बिहार के शिक्षा विभाग (Education Department) और राजभवन (Rajbhavan) के बीच बीते कुछ दिनों से विवाद चल रहा है. राजभवन और शिक्षा विभाग के विवाद ने पहले तो विवि के कुलपतियों को असमंजस में डाला और अब विवि में कार्यरत अतिथि शिक्षकों को परेशानी में डाल दिया है. दरअसल, शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर कहा है कि वे अपने यहां कार्यरत अतिथि और अंशकालिक शिक्षकों के मानदेय का भुगतान, विवि के आंतरिक स्रोत से करें.
विभाग द्वारा भेजे गये पत्र में विश्वविद्यालय कोष में उपलब्ध राशियों का भी उल्लेख किया गया है. शिक्षा विभाग के मुताबिक राज्य के 13 पारंपरिक विश्वविद्यालयों में 16 अरब 76 करोड़ से अधिक राशि उपलब्ध है. इसलिए अतिथि शिक्षकों के वेतन का भुगतान विवि इसी राशि से करे.
लेकिन विभाग के इस आदेश के बाद राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कुलपतियों को निर्देश दिया कि अतिथि शिक्षकों का वेतन भुगतान विवि के आंतरिक कोष से नहीं करना है. क्योंकि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह स्थायी शिक्षकों के साथ ही अतिथि शिक्षकों के वेतन का भुगतान करे. राज्यपाल ने विश्वविद्यालय में उपलब्ध राशि पर कहा कि यह राशि विश्वविद्यालय की अपनी जरूरतों के लिए है. राज्यपाल आर्लेकर ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि “उच्चतम न्यायालय ने भी अपने आदेश में कहा है इस राशि पर कॉलेज और विश्वविद्यालय का अधिकार है.”
10 माह से नहीं मिला है, वेतन
राज्य के पारम्परिक विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी है. राज्य में लगभग 47 सालों से स्थाई प्रोफेसरों की बहाली नहीं हुई है. ऐसे में कॉलेजों में नियमित तौर पर क्लास संचालित करने के लिए अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है. राज्य के 13 विवि में करीब 2400 अतिथि शिक्षक कार्यरत हैं. इनकी नियुक्ति और मानदेय की प्रक्रिया भी शिक्षा विभाग के द्वारा ही तय होता है. लेकिन हाल में हुई बैठक में विभाग ने वेतन भुगतान की जिम्मेवारी विश्वविद्यालयों के ऊपर डाल दी है.
उच्च शिक्षा विभाग की निदेशक डॉ. रेखा कुमारी ने सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र भेजा है. पत्र में बताया गया कि विश्वविद्यालय के अधीन अंगीभूत महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों के मानदेय का भुगतान अब सरकार नहीं करेगी. अतिथि शिक्षकों के मानदेय का भुगतान विश्वविद्यालय को अपने आंतरिक स्रोत से करना होगा.
विभाग और विवि के बीच चल रहे तनातनी के बीच अतिथि शिक्षक परेशान हैं. रामलखन सिंह यादव कॉलेज, बख्तियारपुर में अर्थशास्त्र विषय के शिक्षक मुस्तयाज आलम की आखिरी सैलरी फरवरी 2023, में आई थी. उसके बाद से सैलरी नहीं आई है. डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत के दौरान मुसत्याज कहते हैं “नवम्बर 2022 में मैंने कॉलेज ज्वाइन किया था. मुझे दिसंबर महीने में पहले महीने की सैलरी मिलनी थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुझे पहली सैलरी फरवरी में मिली. उस समय तीनों महीनों का भुगतान कर दिया गया. लेकिन उस भुगतान के बाद वापस हमें दीवाली के समय वेतन दिया गया. लेकिन उस समय केवल एक महीने का वेतन दिया गया. बाकि महीने का वेतन बकाया (Dues) रखा गया.”
ऐसे में गेस्ट शिक्षक कर्ज के बोझ से दब रहे हैं. उन्हें अपने रोजमर्रा के कामों के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. वेतन बकाए से परेशान मुसत्याज कहते हैं “कर्ज लेकर कबतक काम चलेगा. क्योंकि आप एक या दो बार कर्ज मांग सकते हैं लेकिन यहां तो नौ से 10 महीनों से वेतन नहीं मिला है. शिक्षा विभाग ने आदेश दिया कि विवि कोष से वेतन दिया जाए लेकिन राज्यपाल ने आदेश दिया कि उससे भुगतान नहीं होगा. हालांकि विवि ने कल ही एक महीने के वेतन का भुगतान किया है. लेकिन अब भी लगभग चार लाख रूपए का भुगतान विवि के पास लंबित है.”
छात्रों पर बढ़ेगा आर्थिक बोझ
शिक्षा विभाग और राजभवन के बीच शुरू हुए गतिरोध पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए रामलखन सिंह यादव कॉलेज, बख्तियारपुर के प्रोफेसर मोहम्मद अली कहते हैं “पहले बिहार सरकार विवि को यह आदेश देती है कि मुझे बताइए कि आपके यहां कितने शिक्षकों की कमी है. लेकिन सरकार स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति नहीं करती है. वह विश्वविद्यालयों को यह अथॉरिटी देती है कि आप एक प्रक्रिया के तहत गेस्ट शिक्षकों की बहाली करें. लेकिन जब सेवा के बाद भुगतान करने की बारी आती है तो सरकार इसकी जिम्मेदारी विवि के माथे मढ देती है. जबकि नियुक्ति का आदेश सरकार ने ही दिया है.”
