क्या नीतीश सरकार की 34 लाख नौकरियों से बिहार में बेरोजगारी दर कम होगी?

बढ़ती मंहगाई के कारण उत्पादों के मूल्य में बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण लागत मूल्य बढ़ रहा है. उसके ऊपर बाजार में प्रतिस्पर्धा भी तेजी से बढ़ रही है. जिससे फुटपाथी और छोटे दुकानदारों की आमदनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. 

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बढती बेरोज़गारी का शिकार बिहार के युवा

“परिवार चलाना है, इसलिए काम छोटा है या बड़ा यह कभी दिमाग में आया ही नहीं.” यह कहना है कंकड़बाग साईंमदिर के सामने पानीपूरी और चाट का ठेला लगाने वाले महेश कुमार का. महेश कुमार यहां 20 सालों से ज्यादा समय से ठेला लगा रहे हैं.

ठेले पर पानीपूरी और चाट बेचने वाले व्यक्ति की छवि हमारे दिमाग में कम पढ़े-लिखे लोगों के रूप में उभरती है. लेकिन महेश के साथ ऐसा नहीं है. महेश ने इतिहास विषय में स्नातक कर रखा है. लेकिन सरकारी नौकरी नहीं लगने और प्राइवेट नौकरी में कम वेतन होने के कारण उन्होंने पानीपूरी बेचने का फैसला कर लिया.

महेश कहते हैं “स्नातक के बाद एक साल तैयारी किए कही कुछ नहीं हुआ. फिर प्राइवेट नौकरी खोजने लगे. उस समय प्राइवेट स्कूल में तीन हजार रूपया भी बहुत मुश्किल से मिलता था. मेरे पिताजी पानीपूरी बेचते थे और उसी से पूरा परिवार चला लेते थे. तब मेरे दिमाग में आया कि क्यों नहीं हम भी यही काम कर लें. तब मैंने ठेला बनवाया और पानीपूरी के साथ चाट बेचना भी शुरू कर दिए.”

कभी इसी काम से महेश अपने पुरे परिवार की जरूरतों को पूरा कर रहे थे लेकिन अब उन्हें इसमें पहले जैसा मुनाफा नहीं हो रहा है. बढ़ती मंहगाई के कारण उत्पादों के मूल्य में बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण लागत मूल्य बढ़ रहा है. उसके ऊपर बाजार में प्रतिस्पर्धा भी तेजी से बढ़ रही है. जिससे फुटपाथी और छोटे दुकानदारों की आमदनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. 

महेश कहते हैं “पहले बाजार में फ़ास्ट-फ़ूड के नाम पर केवल चाट-फुचका मिलता था आज ना जाने कितने तरह का सामान है. पहले बेचने वाले भी गिनती के लोग थे. ग्रेजुएट होकर चाट बेचने वाला इस इलाके में केवल मैं था आज ना जाने कितने होंगे. ऊपर से गैस से लेकर मैदा सूजी का दाम बढ़ गया है. पहले जो चीज 10 रुपये में तैयार हो रही थी आज उसपर 30 रुपए खर्च करना पड़ रहा है.”

जब हमने उनसे पूछा सरकार की कई योजनाएं है जिनकी मदद से आप रोजगार को बढ़ा सकते हैं क्या कभी उसके लिए प्रयास नहीं किया है. इसपर उनका कहना है कि “सरकार कि कोई भी योजना कभी किसी रेहड़ी-पटरी वाले को अमीर नहीं बना सकती है.”

बेरोजगारी के आंकड़े 

बेरोजगारी और बढ़ती मंहगाई के बीच स्वरोजगार का चलन बढ़ गया है. पारम्परिक विषयों में स्नातक किए हुए छात्रों के साथ-साथ टेक्निकल विषयों में उच्च डिग्री रखने वाले युवा भी स्व-रोजगार में अपना हाथ आजमा रहे हैं. फूटपाथ पर चाय-समोसा, मोमोज और चाट बेचने जैसे काम जो सदियों तक कम पढ़े-लिखे और अकुशल लोगों का कार्य समझा जाता रहा है उन कामों में भी ये युवा हाथ आजमा रहे हैं.

