बिहार के विश्वविद्यालयों में वोकेशनल कोर्स का कोई विभाग नहीं, अच्छी शिक्षा से वंचित छात्र

बिहार के विश्वविद्यालयों(Universities) में वोकेशनल कोर्स का संचालन ‘सेल्फ फाइनेंस कोर्स’ के तौर पर होता है. सेल्फ फाइनेंस का अर्थ होता है- कोर्स में नामांकन लेने वाले छात्रों के फीस से विभागीय खर्च निकाला जाएगा.

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वोकेशनल कोर्स के छात्र

बिहार के विश्वविद्यालयों में वोकेशनल कोर्स के छात्र

वोकेशनल कोर्स (vocational courses) जैसा की नाम से ही जाहिर हो रहा है कि हम किसी व्यवसायिक कोर्स की चर्चा कर रहे हैं. बीते कुछ वर्षों में व्यावसायिक कोर्स की मांग बढ़ी है. छात्र व्यावसायिक कोर्स के माध्यम से कम समय में रोजगार परक शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं.

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पारंपरिक विषयों से विपरीत वोकेशनल कोर्स में स्टूडेंट को एक विशेष विषय की जानकारी दी जाती है. इसमें छात्र को थ्योरी के अलावे प्रैक्टिकल जानकारी पर विशेष ध्यान दिया जाता है. इस पूरे विषय को इस तरह से तैयार किया जाता है, जिससे स्टूडेंट को कोर्स करने के बाद जॉब लेने में समस्या ना आए.

वोकेशनल कोर्स की मांग को देखते हुए बिहार के विश्वविद्यालयों में भी इनका संचालन लम्बे समय से शुरू किया जा चुका है. हर साल हजारों की संख्या में छात्र विभिन्न वोकेशनल कोर्स में नामांकन लेते हैं. इसके बावजूद राज्य के विश्वविद्यालयों में अलग से वोकेशनल संकाय का निर्माण नहीं किया जा सका है.

वोकेशनल संकाय में पढ़ाने वाले शिक्षकों का कहना है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में वोकेशनल विषयों की पढ़ाई इसलिए शुरू कर दी गई क्योंकि इसकी मांग छात्रों के बीच ज्यादा है. वहीं दूसरी ओर यह विश्वविद्यालय के आय का एक बड़ा साधन भी है.  

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वोकेशनल विषयों के लिए संकाय का निर्माण नहीं

राजभवन बिहार की वेबसाइट के अनुसार बिहार में कुल 17 राज्य विश्वविद्यालय है. वहीं सेंट्रल, डीम्ड और प्राइवेट यूनिवर्सिटी को मिला दें तो यह संख्या 37 हो जाएगी. वहीं बिहार में लगभग 1035 कॉलेज हैं. लेकिन राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों में वोकेशनल कोर्स का संचालन बिना किसी विभाग के किया जा रहा है.

युवाओं को जहां टेक्निकल कोर्स में नामांकन लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. वहीं विश्वविद्यालयों में बीसीए, एमसीए, बीबीए, एमबीए समेत कई वोकेशनल कोर्स के संकाय आज तक नहीं बनाये जा सके हैं. यही वजह है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों के कॉलेज में वोकेशनल कोर्स के नियमित शिक्षक नियुक्त नहीं किए जाते है. कॉलेज में इन कोर्स का संचालन अतिथि शिक्षकों के माध्यम से संचालित किया जाता है. वहीं शैक्षणिक कार्यो के अलावा विभागीय कार्यो के लिए भी कर्मियों की नियुक्ति अनुबंध या अतिथि के तौर पर की जाती है.

केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग कर रहे पटना विश्वविद्यालय में भी वोकेशनल विभाग का निर्माण नहीं हो सका है. वोकेशनल कोर्स का संचालन अलग-अलग विभागों के अंतर्गत किया जा रहा है. मजबूरी में छात्र वोकेशनल कोर्स में स्नातक या पीजी तक की पढ़ाई  पटना विश्वविद्यालय या अन्य विश्वविद्यालयों के कॉलेजों से कर ले रहे हैं लेकिन शिक्षक और संसाधन की कमी के कारण उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है. 

वहीं आर्थिक रूप से थोड़े सक्षम छात्र स्नातक या पीजी की पढ़ाई के लिए राज्य से बाहर के कॉलेज का रुख कर ले रहे हैं.

‘सेल्फ फाइनेंस कोर्स’ के तौर पर होता है वोकेशनल कोर्स का संचालन

बिहार के विश्वविद्यालयों में वोकेशनल कोर्स (Vocational courses in universities of Bihar) का संचालन ‘सेल्फ फाइनेंस कोर्स’ के तौर पर पढ़ाया जाता है. 'सेल्फ फाइनेंस' का अर्थ होता है- कोर्स में नामांकन लेने वाले छात्रों से जो फीस ली जाएगी उसी के माध्यम से विभागीय खर्च के अलावा अन्य संसाधनों का इंतजाम किया जाएगा. वहीं सरकार द्वारा संचालित कोर्स में संसाधन और फैकल्टी स्थायी तौर नियुक्त किए जाते हैं क्योंकि उसका खर्च सरकार वहन करती है.

पटना यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन विभाग में पढ़ाने वाले प्रशांत रंजन वोकेशनल डिपार्टमेंट ना बनाए जाने के कारणों पर बात करते हुए कहते हैं “राज्य सरकार या केंद्र सरकार अलग से वोकेशनल कोर्स के संचालन के लिए पैसे नहीं देती है. विभाग के सारे खर्च छात्रों के नामांकन में मिले पैसों से ही निकाला जाता है. ऐसे में विभाग में संसाधनों की भारी कमी रहती है. शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की भी बहुत कमी रहती है. चूंकि विभाग स्थायी नहीं है इसलिए शिक्षकों और विभागीय कार्यों के संचालन के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की जाती है.”

प्रोफेसर प्रशांत रंजन, पटना यूनिवर्सिटी
प्रोफेसर प्रशांत रंजन, पटना यूनिवर्सिटी

स्थायित्व ना होने पर रोष प्रकट करते हुए प्रशांत रंजन कहते हैं “भाड़े के कर्मचारियों से विभाग चल रहा है. शिक्षक के नाम पर अख़बारों और टीवी चैनलों में काम करने वाले पत्रकारों को विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर बुलाकर पढ़ाई करवाई जा रही है. जुगाड़ से विभाग तो चल जाएगा लेकिन उससे जो गुणवत्ता आनी चाहिए वह बहुत पीछे रह जा रही है.”

विभाग बनाए जाने से होने वाले बदलाव पर प्रशांत रंजन कहते हैं “विभाग बनाए जाने से शिक्षकों और विभागीय कर्मचारियों के साथ संसाधनों में भी सुधार होगा. स्थायी शिक्षक विभाग की, विषय की और छात्रों की चिंता करने वाले होंगे. जो भविष्य में दूरगामी परिणाम देंगे.”

विभाग नहीं होने का दूसरा बड़ा नुकसान उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को उठाना पड़ रहा है. अभी स्थायी विभाग नहीं होने के कारण वोकेशनल विषयों में पीएचडी की सुविधा नहीं मिल रही है. दरअसल, किसी भी विभाग को पीएचडी करवाने की अनुमति तभी मिलती है जब विभाग स्थायी होता है, उसमें गाइड करने वाले शिक्षक स्थायी होते हैं. अभी विश्वविद्यालयों द्वारा डिग्री तो दे दी जारी है, लेकिन स्व-पोषित विभाग और स्थायी शिक्षक के अभाव में पीएचडी शुरू किया जाना संभव नहीं है.

विभिन्न विषयों में हो रहा है वोकेशनल कोर्स का संचालन

मगध विश्वविद्यालय(Magadh-university), पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय(Patliputra University), आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालयों में भी वोकेशनल कोर्स का संचालन किया जा रहा है. 

इन विश्वविद्यालयों में बायो केमिस्ट्री, बायो टेक्नोलॉजी, एनवायरनमेंटल साइंस, डिपार्टमेंट ऑफ वीमन स्टडीज, डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, डिपार्टमेंट ऑफ लेबर एंड सोशल वेलफेयर, फिजियोथेरेपी जैसे कई विषयों में स्नातक और पीजी की सुविधा दी जाती है. लेकिन इसके बाद भी लम्बे समय से विभाग का निर्माण ना किया जाना सरकार की इन विषयों की उपयोगिता को कम आंकना दर्शाता है. 

रॉयल अशोका इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के प्रिंसिपल डॉ गौतम कुमार वोकेशनल कोर्स के फीस स्ट्रक्चर पर बात करते हुए कहते हैं “बिहार के कॉलेज में जो फीस वोकेशनल कोर्स में ली जा रही है, वह बहुत ही कम है. इससे कम फीस में इसकी पढ़ाई कही भी नहीं हो रही है. लेकिन जब क्वालिटी एजुकेशन यानि अच्छे प्रोफेसर, लैब, प्रैक्टिकल, प्लेसमेंट जैसी चीजों की मांग की जाएगी तो वह इतने कम फीस में उपलब्ध कराना संभव नहीं है. वहीं आप आईआईएमसी (IIMC) जैसे कॉलेज के फीस की तुलना यहां के कॉलेज से करेंगे तो वह बहुत ज्यादा है जबकि वह भी गवर्नमेंट कॉलेज है.”

डॉ. गौतम कुमार, प्रोफेसर पटना यूनिवर्सिटी
डॉ. गौतम कुमार, प्रोफेसर 

सेल्फ फाइनेंस कोर्स होने का नुकसान शिक्षक और छात्र दोनों को उठाना पड़ रहा है. गौतम कुमार कहते हैं “बीसीए, बीबीए या मास कॉम जैसे सब्जेक्ट की पढ़ाई के लिए हर साल लाखों छात्र बिहार से बाहर जाते हैं. ऐसे में सरकार को सोचना होगा की हमारी शिक्षा नीति के अंदर ऐसा कौन सा दृष्टिकोण है जो छूट रहा है. क्योंकि हर साल लाखों-करोड़ों रूपए का राजस्व बिहार से बाहर जा रहा है. अगर उसी राजस्व से सरकार बिहार में इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करे तो इससे राजस्व बढ़ सकता है.”

अब तक शिक्षा का मतलब पारंपरिक शिक्षा से हुआ करता था, लेकिन वोकेशनल कोर्स ने अनऔपचारिक यानी इन-फॉर्मल एजुकेशन को भी शिक्षा के दायरे में ला दिया है.

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