DAP खाद की किल्लत, ब्लैक में खरीदने को मजबूर किसान

साल 2022 में सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे लेकिन किसान आंदोलन के कारण सरकार को उसे वापस लेना पड़ा. लेकिन किसानों को खेती से दूर करने के उसी मनसूबे के साथ ही सरकार ने वर्ष 2024 में खाद की सब्सिडी में 87,339 करोड़ रुपए की कटौती की थी.

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खेत में खाद डालते हुए किसान

बिहार के पटना जिले के पोठही प्रखंड के मरांची गांव के रहने वाले किसान कुणाल कुमार खाद की कमी के कारण रबी फसल की बुआई में आने वाली समस्याओं पर बात करते हुए कहते हैं. बिहार समेत देश के कई राज्यों के किसान अक्टूबर महीने से ही खाद की किल्लत का सामना कर रहे हैं. रबी सीजन के फसलों के बुआई का समय अब लगभग समाप्त होने के कगार पर हैं लेकिन बाजार में खाद उपलब्ध नहीं है. अगर समय पर किसानों को खाद नहीं मिला तो फसल उत्पादन प्रभावित होगा.

"रबी फसल के बुआई का समय बीतने वाला वाला है. लेकिन बाजार में कही भी मोटा खाद चाहे वह डीएपी हो या सल्फेट नहीं मिल रहा है. बीया (बीज) लगाने में बहुत दिक्कत हो रहा है. अगर कही ब्लैक में डीएपी मिल भी रहा है तो 1350 रुपए का बोरा 1900 रुपए में खरीदना पड़ रहा है.” 

 

कुणाल सिंह 15 बीघा में खेती कर रहे हैं. जिसमें 10 बीघा में गेहूं और बाकि में मसूर और चने की खेती कर रहे हैं. पर्याप्त मात्रा में खाद नहीं मिलने के कारण उन्होंने बीना खाद मिलाए ही बुआई कर दी है.

कुणाल कुमार आगे कहते हैं “हमारे क्षेत्र पोठही में डीएपी नहीं मिल रहा है. कही से पता चला गौरीचक-संपतचक के इलाके में मिल रहा है. वहां जाकर दो बोरा डीएपी खरीदकर लाए. पहले जहां कठ्ठा में दो किलो डीएपी डालते थे, इस बार एक किलो डालकर ही लगा दिए. कहीं 20-25 दिन बाद अगर पटवन के समय बाजार में डीएपी मिल गया तो उस समय डाल देंगे.”

किसानों का कहना है पूंजी वाले किसान जिनके पास साधन है वे इधर-उधर से खाद का इंतजाम कर लेते हैं. लेकिन छोटे किसानो को इससे काफी नुकसान उठाना पड़ता है.

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खाद में मिलावट की शिकायत

किसान खाद में मिलावट की शिकायत भी कर रहे हैं. एमआरपी से ज्यादा मूल्य देने के बाद भी किसानों को बढ़िया गुणवत्ता वाला खाद नहीं मिल पा रहा है. खाद में मिलावट होने के कारण फसल को मिलने वाला पोषण भी प्रभावित हो रहा है.

कुणाल कुमार कहते हैं “इस साल बाजार में नई-नई कंपनियों जैसे- नवरत्ना, एनपी और इफको का डीएपी मिल रहा हैं. जबकि हमलोग शुरू से पारस ब्रांड का डीएपी खरीदते आए हैं. उसकी क्वालिटी अच्छी रहती थी. अभी जो डीएपी मिल रहा है उसमें बालू और छोटे-छोटे पत्थर का मिलावट है.” 

बिहार के लाखों किसान एमआरपी से अधिक मूल्य देकर यूरिया, डीएपी, सल्फर और पोटाश खरीद रहे हैं. खाद की कालाबाजारी के कारण प्रत्येक साल डीएपी और यूरिया जैसे खादों का संकट किसानों के सामने  खड़ा हो जाता है.

मरांची गांव के ही किसान राहुल कुमार सिंह ने 2200 रुपए प्रति पैकेट के दर से दो बोरा डीएपी खरीदा है जबकि उन्हें आठ बोरा डीएपी की आवश्यकता थी. उन्होंने किसी तरह दो पैकेट डीएपी में आठ बीघा खेत में गेहूं की फसल लगाई है.

राहुल खाद में मिलावट की बात कहते हुए बताते हैं, “असली डीएपी का पहचान है कि अगर इसको हाथ पर लेकर फूंक दे तो पानी की तरह बह जाएगा लेकिन आजकल जो डीएपी मिलता है वो मिसरी के दाने की तरह फ़ैल जाता है. मिट्टी में मिलाने पर भी वह जल्दी गलता नहीं है.”

किसान बताते हैं कि एक कट्ठा में दो किलो यानि एक बीघा में 40 किलो डीएपी की जरुरत होती है. डीएपी डालने से स्वस्थ पौधा तैयार होता है, जिससे अच्छी फसल तैयार होती है. लेकिन खाद नहीं डालने के कारण फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

राहुल कुमार बताते हैं “पर्याप्त मात्रा में डीएपी नहीं डालने से मंजाई कम हो गया है. पहले जहां एक बीघा में 25 मन अनाज उपजता था, वह अब 12 से 15 मन हो गया है.”

