज भी इस कैम्पस में मौजूद हैं. जबकि तालाब के नाम पर केवल एक गढ्ढा मौजूद है. 

कब मिलेगा बिस्फी को पर्यटन स्थल का दर्जा 

विद्यापति कि स्मृति को जीवित रखने और जनमानस तक उनकी रचनाओं को पहुंचाने के लिए साल 1683 में विद्यापति सांस्कृतिक मंच की स्थापना की गई थी. इस मंच के स्मृति चिन्ह आज भी भवन में देखे जा सकते हैं. हालांकि यह समिति अपने उद्देश्यों को पूरा करने में पूरी तरह सफल नहीं हो सकी है. आज यहां की स्थानीय युवा पीढ़ी भी इस महान कवि को नहीं जानती है.

विद्यापति के जन्मस्थली की जर्जर अवस्था

विद्यापति के जन्मस्थली की जर्जर अवस्था का कारण क्या है इसकी जानकारी के लिए हमने विद्यापति सांस्कृतिक मंच से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो सकी है.

पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व कल्चरल सेक्रेटरी और मधुबनी जिले के रहने वाले प्रतिमेष कर्ण कहते हैं “विद्यापति को मैथिली भाषा का कालिदास कहा जाता है. लेकिन विद्यापति से संबंधित यहां एक भी किताब मौजूद नहीं है. आज दुनिया शेक्सपियर को इसलिए जानती है क्योंकि उनकी रचनाओं को सरकार ने सहेज कर रखा है. जबकि विद्यापति द्वारा लिखित पुस्तकें उनकी ही जन्मस्थली पर मौजूद नहीं है.”

प्रतिमेष आगे कहते हैं “जब भी बिस्फी में असेंबली चुनाव होने वाले होते हैं, सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही यहां के विकास की बात करते हैं. लेकिन चुनाव के बाद वापस, सब ठंडे बस्ते में चला जाता है. मैथिलि भाषा के विकास में विद्यापति के योगदान को सरकार सहेजने में विफल रही है.”

बिस्फी को पर्यटन केंद्र का दर्जा दिए जाने की बात साल 2019 में उठी थी. हालांकि चुनाव खत्म होते ही बिस्फी के विकास के लिए किए गये वादे भी समाप्त हो गए. हो सकता है, हालिया चुनाव में एक बार फिर यहां की जनता बिस्फी के विकास की उम्मीद राजनीतिक पार्टियों लगायें. लेकिन राज्य में कई ऐतिहासिक स्थलों को जर्जर स्थिति सरकार की विफलता उजागर करने के लिए काफी है. 

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