“कोचिंग महंगी, सपना सस्ता” — गांवों से UPSC तक का अधूरा सफर

ग्रामीण छात्रों के लिए UPSC सिर्फ एक परीक्षा नहीं, एक सपना है. यह रिपोर्ट दिखाती है कि कैसे पैसे, भाषा और व्यवस्था के बीच वो सपना अधूरा रह जाता है.

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आमिर अब्बास
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UPSC लेटरल एंट्री पर रोक

दरभंगा ज़िले के एक छोटे से गांव महादेवपुर में 20 वर्षीय राहुल कुमार हर सुबह उठकर अपने खेत के पास लगे ईंट भट्टे में काम करता है. दोपहर तक मज़दूरी, फिर रात को मोबाइल पर Vision IAS के YouTube वीडियो.

"पढ़ना है भइया, लेकिन पेट पहले भरना पड़ता है." राहुल ने इंटरमीडिएट 78% अंकों से पास किया था. सपना था — IAS बनना, लेकिन जब वो दिल्ली जाने की बात करता है, मां कहती है — “पहले घर संभाल, फिर सपना देख.”

राहुल के पास न लैपटॉप है, न अच्छा नेटवर्क. मोबाइल भी छोटा सा Redmi 9A. "कभी-कभी वीडियो चलता नहीं, डाउनलोड करके देखता हूं. लेकिन mains वाले answer writing कौन बताए?"

 

“मैंने कोचिंग छोड़ दी, क्योंकि फीस बढ़ती गई”

गिरिडीह (झारखंड) की नीलम चौधरी ने 2022 में दिल्ली के एक बड़े कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया. ₹1.65 लाख की फीस थी — पिता ने खेत गिरवी रख दिए. लेकिन 5 महीने में ही उसे छोड़कर लौटना पड़ा.

“कोई मदद नहीं, सिर्फ recorded lectures. लड़कियों के लिए रहने का खर्च अलग, खाना अलग... और टीचर को सवाल पूछो तो बोलते — mains में time waste मत करो.”

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आज वो अपने गांव में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाती है. UPSC की किताबें अब भी हैं, लेकिन धूल में बंद हैं.

“Internet है, पर सपना नहीं”

सारण में 18 साल का रईस अंसारी अपने स्मार्टफोन में रोज़ YouTube पर UPSC videos देखता है, लेकिन खुद को कभी serious aspirant नहीं मानता.

“Exam के लिए background चाहिए. इंग्लिश अच्छी चाहिए, पैसे चाहिए. मैं 12th कर रहा हूं, लेकिन लगता नहीं कि हम जैसे का नंबर आएगा.”

रईस के घर में बोरिंग से पानी आता है. उसके पिता दर्जी हैं. उसकी बातों में जिज्ञासा है, लेकिन भरोसा नहीं — जैसे उसने मान लिया हो कि UPSC गांव के बच्चों के लिए सिर्फ पोस्टर में ही रहता है.

कोचिंग या कर्ज़?

2024 में IAS बनने के लिए औसतन एक विद्यार्थी को ₹2.5 से ₹3.5 लाख का खर्च आता है (coaching, rent, test series). लेकिन ग्रामीण इलाकों में मासिक औसत पारिवारिक आय ₹6,200 से भी कम है (NSSO रिपोर्ट 2023).

दिल्ली, पटना, जयपुर, लखनऊ जैसे शहरों में कोचिंग संस्थान केवल syllabus नहीं बेचते — aspiration बेचते हैं.

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UPSC की तैयारी कर रहे छात्रों का एक बड़ा हिस्सा अब ‘एजुकेशनल लोन’ या क्राउडफंडिंग का सहारा लेता है. कई बार कोचिंग बंद करनी पड़ती है क्योंकि पैसे खत्म हो जाते हैं — और सिस्टम में कोई पूछने वाला नहीं.

“सपना वही देख सकता है जिसे नींद न आए”

दरभंगा के अखिलेश मिश्रा, जो 4 साल से UPSC की तैयारी कर रहे हैं, कहते हैं —
“ग्रामीण छात्र सोचते हैं कि NCERT पढ़ लेंगे तो हो जाएगा. लेकिन दिल्ली आकर पता चलता है कि लड़ाई किताबों की नहीं, पैसे, भाषा और presentation की है.”

Answer writing, peer group, mock interviews — कुछ भी गांव में मौजूद नहीं है.

अखिलेश बताते हैं कि उन्होंने एक mock interview में अंग्रेज़ी में जवाब दिया — evaluator ने कहा, “Confidence is missing.”
“मैंने मन में कहा — confidence लाने के लिए English medium स्कूल में भेजा होता तो आज किसान नहीं होता.”

आंकड़े जो सपना बुनते नहीं, तोड़ते हैं

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के 2023 परीक्षा आंकड़ों के अनुसार:

  • कुल 10.5 लाख आवेदन, जिसमें से 72% उम्मीदवार urban/semi-urban क्षेत्र से थे.

  • ग्रामीण क्षेत्रों से केवल 28%, और इनमे से 70% ने सिर्फ Prelims तक ही तैयारी की थी.

  • EWS अभ्यर्थियों की सफलता दर 2.3%, जबकि सामान्य वर्ग की 5.7%

  • OBC और SC वर्ग से आने वाले अभ्यर्थियों की बड़ी संख्या mains तक नहीं पहुँच पाती — मुख्य कारण: महंगी कोचिंग और लैंग्वेज बैरियर

NCRB की 2022 रिपोर्ट बताती है कि शैक्षणिक असफलता के कारण आत्महत्या करने वाले छात्रों में 36% ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे.

“IAS बनकर क्या करूंगी? ट्रेनिंग से पहले शादी हो जाएगी”

झारखंड के लोहरदगा की 19 वर्षीय संध्या (बदला हुआ नाम) BA फाइनल ईयर में है. उसका सपना है — UPSC निकालना. लेकिन मां-पिता कहते हैं — “इतना पढ़-लिखकर क्या करेगी? शादी कर दो किसी टीचर से.”

संध्या खुद 3 बच्चों को पढ़ाती हैं. उससे मिलने पर वो कहती है — “लड़कियों के लिए कोचिंग तो एक सपना है... गांव में तो किताब मांगना भी ‘बदचलनी’ समझी जाती है.”

"बेटा बनकर UPSC नहीं, कमाने निकला हूं"

गोपालगंज के 23 वर्षीय मुकेश यादव पहले UPSC aspirant थे, अब Zomato डिलीवरी बॉय हैं. उन्होंने 2021 में पटना में कोचिंग जॉइन की थी.

“चार महीने में समझ में आ गया — यह लड़ाई हम नहीं जीत सकते.” उनकी दिनचर्या अब यह है: सुबह 8 से रात 10 बजे तक डिलीवरी. बीच में खाली समय में GS की किताब निकाल लेते हैं.

“जब तक पेट में भूख है, दिमाग में UPSC नहीं बैठता.”

नीति और 'दया' में फर्क होता है

भारत सरकार की कई योजनाएं जैसे IGNOU द्वारा Free UPSC coaching, योजना संस्था, Dr. Ambedkar Centre — ये सारी योजनाएं पेपर पर तो हैं, लेकिन लोगों तक पहुंच और कार्यशैली दोनों बेहद सीमित हैं.

रिज़र्वेशन से केवल सीट मिलती है, तैयारी की असमानता अब भी मौजूद है:

  • ग्रामीण इलाकों में अंग्रेजी में कंटेंट नहीं मिलता

  • गाइडेंस नहीं मिलता — इंटरव्यू में खुद को प्रेजेंट कैसे करें

अंत में सवाल — क्या ये सिस्टम हमसे सपना छीन रहा है?

UPSC की परीक्षा केवल परीक्षा नहीं, एक सामाजिक mobility का द्वार है. लेकिन जब सपना देखना भी आर्थिक स्थिति, जेंडर, जाति और भाषा से तय होने लगे, तो सवाल उठता है — क्या वाकई यह भारत की सबसे meritocratic परीक्षा है?

या ये अब elite gatekeeping का दूसरा नाम बनती जा रही है?

क्या UPSC अब भी लोकतांत्रिक सपना है?

UPSC एक ऐसा सपना है जो गरीब बच्चे भी देखता है और मंत्री का बेटा भी. लेकिन ज़मीन पर आकर यह बराबरी अक्सर टूट जाती है. गांव के बच्चे किताब तो खरीद लेते हैं, लेकिन गाइडेंस नहीं. लड़कियां पढ़ाई तो कर लेती हैं, लेकिन इंटरव्यू तक नहीं पहुंच पातीं. जाति, पैसा और नेटवर्क — हर स्तर पर रुकावट बने हुए हैं. अगर UPSC को वाकई ‘India’s fairest exam’ बनाना है —तो सिर्फ परीक्षा प्रणाली नहीं, तैयारी प्रणाली को भी न्यायपूर्ण बनाना होगा.

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