हालांकि कृषि विभाग के उपनिदेशक राजेश कुमार का कहना है कि राज्य में खाद की कमी नहीं है. वही नकली खाद की शिकायत के बाद पालीगंज और दानापुर से सैम्पल लेकर जांच के लिए भेजा गया है.

बिहार में खाद की आवश्यकता और उपलब्धता

केंद्र सरकार की रसायन और उर्वरक मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर माह में बिहार को 80,000 मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता थी, लेकिन इसकी उपलब्धता महज 74967.5 मीट्रिक टन रही. यानि राज्य में आवश्यकता से 5032.3 मीट्रिक टन डीएपी की कमी रही.

खेत में खाद डालते हुए किसान

डीएपी के अलावे एनपीके और यूरिया की उपलब्धता भी आवश्यता से कम की गई है. आंकड़ों के अनुसार राज्य में 1,40,000 मीट्रिक टन एनपीके की आवश्यकता थी लेकिन उपलब्धता मात्र 70442.9 मीट्रिक टन ही की गई. वहीं बिहार को दो लाख मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता थी, लेकिन इसकी उपलब्धता 20,5131.99 मीट्रिक टन रही.

मांग और आपूर्ति के अलावे विक्रय के आंकड़े भी हैरान करने वाले हैं. एक तरफ जहां किसानों को पर्याप्त मात्र में खाद की आपूर्ति नहीं की जा रही है. प्रखंडों में खाद की उपलब्धता नहीं है. वही आपूर्ति और विक्रय में अंतर के आंकड़े कहते हैं कि विक्रय के बाद भी आपूर्ति की गई मात्रा शेष रह गई थी. जिसका मतलब है कि विक्रय केंद्र, स्टॉक में उपलब्ध खाद भी किसानों को नहीं देते हैं.

बिहार में इफको की यूरिया और डीएपी का वितरण पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी) करती है. साथ ही सहकारी समूह भी खाद विक्रय करती है. सरकार एक आधार कार्ड पर मात्र दो बोरा यूरिया या डीएपी देती है.

किसान नेता अशोक प्रसाद सिंह किसानों को खाद उपलब्धता में हो रही किल्लत पर कहते हैं, “साल 2022 में सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे लेकिन किसान आंदोलन के कारण सरकार को उसे वापस लेना पड़ा. लेकिन किसानों को खेती से दूर करने के उसी मनसूबे के साथ ही सरकार ने वर्ष 2024 में खाद की सब्सिडी में 87,339 करोड़ रुपए की कटौती की है.”

अशोक प्रसाद आगे कहते हैं, “सरकार एनपीके खाद पर कम और डीएपी पर ज्यादा सब्सिडी देती है. इसलिए चाहती है कि डीएपी का कम से कम उत्पादन हो, कम से कम आयात हो, कम से कम खपत हो ताकि उसे कम सब्सिडी देना पड़े. यही कारण है कि सरकार डीएपी अलॉट ही नहीं कर रही है.”

डीएपी के अलावे अन्य खादों का इस्तेमाल नहीं किये जाने के कारणों पर बात करते हुए अशोक प्रसाद कहते हैं “बिहार के किसान दोहरी मार झेल रहे है. पहले तो आवश्यकता से कम डीएपी की आपूर्ति की जा रही है. जिसके कारण 1350 रुपए का डीएपी 1800 से 2000 हजार रुपए में बिक रहा है. दूसरा यहां के किसान डीएपी के अलावा दूसरे खाद विकल्पों का इस्तेमाल करने को अभ्यस्त नहीं है.”

कॉर्पोरेट को मुनाफ़ा देना चाहती है सरकार- अशोक प्रसाद

किसान नेता अशोक प्रसाद कहते हैं “सरकार की योजना है कि देश के किसानों से खेत लेकर अंबानी और अडानी को दे दिया जाए. लेकिन उसके पास इतनी हिम्मत नहीं है कि लाल किला से यह घोषणा कर दे. यही कारण है कि वह खेती को घाटे का कारोबार बनाने का प्रयास कर रही है. खेती का लागत मूल्य लगातार बढ़ रहा है लेकिन उसके उपज का उचित दाम नहीं मिल रहा है. ताकि किसान मजबूर होकर खुद ही अपनी जमीन कॉरपोरेट को दे.”

खेती योग्य भूमि पर कॉर्पोरेट के बढ़ते दखल की ओर इशारा करते हुए अशोक प्रसाद कहते हैं, “मेरे छात्र जीवन में मेरे गांव में 20 से 25 जमीन का ऐसा टुकड़ा था जो एक एकड़ से लेकर पांच एकड़ का था. लेकिन आज मुश्किल से एक या दो जमीन बचा है जो एक एकड़ का है. आने वाले 20 वर्ष के बाद कोई जमीन एक कट्ठा या दो कठ्ठा से ज्यादा का नहीं होगा.”

किसान नेता कहते हैं कि, आने वाले दिनों में केवल दो प्रकार कि खेती ही हो सकेगी, एक कॉर्पोरेट और दूसरा कॉपरेटिव. कॉर्पोरेट खेती में कंपनी पांच सालों के लिए किसानों से जमीन लीज पर लेगी, और उन्हीं पांच सालों में वह खेत से दस साल जितना मुनाफा कमाने के लिए उसका दोहन करेगी, जिससे जमीन बंजर हो जाएगी.

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