शिक्षक नियुक्ति को लेकर जितना शोर बिहार में मचा है शायद ही किसी अन्य राज्य में हुआ हो. कई सालों के इंतजार और प्रदर्शन के बाद इस वर्ष राज्य में लाखों पदों पर शिक्षकों के लिए नियुक्तियां निकाली गयी. शिक्षक चयन प्रक्रिया में बदलाव करते हुए नियुक्ति परीक्षा बीपीएससी के माध्यम से आयोजित करवाई गयी, जिसमें बिहार समेत अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों को भी मौका दिया गया. भर्ती परीक्षा के बाद अंतिम रूप से एक लाख 20 हज़ार 336 शिक्षकों की नियुक्ति की गयी.
लेकिन नियुक्ति पत्र मिलने के बाद बात जब पोस्टिंग की आई तो शिक्षक पीछे हटने लगे. दरअसल, नव नियुक्त शिक्षकों की पोस्टिंग ज़्यादातर दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में दी जा रही है. केके पाठक ने चयनित शिक्षकों को ट्रेनिंग के दौरान भी कहा, “गांव में रहना है, गांव में पढ़ाना है. अगर आप गांव में नहीं रह सकते तो नौकरी छोड़ दीजिए.”
ट्रेनी शिक्षकों को प्रेरित करने के लिए केके पाठक ने आगे कहा कि “गांव वालों में बहुत जोश है, वे आपका इंतजार कर रहे हैं. आप आएंगे उनके गरीब बच्चों को पढ़ाएंगे. उनको वो पढ़ाएंगे जो शहर के अंग्रेजी स्कूलों में नहीं होती है. पांच साल में यह हो जाना चाहिए कि जो मेधावी बच्चे हैं वो यह कहे की हम सरकारी स्कूल में पढेंगे.”
हालांकि मुख्य सचिव के मोटिवेशन के अलावा उनके कई सख्त आदेश शिक्षकों को रास नहीं आ रहे है. वहीं दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टिंग मिलने के कारण कई शिक्षक नौकरी से इस्तीफा भी दे रहे हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में दी जा रही है पोस्टिंग
पिछले महीने पश्चिम चंपारण के दियारा क्षेत्र के झोपड़ीनुमा स्कूल का विडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल था. वीडियो में नज़र आता है एक वीरान इलाके में कुछ दुरी पर तीन झोपड़ी बने हुए हैं. इसी झोपड़ी में स्कूल संचालित किया जाता है.
इस झोपड़ी स्कूल में ना तो भवन है और ना ही बच्चे हैं. उस झोपड़ी स्कूल में बेंच, कुर्सी, ब्लैक बोर्ड या वाइट बोर्ड की कलपना करना भी खुद की मूर्खता है. विडियो में नव नियुक्त शिक्षिका जमीन पर बैठी कुछ कागजी काम करती नज़र आ रही है. यह वहीं शिक्षिका है जिन्होंने पहले सीटेट या एसटीईटी और बाद में बीपीएससी की परीक्षा पास की है. लेकिन नौकरी मिलने की खुशी महसूस होने के अगले ही पल उन्हें इस वीरान स्कूल में भेज दिया गया जहां सुविधाओं के नाम पर बैठने के लिए दरी भी नहीं है.
इसके ऊपर पिछले दिनों केके पाठक ने बीपीएससी के माध्यम से नियुक्त शिक्षकों को चयनित स्कूल के 15 किलोमीटर के दायरे में रहने का सुझाव भी दिया है. अगर शिक्षक 15 किलोमीटर के दायरे में नहीं रहते हैं तो उनकी नौकरी भी जा सकती है.
नवंबर महीने में बक्सर के स्कूल निरीक्षण के दौरान केके पाठक ने कहा अगर शिक्षक स्कूल से 50 किलोमीटर की दुरी में रहेंगे तो उन्हें आने जाने में परेशानी होगी. जबतक सरकार शिक्षकों के रहने की व्यवस्था नहीं करती है, तबतक दो-तीन शिक्षक साथ मिलकर कमरा लेकर रहें. गांव में पोस्टिंग को लेकर केके पाठक ने कहा कि गांव में रहना अच्छा होता है.
गांव में शिक्षक रहेंगे तो पढ़ाई का माहौल बनेगा. साथ ही उन्होंने यह फरमान भी दे दिया कि अगर किसी को गांव में रहना पसंद नहीं है तो वह लोग जा सकते हैं.
काफ़ी संख्या में नव नियुक्त शिक्षक ने दिया इस्तीफा
पटना जिले में 4856 शिक्षकों को नियुक्ति की गयी थी, लेकिन मात्र 4100 शिक्षकों नें ही नौकरी ज्वाइन किया. पटना जिला कार्यालय के अनुसार कुल 750 शिक्षकों ने चयन के बाद योगदान नहीं दिया.
समस्तीपुर जिले में 30 शिक्षकों ने दिया इस्तीफा, मुज्जफरपुर में 17, बेगुसराय में 4 और मधुबनी में 1 नवनियुक्त शिक्षक ने इस्तीफा दिया है. भागलपुर जिले में 3760 शिक्षकों की नियुक्ति होनी थी लेकिन उनमें से 3246 शिक्षकों ने ही सात दिसंबर तक स्कूलों में अपना योगदान दिया है. वहीं 514 शिक्षकों दूर के क्षेत्रों इमं पोस्टिंग होने अथवा किसी और विभाग में नौकरी हो जाने के कारण ज्वाइन नहीं किया.
