लखीसराय जिले के दरियापुर गांव के रहने वाले नवीनकांत साल 2017 से पटना में रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं. इतिहास विषय से स्नातक नवीनकांत पिछले सात सालों में कई बार बिहार पुलिस, यूपी पुलिस, एसएससी, सीजीएल, सीआरपीएफ और आर्मी की परीक्षाएं दे चुके हैं. लेकिन हर बार कुछ नंबरों से चूक जा रहे हैं.
नवीनकांत ने आखिरी बार केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) द्वारा आयोजित बिहार पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा दी थी. एक अक्टूबर को आयोजित यह परीक्षा पेपर लीक हो जाने के कारण रद्द कर दी गयी. नवीनकांत जैसे लाखों अभ्यर्थी जो पूरी मेहनत और उम्मीद के साथ परीक्षा में बैठे, उन्हें केवल निराशा हाथ लगी.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए नवीनकांत कहते हैं “एक विभाग में वैकेंसी के लिए हम लोग सालों इंतज़ार करते हैं. अगर फॉर्म आ गया, तो फिर उसकी तैयारी में महीनों लगे रहते हैं. समय पर परीक्षा हुई तो ठीक वर्ना एक परीक्षा के लिए साल भर से भी ज़्यादा समय लग जाता है. अक्टूबर में बिहार कांस्टेबल का एग्जाम दिए. सब सही चल रहा था. फॉर्म आया, सबने फॉर्म भरा. एग्जाम का भी डेट आ गया. लेकिन पहले ही दिन एग्जाम के बाद पेपर लीक की खबर आ गयी.
सिपाही भर्ती की नयी तारीख़ घोषित
सीएसबीसी (सिपाही भर्ती) बिहार कांस्टेबल की नई परीक्षा तारीख़ जारी कर दी है. अब नई तारीख़ पर इसकी परीक्षा सितम्बर माह में होने वाली हैं यानी पूरे 10 महीनों बाद. राज्य में बिहार पुलिस या बिहार एसएससी जैसे विभागों में एक नियुक्ति परीक्षा पूरा होने में लगभग दो सालों का समय लग जाता है. साल 2014 में बिहार एसएससी के लिए निकाले गये आवेदन की परीक्षा चार सालों बाद 2019 में आयोजित हुई थी. ऐसे में युवाओं के ऊपर परीक्षा पास करने और नौकरी लेने का बड़ा दबाव रहता है.
नवीनकांत की बिहार कांस्टेबल में भर्ती का यह आख़िरी मौका है. क्योंकि पिछले साल ही फॉर्म भरने की आखिरी उम्र थी. घर से बहुत दबाव है. उन्हें लगता है अब नवीनकांत नौकरी नहीं लगेगी. उनके पिता का मानना है कि घर आकर कुछ बिजनेस करें.
नवीनकांत की कहानी से अलग बख्तियारपुर प्रखंड के अथमलगोला गांव के रहने वाले केशव कुमार की है. केशव कुमार ने इंग्लिश विषय से स्नातक किया है और सरकारी नौकरी की तैयारी में लगे हैं. केशव ने साल 2021 में इंडियन एयरफोर्स की सभी परीक्षा पास कर ली थी और अंतिम मेधा सूची का इंतज़ार कर रहे थें. लेकिन वह मेधा सूची कभी जारी नहीं हुई. इसके उलट केंद्र ने जून 2022 में अग्निवीर योजना की घोषणा कर दी और पहले से लंबित सभी नियुक्तियों को रद्द कर दिया. जिसके बाद केशव जैसे हज़ारों युवा जो नौकरी ज्वाइन करने की उम्मीद लगाए थे आज तक बेरोज़गार बैठे हैं.
केशव कुमार कहते हैं “अगर सरकार को अग्निवीर योजना लानी ही थी, तो पहले से जो नियुक्ति परीक्षा ली जा चूकी थी, जिसका रिजल्ट आ चूका था उसे नियुक्त कर लेना चाहिए था. आज चार साल हो गए हैं. मुझे दूसरी नौकरी नहीं मिली है. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. ऐसे में मैंने तय कर लिया है इस वर्ष के अंत तक ही केवल तैयारी करूंगा. अगर कहीं चयन नहीं हुआ तो मज़दूरी करने चला जाऊंगा.”
बिहार में क्यों बढ़ने लगा है बी.एड का चलन?
इस बातचीत के दौरान नवीनकांत और केशव दोनों ने बिहार में चल रही शिक्षक भर्ती परीक्षा का भी ज़िक्र किया. दोनों का कहना है कि बिहार में पिछले एक साल में लाखों पदों पर हुई शिक्षक नियुक्ति के कारण कई युवा आनन-फ़ानन में बी.एड में दाख़िला ले रहे हैं.
ऐसे में कहा जा सकता है कि युवाओं को जिधर भी रोज़गार के अवसर नज़र आता है, वो उधर अपनी मेहनत और पैसा लगाने लगते हैं. लेकिन इससे ना सिर्फ उनका मेहनत और पैसा लगता है बल्कि उनका कीमती वक्त भी बर्बाद होता है. यह बिहार में रोज़गार के लिए संघर्ष कर रहे युवाओं का संघर्ष भी बयां करती है.
2 अक्टूबर 2023 को राज्य सरकार द्वारा कराए गए जातिगत जनगणना के आनुसार राज्य की आबादी 13 करोड़ से ज़्यादा है और राज्य में साक्षरता दर 79.7% है. हालांकि साक्षरता और शैक्षणिक स्थिति में काफ़ी भिन्नता होती है. इसके आंकड़े भी जातिगत जनगणना में सामने आये थे जिसके अनुसार राज्य में मात्र सात फ़ीसदी लोग ही स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त कर सके हैं.
अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन द्वारा सितम्बर 2023 में जारी रिपोर्ट भी देश में शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी के आंकड़े सामने रखती है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में बेरोज़गारी की दर 42.3% हो गयी है. वहीं 25 से 29 वर्ष के स्नातक (Graduate) या उच्च योग्यता (Post graduate) वाले युवाओं में बेरोज़गारी दर 22.8% है.
परेशान करने वाले हैं बेरोज़गारी के आंकड़े
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार अगर एक सप्ताह यानी सात दिनों में एक घंटा भी कोई नौकरी या दिहाड़ी मज़दूरी करता है- तो माना जाता है कि वह बेरोज़गार नहीं है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (IHD) द्वारा मार्च महीने में ‘द इंडिया इंपलॉयमेंट रिपोर्ट 2024' के अनुसार पिछले करीब 20 सालों में भारत में युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर लगभग 30 फ़ीसदी बढ़ चुकी है. साल 2000 में युवाओं में जहां शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी दर 35.2 फीसदी थी, वह साल 2022 में बढ़कर 65.7 फीसदी हो गई.
रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा बेरोज़गारी ग्रेजुएट यानी स्नातक डिग्री प्राप्त किये युवाओं में पाई गई, जिसमें महिला बेरोज़गारी की हिस्सेदारी अधिक है. साल 2022 में जहां लगभग 30 फ़ीसदी शिक्षित युवा बेरोज़गार थें, जिनमें 9.8 फ़ीसदी पुरुष और 48.4 फ़ीसदी महिलाएं थी.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE), अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़े जुटाती है. इनके बेरोज़गारी का डाटा जमा करने का तरीका अलग है. इनके अनुसार जिस दिन वो सर्वे करते हैं, अगर उस दिन कोई व्यक्ति नौकरी ढूंढ रहा है तो वो बेरोज़गार है.
CMIE हर महीने भारत में बेरोजगारी के आंकड़े देती है. इसके अनुसार जून महीने में भारत में बेरोजगारी दर 6.7 फ़ीसदी थी. वहीं चुनाव से पहले यह अप्रैल माह में देश में 15 साल और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के बीच बेरोज़गारी दर 8.2 फ़ीसदी तक पहुंच गई थी जबकि मार्च में या 7.4 फ़ीसदी रही थी.
रिपोर्ट में बताया गया था कि अप्रैल माह में 47 लाख लोग बेरोज़गार हो गये जिसमें 90 फ़ीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले थे.
अगर बिहार की बात की जाए तो, फरवरी 2024 में विधानसभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार राज्य में बेरोज़गारी की स्थिति देश के औसत से अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार राज्य में बेरोज़गारी दर 4.3% है, जो राष्ट्रीय औसत 3.4 फ़ीसदी से अधिक है. हालांकि बिहार की स्थिति केरल (8.4%), हरियाणा(6.4%) और पंजाब (6.7%) जैसे राज्यों के मुकाबले बेहतर बताई गयी.
तीन महीने में दो लाख नौकरी का वादा क्या पूरा होगा?
बिहार में बढ़ती युवा बेरोज़गारी से इतर सरकार रोज़गार की बात कर रही है. बीते 17 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्री और अधिकारीयों के साथ हुई बैठक के बाद ऐलान किया कि राज्य में आने वाले तीन महीनों में 1.99 लाख लोगों को नियुक्ति पत्र दिया जाएगा. साथ ही राज्य में साल 2025 तक 5.17 लाख लोगों को सरकारी नौकरी दी जाएगी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि 2024-25 तक राज्य में 12 लाख से अधिक लोग को सरकारी नौकरी मिल जाएगा. साल 2020 में मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना-2 के तहत नीतीश कुमार ने 10 लाख सरकारी नौकरी और 10 लाख रोज़गार का वादा किया था. जिसमें सरकार यह दावा कर रही है कि राज्य में अब तक पांच लाख 16 हज़ार लोगों को सरकारी नौकरी मिल चुकी है.
सरकार यह भी कह रही है कि उसने अपने लक्ष्य से ज़्यादा लोगों को सरकारी नौकरी और रोज़गार दिया है. रोज़गार के मामले में सरकार ने दोगुने अवसर की बात कही थी. जिसमें 10 लाख का लक्ष्य रखा गया था लेकिन अब तक 22 लाख रोजगार सृजित हो चुके हैं. वहीं आने वाले एक वर्ष में 11 लाख नए अवसर सृजित किये जायेंगे.
दरअसल राज्य में वर्ष 2025 में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में रोज़गार का वादा और रोज़गार देना समय की मांग है. हाल ही में समाप्त हुए लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष यानी INDIA गठबंधन ने बेरोज़गारी के मुद्दे पर ही केंद्र सरकार को बहुमत से दूर कर दिया था. बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी रोज़गार के मुद्दे को लगातार आवाज़ उठाते रहे हैं. साथ ही राज्य में बड़े पैमाने पर हुई शिक्षक नियुक्ति का श्रेय भी लेते रहे हैं.
नीतीश और तेजस्वी में इसी खींचातान ने नीतीश कुमार को एक बार फिर एनडीए में शामिल करा दिया. लेकिन सरकार किसी की हो, गठबंधन किसी के साथ हो युवाओं को केवल रोज़गार चाहिए.
आने वाली दिनों में शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग में सबसे ज्यादा नियुक्तियां आने की संभावना है. ऐसे में बिहार के शिक्षित और उच्च शिक्षा प्राप्त युवा उम्मीद कर सकते हैं कि उन्हें रोज़गार मिल जाये.