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समस्तीपुर के बिथान ब्लॉक में रहने वाले रामबिलास राय, 56 वर्षीय किसान हैं. धान और गेहूं की खेती करते हैं. पिछले साल बाढ़ में धान की पूरी फसल बर्बाद हो गई.
"बीज उधार लिया, खाद उधार लिया... जब फसल गई तो पैसा कहां से लौटाएं?"
रामबिलास ने पहले सहकारी बैंक से ₹40,000 का ऋण लिया था, फिर बकाया चुकाने के लिए गांव के महाजन से 5% मासिक ब्याज पर ₹20,000 उधार लिया. अब वह पैसा ब्याज सहित ₹48,000 हो गया है, और महाजन ने उनके 1 बीघा खेत की फसल पर कब्ज़ा कर लिया.
"धान नहीं बोते, तो घर में भूख. बोते हैं, तो कर्ज़ में डूबते हैं." उनकी आवाज़ में थकावट नहीं, हार का अजीब सा सन्नाटा था.
“बैंक से लोन मिले, उससे पहले 3 बार आवेदन वापस लौटा”
गढ़वा, झारखंड के लातेहार सीमा पर, बुधनी देवी महिला किसान हैं. उनके पास 3 बीघा ज़मीन है. पिछले साल उन्होंने बैंक से ₹25,000 लोन मांगा — लेकिन ‘रेजिडेंशियल प्रूफ’, गारंटर, और नक्शा जैसी शर्तें पूरी न होने से लोन रिजेक्ट हो गया.
“बैंक कहता है सरकारी ज़मीन पर खेती कर रहे हो. अरे सरकार से ही तो पट्टा मिला है 15 साल पहले!”
बुधनी देवी को अंत में मंडी में बिचौलिए से ₹18,000 का उधार लेना पड़ा, 4% मासिक ब्याज पर. अब वो कहती हैं, “धान बोते हैं, लेकिन पैसा ब्याज का उगता है.”
“फसल बीमा है, लेकिन पैसा नहीं आया”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के अरुण पाल 2022 में फसल बीमा योजना से जुड़े थे. उसी साल सूखा पड़ा और धान की फसल आधी भी नहीं निकली. उन्होंने दावा किया — लेकिन पैसे नहीं आए.
“बीमा एजेंट कहता है सर्वे नहीं हुआ. बैंक कहता है रिकॉर्ड नहीं मिला. हम किससे लड़ें?”
अखिल भारतीय किसान महासंघ के अनुसार, 2021-22 में उत्तर प्रदेश के 38% किसानों को फसल बीमा की क्लेम राशि नहीं मिली, जबकि प्रीमियम सरकार और किसान दोनों ने समय पर दिया था.
"खेती में मुनाफा नहीं, बस कर्ज़ है"
NABARD की 2023 रिपोर्ट के अनुसार:
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एक औसत भारतीय किसान की मासिक खेती आय मात्र ₹8,189 है, जबकि
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औसत ऋण बोझ ₹74,121 प्रति किसान है
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53% किसान गैर-संस्थागत स्रोतों (महाजन, साहूकार) से कर्ज़ लेते हैं
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बिहार और झारखंड में यह आंकड़ा 67% से ऊपर है
सच्चाई यह है कि खेती अब लाभ का नहीं, कर्ज़ और नुकसान का सौदा बन चुकी है.
"ब्याज चुकाने के लिए बेटी की शादी टाल दी"
मुजफ्फरपुर के मीनापुर में रहने वाले हरिनारायण साह ने ₹60,000 कर्ज़ लिया था — बैंक और महाजन मिलाकर.
“ध्यान से चुका रहे थे. लेकिन एक साल फसल नहीं हुई. ब्याज जुड़ता गया. अब ₹96,000 हो गया है.”
हरिनारायण की बेटी की शादी इसी साल तय थी, लेकिन अब टल गई है.
"शादी क्या कराएं, पहले साहूकार का मुंह तो बंद हो. रोज़ घर आता है, अपमान करता है."
“ब्याज समझ नहीं आता, लेकिन डर बहुत आता है”
जमुई (बिहार) के पंचानन मंडल, एक सीमांत किसान हैं. उनकी ज़मीन बहुत कम है — कुल डेढ़ बीघा. लेकिन उन्होंने साहूकार से ₹15,000 लिए थे 4% ब्याज पर.
जब उन्होंने 3 महीने बाद ₹3,000 चुकाए, तो महाजन बोला — "अभी भी ₹16,800 बाकी है."
“हमने पूछा कैसे? तो बोला — ब्याज जुड़ता रहा.” पंचानन बताते हैं कि उन्हें ‘चक्रवृद्धि ब्याज’ समझ में नहीं आता. "जितना समय बीतता है, कर्ज़ उतना बढ़ता जाता है." अब उन्होंने कर्ज चुकाने के लिए अपनी गाय बेच दी.
ब्याज का चक्र, किसान का फंसना
कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि गांवों में किसान अक्सर मासिक ब्याज दर 3%–5% पर उधार लेते हैं, जबकि साल के अंत तक यह 36%–60% तक पहुंच जाता है.
उदाहरण:
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₹20,000 का कर्ज
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4% मासिक ब्याज → ₹800 प्रति माह
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एक साल में ब्याज = ₹9,600
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अगर मूलधन नहीं चुका सके, तो अगले साल कुल बकाया = ₹29,600
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ब्याज अब उस पर भी लगेगा = चक्रवृद्धि ब्याज
यह गणित किसानों को बिना जाने, बिना समझे एक अंतहीन कर्ज़ में धकेलता है.