वही जब बिहार सरकार विश्वविद्यालय को भुगतान करने की बात करती है तो यहां एक दूसरी तरह की समस्या खड़ी हो सकती है. विश्वविद्यालय पैसा कहां से जनरेट करेगी? वह इसे कॉलेज के माध्यम से जनरेट करेगी और कॉलेज इसे छात्रों के माध्यम से जनरेट करने का प्रयास करेगा. ऐसे में यह निश्चित है कि कॉलेज हर तरह के डॉक्यूमेंट एवं नामांकन और परीक्षा शुल्क की सेवाओं के दाम बढ़ा देगी.
इस तरह कि व्यवस्था से छात्रों के ऊपर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव पर मोहम्मद अली कहते हैं “वीसी और कॉलेज प्राचार्य के दिमाग में हमेशा यह रहेगा कि जब हमारे पास पैसा आएगा तभी हम पैसा दे सकते हैं. जिससे अंततः यह सरकारी व्यवस्था, मूल रूप से प्राइवेट व्यवस्था में बदल जाएगी.”
छात्रों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को मो. अली इसे समझाते हुए कहते हैं “जीतन राम मांझी की सरकार ने आदेश निकाला कि उच्च शिक्षा में लड़कियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों को मुफ्त शिक्षा (free education in Bihar) दी जाएगी. अगर किसी कॉलेज में 100 छात्रों में 30 लड़कियां और 20 SC-ST समुदाय के बच्चों ने नामांकन लिया तो जाहिर हैं कॉलेज को उन 50 बच्चों से किसी तरह का आर्थिक लाभ नहीं होगा. लेकिन जब विभाग विवि पर वित्तीय दबाव डालेगा तो विवि कॉलेज पर दबाव बनाएगी और अंततः इसका दबाव बच्चों पर आयेगा. क्योंकि कॉलेज पैसे जनरेट करने के लिए बाकि के 50 फीसदी छात्रों पर दबाव डालेगी.
विवि के बैंक खाते पहले फ्रीज, फिर डीफ्रीज करने का आदेश
राजभवन और शिक्षा विभाग के बीच विवाद की शुरुआत 28 फरवरी को ‘परीक्षा की समीक्षा’ के लिए आयोजित बैठक से शुरू हुई. इस बैठक में सभी विश्वविद्यालय के कुलपतियों को शामिल होना था. लेकिन राजभवन से आदेश नहीं मिलने के कारण इसमें कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि और मगध विवि के परीक्षा नियंत्रक ने ही भाग लिया. इससे नाराज शिक्षा विभाग ने सभी विश्वविद्यालयों के खातों पर रोक लगा दी. साथ ही सभी कुलसचिवों और परीक्षा नियंत्रक को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि, आखिर परीक्षा संचालन में लापरवाही के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की जाए.
इस नोटिस के अगले ही दिन राजभवन ने विवि के खाता संचालन पर लगी रोक हटा दी. राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (राज्यपाल) राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चौंग्थू ने सभी बैंक शाखाओं को पत्र लिखा कि कुलाधिपति (राज्यपाल) ने आदेश दिया की शिक्षा विभाग का आदेश वापस लिया जाए. हालांकि बैंकों ने राजभवन के आदेश को नहीं माना.
वहीं दूसरी तरफ बैठक में नहीं आने वाले कुलपतियों के खिलाफ शिक्षा विभाग ने केस करने का का निर्देश डीईओ को दिया है. विभाग के निर्देश के आधार पर जेपी विश्वविद्यालय, एलएनएमयू, बीएनएमयू, टीएमबीयू और मुजफ्फरपुर बीआरए बिहार विवि के कुलपति, कुलसचिव और परीक्षा नियंत्रक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है.
5 मार्च को शिक्षा विभाग ने विवि कर्मियों के वेतन भुगतान के लिए 222 करोड़ 79 लाख रूपए आवंटित करने के एक दिन बाद छह मार्च को बैंक खातों पर लगी रोक को भी हटा दिया. लेकिन इसके साथ ही पुनः परीक्षाओं की स्थिति की समीक्षा के लिए 9 मार्च को कुलपतियों और परीक्षा नियंत्रक को तलब किया. जैसा कि यह पहले से ही संभावित था कि राजभवन से आदेश नहीं मिलने के कारण कुलपति और परीक्षा नियंत्रक इसमें शामिल नहीं होंगे. स्थिति को भांपते हुए शिक्षा विभाग ने नौ मार्च को होने वाली बैठक को रद्द करते हुए पुनः 15 मार्च की तिथि तय की. लेकिन 15 मार्च को भी राजभवन से आदेश नहीं मिलने के बाद कुलपति इसमें शामिल नहीं हुए.
जिसके बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने एक बार फिर विश्वविद्यालयों के खाते पर रोक लगाने के निर्देश दे दिए हैं. वहीं 20 मार्च को राजभवन में हुई बैठक में कुलपतियों ने राज्यपाल को त्राहिमाम संदेश दिया है. जिसमें कुलपतियों पर दर्ज हो रही प्राथमिकी और खातों के संचालन पर लगी रोक के कारण, शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मियों के वेतन भुगतान पर उत्पन्न हुए संकट का मुद्दा रखा.
अब शिक्षकों को पैसा कौन देगा यह विश्वविद्यालय और बिहार सरकार बैठकर तय कर सकती है. क्योंकि, शिक्षा विभाग और राजभवन के अहम् की लड़ाई में नुकसान केवल शिक्षकों का हो रहा है. शिक्षकों को अपने दिए हुए सेवा के बदले भुगतान से मतलब है.