पीएचडी धारकों की बढ़ती संख्या और घटते अवसर: शिक्षा प्रणाली के समक्ष गंभीर चुनौती

(UGC) आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010-11 में पीएचडी पाठ्यक्रमों में कुल 77,798 दाखिले हुए थे, जो 2017-18 तक बढ़कर 1,61,412 हो गए . सात वर्षों में यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई.

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नाजिश महताब
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पीएचडी धारकों की बढ़ती संख्या और घटते अवसर: शिक्षा प्रणाली के समक्ष गंभीर चुनौती

भारत में उच्च शिक्षा और शोध के प्रति रुझान लगातार बढ़ रहा है . बीते कुछ वर्षों में पीएचडी करने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है . यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010-11 में पीएचडी पाठ्यक्रमों में कुल 77,798 दाखिले हुए थे, जो 2017-18 तक बढ़कर 1,61,412 हो गए . सात वर्षों में यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई . लेकिन दुखद वास्तविकता यह है कि उच्च शिक्षा में शोध करने वाले हजारों छात्र-छात्राओं को उनके योग्यता के अनुसार अवसर नहीं मिल रहे हैं .  

बढ़ती पीएचडी डिग्रियां, लेकिन रोजगार का संकट 

पीएचडी कर लेने के बाद भी बड़ी संख्या में योग्य अभ्यर्थी बेरोजगार घूम रहे हैं . बिहार में नेशनल करियर सर्विस (NCS) पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में लगभग 466 पीएचडी धारकों ने बेरोजगारी के रूप में अपना पंजीकरण कराया था . यह केवल एक आधिकारिक संख्या है, जबकि वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है .  

जो अभ्यर्थी पीएचडी करने के बाद भी असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी नहीं पा रहे हैं, वे किसी तरह गेस्ट फैकल्टी या विजिटिंग फैकल्टी के रूप में पढ़ाने को मजबूर हैं . लेकिन शिक्षकों की सीटें इतनी कम हैं कि वहां भी जगह नहीं मिल पा रही . कुछ पीएचडी धारक निजी कॉलेजों या कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने के लिए मजबूर हैं, तो कुछ नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं .  

आकाश (बदला हुआ नाम) उन्होंने विश्वविद्यालय का नाम न बताने के शर्त पर बताया कि “ मैंने 2 साल पहले ही पीएचडी कंप्लीट किया है . लेकिन 2 सालों से अभी तक मुझे नौकरी नहीं मिली है . कारण कई सारे हैं, ऐसे कई अभ्यर्थी पीएचडी करने के बाद भी असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी नहीं पा रहे हैं . हम सरकार से निवेदन करते हैं कि जल्द से जल्द सारे पदों पर नियुक्ति बढ़ाई जाए ताकि युवाओं को इसका लाभ मिले .”

शिक्षकों के पदों की संख्या क्यों नहीं बढ़ रही? 

देश के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्रों की संख्या दोगुनी हो चुकी है, लेकिन शिक्षकों की संख्या उसी अनुपात में नहीं बढ़ी . शिक्षकों की बहाली केवल उन्हीं सीटों पर हो रही है, जो पहले से खाली हैं . नए पदों का सृजन नहीं किया जा रहा, जिससे हालात और बदतर होते जा रहे हैं .  

UGC के 2022 के नियमानुसार, हर 20 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए . लेकिन हकीकत यह है कि कई कॉलेजों में 50 से 100 छात्रों पर केवल एक शिक्षक है . शिक्षकों की संख्या बढ़ाने की जरूरत को सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन गंभीरता से नहीं ले रहे, जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है .  

वोकेशनल कोर्स और शिक्षकों के पदों का अभाव  

आज के समय में छात्रों की मांग को देखते हुए कई विश्वविद्यालयों में वोकेशनल कोर्स शुरू किए जा रहे हैं . लेकिन इन कोर्सों के लिए अलग से विभाग नहीं बनाए जा रहे, जिससे नए शिक्षकों के पद सृजित नहीं हो रहे . विश्वविद्यालयों ने सरकार से इन कोर्सों के लिए अलग विभाग बनाने की मांग की है, लेकिन मामला वर्षों से लंबित पड़ा हुआ है . वोकेशनल कोर्स केवल छात्रों की संख्या बढ़ाने तक सीमित रह गए हैं, लेकिन उनके लिए उचित संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जा रहे . बिना विभाग और शिक्षकों के, इन पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठने लगे हैं .