अब ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों बन रही है? केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के दावे से इतर देश में बेरोजगारी की समस्या भयावह है. अकुशल कामगारों के साथ ही उच्च शिक्षा प्राप्त युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) द्वारा जारी एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार गुणवत्तापूर्ण रोजगार के अवसरों की कमी के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त युवा बेरोजगारी के शिकार हो रहे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल बेरोजगारों में 83 फीसदी युवा है. उनमें भी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त युवाओं की संख्या अधिक है. रिपोर्ट कहता है कि कई उच्च शिक्षा प्राप्त युवा वर्तमान में उपलब्ध असुरक्षित कम वेतन वाली नौकरी लेने को इच्छुक नहीं है और भविष्य में बेहतर रोजगार की तलाश में हैं.

पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्व 2023-24 कि रिपोर्ट के अनुसार बिना पढ़े-लिखे लोगों में 59.6 प्रतिशत रोजगार में है. वहीं पांचवी पास 68.5 फीसदी लोग रोजगार में है. आठवीं पास 60.7 फीसदी,10वीं पास 49.7 फीसदी और 12वीं पास 45.9 फीसदी लोग रोजगार में हैं. स्नातक पास लोगों में 57.5 फीसदी लोग ही काम कर रहे है.

इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार युवाओं में जो पांचवी से कम पढ़े हैं उनमें बेरोजगारी दर सबसे कम 3.2 प्रतिशत है. ग्रेजुएट या ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों में बेरोजगारी दर सर्वाधिक 28.7 फीसदी है.

बिहार की क्या है स्थिति?

सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों में बिहार की स्थिति यूपी और महारष्ट्र के मुकाबले आंकड़ों में बेहतर दिखाई पड़ती हैं. जहां महाराष्ट्र में बेरोजगारी दर 3.3 फीसदी, यूपी में 3.1 फीसदी है, वही बिहार में यह 3 फीसदी है. आंकड़ों में बिहार देश के औसत बेरोजगारी दर (3.02 फीसदी) को पीछे करने में सफल दिखता है. लेकिन पड़ोसी राज्य झारखंड (1.3 फीसदी) और पश्चिम बंगाल (2.5 फीसदी) से यह अब भी पीछे है.

बेरोजगारी दर से इतर श्रम शक्ति सहभागिता में भी बिहार बाकि राज्यों के मुकाबले काफी पीछे है. 15 वर्ष या उससे अधिक आयुवर्ग की कितनी आबादी श्रमशक्ति में अपना योगदान दे रही है उसी के आधार पर श्रम शक्ति सहभागिता दर निकाला जाता है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2024 के अनुसार बिहार की श्रम शक्ति सहभागिता दर (एलएफपीआर) 50.9 फीसद है जो राष्ट्रीय औसत (61.6 फीसद) से 10.5 फीसदी कम है.

एलएफपीआर के अलावे बिहार में नियोजित लोगों की संख्या भी राष्ट्रीय औसत (59.5 फीसदी) से कम है. श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) जिसे नियोजित व्यक्तियों के रूप में गिना जाता है. बिहार में मात्र 48.7 फीसदी व्यक्ति नियोजित हैं. अगर क्षेत्रवार आंकड़ों को देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त लोगों की संख्या शहरों के मुकाबले अधिक हैं. इसमें ग्रामीण क्षेत्र में 49.5 फीसदी और शहरी क्षेत्र में 41.2 फीसदी व्यक्ति नियोजित हैं.

वहीं नियोजित पुरुषों और महिलाओं के बीच काफी अंतर है. राज्य में जहां 73.7 फीसदी पुरुष नियोजित हैं. वहीं नियोजित महिलाएं मात्र 23.5 फीसदी हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि राज्य की लगभग 67% आबादी आर्थिक तौर पर दूसरों पर निर्भर है. दरअसल 0 से 14 वर्ष तक बच्चे और 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों का, 15 से 64 वर्ष के कामकाजी व्यक्ति पर आर्थिक निर्भरता के अनुपात को व्यक्ति निर्भरता अनुपात कहते हैं. किसी भी देश या राज्य में रहने वाली कितनी प्रतिशत आबादी आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर है इसका अनुमान भी इस अनुपात से लगाया जा सकता है.

सावधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण बिहार की 68.8 फीसदी आबादी आर्थिक रूप से सक्रिय कमाऊ आबादी पर निर्भर थी. वहीं शहरी बिहार में 49.3 फीसदी आबादी आर्थिक तौर पर दूसरों पर निर्भर है.

हाल के कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में रोजगार एक प्रमुख मुद्दा बना है. बीते एक साल में बिहार के शिक्षा विभाग में पौने चार लाख शिक्षकों की बहाली ने सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं में उम्मीद जगाई है.

विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्षी नेता तेजस्वी यादव रोजगार के मुद्दे पर श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं. इस वर्ष गांधी मैदान में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा इसी मुद्दे पर कहा “हमने 10 लाख नौकरी देने की घोषणा की थी, लेकिन साल के अंत तक 12 लाख सरकारी नौकरी दे देंगे. अबतक 10 लाख लोगों को नौकरी मिल चुकी है.”

नीतीश कुमार की सरकार ने दावा किया है कि पिछले चार वर्षों में 24 लाख लोगों को नौकरी दी गई है. देशभर में पलायन और मजदूरों वाला राज्य कहलाने वाला बिहार,अभी सरकारी नियुक्तियों के कारण चर्चा में है. लेकिन क्या यह नियुक्तियां नियमित अंतराल पर निकलती रहेंगी इसको लेकर युवाओं में संशय है. 

छात्र नेता दिलीप कुमार कहते हैं “बिहार हो या देश यहां नियुक्तियां चुनाव और वोटबैंक को ध्यान में रखकर ही निकलती हैं. 2025 में चुनाव के बाद भी अगर नियमित अंतराल पर नियुक्तियां निकलती है तभी युवा बेरोजगारी कम हो सकती है. अभी जो नियुक्तियां हुई है उसमें बिहार के कितने युवाओं को नौकरी मिली है इसका डाटा सरकार सामने रखे. क्योंकि चुनाव के समय वोटिंग बिहार के युवाओं को करना है.” 

स्वरोजगार: क्या एक रास्ता हो सकता है?

आंकड़ों के अनुसार देश कार्यबल से जुड़ी 20 फीसदी आबादी दिहाड़ी मजदूरी और 22 फीसदी नौकरीपेशा समुदाय से आती हैं. वहीं कामकाजी वर्ग में सबसे ज्यादा 58 फीसदी लोग स्वरोजगार से जुड़े हैं. सरकार भी लोगों से नौकरी मांगने नहीं नौकरी देने वाला बनाने की अपील करती है. लेकिन स्व-रोजगार से जुड़े लोग बताते हैं कि कोरोनाकाल के बाद से इस क्षेत्र में कमाई घटी है.

छोटे दुकानदारों की संख्या बढ़ने के कारण पहले की तुलना में लाभ घटा है. स्वरोजगार से जुड़े लोगों की औसत मासिक कमाई 13,279 रूपए है. 

हनुमान नगर में बुटिक चलाने वाली लवली कुमारी कहती हैं “आज से 15 साल पहले हनुमान नगर में मेरे अलावा मात्र दो से तीन बुटिक थे लेकिन आज 10 से ज्यादा होंगे. नए दुकानदार अपने आपको मार्केट में सेटल करने के लिए प्रोडक्ट का दाम कम करके रखते हैं. जबकि कोरोना के बाद मटेरियल के दाम बढ़ गये लेकिन पांच सालों में हमलोग रेट नहीं बढ़ा सके हैं. इससे पुराने दुकानदारों का मार्केट खराब हो गया है.”

लवली बताती हैं उन्होंने मुद्रा योजना के तहत लोन लेने का भी प्रयास किया था लेकिन कई सारे डॉक्यूमेंट तैयार करने के बाद भी उन्हें इसका लाभ नहीं मिल सका.

केंद्र सरकार छोटी या कम पूंजी वाले लोगों को स्वरोजगार करने के लिए PMEGP, PMSVANidhi, PM Vishwakarma और Mudra Yojna जैसी कई योजनाएं चला रही है. बिहार सरकार भी रोजगार शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री उद्यमी योजना और लघु उद्यमी योजना चला रही है. 

इन सभी योजनाओं को छोटे कारोबारियों, सड़क किनारे दुकान लगाने वाले फूटकर दुकानदारों, पारंपरिक कलाओं में जुटे कारीगरों और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के लिए लाया गया है. इसके बावजूद देश में बेरोजगारी और पलायन एक बड़ी समस्या बनी हुई है. इसका कारण है सम्बंधित विभाग के अधिकारीयों द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन में हो रही अनियमितता की जांच नहीं करना.

ऐसे में केवल स्व-रोजगार पर जोड़ देने के साथ ही सरकार को उस क्षेत्र में पैदा होने वाली जटिलताओं पर भी ध्यान देना होगा.

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