2 अक्टूबर को बिहार सरकार ने सभी जाति के लिए जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए थे. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले ही एक अर्जी दाखिल की गई थी. जिसमें कहा गया था कि जातीय जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. और इस पर रोक लगाने की भी मांग की गई थी.
आज इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी भी राज्य सरकार का काम नहीं रोक सकते. इसके साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी कर 4 महीने के अंदर जवाब देने को कहा है.
निजता और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
जिसके बाद एक एनजीओ ने जाति पूछे जाने पर निजता के उल्लंघन और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. हालांकि, हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए गणना को मंजूरी दी थी.
बिहार सरकार ने यह जनगणना अपने स्तर पर कराई थी. जिस पर केंद्र ने आपत्ति जताई और तर्क दिया था कि जनगणना कराने और उससे जुड़े हर फैसले लेने का अधिकार केवल केंद्र के पास है.
राज्य में किस जाति की आबादी ज्यादा
लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जारी किए गए. इस जाति सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01%, पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12% और सामान्य वर्ग की आबादी 15.5% है. राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 19.65% और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.68% है. जातीय जनगणना को लेकर बिहार सरकार ने तर्क दिया था, कि इस सर्वे से पता चल जाएगा कि राज्य में किसकी आबादी ज्यादा है और उसी के मुताबिक राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी.