बिहार आबादी के अनुसार देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है. बिहार हमेशा किसी न किसी सरकारी विफ़लता की वजह से चर्चा में बना रहता है. शैक्षणिक,आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन के बाद राज्य अब मौसम संबंधी परेशानियों का भी सामना करने लगा है. बिहार सरकार पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर सचेत नहीं है. जिस वजह से बिहार को हर मौसम में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. बिहार के किसान इन परेशानियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं.
पूरा देश इस समय भीषण गर्मी (Heatwave) की चपेट में है. बिहार भी इससे अछूता नहीं है. राज्य के अधिकांश जिलों में 40 डिग्री से ज़्यादा तापमान दर्ज किया जा रहा है. साल दर साल गर्मियों में बढ़ते तापमान और अत्यधिक भूजल के दोहन ने राज्य में भूजल (Groundwater) को न्यूनतम स्तर पर ला दिया है. जिससे आमजनों को दैनिक दिनचर्या तो दूर पीने का पानी बड़ी मुश्किलों से मिल पा रहा है.
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र के शोध प्रमुख और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक घोष ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि हालिया शोध बताते हैं कि आने वाले छह सालों यानी 2030 तक बिहार भीषण जल संकट का सामना कर सकता है. इस दौरान दक्षिण बिहार (South Bihar) का क्षेत्र जैसे- जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, जमुई, पटना और नवादा में पानी की समस्या विकराल हो सकती है.
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (Bihar Economic Survey Report) 2023-24 के अनुसार मानसून से पहले कई जिलों में भूजल स्तर 25 फीट से नीचे दर्ज किया गया है. नवादा में 30 फीट, तो 11 जिलों (11 districts of Bihar) मुंगेर- शेखपुरा में 28 फीट, पटना, गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, वैशाली, समस्तीपुर, लखीसराय, जमुई और भागलपुर में भूमि जल स्तर 26 फीट नीचे दर्ज किया गया है
राज्य में सिंचाई के साथ-साथ घरेलू और औद्योगिक उपयोग में भी भूजल का उपयोग काफ़ी किया जाता है. यहां 80% सिंचाई भूजल द्वारा की जाती है. भूजल पर बढ़ती निर्भरता और शहरों में बढ़ता दोहन, राज्य में गिरते भूजल स्तर का प्रमुख कारण बन गया है.
सरकारी प्रयास की विफ़लता
राज्य सरकार भूजल के दोहन को कम करने और ग्राउंड वाटर रिचार्ज बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. लेकिन इसके बाद भी ग्राउंड वाटर पर निर्भरता और उसका दोहन कम नहीं हुआ है. भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण आमजन पानी के लिए परेशान हैं. लगातर कई जिलों में पानी के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं.
आरा के वार्ड नंबर 33 के रहने वाले बमबम कुमार का परिवार भी पानी के लिए परेशान हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बमबम बताते हैं “हर साल गर्मी में यही परेशानी हैं. गर्मी की शुरुआत में ही घर का बोरिंग फेल हो जाता है. हमारे पुराने घर में चापाकल लगा है जिसके सहारे हमलोग काम चलाते हैं. दिन भर में तीन से चार बार हमलोग वहां से पानी भरकर लाते हैं.”
बमबम आगे कहते हैं “सरकार की नल जल योजना के तहत भी यहां कनेक्शन नहीं दिया गया है. एक जून को वोट से चार दिन पहले कुछ लोग आये थे. घर के सदस्यों का नाम और कितना नल लेना है, सब लिखकर ले गये. कहा गया चार दिन में कनेक्शन दे दिया जाएगा. लेकिन 15 दिन होने वाले हैं मोहल्ले में कनेक्शन नहीं मिला है. अगर कनेक्शन मिल गया होता तो शायद इतनी परेशानी नहीं होती.”
दरअसल आरा के वार्ड नंबर 33 में नल जल योजना का लाभ अबतक नहीं पहुंचा है. कनेक्शन देने के नाम पर एक-दो बार मोहल्ले वालों का नाम लिखकर ले जाया गया. एक बार पाइप बिछाने की भी शुरुआत हुई. लेकिन केवल सड़क में गड्ढा करकर छोड़ दिया गया. जिससे बरसात में लोगों को काफी समस्या उठानी पड़ रही है. डेमोक्रेटिक चरखा ने पिछले वर्ष भी इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग की थी. वहीं अगर नल-जल योजना इन मोहल्लों तक पहुंच जाती तो भूजल पर इनकी निर्भरता और उसका दोहन भी कम हो सकता था.
