मैं एक जॉइंट फैमिली में पहली बड़ी हूं, जहां मेरे साथ और 5 भाई-बहन बड़े हुए हैं. इसमें से तीन भाई-बहन बड़े थे और अपने आप को होशियार समझते थे, जिसमें मैं भी शामिल थी हालांकि हम होशियार थे नहीं. हमारी होशियारी की सोच बस घर की चहारदीवारी के अंदर तक सिमटी हुई थी. दरअसल जब हम छोटे थे तब हम भाई-बहनों के लिए छोटी-छोटी कुर्सियां लाई गई थी. मेरी बहन बड़ी थी तो उसके लिए बड़ी कुर्सी लाई गई थी. दीदी को इस बड़ी कुर्सी का बड़ा गुमान था. वह अपने कुर्सी कभी भी छोड़ कर जाती तो उसे एक एहसास रहता कि उसकी कुर्सी बड़े होने के कारण हम उसपर कोई नहीं बैठेगा. कहीं ना कहीं उसे इस बात का भी घमंड था. मगर वह यह नहीं जानती थी कि धीरे-धीरे हम सब भी बड़े होंगे और हमारी कुर्सी छोटी होगी, तो हमारा मोह बड़ी कुर्सी पर जरूर जाएगा. जब हम बड़े हुए तब हमने दीदी की गैरमौजूदगी में उसकी कुर्सी पर बैठना शुरू कर दिया. दीदी जब भी आती तो हम उसपर से उतर जाते थे. इस दौरान कभी वह हमें देख भी लेती तो हमारे बीच बहुत झगड़ा होता था. कुर्सी की लड़ाई बचपन में काफी चली, जब मैं बड़ी हुई तब मुझे पता लगा की कुर्सी की लड़ाई सिर्फ हम बच्चों में नहीं बल्कि बड़े और पढ़े-लिखे लोगों के बीच भी है और उनके बीच यह लड़ाई और ज्यादा है.
हाल के दिनों में ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक प्राइवेट स्कूल में प्रिंसिपल को जबरदस्ती कुर्सी से हटाया जा रहा है. 5-10 लोग प्रिंसिपल को जबरदस्ती कुर्सी से हटाकर दूसरे प्रिंसिपल को उसपर बैठाते हैं और तालियां बजाते हैं. तालियों की गड़गड़ाहट से रूम तो भर जाता है मगर किसके साथ एक संदेश देता है कि कुर्सी की लड़ाई स्कूलों में भी है. बचपन से लेकर स्कूल तक, स्कूल से लेकर सीएम और पीएम तक इस कुर्सी की लड़ाई से अछूते नहीं रहे हैं.
5 जूलाई को कुर्सी का यह मोह झारखंड में भी देखने मिला, जहां पांच महीनों तक सीएम हेमंत सोरेन ( Hemant Soren ) अपने कुर्सी से दूर रहने के बाद उसे वापस उसे पाने में कामयाब रहे. इस कुर्सी को वापस पाने के लिए हेमंत सोरेन ने झारखंड से लेकर दिल्ली तक हाथ-पैर मारा था. इस लंबी कोशिका का फल उन्हें तो मिल गया मगर 5 महीनों के दौरान जिन हाथों में झारखंड की कमान थी उसके हाथ कुछ नहीं लगा. हेमंत सोरेन के साथ-साथ पूरे गठबंधन ने चंपई सोरेन को चाय में पड़ी मक्खी की तरह किनारे कर दिया है. हालांकि अभी झारखंड में फ्लोर टेस्ट होना बाकी है, मगर उससे भी हेमंत सोरेन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सत्ता उनके हाथों में साफ नजर आ रही है.
हेमंत सोरेन के अलावा एक और सीएम कुर्सी के मोह में हैं अरविन्द केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ), लेकिन इन्होंने जेल में रहते हुए भी अपनी कुर्सी से इस्तीफा नहीं दिया. देश की राजधानी दिल्ली जहां से पूरे देश को चलाया जाता है वहां की सरकार जेल में बैठकर चलाई जा रही है. गिरफ्तारी के बाद भी सीएम ने अपने कुर्सी मोंह को नहीं त्यागा और अब भी जेल-अदालत के बीच घूमते हुए सरकार चला रहे हैं.
एक सीएम के कुर्सी प्रेम पूरे जग में जाहिर है. बिहार में यह देखा जाता है कि साल बदल जाते हैं, चुनाव पर चुनाव खत्म होते जाते हैं, पार्टियां बदल जाती है, वोटर बदल जाते हैं मगर सीएम चेहरा नहीं बदलता. अब तो यहां के किताबों में यह परमानेंट छप गया है कि बिहार की सीएम कुर्सी पर सिर्फ एक ही चेहरा बना रहेगा. आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी इसी चेहरे पर दावेदारी होगी और अगर कोई दूसरी पार्टी चुनाव में जीत भी जाती है तो यहां के सीएम फिर एक बार पलटी मार लेंगे.
देश की राजधानी में एक और बड़ी कुर्सी मौजूद है, जिसका मोंह इन सब से ऊपर है. इस कुर्सी पर तीसरी बार बैठने के लिए पीएम ने खूब पापड़ बेले है. लोकसभा चुनाव में भले हिबा का मार्जिन से जीते हो लेकिन इस जीत को हासिल करने और पीएम कुर्सी को पाने के लिए पार्टी ने किस-किस से हाथ नहीं मिलाया. इन सबके कुर्सी प्रेम को देखकर अब मुझे अपने उस छोटे कुर्सी की याद आती है जिसपर मैं भी कभी बड़े आस्वस्त होकर बैठा करती थी, मगर अब वह कुर्सी मुझे छोटी होती है. मेरी तरह ऐसे ही एक दिन सत्ता की कुर्सी भी किसी नेता को छोटी लगेगी क्या?