“धान मंडी में ₹1,400 बिका, MSP था ₹2,040”
सीतामढ़ी के सुरेश यादव बताते हैं कि उन्होंने पिछले साल 30 क्विंटल धान बेचा. MSP ₹2,040 था, लेकिन मंडी में ₹1,400 ही मिला. “MSP तो टीवी में दिखता है, असल में व्यापारी वही देगा जो उसका मन.”
सरकारी खरीद केंद्र तक किसान की पहुंच नहीं होती. NSSO के अनुसार, बिहार के 81% किसान खुले बाजार में उपज बेचते हैं, जहां उन्हें MSP से 25% कम दाम मिलता है.
जब आय कम और कर्ज़ का बोझ ज्यादा हो — तो ब्याज ही असली फसल बन जाता है.
आत्महत्या की चुप आवाज़ें
NCRB की रिपोर्ट 2023 बताती है:
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किसान आत्महत्याओं में 78% मामले ‘कर्ज़ और आर्थिक दबाव’ से जुड़े हैं
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इनमें से 56% आत्महत्याएं छोटे और सीमांत किसानों ने की
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2022 में झारखंड में 392 और बिहार में 506 किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन इनमें से 60% को “non-agricultural cause” बताया गया — जिससे मुआवज़ा देने से सरकार बच जाती है
सच्चाई यह है कि किसान कभी खेत में नहीं मरता, वो चुपचाप घर के कोने में मर जाता है.
सरकार के वादे और किसानों की हकीकत
PM Kisan सम्मान निधि
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₹6,000 सालाना — यानी ₹500 प्रति माह
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सिर्फ 53% किसानों को इसका फायदा मिला (RTI, 2023)
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कई सीमांत किसानों के खाते में 'KYC नहीं' दिखाकर पैसा रोका गया
कर्ज़ माफी योजनाएं
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2021 में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब ने आंशिक कर्ज़ माफी की
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लेकिन आंकड़े बताते हैं: “कर्ज़ माफी के अगले साल, नया कर्ज़ और अधिक ब्याज पर लिया गया.”
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ब्याज को माफ़ नहीं किया गया — केवल मूलधन को
क्या कोई समाधान है?
जब समस्या ज़मीनी हो, तो समाधान भी ज़मीन से ही आना चाहिए. किसानों को कर्ज़ के इस दलदल से निकालने के लिए केवल मुआवज़ा या कर्ज़माफी काफी नहीं, संरचनात्मक सुधार ज़रूरी हैं.
सहकारी बैंकों की पहुंच बढ़ाई जाए
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ज़्यादा गांवों में बैंकिंग आउटलेट
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आसान दस्तावेज़, बिना गारंटर के सीमांत किसानों को लोन
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ब्याज की पारदर्शी गणना और SMS-based अपडेट
गैर-संस्थागत कर्ज़ पर कानूनी नियंत्रण
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साहूकारों को पंचायत स्तर पर रजिस्टर किया जाए
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ब्याज की अधिकतम सीमा तय हो
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ग्राम न्यायालयों के माध्यम से विवाद का हल
फसल बीमा प्रणाली में सुधार
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मोबाइल ऐप के ज़रिए किसान खुद क्लेम करें
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GPS आधारित फसल सर्वेक्षण
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TAT (Turnaround Time) तय हो — क्लेम 30 दिन में निपटें
MSP को लागू करने की जवाबदेही
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पंचायत स्तर पर सरकारी खरीद केंद्र
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MSP पर कम खरीद करने वाले जिलों की सूची सार्वजनिक हो
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महिला किसानों को भी पंजीकरण की स्वतंत्र सुविधा मिले
"खुद तो डूबे ही, दूसरों को बचाना शुरू किया"
दुमका (झारखंड) के पवन चौधरी खुद किसान हैं, और 2 बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके हैं. अब वो गांव के युवाओं को ‘कर्ज़-प्रबंधन और फसल लागत कैलकुलेशन’ सिखाते हैं.
“हमारी गलती थी कि हम हिसाब नहीं रखते थे. अब हर किसान को एक डायरी दे रहे हैं — कब क्या खरीदा, कितना ब्याज, कितना भुगतान.”
पवन ने गांव में एक सामूहिक भंडारण केंद्र शुरू किया है. वहां किसान फसल स्टोर कर के सही वक्त पर बेच सकते हैं — ताकि MSP से कम पर न जाए.
मिट्टी वही है, लेकिन बोझ और डर ज़्यादा है
भारत का किसान अब भी मिट्टी से प्रेम करता है, लेकिन मिट्टी अब उसे ब्याज में दबोच लेती है.
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धान अब फसल नहीं, एक जुआ बन गया है.
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खेती अब आजीविका नहीं, संघर्ष की कहानी है.
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और किसान अब केवल अन्नदाता नहीं, ऋणदाता का गुलाम बन गया है.
अगर देश को सच में आत्मनिर्भर बनाना है, तो खेती को ब्याज मुक्त, जोखिम-मुक्त और सम्मानपूर्ण पेशा बनाना ही होगा.
नहीं तो — हर साल फसल के साथ किसान भी सूखता रहेगा, और हम सिर्फ खबरें पढ़ते रहेंगे: “धान बोया था, लेकिन ब्याज उगा.”