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बिहार के शैक्षणिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला गया कॉलेज, गया (GCG) आज छात्र समस्याओं और प्रशासनिक उदासीनता का केंद्र बन गया है. फरवरी 1944 में ब्रिटिश शासन के दौरान स्थापित यह कॉलेज बिहार के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में गिना जाता है.
एक समय यह पटना विश्वविद्यालय और बाद में डॉ. बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से संबद्ध रहा और अब यह मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के अधीन है. परंतु दुर्भाग्यवश, वर्तमान में यह कॉलेज शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी से जूझ रहा है.
गया कॉलेज में उठी विरोध की चिंगारी
बुधवार को गया कॉलेज के छात्रों ने बुनियादी सुविधाओं की मांग को लेकर जमकर प्रदर्शन किया और प्राचार्य का पुतला फूंका. छात्रों का आरोप है कि कॉलेज की व्यवस्था बदहाल हो चुकी है और प्रबंधन लगातार उनकी समस्याओं की अनदेखी कर रहा है. पीने के पानी की व्यवस्था नहीं, शौचालय गंदे और अनुपयोगी, पुस्तकालय किताबों से खाली, प्लेसमेंट सेल निष्क्रिय, और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी इन तमाम समस्याओं से छात्र त्रस्त हैं.
ABVP गया कॉलेज इकाई अध्यक्ष राहुल कुमार ने बताया, "यह कॉलेज राज्य के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में से एक है, लेकिन यहां छात्रों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रहीं. प्राचार्य हमारी मांगों को नजरअंदाज कर रहे हैं. अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है."
समस्याओं का अंबार
गया कॉलेज में छात्र जिस प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं, वह किसी भी आधुनिक शिक्षण संस्थान के लिए शर्मनाक है. पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है, शौचालयों की हालत इतनी ख़राब है कि छात्र उनका उपयोग नहीं कर पाते, और पुस्तकालय में आवश्यक पाठ्यपुस्तकों का घोर अभाव है.
गया कॉलेज के प्रशांत कुमार बताते हैं कि "गया कॉलेज में सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. पानी का फिल्टर ख़राब है, इतनी गर्मी में पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है. शौचालय ऐसा लगता है जैसे नाला हो, कोई साफ़-सफ़ाई नहीं होती जिसके कारण हम उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं और हमने कई बार शिकायत करने की कोशिश की. लेकिन कभी भी समस्या का निदान नहीं हुआ."
प्लेसमेंट सेल वर्षों से निष्क्रिय पड़ा है, जिससे छात्रों को रोज़गार के अवसरों की भारी कमी झेलनी पड़ रही है. इसके अलावा डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने वाले स्मार्ट क्लासरूम, खेल शिक्षक की नियुक्ति, और छात्रावासों की दुर्दशा जैसे मुद्दे भी छात्रों के आक्रोश के मुख्य कारण हैं.
गया कॉलेज के विद्यार्थी सचिन शर्मा बताते हैं कि "प्लेसमेंट सेल पर तो धूल जम चुका है. मुझे याद नहीं की प्लेसमेंट सेल ने आख़िरी बार कब काम किया था. प्लेसमेंट सेल के काम नहीं करने के वजह से हमारा भविष्य अंधकार के ओर जा रहा है, हम यहां आए ताकि भविष्य को बेहतर कर सके लेकिन यहां तो इसका उल्टा होता नज़र आ रहा है."
छात्रों की मुख्य मांगें
प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने अपनी 15 प्रमुख मांगों को सार्वजनिक किया, जिनमें शामिल हैं:
1. सभी विभागों में नियमित कक्षाएं शुरू की जाएं और 75% उपस्थिति नियम को व्यावहारिक रूप से लागू किया जाए.
2.शुद्ध पेयजल और स्वच्छ शौचालयों की व्यवस्था हो.
3. पुस्तकालय में नई शिक्षा नीति के अनुरूप जरूरी किताबें उपलब्ध कराई जाएं.
4. स्मार्ट क्लासरूम की सुविधा शुरू की जाए.
5. खेल शिक्षक की नियुक्ति कर खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए.
6. कॉलेज परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.
7. प्लेसमेंट सेल को सक्रिय किया जाए ताकि छात्रों को रोजगार मिल सके.
8. छात्रावासों की स्थिति सुधारकर सभी सुविधाएं दी जाएं.
9. प्रयोगशालाओं को आधुनिक उपकरणों से लैस किया जाए.
10. कॉलेज कैंपस में कैंटीन की सुविधा पुनः शुरू की जाए.
11. स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण और ऑडिटोरियम का नाम ‘अहिल्याबाई ऑडिटोरियम’ रखा जाए.
12. निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग शाखा से कराई जाए.
13. फीस में की गई अनावश्यक बढ़ोतरी को तत्काल वापस लिया जाए.
14. एनसीसी अधिकारी संजय तिवारी पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच हो और उचित कार्रवाई की जाए.
15. कॉलेज परिसर को ‘ग्रीन कैंपस’ और ‘क्लीन कैंपस’ के रूप में विकसित किया जाए.
शिक्षा का मंदिर या उपेक्षा का केंद्र?
गया कॉलेज जैसी संस्थाएं केवल शिक्षा देने का स्थान नहीं होतीं, बल्कि वे एक पूरे समाज की बौद्धिक और सामाजिक प्रगति की नींव रखती हैं. जब छात्र बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करें, तो यह केवल कॉलेज की ही नहीं, पूरे शिक्षा तंत्र की विफलता मानी जानी चाहिए.
कॉलेज परिसर में सीसीटीवी कैमरों की अनुपस्थिति और महिला छात्रावास की खस्ताहाल स्थिति ने छात्राओं की सुरक्षा को बड़ा सवाल बना दिया है. छात्र नेताओं का कहना है कि कॉलेज प्रशासन को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, वरना भविष्य में कोई गंभीर घटना हो सकती है.
श्वेता कुमारी (बदला हुआ नाम) से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि “ छात्रावास का हाल बद से बदतर है. यहां कोई सुविधा नहीं है हमें डर लगा रहता है की कब कोई घटना हो जाए और हमने कई बार प्रशासन से बात भी की और शिकायत भी की लेकिन आज तक किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं मिली.”
इस विषय पर हमने गया कॉलेज के छात्र कल्याण के डीन से बात करने की कोशिश की लेकिन लगातार कोशिश करने के बाद भी उनसे हमारी बात नहीं हो सकी. लेकिन हम लगातार कोशिश करेंगे ताकि विद्यार्थियों के समस्याओं का जल्द से जल्द निदान हो सके.
गया कॉलेज, जो कभी बिहार के गौरवशाली शैक्षणिक संस्थानों में शुमार था, आज छात्र आंदोलनों, प्रशासनिक निष्क्रियता और अव्यवस्था का प्रतीक बनता जा रहा है. छात्रों की मांगें कोई असंभव नहीं हैं, ये सभी बुनियादी और आवश्यक सुविधाएं हैं, जिनकी पूर्ति हर शिक्षण संस्थान का कर्तव्य है.
सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले को गंभीरता से ले और छात्रों की मांगों पर शीघ्र कार्रवाई करे. नहीं तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन और भी व्यापक रूप ले सकता है. शिक्षा के इस मंदिर को उपेक्षा की आग में जलने से रोकना अब समय की मांग है.