वहीं बीपीएससी परीक्षा के माध्यम से चयनित होने वाले यूपी के शिक्षकों ने सबसे ज़्यादा इस्तीफा दिया है. हालांकि विभिन्न जिलों के पदाधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय विद्यालय में नौकरी लग जाने के कारण शिक्षकों ने इस्तीफा दिया है.
केके पाठक के अज़ब-गज़ब आदेश
केके पाठक सरकारी स्कूल की शिक्षा को दुरुस्त करने के लिए रोजाना नए-नए उपाय कर रहे हैं. शिक्षकों और छात्रों के नियमित समय पर स्कूल आने से लेकर छुट्टी लेने के प्रावधानों में भी बदलाव किया गया है. 13 दिसंबर को शिक्षा विभाग द्वारा जारी लेटर में व्हाट्सएप पर आवेदन देकर छुट्टी लेने वाले नियम पर रोक लगा दिया गया है.
केके पाठक ने लेटर जारी कर कहा है कि व्हाट्सएप पर अब 'लीव एप्लीकेशन' स्वीकार नहीं किया जाएगा. किसी भी शिक्षक, पदाधिकारी या कर्मी को छुट्टी लेनी है तो उन्हें स्कूल में उपस्थित होकर छुट्टी का आवेदन देना होगा, तभी उन्हें छुट्टी मिलेगी.
लखीसराय जिले के जैतपुर पंचायत के मध्य विद्यालय में पढ़ाने वाली एक शिक्षिका कहती हैं “गिनी चुनी छुट्टियों के बीच हम किसी तरह काम कर रहे हैं. लेकिन इसी बीच ऐसा आदेश की छुट्टी के लिए आवेदन स्कूल आकर ही देना होगा हमारे लिए थोड़ी परेशानी खड़ी करता है. मान लीजिए किसी दिन अचानक हमें या हमारे परिजन को कुछ हो जाता है तो क्या हमें उस स्थिति में भी स्कूल आकर आवेदन देना होगा तभी छुट्टी मिलेगी.”
शिक्षिका आगे कहती हैं “मैं 2007 से शिक्षिका के पद पर काम कर रहीं हूं. लेकिन इस साल सरकारी स्कूलों में बदलाव लाने के लिए जो कदम उठाए गए हैं वह सराहनीय हैं. लेकिन मैं पूछती हूं कि सरकारी स्कूल की बदहाली का सारा दोष शिक्षकों पर डालना सही है.”
केके पाठक ने इसी लेटर में स्कूल निरीक्षण से संबंधित नये आदेश भी जारी किये गये हैं. मुख्य सचिव ने आदेश में कहा है कि पहले जहां दिनभर में एक बार स्कूल का निरीक्षण किया जाता था,उसे अब दो बार किया जाएगा.
पत्र में लिखा गया है कि कई बार प्रिंसिपल और शिक्षक को स्कूल ख़त्म होने से पहले ही जाते हुए पकड़ा गया है. इसलिए अब सुबह और शाम दोनों समय निरीक्षण किया जाएगा. सुबह 9 से 12 के बीच में पहला निरीक्षण होगा और 2 से 5 बजे के बीच दूसरा निरीक्षण होगा.
शिक्षा विभाग की ओर से इस आदेश की प्रति सभी जिला पदाधिकारियों को भेज दिया गया है.
मीडिया के समक्ष बात रखने पर रोक
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के आदेश के अनुसार कोई भी शिक्षक या शिक्षकेतर कर्मी किसी भी संगठन के सदस्य नहीं बन सकते है. संघ की स्थापना और उसकी सदस्यता लेना गंभीर कदाचार की श्रेणी में चिह्नित है. साथ ही सरकार पर टिप्पणी और मीडिया में किसी तरह की प्रतिक्रिया देने पर भी प्रतिबंध लगाया गया हैं. जिला स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग के लिए अधिकारी भी नियुक्त किए गए हैं.
बिहार में राइट टू एजुकेशन फोरम, के स्टेट संयोजक अनिल कुमार सरकार के इस दमनकारी नीति पर कहते हैं “माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव ने 28 नवंबर को पत्र जारी कर बिहार के तमाम शिक्षक संघों की मान्यता ख़त्म कर दी. उनका आदेश प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघों तक लागू हैं. शिक्षक सरकार के विरुद्ध अ कुछ बोलेगा, ना लिखेगा यहां तक कि लाइक-शेयर भी नहीं करेगा. यह जानते हुए कि यह असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक आदेश है फिर भी इसे निर्गत किया गया है."
अनिल कुमार आगे कहते हैं “राजकीय तानाशाही के द्वारा मौलिक अधिकारों को समाप्त किये जाने की यह कार्रवाई लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है.”
शिक्षक भी इस देश के नागरिक है. उन्हें भी संविधान से वही अधिकार प्राप्त हैं जो आम नागरिकों के पास हैं. जब हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है तो शिक्षकों से यह अधिकार छीनना कितना सही है?