भूजल पर निर्भरता को कम करने के लिए चलाई जा रही योजना
बिहार सरकार आर्थिक सर्वेक्षण कि रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में सतही जल श्रोत प्रचुर संख्या में मौजूद थें. साल 2018-19 में पहली बार हुए जलाशयों की गणना के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 45,793 जलाशय मौजूद थें. इसमें से 95.7% जलाशय ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद थें. राज्य में सबसे अधिक 35,027 तालाब, 4221 टैंक, 2693 झील और 2126 जलाशय मौजूद थें.
वहीं दो सालों बाद ही इनकी संख्या घटकर 2127 रह गयी. राज्य में 2022 तक 968 नहर, 26 जलाशय, 776 चापाकल, 319 टैंक (आहर-पईन, तालाब, चेक डैम) और 38 लिफ्ट सिंचाई के श्रोत ही मौजूद हैं. जो समय-समय पर दक्षिण-पश्चिम मानसून और राज्य में मौजूद नदियों द्वारा समृद्ध होते रहते हैं.
लेकिन जब मानसून में पर्याप्त वर्षा ना हो या उस वर्षा जल का उचित संचयन ना हो तो जाहिर है जलाशय और ग्राउंड वाटर सूख जाएंगे.
राज्य सरकार जल संचयन के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. इसमें गंगा जल आपूर्ति योजना भी शामिल है. इसके तहत मानसून के दिनों में वर्षा जल का संचयन करने का लक्ष्य रखा गया है. जिसके लिए पटना जिले के मरांची गांव में प्लांट बनाया जाना है. जिसमें संचय किये गये वर्षा जल को संशोधित कर गया, बोधगया, नवादा और राजगीर जैसे जिलों में पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.
जल संचयन के लिए सरकार ताल डेवलपमेंट प्लान पर काम कर रही है. जिसके तहत पटना, नालंदा और लखीसराय में 108 किलोमीटर में तटबंध, 27 मेड़, 15 चेक डैम, 74 पईन की सफाई और 101 पुलिया का निर्माण किया जाना शामिल है.
इसके अलावा राज्य के अन्दर बहने वाली नदियों में पानी की प्रचुरता बनाये रखने के लिए अंतरराज्यीय नदी जोड़ो योजना भी चलाई जा रही है. जिसके तहत कोसी-मीची और गंडक-नून-बयान-गंगा को जोड़ा जाना है. कोसी-मीची इंटरलिंकिंग परियोजना को केंद्र सरकार से मंजूरी मिली हुई है. इससे कोसी घाटी में आये अतिरिक्त जल को महानंदा घाटी में पहुंचाया जायेगा. जिससे कोसी क्षेत्र को बाढ़ और कम पानी वाले क्षेत्रों को सूखे से निजात मिलेगी.
साल 2050 तक प्रति व्यक्ति 6.35 लाख लीटर पानी की उपलब्धता
भारत में भूजल का सर्वाधिक दोहन किया जाता है. यहां प्रति वर्ष 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग कर लिया जाता है, जोकि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उत्तर भारत जोकि गेहूं और चावल का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है, में 5,400 करोड़ क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष की दर से भूजल घट रहा है.
नीति आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में लगातार घटते भूजल के स्तर पर चिंता जताई है. उसके अनुसार वर्ष 2030 तक देश में कम होता भूजल स्तर सबसे बड़े संकट का रूप ले लेगी.
भारत में साल 2025 तक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1341 क्यूबिक मीटर/साल(Cu m/Yr) हो जाने की सम्भावना है जो साल 2050 तक 1140 क्यूबिक मीटर/साल(Cu m/Yr) ही रह जाएगी.
वहीं बिहार में साल 2025 तक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 10.60 लाख लीटर हो जाने की संभावना है. अगर भूजल का दोहन इसी तरह किया जाता रहा तो साल 2050 साल तक यह प्रति व्यक्ति 6.35 लाख लीटर ही रह जाएगा.
केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार बिहर की 99.74% आबादी पेयजल के रूप में भूजल का उपयोग करती है जबकि मात्र 0.26% आबादी ही शोधित सतही जल का उपयोग पीने के लिए करते है.
भूजल संचयन को बढ़ाने के लिए बरसात के पानी को आहर-पईन में रोकना होगा. इसके लिए आहर-पईन और तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करना होगा.
वहीं शहरों में वर्षा जल संचयन के लिए छत पर जमा होने वाले पानी को पाइप के माध्यम से वापस जमीन में डाल देने से शहरों में भी ग्राउंड वाटर रिचार्ज को बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए सरकार तमिलनाडू का उदाहरण ले सकती है, जहां वर्षा जल संचयन अनिवार्य किया गया है. चाहे वह निजी या सरकारी भवन ही क्यों ना हो. साथ ही सरकार ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए समय रहते उचित कानून बना सकती है ताकि भूजल का उपयोग समझदारी से हो.