आनंद कुमार ( बदला हुआ नाम) बताते हैं कि “ मैंने जून में हो अपनी थीसिस सबमिट करदी, 10 महीना गुज़र चुका है और अभी तक फाइनल नहीं हुआ है वहीं 10 महीने से मैं क्या करूं? सरकार ने सोच लिया है की परमानेंट जॉब नहीं देना है इसीलिए आप जहां भी जाएंगे वहां आपको कॉन्ट्रैक्ट के बेसिस पर रखेगा . हालांकि पीएचडी कर रहे शोधकर्ताओं की संख्या में तेज़ी आई है लेकिन विश्वविद्यालय में पद नहीं बढ़ रहें हैं .”

गेस्ट फैकल्टी को भी नहीं मिल रहा मौका

राज्य सरकार के निर्देशों के अनुसार, गेस्ट फैकल्टी की नियुक्ति केवल असिस्टेंट प्रोफेसर के खाली पदों पर ही हो सकती है . लेकिन जब नए पद ही नहीं सृजित किए जा रहे, तो गेस्ट फैकल्टी के लिए भी अवसर सीमित होते जा रहे हैं . यह स्थिति पीएचडी धारकों के लिए एक और झटका साबित हो रही है .  

गेस्ट फैकल्टी को बहुत कम वेतन मिलता है, जिससे उनका जीवनयापन कठिन हो जाता है . कई पीएचडी धारक मजबूरी में दूसरी नौकरियों की ओर रुख कर रहे हैं, जबकि उनका सपना था कि वे शिक्षण और शोध के क्षेत्र में अपना योगदान दें .  

पीएचडी की बढ़ती संख्या और गुणवत्ता का सवाल  

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति और मुंगेर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रंजीत कुमार वर्मा का कहना है कि, "जिस अनुपात में छात्र बढ़ रहे हैं और हर साल पीएचडी करने वालों की संख्या बढ़ रही है, उसी अनुपात में शिक्षकों के पद बढ़ने चाहिए . विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में UGC के मानकों के अनुसार छात्र-शिक्षक अनुपात होना जरूरी है ."  

उन्होंने यह भी कहा कि केवल पीएचडी धारकों की संख्या बढ़ाना ही समाधान नहीं है, बल्कि उनकी गुणवत्ता भी उच्च स्तर की होनी चाहिए . शोध पत्रों के प्रकाशन की गुणवत्ता सुनिश्चित करना भी बहुत जरूरी है .  

आनंद बताते हैं कि “मैंने सोशल साइंस के विषय में शोध किया है, लेकिन यहां हाल इतना ख़राब है की मुझे मजबूरन यहां से बाहर जाना होगा ताकि मेरे शोध को सम्मान मिल सके . राज्य हो या देश, यहां शोधकर्ताओं या पीएचडी धारकों का हाल ऐसा है की उन्हें एक एक रुपए के लिए तरसना पड़ता है . नेट निकल जाने के बाद 8000 रुपया मिलता है तो क्या 8000 रुपए से पीएचडी धारक सारा काम कर लेगा?और यहां सरकार पीएचडी कर रहे धारकों के गुणवत्ता पर सवाल उठाती है .”

सरकार और विश्वविद्यालयों को क्या करना चाहिए?  

सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए, नए शिक्षकों के पद सृजित किए जाएं, बढ़ती छात्र संख्या को देखते हुए नए पदों का निर्माण अनिवार्य है .  
वोकेशनल कोर्स के लिए अलग विभाग बनाए जाएं, ताकि शिक्षकों की भर्ती की जा सके और छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सके .  गेस्ट फैकल्टी की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव किया जाए, केवल असिस्टेंट प्रोफेसर के खाली पदों तक ही इसे सीमित न रखा जाए . पीएचडी की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए, शोध कार्य और प्रकाशनों की गुणवत्ता को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उन्नत किया जाए . शिक्षा नीति में बदलाव किया जाए, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर ठोस नीति बनाई जाए .  

निष्कर्ष  

पीएचडी धारकों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनके लिए अवसर लगातार घटते जा रहे हैं . शिक्षकों की संख्या बढ़ाए बिना उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना संभव नहीं है . विश्वविद्यालयों में नए पदों का सृजन और शिक्षकों की नियुक्ति न केवल पीएचडी धारकों को रोजगार दिलाएगी, बल्कि छात्रों को भी बेहतर शिक्षा का लाभ मिलेगा .  

अगर इस समस्या का शीघ्र समाधान नहीं किया गया, तो उच्च शिक्षा में शोध और शिक्षण का स्तर गिरता चला जाएगा . सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना होगा, ताकि हमारे योग्य शोधकर्ताओं को उनका हक मिल सके और देश की शिक्षा व्यवस्था मजबूत हो सके.

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